सम्भोग : एक अद्भुत अनुभूति-1

(Sambhog- Ek Adbhut Anubhuti-1)

This story is part of a series:

मैं पटना का रहने वाला हूँ। हालाँकि जिस घटना के बारे में मैं लिख रहा हूँ उस वक्त मेरी उम्र 24-25 की थी। पर कहानी को अच्छी तरह से समझाने के लिए मैं घटना की पृष्ठभूमि भी बता रहा हूँ।

बहुत पुरानी बात है। उस वक्त मैं 21 साल का था। मैं अपनी पढ़ाई समाप्त करके नया-नया इंश्योरेंस के बिजनेस में आया था। मेरे घर के ठीक बगल वाले मकान में एक परिवार किराये पर रहने के लिए आया। परिवार के मुखिया अशोक शर्मा उम्र 50 साल, उनकी पत्नी देविका उम्र 45 साल और उनकी इकलौती लड़की वीणा उम्र 19 साल थे। तीनों ही काफी स्मार्ट और अच्छे व्यक्तित्व के थे।

वीणा के व्यक्तित्व का तो जवाब ही नहीं था। कद 5 फुट 6 इंच, गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, पतले गुलाबी होंठ, सुतवां नाक, छरहरा बदन, पुष्ट और सुडौल वक्ष, थोड़ा बाहर को निकला नितम्ब, लंबी पतली टाँगें। मतलब किसी कवि की कल्पना जैसे साकार हो उठी हो। एक बात बताऊँ कि उसे देखकर कहीं से भी उसके प्रति गलत भावना का उदय मन में नहीं होता था। सिर्फ लोग उसकी सुंदरता में खो से जाते थे। पता नहीं क्यों मैं जब भी उसे देखता था किसी और दुनिया में चला जाता था।

मेरी माँ ने घर में ही एक सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र खोल रखा था। वीणा भी पहली बार मेरे घर सिलाई केन्द्र में दाखिला लेने ही आई थी। जब तक वो मेरे यहाँ रही, मैं अपने कमरे से छुप कर देखता ही रहा। फिर अक्सर मेरे यहाँ आती रही। कभी-कभार उसके साथ बहुत संक्षिप्त बातचीत भी हो जाती थी, मसलन वो मेरे माँ के बारे में पूछती कि चाची कहाँ है या ऐसे ही कोई सवाल।

मैं अपनी ओर से कभी कोई बात नहीं कर पाता था क्योंकि उसे देखते ही मेरी जुबान बंद हो जाती थी। जब कभी वो मेरी ओर नजर उठा कर देखती थी तो मैं संज्ञा-शून्य हो जाता था, मेरी आँखें पथरा जाती थी। जब वो कुछ पूछती थी तो मैं हकलाते हुए ही जवाब दे पाता था।

ऐसे ही करीब एक साल गुजर गया। वो एम.कॉम. में पढ़ती थी। उसका कॉलेज घर से करीब 12 किलोमीटर दूर था। वो कॉलेज अपनी स्कूटी से जाती थी।

एक दिन की बात है, शाम के करीब साढ़े छः बज रहे थे और शाम का धुंधलका छा गया था। मैं उसके कॉलेज की तरफ से ही अपने घर को जा रहा था। कॉलेज से लगभग दो किलोमीटर के बाद अगला पांच-छः किलोमीटर बिल्कुल सुनसान इलाका पड़ता था। मैंने देखा सड़क के किनारे वीणा परेशान सी खड़ी थी और उसकी स्कूटी बगल में स्टैंड पर खड़ी थी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो वो रोआंसी सी बोली- स्कूटी खराब हो गई है, स्टार्ट ही नहीं हो रही है।

मैंने भी एक-दो बार कोशिश की उसे स्टार्ट करने की पर सफल नहीं हुआ।

मैंने कहा- घबराने की कोई बात नहीं है, कुछ ही दूरी पर मेरा एक पहचान वाला है उसके घर स्कूटी रखवा देंगे और मैं तुम्हें अपने बाइक से घर छोड़ दूँगा।

उसने हाँ बोला तो मैंने उसके स्कूटी का बंदोबस्त करवा कर उसे अपने पीछे बाइक पर बैठा लिया।

दोस्तों क्या कहूँ कि मैं उस वक्त क्या महसूस कर रहा था। लगता था जैसे मैं स्वप्न देख रहा हूँ। मुझे खुद पर भी भरोसा नहीं हो रहा था कि मैं उस नाज़नीना को जिसको सिर्फ देखने भर से ही मेरा रोम-रोम पुलक जाता था वो मेरे साथ, मेरे बाइक पर, मेरे शरीर से चिपकी हुई बैठी है।

खैर जैसे-तैसे मैं घर पहुँचा तो वो मुझे थैंक्स बोलकर अपने घर चली गई।

अगली सुबह उसकी माँ ने आकर मुझे धन्यवाद कहा। मैंने एक मैकेनिक को साथ ले जाकर उसकी स्कूटी रिपेयर करवा कर उसके घर पहुँचवा दी।

फिर यदा-कदा वो मुझसे बात भी करने लगी। लेकिन बात करते हुए भी उसकी नजर हमेशा नीचे की ओर ही रहती थी। वो थी ही इतनी शांत और शालीन कि उसके साथ काम के अलावा और कोई भी बात करने की हिम्मत नहीं होती थी।

लेकिन कहते हैं न कि लड़कियों की नजरें चेहरे को पढ़ने में माहिर होती हैं। एक दिन की बात है, मैं अपने घर में अकेला ही था, माँ-पापा एक शादी में तीन चार दिनों के लिए गाँव गए हुए थे, वीणा मेरे घर आई और माँ के बारे में पूछा।

मैंने बताया कि माँ नहीं है। मुझे लगा कि अब वो चली जायेगी पर वो गई नहीं और मेरे सामने वाले सोफे पर बैठ गई। मैं उससे नजरें चुराता हुआ उसकी ओर देख रहा था। मैंने देखा कि वो भी मेरी ओर ही देख रही थी।

मैंने अपनी नजरें फेर लीं तो उसने बहुत ही मधुर स्वर में मुझसे पूछा- क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो?

मेरी तो सांसें ही रुक गई, मैंने हकलाते हुए कहा- न न न नहीं तो?!

तो उसने भी कुछ झिझकते हुए ही कहा- मैं कई दिनों से यह महसूस कर रही हूँ कि तुम कुछ कहना चाहते हो शायद मुझसे। यदि कोई बात हो तो कह सकते हो, मुझे बुरा नहीं लगेगा।

मेरी कुछ हिम्मत बंधी तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और कुछ कहने का प्रयास किया पर मेरे होंठ काँप कर रह गए पर कोई आवाज नहीं निकली।

उसने मेरी हालत समझ ली और कहा- तुम कुछ कह पाओ या नहीं पर मैं तुम्हें पसंद करती हूँ और यदि तुम्हारे मन भी ऐसी ही कोई भावना हो तो बोलो ना ! मुझे अच्छा लगेगा।

मेरा दिल तो उछलने लगा, मैंने कहा- मैं भी तुम्हें प्यार करने लगा हूँ पर तुम एक अच्छे घर की अच्छी लड़की हो इसलिए कुछ कहने में हिचकिचा रहा था कि न जाने तुम मेरे बारे में क्या-क्या सोचने लगो।

उसने कहा- क्या अच्छे घर की लड़कियों को प्यार नहीं करना चाहिए? उनके मन में भी तो भावनाओं का ज्वार उठ सकता है।

फिर उसने साफ-साफ कहा- मुझे तुम्हारा प्यार स्वीकार है पर आगे की कुछ मत सोचना। शादी से पहले मैं तुम्हे कुछ दे नहीं पाऊँगी। पर यह वादा भी करती हूँ तुमसे कि मेरे इस शरीर पर सिर्फ तम्हारा ही अधिकार होगा, कोई दूसरा मेरे शरीर को भोग नहीं सकेगा।

मैंने भी स्वीकार किया कि- देखो किसी लड़की को देखकर जो मन में सेक्स की भावना मन में उठती है, पता नहीं क्यों तुम्हें देख कर कभी भी वैसी कोई भावना उठी ही नहीं। तुम्हारी सादगी और सौम्यता देखकर तो सिर्फ तुम्हें पूजने को जी चाहता है।

सुनकर उसकी आँखें डबडबा गई, उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- क्या तुम मुझे जीवन भर इसी तरह प्यार करते रहोगे?

मेरे हाँ कहने पर उसने मेरे हाथों को कसकर दबा दिया और चली गई।

फिर तो हमारे प्यार का सिलसिला चलता रहा। लेकिन कभी भी मैंने उसे अपनी बाँहों में भी नहीं लिया और ना ही कभी उसे चूमने की कोशिश की। हमारा प्यार बड़े ही सात्विक ढंग से चलता रहा।

एक दिन मेरे घर के पानी की लाइन में कहीं रूकावट के कारण नीचे पानी आने में रुकावट हो गई तो मैं छत पर ही टैंक से पानी निकाल कर नहा रहा था। मैं सिर्फ अंडरवियर में था कि अचानक वो अपने छत पर धुले हुए गीले कपड़े फ़ैलाने आ गई।

जैसे ही उसकी नजर मेरे खुले कसरती बदन पर पर पड़ी वो कुछ पल तक एकटक देखती ही रह गई। जैसे ही मैं मुड़ा तो मुझसे नजर मिलते ही वो शरमाती हुई नीचे भाग गई। उस दिन मुझे भी कुछ-कुछ होने लगा।

दो दिन बाद वो मुझसे मिली तो कुछ देर बातचीत करने के बाद उसने नजर झुकाए ही कहा- तुम्हारे शरीर को देखकर अब मन बेकाबू होने लगा है।

मैंने कहा- पर तुमने तो खुद ही शादी की अड़चन डाल रखी है।
तो उसने कहा- यह तो मैंने मन की बात कही है सिर्फ। मैं ऐसा कोई भी कदम शादी से पहले नहीं उठाऊँगी।

और यह कहकर वो आकर मेरे सीने में सिमट गई। आज पहली बार मैंने उसे अपनी बाँहों में लिया। काफी देर तक वो मेरे बाँहों में मेरे सीने से चिपकी रही। आज मेरे मन में भी पहली बार सेक्स की भावना का उदय हुआ था। मेरा पूरा शरीर कांपने लगा और साथ ही मेरे लिंग में भी उफान आने लगा। कुछ ही देर में लिंग पूरा खड़ा और कड़ा हो गया।

मुझे लगा कि मैं अब बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगा लेकिन उसे छोड़ने का भी मन नहीं कर रहा था। फिर मैंने अपने लिंग पर उसके हाथ को महसूस किया। मैंने सोचा कि अब यदि हम दोनों ने खुद को नहीं रोका तो कुछ न कुछ अवश्य हो जाएगा, जो नहीं होना चाहिए।
मैंने उसके हाथ को पकड़ कर हटा दिया और उससे अलग हो गया।

वो भी कुछ-कुछ झेंपती हुई मुझसे अलग हो गई और बोली- मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था पर ना जाने क्यूँ कुछ खुद को रोक नहीं पाई। तुम मुझे गलत मत समझना।

दरअसल हम दोनों को ही परिवार से कुछ ऐसे संस्कार मिले हैं कि कोई भी गलत कदम उठाने से पहले सौ बातें दिमाग में आ जाती हैं और रोक देती हैं।

उस दिन के बाद से जब कभी हम आपस में मिलते थे तो इस बात का विशेष ख्याल रखते थे कि एक-दूसरे के शरीर को स्पर्श न कर जाए क्योंकि शारीरिक स्पर्श ही तो शरीर के साथ साथ दिमाग में भी आग लगा देती है। लेकिन कम दोनों का प्यार दिन प्रतिदिन गहरा होता जा रहा था, एक दूसरे के प्रति सम्मान और समर्पण बढ़ता ही जा रहा था।
यह सिलसिला करीब दो साल तक चला। फिर अचानक…

कहानी जारी रहेगी।
[email protected]
3231

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top