ससुराल गेंदा फ़ूल-1

(Sasural Genda Phool- Part 1)

नेहा वर्मा 2005-08-12 Comments

This story is part of a series:

मेरा नाम आरती है। मेरी शादी बड़ौदा में एक साधारण परिवार में हुई थी। मैं स्वयं एक दुबली पतली, दूध जैसी गोरी, और शर्मीले स्वभाव की पुराने संस्कारों वाली लड़की हूँ। घर का काम काज ही मेरे लिये लिये सब कुछ है। पर काम से निपटने के बाद मुझे सजना संवरना अच्छा लगता है। रीति रिवाज के मुताबिक दूसरों के सामने मुझे घूंघट में रहना पड़ता है।

काम से हम लोग स्वर्णकार हैं। मेरे ससुर और पति कुवैत में काम करते हैं। उनकी कमाई वहाँ पर अच्छी है। कुवैत से दोनों मिलकर काफ़ी पैसा हमें भेज देते हैं…उससे यहाँ पर हमने अपना मकान का विस्तार कर लिया है।

मेरे पति के एक मित्र साहिल पास के गांव के हैं वो हमारे घर अक्सर आ जाते हैं और चार पांच दिन यहाँ रह कर अपना काम करके वापस चले जाते हैं। वो भी स्वर्णकार हैं। घर में बस तीन सदस्य ही हैं, मैं, मेरी सास और और मेरी छोटी सी ननद जो मात्र 13 साल की थी। साहिल हमारा हीरो है… वो हमारे यहाँ पर क्या क्या करता था… और हम उसके साथ कैसे मजे करते थे… आईये, मैं आपको आरम्भ से बताती हूँ…

मुझे इस घर में आये हुए लगभग चार माह बीत चुके थे…यानि मेरी शादी हुए चार माह ही बीते थे। आज साहिल भी गांव से आया हुआ था। मैंने उसे पहली बार देखा था। मेरी ही उम्र का था। उसे मेरी सास कमला ने उसे एक कमरा दे रखा था वो वहीं रहता था। कमला ने मेरा परिचय उससे कराया। मैंने घूंघट में से ही उन्हें अभिवादन किया।

उसके आते ही मुझे कमला ने पास ही सब्जी मण्डी से सब्जी लाने भेज दिया। मैं जल्दी से बाहर निकली और थोड़ी दूर जाने के बाद मुझे अचानक याद आया कि कपड़े भी प्रेस कराने थे…मैं वापस लौट आई।

कमला और साहिल दोनों ही मुझे नजर नहीं आये… साहिल भी कमरे में नहीं था। मैं सीधे कमला के कमरे की तरफ़ चली आई… मुझे वहाँ पर हंसने की आवाज आई… फिर एक सिसकारी की आवाज आई… मैं ठिठक गई।

अचानक हाय… की आवाज कानों से टकराई… मैं तुरंत ही बाहर आ गई मुझे लगा कि मां अन्दर साहिल के कुछ ऐसा वैसा तो नहीं कर रही है।
मैंने बाहर बरामदे में आकर आवाज लगाई…’मां जी…! कपड़े कहाँ रखे हैं?’

कमला तुरन्त अपने कमरे में से निकल आई… साहिल कमरे में ही था। अपने अस्त व्यस्त कपड़े सम्हालती हुई बाहर आ कर कहने लगी- ये बाहर ही तो रखे हैं…’

उनके स्तनों पर से ब्लाऊज की सलवटें बता रही थी कि अभी बोबे दबवा कर आ रही हैं…उनकी आंखें सारा भेद खोल रही थी। आंखो में वासना के गुलाबी डोरे अभी भी खिंचे हुए थे। मुझे सनसनी सी होने लगी… तो क्या कमला… यानी मेरी सास और साहिल मजे करते हैं…?

मैं भी घर में नई थी…मेरा पति भी बाहर था, मैं भी बहुत दिनों से नहीं चुदी थी, मेरा मन भी भारी हो उठा…मन में कसक सी उठने लगी… मां ही भली निकली… पति की दूरी साहिल पूरी कर देता है… और मैं… हाय…

मैं सब्जी लेकर और दूसरे काम निपटा कर वापस आ गई थी। सहिल और कमला दोनों ही खुश नजर आ रहे थे… क्या इन दोनों ने कुछ किया होगा। मेरे मन में एक हूक सी उठने लगी।

मुझे साहिल अब अचानक ही सुन्दर लगने लगा था… सेक्सी लगने लगा था। मैं बार बार उसे नीची और तिरछी नजरों से उसे निहारने लगी। कमला भी उसके आने के बाद सजने संवरने लगी थी। 40 वर्ष की उम्र में भी आज वो 25 साल जैसी लग रही थी। मेरा मन बैचेन हो उठा…भावनायें उमड़ने लगी… मन भी मैला हो उठा।

दिन को सभी आराम कर रहे थे… तभी मुझे कमला की खनकती हंसी सुनाई दी। मैं बिस्तर से उठ बैठी। धीरे से कमरे के बाहर झांका फिर दबे कदमों से कमला के कमरे की तरफ़ बढ़ गई। दरवाजे खिड़कियाँ सभी बन्द थे… पर मुझे साईड वाली खिड़की के पट थोड़े से खुले दिखे।

मैंने साईड वाली खिड़की से झांका तो मेरा दिल धक से रह गया। कमला ने सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाऊज पहना था… सहिल बनियान और सफ़ेद पजामा पहना था… कमला अपने पांव फ़ैला कर लेटी थी और साहिल पेटीकोट के ऊपर से ही अपना लण्ड पजामे में से कमला की चूत पर घिस रहा था… कमला सिसकारी भर कर हंस रही थी…

मेरे दिल की धड़कन कानों तक सुनाई देने लगी थी। अब साहिल टांगों के बीच में आकर कमला पर लेटने वाला था… कमला का पेटिकोट ऊपर उठ गया… पजामें में से साहिल का लण्ड बाहर आ गया और अब एक दूसरे को अपने में समाने की कोशिश करने लगे…
अचानक दोनों के मुख से सिसकारी निकल पड़ी… शायद लण्ड चूत में घुस चुका था… बाहर से अब साहिल के चूतड़ो के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। मेरे पांव थरथराने लगे थे।

मैं दबे पांव अपने कमरे में आ गई… मेरा चेहरा पसीने से नहा गया था। दिल की धड़कने अभी भी तेज थी। मैं बिस्तर पर लोट लगाने लगी। मैंने अपने उरोज दोनों हाथो से दबा लिये… चूत पर हाथ रख कर दबाने लगी।

फिर भाग कर मैं बाहर आई और एक लम्बा सा बैंगन उठा लाई। मैंने अपना पेटिकोट उठाया और बैंगन से अपने आपको शांत करने का प्रयत्न करने लगी। कुछ ही देर में मैं झड़ गई।

रात हो चुकी थी। लगता था कि कमला और सहिल में रात का प्रोग्राम तय हो चुका है। दोनों ही हंस बोल रहे थे…बहू होने के कारण मुझे घूंघट में ही रहना था… मैं खाना परोस रही थी… सहिल की चोरी छुपे निगाहें मुझे घूरती हुई नजर आ जाती थी। मैं भी सब्जी, रोटी के बहाने उसके शरीर को छू रही थी… घूंघट में से मेरी बड़ी बड़ी आंखें उसकी आंखों से मिल जाती थी।

मेरी हल्की मुस्कुराहट उसे आकर्षित कर रही थी… मेज़ के नीचे से कमला और साहिल के पांव आपस में टकरा रहे थे… और खेल कर रहे थे… ये देख कर मेरा मन भी भटकने लगा था कि काश…मेरी भी ऐसी किस्मत होती… कोई मुझे भी प्यार से चोद देता और प्यास बुझा देता…

रात को सोने से पहले मैं पेशाब करने बाहर निकली तो साहिल बाहर ही बरामदे में खड़ा था। मैं अलसाई हुई सी सिर्फ़ पेटिकोट और बिना ब्रा की ब्लाऊज पहले निकल आई थी।

साहिल की आंखे मुझे देखते ही चुंधिया गई… दूध सा गोरा रंग… छरहरी काया… ब्लाऊज का एक बटन खुला हुआ… गोरा स्तन अन्दर से झांकता हुआ… बिखरे बाल… वह देखता ही रह गया।

उसे इस तरह से निहारते हुए देख कर मैं शरमा गई… और मेरी नजरें झुक गई…’सहिल जी… क्या देख रहे हैं… आप मुझे ऐसे मत देखिये…’ मैं अपने आप में ही सिमटने लगी।

‘आप तो बला की खूबसूरत हैं…’ उसके मुख से निकल पड़ा।
‘हाय… मैं मर गई…!’ मैं तेजी से मुड़ी और वापस कमरे में घुस गई… मेरी सांसे तेज हो उठी… मैंने अपनी चुन्नी उठाई और सीने पर डाल ली… और सर झुकाये साहिल के पास से निकलती हुई बाथ रूम में घुस गई।

मैं पेशाब करना तो भूल ही गई…अपनी सांसों को…धड़कनो को सम्हालने में लग गई… मेरी छाती उठ बैठ रही थी… मैं बिना पेशाब किये ही निकल आई। साहिल शायद मेरा ही बरामदे में खड़ा लौटने का इन्तज़ार कर रहा था। मैंने उसे सर झुका कर तिरछी नजरों से देखा तो मुझे ही देख रहा था।

‘सुनो आरती…!’
मेरे कदम रुक गये…जैसे मेरी सांस भी रुक गई… धड़कन थम सी गई…
‘जी…’
‘मुझे पानी पिलायेंगी क्या…?

‘जी…’ मेरे चेहरे पर पसीना छलक उठा… मैं पीछे मुड़ी और रसोई के पास से लोटा भर लाई…मैंने अपने कांपते हाथ साहिल की तरफ़ बढा दिये… उसने जानबूझ कर के मेरा हाथ छू लिया।

और मेरे कांपते हाथों से लोटा छूट गया… मैंने अपनी बड़ी बड़ी आंखे ऊपर उठाई और साहिल की तरफ़ देखा…तो वो एक बार फिर मेरी आंखो में गुम सा हो गया… मैं भी एकटक उसे देखती रह गई… मन में चोर था… इसलिये साधारण व्यवहार भी कठिन लग रहा था।
साहिल का हाथ अपने आप ही मेरी ओर बढ़ गया… और उसने मेरे हाथ थाम लिये… मैं साहिल में खोने लगी… मेरे कांपते हाथों को उसने एकबारगी चूम लिया…

अचानक मेरी तन्द्रा टूटी… मैंने अपना हाथ खींच लिया…हाय…कहते हुये कमरे में भाग गई और दरवाज़ा बन्द कर लिया। दरवाजे पर खड़ी आंखें बन्द करके अपने आपको संयत करने लगी… जिन्दगी में ऐसा अहसास कभी नहीं हुआ था… मेरे पांव भी थरथराने लगे थे… मैं बिस्तर पर आकर लेट गई। नींद आंखों से कोसों दूर थी। देर तक जागती रही। समय देखा… रात के बारह बज रहे थे…

उस समय तो मैं पेशाब नहीं कर पाई थी सो मैंने इस बार सावधानी से दरवाजा खोला और इधर उधर देखा… सब शान्त था… मैं बाहर आ कर बाथरूम चली गई। बाहर निकली तो मुझे कमला के कमरे की लाईट जली नजर आई… और मुझे लगा कि साहिल भी वहीं है…
मैं दबे कदमों से उसी खिड़की के पास आई… अन्दर झांका तो साहिल पहली नजर में ही दिख गया। कमला साहिल की गोदी में दोनों पांव उठा कर लण्ड पर बैठी थी…शायद लण्ड चूत में घुसा हुआ था। दोनों मेरी ही बातें कर रहे थे…

‘मां जी… कोई मौका निकाल दो ना… बस आरती को चोदने को मिल जाये…!’
‘उह… ये थोड़ा सा बाहर निकालो… जड़ तक बैठा हुआ है… आरती तो बेचारी अब तक ठीक से चुदी भी नहीं है…!’
‘कुछ तो करो ना…’
‘अरे तू खुद ही कोशिश कर ले ना… जवान चूत है… पिघल ही जायेगी… फिर चुदने की उसे भी तो लगी होगी… ऐसा करना कि मुझे सवेरे काम से जाना है दोपहर तक आऊँगी…’
‘तो क्या…!’

‘अरे उसे दबोच लेना और चोद देना…फिर मैं तो हूँ ही…समझा दूंगी… हाय रे अन्दर बाहर तो कर ना…! चल बिस्तर पर आ जा…!’
कमला धीरे से उठी…साहिल का लम्बा सा लण्ड चूत से बाहर निकल आया…

हाय रे इतना मोटा और लम्बा लण्ड… मेरी चूत पनियाने लगी… उनके मुँह से मेरे बारे में बाते सुन कर एक बार फिर मेरी दिल की धड़कन बढ़ गई। दिल को तसल्ली मिली कि शायद कल मैं चुद जाऊँ… सोचने लगी कि जब साहिल मेरे साथ जबरदस्ती करेगा तो मैं चुदवा लूंगी और अपनी प्यास बुझा लूंगी।

पलंग की चरमराहट ने मेरा ध्यान भंग कर दिया, साहिल कमला पर चढ़ चुका था, उसका मोटा लण्ड उसकी चूत पर टिका था…

‘चल अन्दर ठोक ना… लगा दे अब…’ और फिर सिसक उठी, लण्ड चूत के भीतर प्रवेश कर चुका था।

मेरी चूत में से पानी की दो बूंदे टपक पड़ी… मैंने अपने पेटीकोट से अपनी चूत रगड़ कर साफ़ कर ली… मेरा मन पिघल उठा था… हाय रे कोई मुझे भी चोद दे… कोई भारी सा लण्ड से मेरी चूत चोद दे… मेरी प्यास बुझा दे…

अन्दर चुदाई जोरदार चालू हो चुकी थी। दोनों नंगी नंगी गालियो के साथ चुदाई कर रहे थे- हाय कमला… आज तो तेरी भोसड़ी फाड़ डालूंगा… क्या चिकनी चूत है…!’

‘पेल हरामी… ठोक दे अपना लण्ड…चोद दे साले…’ दोनों की मस्त चुदाई चलती रही… एक हल्की चीख के साथ कमला झड़ने लगी… मेरी नजरें उनकी चुदाई पर ही टिकी थी… साहिल भी अब अपना वीर्य कमला की चूत पर छोड़ रहा था।

मैं दबे पांव अपने कमरे में लौट आई… मेरी स्थिति अजीब हो रही थी। क्या सच में कल मैं चुद जाऊँगी…कैसा लगेगा… जम कर चुदवा लूंगी…

सोचते सोचते मेरी आंख जाने कब लग गई और मैं सपनों में खो गई……सपने में भी साहिल मुझे चोद रहा था… मुझ पर वीर्य बरसा रहा था… सब कुछ गीला गीला सा लगने लगा था…मेरी आंख खुल गई… मैं झड़ गई थी… मैंने अपनी चूत पेटीकोट से ही पोंछ डाली। सवेरा हो चुका था…
मैं जल्दी से उठी…और अपना गीला पेटीकोट बदला…और सुस्ताती हुई दरवाजा खोल कर बाहर आ गई…

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