कमसिन स्कूल गर्ल की व्याकुल चूत-4

(Kamsin School Girl Ki Vyakul Chut- Part 4)

This story is part of a series:

मेरी तरफ से हां का इशारा पाते ही अंकल जी ने मुझे फिर से अपनी बांहों में भर लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और मेरा निचला होंठ चूसने लगे साथ ही अपना हाथ नीचे लेजाकर मेरी सलवार के ऊपर से ही मेरी झांटों वाली चूत सहलाने लगे और उसे मुट्ठी में भर के मसल दिया.
मेरा पूरा बदन झनझना उठा.

तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी तो अंकल जी ने मुझे छोड़ दिया और मैं तेज तेज कदमों से चलती हुई अपने घर लौट आई.

घर पहुंची तो मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था और मेरी मम्मी घर के बाहर ही मुझे खोज रहीं थीं.
“कहां चली गयी थी तू? मैं कब से तुझे ढूँढ रही हूं.” मम्मी बोली.
“मम्मी, मैं मोर्निंग वाक पर गयी थी आज. देखो दौड़ते हुए आ रही हूं.” मैंने लगभग हाँफते हुए कहा.

“बिटिया रानी, सुबह घूमना तो बहुत अच्छा होता है सेहत के लिए, मैं तो कहती हूं तू रोज जाया कर!” मम्मी खुश होकर बोलीं.
“जी मम्मी, कल से पक्का रोज जाऊँगी, बस आप मुझे जल्दी जगा दिया करना.”
“हां हां ठीक है, चली जाना, चल पहले चाय नाश्ता कर ले, कब से तेरा इंतज़ार कर रही हूं.” मम्मी बोली.

तो इस तरह मेरे मन की मुराद पूरी होने वाली थी. ‘मैं जल्दी ही चुदने वाली हूं!’ ऐसा सोच कर मुझे खुद से शर्म आती कभी डर लगता कि कहीं ऐसा न हो जाय वैसा न हो जाय, चूत की सील टूटेगी तो सुना था कि भयंकर दर्द सहना पड़ता है वगैरा वगैरा …
पर मैंने मन पक्का कर लिया कि जब ओखली में सिर दे ही चुकी हूं तो अब डर कैसा … जो भी होगा उसे हिम्मत के साथ झेलूंगी. मैंने सुरेश अंकल को ओके तो कह ही दिया था तो अब गेंद उन्हीं के पाले में थी. जो करना था अब उन्हें ही करना था, मैं अब निश्चिन्त थी.

अगली सुबह मैं साढ़े चार पर ही उठ गई और फ्रेश होकर नहा भी ली और सलवार कुरता दुपट्टा डाल के मैं तैयार हो गई, ब्रा और पैंटी पहनने का मन ही नहीं हुआ.

सुरेश अंकल मेरे जीवन में प्रथम पुरुष थे जो मुझे अच्छे लगे थे तो अब मैं उन्हें अपना बेस्ट से बेस्ट देना चाहती थी. इस तरह साफ सुथरी नीट एंड क्लीन होकर मैं अंकल जी से मिलने निकलने ही लगी थी कि मन में एक बार खुद को आईने में देखने का मन हुआ तो ड्रेसिंग टेबल के आगे जा खड़ी हुई और खुद को हर तरफ से निहारा. बिना ब्रा के मेरे स्तन आजाद होकर जैसे उछल कूद मचा रहे थे जिन्हें मैंने खेलने दिया और दुपट्टे से ठीक से ढक दिया और निकल ली.

उस टाइम साढ़े पांच होने ही वाले थे और सुरेश अंकल के आने का टाइम अभी नहीं हुआ था वे तो साढ़े पांच के थोड़ी देर बाद ही निकलते थे मेरे घर के आगे से.

सुबह की तरोताजा हवा में मैं हिरनी की भांति कुलांचे भरती हुई कल वाली जगह पर जा पहुंची और एक पत्थर पर बैठ कर प्राणायाम करने का बहाना करने लगी.
पर मेरी नज़रें तो सुरेश अंकल के आने का रास्ता देख रहीं थीं. मोर्निंग वाक पर आने वालों की भीड़ रोज की तरह ही थी; जहां मैं बैठी थी वहां भी आसपास इक्के दुक्के लोग आ जा रहे थे. तभी मुझे अंकल जी आते दिखे.

इस बार मैंने अंकल जी को नयी नज़र से देखा जैसे कोई अपने होने वाले चोदनहार को देखे.

अंकल जी ने मुझे देखा और अपने होंठों से मुझे चूमने का इशारा किया
मैंने भी वैसे ही अपने होंठों से हवा को चूमा और सिर झुका लिया.
“सोनम बेटी, आओ और आगे चलते हैं.” अंकल जी मेरे पास से निकलते हुए धीरे से बोले.

मैं अंकल जी के पीछे पीछे हो ली.

तीन चार मिनट चलने के बाद हम लोग घने पेड़ों और झाड़ियों के बीच जा पहुंचे. यहां कोई पगडण्डी भी नहीं थी, सिर्फ झाड़ियाँ और ऊबड़ खाबड़ पेड़ों की बहुतायत थी. हम लोग कुछ ही आगे चलकर समतल जमीन पर बैठ गए.

बैठते ही अंकल जी ने मुझे तारीफ़ भरी गहरी नज़रों से देखा- सोनम बेटा, तू वैसे ही बहुत ही खूबसूरत है पर आज कुछ ख़ास बात है तुझमें … आज तो तू और भी सुन्दर सजीली लग रही है.
अंकल जी ने मेरी तारीफ़ की.
“थैंक्यू अंकल जी, पर इत्ती भी सुन्दर नहीं हूं मैं … जो आप इतनी तारीफ़ कर रहे हो.”
“सोनम बेटा, तू रियली बहुत ही सुन्दर है तन से भी और मन से भी!”
“सच्ची में अंकल जी?” मैंने खुश होकर कहा.

“हां बेटा, एकदम सच्ची में!” अंकल जी बोले और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी ओर खींच लिया. मैं भी उनके सीने से जा लगी और अपना चेहरा उनकी छाती में छिपा लिया.
अंकल जी मेरी पीठ पर हाथ से सहलाने लगे; मेरी चिकनी पीठ पर उनके हाथ निर्विघ्न फिसल रहे थे क्योंकि ब्रा तो मैंने पहनी ही नहीं थी.

अचानक अंकल जी ने मुझे घास पर लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गये और मेरी आँखों में झाँका तो मैंने आँखें झुका दीं. अंकल जी ने मेरा निचला होंठ चूसना शुरू कर दिया और मेरे दोनों स्तन दबोच लिए और मसलने लगे. मैं आनन्द से सागर में डूबने लगी और मेरी चूत पनिया गई और रस बहाने लगी.

उस समय सूर्योदय हो रहा था. पक्षी चहचहा रहे थे और मंद शीतल मदभरी हवा चलने लगी थी और अंकल जी के दूध मसलने से मुझ पर एकदम मस्ती चढ़ रही थी और नशा सा छा रहा था. हालांकि मेरी सहेली डॉली ने भी मेरे मम्मे कई बार दबाये थे, चूसे भी थे पर ऐसा सुख मुझे पहली बार ही मिल रहा था. उस दिन मैंने जाना कि पुरुष के हाथों का स्पर्श अलग ही मज़ा देता है.
अंकल जी के चुम्बन का जवाब मैं भी तत्परता से देने लगी और उनके होंठ चूसने लगी. मेरी चूत में गजब की सुरसुरी मच रही थी मुझे लग रहा था कि मैं बस अब आई कि अब आई.

तभी अंकल जी ने मेरी कचौरी जैसी फूली चूत अपनी मुट्ठी में भर ली और उसे हौले हौले मसलने लगे, सहलाने लगे जिससे उसके भीतर का गीलापन बाहर तक बहने लगा और मेरी सलवार भीगने लगी. मैं उत्तेजना में अपनी ऐड़ियां वहीं घास पर रगड़ने लगी.

उधर अंकल जी का लंड मेरे पेट से टकरा रहा था और उसकी कठोरता का मुझे स्पष्ट आभास हो रहा था.

तभी मुझे ख्याल आया कि हम लोग खुले में असुरक्षित जगह पर हैं जहां कोई भी अचानक हमें देख सकता है. यही बात मैंने अंकल जी को कही तो वो तुरंत मेरे ऊपर से हट गए और दूर जा बैठे.

“सॉरी सोनम बेटा, मैं बहक गया था” अंकल जी बोले.
“कोई नी अंकल जी!”
“सोनम बेटा, तुम्हारी आंटी आज दिन में अपने मायके जा रही हैं अपनी मम्मी से मिलने, वो दो साल बाद जा रहीं हैं तो वो पंद्रह बीस दिन रुक कर ही आयेंगी और मैं एकदम अकेला रहूंगा. अगर तुम मेरे घर आ सको तो आ जाना.” अंकल जी ने कहा.
“पर अंकल जी, आप तो ऑफिस जाओगे न?”
“नहीं, मैंने एक सप्ताह की छुट्टी ले ली है.”

“ओह … और आपका खाना कौन बनाएगा?” मैंने पूछा
“कोई पक्का नहीं बेटा, होटल में खा लूंगा या फिर कभी कभी खुद भी बना लूंगा; थोड़ा बहुत आता है मुझे!” अंकल जी ने कहा.
“हम्म … ठीक है अंकल जी!”

“सोनम बेटा, अगर तेरे पास टाइम हो तो कभी आना मुझसे मिलने!”
“जी अंकल जी, आ तो जाऊँगी मैं … पर डर भी बहुत लगता है, कोई देख लेगा तो?” मैंने हिचकिचाते हुए कहा.
“हां बेटा, अब थोड़ी सावधानी तो बरतनी ही पड़ेगी हमें. देखो बेटा, हम लोग मेरे घर पर ही अच्छी तरह से मिल सकते हैं और कहीं मिलना तो सम्भव है नहीं!”
“हां अंकल वो तो है. अच्छा देखूंगी मैं!” मैंने हिम्मत कर के कहा.
“तुमने घर तो देखा है न मेरा?” अंकल जी ने पूछा.
“मुझे पता है आपका घर!” मैंने कहा.

उस दिन अंकल जी से मिल कर घर लौटी तो सारे दिन दिल धक् धक् करता रहा कि अब क्या करूं क्या न करूं. अंकल जी ने तो चुदाई का इंतजाम कर दिया था बस अब मुझे हिम्मत करके उनसे चुदने जाना था. जाऊं तो कैसे जाऊं? कोई देख लेगा तो? सारा दिन इन्हीं ख्यालों में उलझी रही.

रात को सोने लगी तो आँखों में नींद नहीं. रह रह कर सुबह अंकल जी के साथ बिताये वो पल याद आने लगे. आह … कितना मज़ा आ रहा था जब वो मेरी चूत मसल रहे थे, मेरी चूचियां दबा के मेरे होंठ चूस रहे थे और मेरी चूत से गंगा जमुना बह रही थी.

ऐसे सोचते सोचते मेरी चूत फिर से गीली होने लगी.

मैंने अपने कमरे की लाइट बुझा दी और पूरी नंगी होकर अपनी चूत सहलाने लगी. तभी याद आया कि अंकल जी का कड़क लंड कैसे मेरे पेट पर चुभ रहा था और अब वही लंड मेरी चूत में घुसेगा. ऐसे सोचते ही मुझे खुद से शर्म हो आई और मैं औंधी लेट गयी और तकिये से अपनी चूत घिसने रगड़ने लगी.

जब उत्तेजना बहुत ज्यादा महसूस हुई तो मैं सीधी लेट गयी और अपनी टांगें ऊपर उठा कर घुटनें मोड़ लिए जिससे मेरी चूत अच्छे से उभर गई. मैंने चूत में आठ दस चांटे प्यार से मारे और अपना दाना जल्दी जल्दी रगड़ने लगी. एक बार मन किया कि किचन से मोटी सी मूली लाकर उसे चूत में घुसा कर अपनी सील खुद ही तोड़ डालूं और मजा लूट लूं; पर जैसे तैसे मैंने खुद को काबू किया और उंगली से ही मोती रगड़ रगड़ कर झड़ झड़ा कर तो गयी.

अगली सुबह देर से आँख खुली; सात बज चुके थे और दिन चढ़ आया था तो अब मोर्निंग वाक पर जाने का तो प्रश्न ही नहीं था अतः यूं ही अलसाई सी लेटी रही और मन में उधेड़बुन चलती रही, सोचती रही कि सुरेश अंकल के यहां जाना है; अंकल जी ने मेरे ही कारण आंटी जी को मायके भेजा होगा और अब खुद ऑफिस से छुट्टी लेकर घर पर मेरे इंतज़ार में बैठे होंगे.

कहानी जारी रहेगी.
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