मुम्बई से दुबई- कामुक अन्तर्वासना-2

(Mumbai Se Dubai- Kamuk Antarvasna- Part 2)

राहुल मधु 2016-06-30 Comments

This story is part of a series:

मैं और मधु आज हम दोनों फ़ोन पर साथ साथ चुदाई का आनन्द ले रहे थे, तभी कुछ गिरने की आवाज़ आई, फिर आवाज़ आई- रआहूलल…

मैं बेसुध सा उसी हालत में कमरे से बाहर निकला।
निकलते ही फिर से प्लेट गिरने की आवाज़ आई जो आंटी के कमरे से आ रही थी।

मैंने जाकर दरवाज़ा खोला, अंदर देखा तो आंटी जमीन पर गिरी पड़ी थी, मैंने जाकर उन्हें उठाया, वो कुछ कहना चाह रही थी पर मैं समझ नहीं पा रहा था।
फिर रेनू के पैर तेज़ी से बाथरूम की तरफ चलने लगे।

मैंने उसकी मदद की कि वो बाथरूम जा सके।
बाथरूम में आते ही पॉट में अपना मुँह घुसा कर ओकने लगी। मैंने उसके बाल पकड़े जिससे उसके बाल पॉट के अंदर न जाएँ।
उलटी करने के बाद जब वो उठी तो उसे पकड़ कर वाश बेसिन पर कुल्ला कराया और फिर बिस्तर तक पकड़ कर लाया।

बिस्तर पर आते आते वो कुछ होश में आने लगी थी पर आँखें बिल्कुल खून की तरह लाल थी।
मुझे देखकर बोली- कुछ पहन तो आते?
मुझे जैसे अचानक नींद में किसी ने नोच लिया हो ऐसा झटका लगा।

मैं तुरंत रेनू के पास पड़े तकिए पर झपटा और उसे अपने लंड पर लगा लिया।
रेनू- इतनी देर से देख रही हूँ, अब क्या होता है छुपा के? जाओ अपने कमरे में और मेरा तकिया यही रख जाओ।

मैं बिना मुड़े, बिना कुछ बोले पीछे खिसक कर गया।
अपने कमरे में जाकर सबसे पहले फ़ोन देखा, फ़ोन कट गया था।
मैंने कॉल लगाया और साथ साथ बरमूडा पहन लिया।

फ़ोन को कान पर लगाकर रेनू का तकिया वापस करके वापस आने लगा।
कॉल पिक नहीं हुआ था।

रेनू- हेय! राहुल थैंक यू यार तुमने मुझे सपोर्ट किया वर्ना मेरा पता नहीं क्या होता।
मैं- अरे इसमें थैंक्स वाली कौन सी बात है?
रेनू- आओ न थोड़ी देर यही बैठ जाओ। मेरे लिए एक निम्बू पानी और एक इलायची ला सकते हो किचन से!

मैंने किचन में जाकर निम्बू पानी बनाया और इलायची भी लेकर आया।
तब तक शायद रेनू की नींद लग गई थी, मैंने निम्बू पानी वहीं पास के टेबल पर ढक कर रखा, और उसके ऊपर इलायची रख कर बाहर जाने लगा।

तभी मेरी नज़र रेनू के बाहर निकलने को बेताब बूब्स पर पड़ी और ज़रूरत से थोड़ी ऊपर आ चुकी शमीज नुमा कपड़े पर पड़ी जिसके कारण रेनू की पेंटी भी अब साफ़ दिखाई पड़ रही थी पर अपनी चोदने की इस तमन्ना को दबाकर इसलिए रखा हुआ था क्योंकि घर हाथ से न चला जाए।

मुम्बई में मकान मादरचोद चुदाई से भी बढ़कर हो गया है। नशे में पूरी खुमारी के बावजूद साला उसे छोड़ने पर मजबूर था।
मैं पलट कर जा ही रहा था कि रेनू- राहुल, मेरे पास बैठ भी नहीं सकते क्या?
मैं- मुझे लगा कि आप सो गई हो।

रेनू- नशे में सर घूम रहा है, नींद भी आ रही है पर सो नहीं पा रही।
बिस्तर पर उसके बगल में बैठकर मैं बोला- ये लो निम्बू पानी पियो। उससे थोड़ा ठीक लगेगा और इलायची खा लो जिससे मुंह ठीक हो जाए।

रेनू उठने की कोशिश कर रही थी, मैंने उसे उठाने में मदद की, इस उठाने में मैंने उसके बदन को अच्छे से छुआ था।
छुआ तो मैंने तब भी था जब वो जमीन पर पड़ी थी। पर तब मन में उसके लिए वासना नहीं थी।
अभी प्यासी रूह ने रेनू को छुआ था।

उसकी आँखें खुल नहीं पा रही थी, मैंने पानी दिया तो वो बिना आँखें खोले ही मुंह से लगाकर पीने लगी। मेरी नजर उसके गले और हिलते हुए बूब्स पर थी।
उसने गिलास खाली करके मेरी तरफ बढ़ा दिया।

मैंने उसके हाथ से लेकर ग्लास को साइड टेबल पर रखा फिर इलायची फोड़ के उसके होठों के टच कर दी, उसने अपना मुंह खोला और इलायची खा ली।

रेनू- थैंक्स यार राहुल!
मैं- क्या बात कर रही हो रेनू, आपको थैंक्स कहने की कोई ज़रूरत नहीं, आप दिल की कितनी अच्छी हैं, आपने अपना घर मुझे किराए पर देकर मुझे काफी थैंक्स बोल दिया है।

रेनू- तुम्हें सुबह ऑफिस जाना होगा, तुम जाओ और सो जाओ।
मैं- नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैं मैंनेज कर लूँगा।

रेनू- अच्छा ये बताओ की तुम हमेशा पूरे कपड़े उतार कर ही सोते हो क्या?
मैं- नहीं वो मैं अपनी बीवी से बातें कर रहा था तो बस…
मैं थोड़ा शर्मा गया और हँसते हुए चुप हो गया।

रेनू ने अब तक आँखें नहीं खोली थी।
रेनू- ओह्ह अच्छा तो तुम अपनी बीवी के साथ फ़ोन सेक्स कर रहे थे और मैंने तुम्हें डिस्टर्ब कर दिया।

यह बोलते बोलते रेनू ने तकिया थोड़ा एडजस्ट किया और ऊपर की ओर खिसक कर बैठ गई और अब उसने आँखें खोल ली थी।
इस एडजस्टमेंट में महसूस हुआ कि उसके बूब्स और निप्पल बिल्कुल तने हुए थे जैसा कि आम तोर पर लड़की के उत्तेजित होने पर होता है।
पर मैं पूरी तरह श्योर नहीं था कि जो मैंने देखा वो सही भी है या नहीं क्योंकि उसने ब्रा पहनी हुई थी।

मैं- नहीं यार रेनू, डिस्टर्ब वाली कोई बात नहीं है। बस मैं जब उठकर आया तो मुझे… मेरे लिए बहुत शर्मनाक है ये सब!
रेनू- मैं भी अपने पति के साथ फ़ोन सेक्स करती हूँ तो ऐसे ही बिना कपड़े पहने ही सो जाती हूँ। पर तुम्हारा वो मेरे पति से छोटा है, पर मोटा है।
मैं थोड़ा गुस्से में- हाँ हो सकता है, छोटा हो पर मज़ा पूरा देता है।
आदमी अपने पुरुषत्व पर प्रश्नचिह्न बर्दाश्त नहीं कर सकता!

रेनू- अरे, मेरे कहने का ये मतलब नहीं था।
मैं बिना कोई बात सुने- वैसे भी तुमने आधा सोया हुआ देखा है, जब खड़ा देखोगी तभी तो सही नाप पता चलेगा।

रेनू- अरे बाप रे ! तुम्हें तो बहुत बुरा लग गया। मेरा कहने का ऐसा कोई मतलब ही नहीं था यार राहुल। मैं तो बस बताने की कोशिश कर रही थी कि तुम्हारा वो देखकर मुझे अपनी पति की याद आ गई थी, वो पिछले एक साल से यहाँ नहीं आये हैं।

मैं गुस्सा दिखाते हुए- ये वो वो क्या लगा रखा है? लंड बोलो लंड।
रेनू- नहीं, मैं ऐसे नहीं बोलती हूँ। मैं तो ये वो करके ही काम चला लेती हूँ।
मैं- कभी बोलकर देखना तुम्हे अच्छा लगेगा। चलो अब तुम सो जाओ, मैं भी सोने जा रहा हूँ।

रेनू- अरे यार राहुल तुम तो बुरा मान गए। यार बात को समझो, इतने दिनों बाद मैंने वो देखा था तो नशे में समझ ही नहीं आया कि क्या बोल गई।
ये बोलते हुए उसने हाथ मेरे बरमूडा पर रख दिया और धीरे धीरे अपना हाथ बरमुडे पर चलाने लगी।

मैं- अरे रेनू, मैं कोई गुस्सा वुस्सा नहीं हूँ। तुम तो फिर भी उलटी कर आई थोड़ा नशा उतर गया होगा, मैं तो अभी भी नशे में ही हूँ।
रेनू- तुम नशे में भी कितने कंट्रोल में रहते हो।

मुझे लगा कि वो कह रही है कि सामने अधनंगी औरत पड़ी है और भी तू उसे चोद नहीं रहा। क्योंकि ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’

मैंने उसे होंठों पर एक लम्बा सा चुम्मा दे डाला और अपने हाथों से रेनू के मोटे मोटे बूब्स को भी अच्छे से मसल दिया पर उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैं थोड़ा दूर हट गया।

रेनू- मेरे कहने का मतलब था कि तुम नशे में भी कितनी अच्छी तरह से बातें कर लेते हो पर तुमने जो हरकत की है। जाओ यहाँ से बाहर!

मैं अपने कमरे में आ गया और आकर अपना बरमूडा उतार फेंका और सोचने लगा कि यार मुझसे क्या हो गया? कही साली गुस्से में मुझे कल घर खाली करने को न कह दे।

मैं सोच ही रहा था की अगर इसने मुझे निकाल दिया तो मैं कहाँ जाऊँगा।
सोचते सोचते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।

मैंने महसूस किया की किसी ने मेरे ऊपर से चादर उठाई और मेरे लंड को हाथ में लिया, थोड़ी देर सहलाया और चूमा।
मैंने धीरे से आँख खोल कर देखा तो वो रेनू ही थी।

मैंने खिड़की में लगे परदे की तरफ देखा तो लगा अभी अँधेरा ही था। मेरे को इस बात की ख़ुशी कम थी कि वो मेरे लंड से खेल रही थी। मुझे इस बात की ज्यादा ख़ुशी थी कि साला अब मकान खाली नहीं करना पड़ेगा।

मैंने जान बूझ कर जताया कि मैं जाग गया हूँ, मैंने बड़े आराम से कहा- चूमो नहीं चूसो, तुम्हें अच्छा लगेगा… अपने पति से मिलने से पहले एक रिहर्सल कर लो।

उसकी आँखों में वासना थी, वो इतनी भूखी लग रही थी जैसे वो मुझे खा ही जाएगी।
मैंने तकिया थोड़ा ऊपर किया और टिक कर बैठ गया, वो मेरे लंड को चाटने और चूसने लगी, मैं उसके सर पर हाथ फेरने लगा।

थोड़ी देर की चुसाई के बाद वो उठी और बोली- तुम्हारे चुम्बन ने मेरे अंदर की ज्वाला को भड़का दिया है। मैं तब से दो बार उंगली कर चुकी हूँ पर मेरी आग बुझती नहीं बल्कि और भड़क जाती है। राहुल क्या तुम मेरी इस आग को शांत कर सकते हो। तुम जो कहोगे, मैं करुँगी…

इससे पहले कि वो और कुछ बोल पाती, मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए।
इसी बीच मैंने समय देखा तो सुबह के साढ़े चार बजे थे, अब रात को जो औरत मेरे किस पर बिल्कुल शांत थी अब वो पागलों की तरह मेरे होंठों को चूस रही थी।

मैंने उसकी आग को थोड़ा और भड़काने के लिए उसकी पीठ पर हाथ फेरना शुरू कर दिया, मुझे महसूस हुआ कि उसने ब्रा नहीं पहनी है।
उत्सुकता में मैं अपना हाथ उसके कूल्हों की तरफ ले गया, कपड़े को थोड़ा ऊपर किया तो पता चल गया कि वो पेंटी भी नहीं पहने थी।

मैं हाथ फेरते हुए उसकी गांड के छेद के पास ले गया, दूसरा हाथ अभी भी उसकी पीठ सहला रहा था।
मैंने उसे अपने आप से दूर करते हुए कहा- चलो रेनू, अपने कपड़े उतारो और दरवाज़े से चलकर आओ।

रेनू मेरे बिस्तर से उठी और बोली- यह क्या है?
बोलते बोलते वो दरवाज़े की तरफ जा रही थी।

दरवाज़े के पास जाकर उसने दरवाज़े की एक साइड को ऐसे पकड़ा जैसे वो उसका आशिक़ हो और अपनी एक टांग उठाई और दरवाज़े से चिपक गई फिर अदा से मेरी तरफ मुड़ी और पीठ दरवाज़े पर टिका दी।
फिर एक कदम आगे बढ़कर एक झटके में उसने अपना टॉप उतार फेंका।

अब वो नंगी थी जो कैट वाक करती हुई मेरी तरफ बढ़ रही थी, मेरे अंदर भी इतनी आग लगी हुई थी कि मुझसे अब इंतज़ार नहीं हो रहा था, मेरे शेर को अब गुफा में जाने की गुहार थी।

जैसे ही वो मेरे करीब आई, मैंने उसे कन्धों से पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया और अपने बिस्तर पर पटक दिया।
बिस्तर पर गिरा कर मैं बोला- इस खूबसूरत बदन को अब तक कपड़ों की जेल में क्यू बंद कर रखा था जानेमन, तुम नंगी तो बहुत ही खूबसूरत लगती हो।

रेनू थोड़ा शर्माने लगी।
मैंने फिर कहा- आये हाय रे तेरा ये शर्माना, तेरे इस हुस्न पर चार चाँद लगा रहा है।

अब मैं रेनू की टांगों के बीच था और उसने अपनी टांगें चौड़ी कर रखी थी, उसके मोटे मोटे बूब्स मेरी आँखों के बिल्कुल सामने थे और वो मेरे कंधे से लेकर कमर तक अपने हाथ कुछ इस तरह चला रही थी जैसे कि मेरे बदन के एक एक पोर को महसूस करना चाहती हो।

मन तो मेरा था कि अभी उसकी चूत में अपना पूरा लंड एक ही शॉट में डाल दूँ पर चार महीने की प्यास भी तो बुझानी थी, तो मैंने पहले उसके दायें हाथ की तरह वाले बोबे को चूसा और जितना मुंह के अंदर ले सकता था उतना पूरा मुंह के अंदर डाल लिया और चूसने लगा।

वही दूसरे हाथ से उसके बायें बोबे को धीरे धीरे प्यार से मसल रहा था, रेनू मेरे सर पर हाथ फेर रही थी।
मैं बदल कर अब दूसरे बोबे को चूसने लगा था, रेनू की आँखें बंद थी और वो अपनी गर्दन कभी दायें तो कभी बायें घुमा रही थी। उसकी गर्दन पर पसीने के बूंदें अब कुछ और बड़ी दिखने लगी थी।

तभी रेनू ने मेरे बालों को पीछे से पकड़ कर मुझे अपने होंठों के करीब आने का न्योता दिया।

मैंने अपने दोनों हाथों को उसके बूब्स की मसाज के लिए दोनों मम्मों के ऊपर रखे हुए ही अपने होंठों को रेनू के होंठों के ऊपर रख दिया, रेनू पागलों के तरह मेरे होंठों को चूसने लगी।
मैं भी उसका साथ देते हुए उसके अधरों को पीने लगा।

रेनू अब चुदने के लिए छटपटा रही थी और आग तो इधर भी इतनी ही थी।
पर कोई ज्ञानी ध्यानी बोल गए हैं ‘औरत को पहली बार ऐसे चोदना चाहिए जिसे वो चाहे दुनिया में कहीं भी चुदे पर मन में तुम्हारी ही छवि हो।’

बस इसीलिए अपने ऊपर कंट्रोल करते हुए मैंने अपने होंठ रेनू के होंठों से अलग किये और कहा- रेनू, आँखें खोलो!
रेनू- क्या हुआ?
मैं- मुझे पता है कि तुम बहुत गर्म हो चुकी हो और तड़प रही हो।
रेनू बात पूरी सुने बिना ही- हाँ राहुल…
गहरी गहरी साँसों के साथ- आओ न, मुझमें समा जाओ न!

मैं- हाँ सब होगा पर इत्मीनान से, आराम से, मजे लो और मजे दो। चुदाई का आनन्द धीरे धीरे लेना चाहिए न की जल्दबाज़ी में!
रेनू- मुझे अभी कुछ समझ नहीं आ रहा, बस तुम मुझे मारो, पीटो कुछ भी करो, मुझे काट लो।

हम दो लोग इस समय सम्भोग के दो अलग अलग दो राहों पर खड़े थे, रेनू को अभी एक वाइल्ड सेक्स की चाहत थी और मेरी आरजू थी एक शांत और प्यार भरी चुदाई की।
पर चुदाई वही जो चूत को भाये।

मैंने जल्दी ही उसके बदन से सरककर नीचे रेनू की चूत के ऊपर अपने होंठों को रख दिया।
रेनू की गर्दन अब झटके के साथ दायें बायें घूमने लगी और वो मेरे बालों को पकड़कर मेरे मुंह को अपनी चूत में घुसा देने के लिए ताकत लगा रही थी।

मैंने अपनी जीभ से रेनू की गीली चूत चाटना शुरू ही की थी कि रेनू के अंदर का लावा अब झटकों के साथ बाहर आना शुरू हो गया, झटकों के साथ ही रेनू ने मेरे चेहरे को अपनी जांघों में बुरी तरह जकड़ लिया। मैंने अभी तक छूटने का कोई प्रयास नहीं किया और रेनू की योनि में लगातार अपनी जीभ से प्रहार करता जा रहा।

रेनू के मुंह से सिसकारियाँ फूट रही थी, रेनू की प्यास भी बड़ी पुरानी हो चली थी, शायद पति के जाने के बाद ऊँगली या डिलडो से ही काम चला रही थी।

अपने हाथों की पकड़ मैंने मजबूती से उसके बूब्स पर बना रखी थी और अब मैं प्यार और सौहार्द न दिखाते हुए उसके दोनों बबलों को जोर जोर से मसल रहा था।

थोड़ी ही देर में जब जांघों की पकड़ मेरे चेहरे पर थोड़ी कमजोर पड़ी, तब मैं उठा और अपने सने हुए चेहरे को रेनू के होंठों के करीब ले गया।
मैंने धीरे से कहा- अपने आप को चखना नहीं चाहोगी?

उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया, मैं दोनों हाथों को पकड़कर उसके चेहरे को चूमने की कोशिश करने लगा।
वो भरसक प्रयास कर रही थी कि मेरा सना हुआ चेहरा और होंठ उसके होंठों से न छूने पाये, पर मैं भी कहाँ मानने वाला था, मैंने अपने लबलबाते हुए होंठों को उसके होंठों से जोड़ ही दिया।

थोड़ी देर जब मैंने उसके होंठों को पीया तो उसने भी मेरे होंठों से अपने काम रस को चख ही लिया।
अब शायद उसे वो अच्छा लगने लगा था तो रेनू मेरे ठोड़ी के नीचे तक अपनी जीभ को घुमा कर उस रस को अपने मुंह के अंदर भरने की कोशिश करने लगी।

मैं अपने लंड को रेनू के पेट पर रगड़ रहा था और अपने चेहरे से रेनू को उसी का स्वाद चखा रहा था।

अब मेरे लिए अपने आप पर काबू पाना मुश्किल था, इसलिए मैंने अपने आप को नीचे सरका कर अब अपने लंड के गुलाबी टोपे को जन्नत के दरवाज़े पर रख दिया।
रेनू की चूत अब तक मेरी लार से और उसके खुद के निकले हुए रस से तरबतर होने के कारण बिल्कुल चिकनी हो चुकी थी, मैं अपने लंड को रेनू की चूत की दरार में रगड़ने लगा जिससे मेरा लंड भी थोड़ा सा चिकना हो जाए।

दरार में घर्षण मात्र से ही रेनू बिलबिलाने लगी, उसके दाने को मेरे लंड की रगड़ से इतना अच्छा लग रहा था कि उसके अपने नाख़ून मेरे कंधे और पीठ में गाड़ दिए।
मुझे शायद थोड़ा दर्द तो हुआ था, पर क्या करता मर्द था न चिल्ला नहीं सकता था पर साथ ही एक बहुत खूबसूरत अनुभूति भी हुई जैसे कि टीस उठी हो।

इस मदहोशी में मैंने थोड़ा जोर का झटका मारा और करीब 75% लंड एक बार में अंदर घुसा दिया।
रेनू के मुंह से चीख की आशा थी मुझे पर वो केवल ‘आआह्ह…’ के साथ मेरे लंड को अपनी चूत में ले चुकी थी।
मैंने फिर लगभग आधा लंड बाहर निकाल कर फिर पूरा लंड रेनू की चूत में समा दिया।

उसकी गहरी और तेज़ साँसों से अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि वो अपनी इस चुदाई का पूरी तरह आनन्द ले रही है।

अब मेरे अंदर इतनी क्षमता नहीं बची थी कि मैं उसके आनन्द के बारे में सोचूँ, इसलिए मैंने धीरे धीरे अपनी गति को बढ़ाना शुरू कर दिया।
उसकी चूत के लगभग बाहर तक लेकर पूरा लंड उसकी चूत में डालने में मुझे बहुत मज़ा मिल रहा था, मेरी आँखें बंद हो चुकी थी और मैं तेज़ तेज़ धक्के लगा रहा था।

मैं- मजा आ रहा है न रेनू?
रेनू- बहुत मजा आ रहा है राहुल… आह ओह्ह
मैं- ओह्ह !! तेरी चूत बहुत अच्छी है और जानदार भी।
रेनू- आआह्ह्ह !! राहुल ओह्ह्ह मैंने भी अब तक इतना शानदार लंड नहीं लिया है। तुम बहुत मज़ा देते हो।

धक्के लगातार जारी हैं।

मैं उसके बूब्स को जोर से मसलते हुए- तू भी मस्त माल है माँ की लौड़ी!
रेनू- ओह्ह्ह !! मर जाऊँगी मैं, इतनी जोर से मत दबाओ, दुखता है।

मैं- मरती है तो मर जा मादरचोद… रात भर से तड़पा रही थी, आ ही गई न मेरे लंड के नीचे!
रेनू- चोद दो मुझे चोद दो, छोड़ना मत मुझे, बहुत दिनों से प्यासी है मेरी चूत! कितने अच्छे हो तुम राहुल!

मैंने चुदाई जारी रखते हुए ही रेनू के मम्मों को थप्पड़ लगाया।
रेनू- हाँ ऐसे ही मारो मुझे, मुझे चुदाई के वक़्त पिटाई अच्छी लगती है, मारो मुझे और मारो!

मैंने ताबतोड़ थप्पड़ों की बारिश कर दी जो मुझे अच्छा तो नहीं लग रहा था पर ख्वाहिश जिसकी जैसी!

तभी मेरा फ़ोन बजा।
रेनू- यह सुबह सुबह किस का फ़ोन आ गया?
उसकी साँसें फूली हुई थी।

मैं फ़ोन उठाकर हांफती हुई आवाज़ में- हेलो मधु, गुड मॉर्निंग!
मधु- गुड मॉर्निंग !! ये तुम हांफ क्यों रहे हो?

रेनू धीरे से- तुमने फ़ोन क्यूँ उठाया?

मैं- अरे कुछ नहीं, वो नई मकान मालकिन है न, उसकी चुदाई चल रही है।
मधु- ओह्ह तो तुमने उसे कब कैसे फंसा लिया?
रेनू मेरी छाती पर मारती हुई- अरे क्या बकवास कर रहे हो? वो क्या सोचेगी?

मैं- एक मिनट होल्ड करना!
फ़ोन अपने से थोड़ा दूर करके, पर वहाँ ज़रूर सुनाई देगा- रेनू, तुम बीच बीच में बोलना बंद करो और मेरे लंड का मज़ा लो। मैं अपनी बीवी से बात कर रहा हूँ और मैं उससे कुछ नहीं छुपाता।

फिर फ़ोन कान पर रखकर- हाँ, बोलो मधु?
धक्के कुछ धीमे हुए हैं पर जारी हैं।

मधु- कोई नहीं आप पहले रेनू!! यही नाम बोले थे न?
मैं- हाँ…
मधु- तो आप पहले उसकी चुदाई कर लो, जब फ्री होगे तो मुझे कॉल कर लेना।
मैं- तुम कॉल पर ही रहो, मैं चुदाई करता हूँ।

मधु- नहीं यार, रेनू अभी हम लोगों को जानती नहीं है इसलिए वो कम्फ़र्टेबल नहीं होगी। आप अच्छे से चुदाई कर लो और हाँ जल्दी नहीं है, आराम से कॉल कर लेना।

साथ ही फ़ोन कट गया।

रेनू- क्या यार, यह भी कोई बताने की बात है? ऐसे कैसे कोई अपनी बीवी को दूसरी औरत की चुदाई के बारे में बता सकता है?
मैं अपने धक्कों की गति को बढ़ाते हुए- हम दोनों को कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं तो उसे भी किसी से चुदवा सकता हूँ, बस उसकी मर्ज़ी होनी चाहिए। हम दोनों साथ में एक अलग अलग आदमी और औरत से चुदाई करा लेते हैं।

रेनू- अहहह!! मार डाला तुमने… ऊहह… तुम दोनों आह बहुत अच्छे हो।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

मैं भी अब गहरी और तेज़ साँसें लेने लगा था। रेनू का बदन अकड़ने लगा और चूत मेरे लंड पर कसने लगी, मुझे रेनू का पानी मेरे लंड पर महसूस होने लगा था इस बीच मेरी भी पिचकारी रेनू की चूत में ही छूट गई।

ढेर होने के बावजूद भी हम दोनों एक दूसरे की आगोश में यों ही पड़े रहे। मेरा आधा सोया हुआ लंड अभी तक रेनू की चूत में ही पड़ा था और हम एक दूसरे के बदन को सहला रहे थे और चूम रहे थे।

आप पाठकों के बहुत सारे इमेल्स मिल रहे हैं, बहुत बहुत शुक्रिया कि आपको यह कहानी पसंद आ रही है।
हमें कमेंट्स और ईमेल लिखकर बतायें कि कहानी आपको कहानी का सबसे दिलचस्प हिस्सा कौन सा लगा।

हम [email protected] पर आपके इमेल्स का इंतज़ार कर रहे हैं।

अरे अभी तो कहानी शुरू हुई है।

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