वो मस्तानी रात….-1

प्रिय मित्रो..
आप सब मेरी कहानी पढ़ते हो, सराहते हो, जो मेरे लिए किसी टॉनिक की तरह काम करता है और मैं फिर से अपनी जिंदगी का एक और आनन्दित करने वाला किस्सा लेकर आपके सामने आ जाता हूँ। आज मैं एक ऐसा ही किस्सा आपको बताने जा रहा हूँ।

दोस्तो, मेरी कहानी की हर घटना सत्य होती हैं बस आप लोगो का अधिक से अधिक मनोरंजन करने के लिए मैं उसमे थोड़ा सा मसालेदार तडका लगा कर आपके सामने लाता हूँ। हर कहानी के बाद मेरे पास बहुत से मेल आते हैं जिनमें यही पूछते हैं कि क्या यह कहानी सच्ची है?

यहाँ मैं आपको बताना चाहता हूँ कि सभी कहानियाँ सत्य घटनाओं पर ही हैं। बस पात्र-चित्रण आपके मनोरंजन के लिए थोड़े बहुत बदले गए हैं।

आज की कहानी भी एक सत्य घटना है जिसने मुझे वो आनन्द दिया कि मुझे घूमने फिरने का शौक लग गया।

आज से करीब सात साल पहले की बात है। तब मैं कुछ दिनों के लिए अपने एक पेंटर दोस्त के साथ एक काम का ठेका लेकर निकला था। हमारा काम होता था दीवारों पर विज्ञापन लिखना।

मैं और मेरा दोस्त पवन दोनों एक ही उम्र के कुँवारे लड़के थे। मस्ती करना हमारा सबसे पहला शौक था।

हमें एक जिले के कुछ गाँवों में जाकर वॉल-पेन्टिंग करनी थी। सो हम दोनों हर सुबह अपनी गाड़ी उठा कर निकल पड़ते और पेन्टिंग के लिए दीवारें ढूंढते। जब मिलती तो उस पर पेन्टिंग की और फिर आगे चल देते।

ऐसे ही काम के दौरान हम दोनों एक गाँव में पहुँचे। पूरा गाँव घूमने के बाद भी कोई दीवार हमें पेन्टिंग के मतलब की नहीं मिली। और जो मिली वो पहले से ही किसी न किसी कम्पनी ने बुक की हुई थी।

दोपहर तक ऐसे ही घूमने के बाद हमें अपने मतलब की एक दीवार दिखाई दी पर दरवाज़े पर ताला लगा था। पहले तो कुछ निराश हुए पर फिर सोचा कि खाना खा लेते हैं तब तक अगर कोई आ गया तो ठीक, नहीं तो कल फिर आयेंगे।

हमने उस घर के पास ही एक पेड़ की छाँव में अपनी गाड़ी खड़ी की और गाड़ी में ही बैठ कर खाना खाने लगे। तभी एक सुन्दर सी औरत ने उस घर का ताला खोला और अंदर चली गई। उसकी तरफ देखते देखते अचानक मेरा हाथ पानी की बोतल से टकरा गया और सारा पानी गिर गया।

मैंने पवन को सामने घर में से पानी लाने को कहा पर वो बोला- तूने गिराया है तो लेकर भी तू ही आ।

मैंने बोतल उठाई और उस घर की तरफ चल दिया। जैसे ही मैं दरवाज़े पर पहुँचा मेरा दिल धक धक करने लगा। दरवाज़ा थोड़ा सा खुला था।

मैंने बाहर से ही आवाज़ दी- कोई है घर पर?’

तभी अंदर से वही खूबसूरत अजंता की मूर्त जैसी हसीना दरवाज़े पर आई और बोली- क्या चाहिए आपको?’

मुझे पानी चाहिए था तो मैंने बोतल आगे कर दी और बोला- थोड़ा पीने का पानी दे दो।

वो बोतल लेकर अंदर चली गई और मैं बाहर खड़ा उसका इंतज़ार करने लगा।

यार सच में वो एक अजंता की मूर्त ही थी- गोरा रंग, सुन्दर नयन-नक्श, छाती पर दो बड़े बड़े खरबूजे के आकार की मस्त गोल गोल चूचियाँ, मस्त बड़ी सी गाण्ड!

मैं तो देखता ही रह गया यार!

करीब दस मिनट गुज़र गए पर वो पानी लेकर नहीं आई।

मैंने एक बार फिर से उसको आवाज़ दी पर अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। मैं दरवाज़े के थोड़ा अंदर गया।

तभी वो एक कमरे से बाहर आई और पानी की बोतल मुझे देते हुए बोली- बाहर इन्तजार करो ना! अंदर क्यों घुसे आ रहे हो?

मैं भौचक्का रह गया।

उसने अपनी साड़ी उतार दी थी और वो सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में थी। ऊपर से उसने दुपट्टा डाल रखा था। उसके इस हसीन रूप को देख कर मेरा लण्ड तो मेरी पैंट फाड़ कर बाहर आने को हो गया था। आपको तो मालूम ही है कि मैं चूत का कितना रसिया हूँ। उसका गोरा गोरा पेट देख कर तो हालत खराब हो रही थी मेरी।

‘ऐसे क्या देख रहे हो..?’

उसने गुस्से में कहा तो मैं चुप चाप बोतल लेकर बाहर आ गया।

बाहर आकर मैंने पवन को उसके बारे में बताया तो वो भी तड़प उठा उसकी झलक पाने के लिए। पर वो कर तो कुछ सकता नहीं था। बहुत डरपोक जो था।

हमने खाना खाया और फिर दीवार पेन्टिंग की अनुमति लेने के लिए फिर से उस हसीना के पास जाने की बारी थी। मैंने पवन को जाने के लिए बोला तो वो डर के मारे बोला- भई, तू ही जा!

मैं तो पहले से ही उसके पास जाने का बहाना चाहता था।

मैं उसके दरवाजे पर पहुँचा और दरवाज़ा खटखटाया। वो बाहर आई। उसने अब सूट-सलवार पहन रखी थी। इस ड्रेस में भी वो बला की खूबसूरत और सेक्सी लग रही थी। उसने दुपट्टा भी नहीं लिया था। बड़े से गले में से उसके खरबूजे बाहर आने को बेताब से लग रहे थे। लण्ड फिर से पैंट के अंदर करवट लेने लगा था।

‘क्या चाहिए..?’

‘जी…वो…वो हम वॉल-पेंटिंग करते हैं।’

‘तो…?’ उसने बेहद रूखे लहजे में जवाब दिया।

‘आपके घर की यह दीवार पर हम लोग अपनी कम्पनी की पेंटिंग करना चाहते है अगर आपकी इजाज़त हो तो..?’

मैंने उसको समझाते हुए पूछा। वो सोच में पड़ गई। फिर अंदर चली गई बिना कोई जवाब दिए।

मैं दरवाज़े पर ही खड़ा रह गया।

वो कुछ देर में फिर से वापिस आई और बोली- मेरे ससुर घर पर नहीं हैं, वो शाम तक आयेंगे तो उनसे पूछना पड़ेगा।

‘पर शाम तक तो हम इन्तजार नहीं कर सकते…’

वो फिर से सोच में पड़ गई। कुछ देर सोच कर उसने हाँ कर दी।

हम भी खुश हुए कि चलो काम बन गया। मैं थोड़ा ज्यादा खुश था कि कुछ देर तो इस हसीना के आस-पास रहने मौका मिलेगा। हमने अपना काम शुरू कर दिया। मैं साइड की दीवार पर सीढ़ी लगा कर काम कर रहा था। मैंने सीढ़ी पर थोड़ा ऊपर चढ़ कर देखा तो उसके घर के अंदर का आँगन नज़र आ रहा था। पर वो वहाँ नहीं थी।

मैं कुछ देर देखता रहा पर वो नहीं आई। पवन नीचे काम कर रहा था। जब वो नहीं आई तो मैं नीचे आने लगा ही था कि अचानक वो आ गई। वो सलवार कमीज में ही थी और उसने दुपट्टा भी नहीं लिया हुआ था। वो अपना काम कर रही थी और मैं एक टक उसको देखे जा रहा था।

तभी उसकी नज़र मेरी तरफ उठी। मैं हड़बड़ा सा गया। हड़बड़ाहट में मेरा ब्रुश आँगन की तरफ गिर गया।

मैंने क्षमा मांगी और ब्रुश पकड़ाने को कहा।

उसकी हँसी छूट गई।

उसकी हँसी सीधे मेरे दिल को चीरती हुई चली गई। मैंने उसको पटाने की कोशिश करने का मन बना लिया।

वो उठी और मेरा ब्रुश उठा कर मुझे पकड़ाने लगी। ऊपर से उसकी चूचियों का नज़ारा देख कर मेरा लण्ड मेरे कच्छे को फाड़ कर आने को मचलने लगा। वो थोड़ा ऊपर की ओर उचक कर ब्रुश पकड़ाने लगी तो ब्रुश पर लगा रंग बिल्कुल उसकी चूचियों के बीच में टपक गया।

उसकी फिर से हँसी छूट गई।

वो ब्रुश पकड़ा नहीं पा रही थी तो मैंने कहा- मैं दरवाज़े से आकर ले लेता हूँ!

और मैं जल्दी से उतर कर उसके दरवाजे पर पहुँच गया।

उसने दरवाजा खोला और मुझे बोली- अब यह रंग कैसे छूटेगा जी?
‘अभी जल्दी से किसी कपड़े से साफ़ कर लीजिए, नहीं तो फिर तेल से छुड़वाना पड़ेगा।’

वो मेरे सामने ही एक कपड़ा लेकर अपनी चूचियों पर पड़ा रंग साफ़ करने लगी। कुछ रंग अंदर तक चला गया था तो वो अपनी कमीज़ के गले को हाथ से थोड़ा खोल कर अंदर से साफ़ करने लगी। उसकी उफन कर बाहर को आती चूचियाँ देख कर मेरा दिल किया कि अभी उन दूध के मदमस्त प्यालों को अपने हाथ में लेकर मसल डालूँ।

रंग साफ़ नहीं हो रहा था तो वो थोड़ा नाराज होते हुए बोली- देखो तो तुमने क्या कर दिया, अब इस रंग को कौन छुड़वायेगा?

‘आप कोशिश करें! अगर साफ़ नहीं होगा तो मेरे पास एक तेल है, मैं दे दूँगा, आप उस से साफ़ कर लेना।’

‘ठीक है..’ कहकर उसने मेरा ब्रुश मेरे हाथ में थमाया और अंदर चली गई। एक पल के लिए तो मैं उस बंद दरवाजे की तरफ देखता रह गया जहाँ कुछ देर पहले वो अप्सरा खड़ी थी।

मैं वापिस आकर फिर से अपनी दीवार पर काम करने लगा। अब मेरी निगाहें उस पर से हट ही नहीं रही थी और मैंने देखा कि वो भी बार बार मेरी तरफ देख रही थी। मुझे कुछ कुछ एहसास हुआ कि आग शायद उधर भी है।

मैंने कुछ सोचा और नीचे उतर कर पवन को ऊपर चढ़ा दिया और खुद नीचे का काम करने लगा।

दस-पन्द्रह मिनट के बाद वो बाहर आई। उसके हाथ में दो चाय के कप थे। उसने हमें चाय पीने को दी और बोली- चाय पीकर कप अंदर दे देना।

वो मुड़ कर अंदर जाने लगी पर तभी वो घूमी और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा दी।

मुझे मामला कुछ पटता हुआ लग रहा था। हमने जल्दी से चाय पी और मैंने पवन को हाथ थोड़ा जल्दी चलाने को कहा- पवन बेटा, हाथ थोड़ा जल्दी चला नहीं तो यहीं पर रात काली करनी पड़ेगी… तुम्हारे पास तो कपड़े तक नहीं है रात को ओढ़ने-बिछाने के लिए..!

पवन मजाक में बोला- ओढ़ने-बिछाने की क्या जरूरत है, आंटी के पहलू में सो जायेंगे दोनों! एक तरफ तुम और एक तरफ मैं..!

यह कह कर वो हँस पड़ा और मैं खाली कप उठा कर अंदर देने चल दिया।

मैंने दरवाज़ा खटखटाया तो कुछ ही देर में उसने दरवाज़ा खोला। दुपट्टा उसने इस बार भी नहीं लिया था।

मेरे से कप लेकर वो बोली- चाय कैसी लगी?
‘बहुत अच्छी थी!’ मैंने भी तारीफ करते हुए कहा।
‘रहने दो! झूठी तारीफ तुम शहर वालों को बहुत आती है।’
‘नहीं…! सच में बहुत अच्छी थी।’
‘ऐसा क्या था इसमें जो इतनी तारीफ़ कर रहे हो?’
‘आपने अपने हाथों से जो बनाई थी, अच्छी तो होनी ही थी?’
‘मतलब?’
‘मतलब…आप जैसी खूबसूरत औरत के हाथों की चाय तो अच्छी होनी ही थी ना?’

वो हँस पड़ी और मेरे दिल पर फिर से एक बार उसकी हँसी के साथ हिलती चूचियों देखकर छुरियाँ चल गई।
‘कितनी देर का काम है तुम्हारा?’
‘आधा आज करेंगे और बाकी का कल आकर.. तब तक आज वाला पेंट सूख जाएगा।’
‘रात को वापिस जाओगे?’
‘देखते हैं… यह तो शाम को काम के बाद पता चलेगा।’

और फिर मैं वापिस आ गया और फिर से अपने काम पर लग गया। उस अप्सरा की आवाज मेरे कानो में मिश्री सी घोलती महसूस हुई थी मुझे। अब मेरा दिल काम में नहीं लग रहा था। मैंने पवन को फिर से नीचे उतारा और खुद फिर से ऊपर की दिवार पर काम करने लगा। मेरा ध्यान बार बार आँगन में घूमती हुई उस अप्सरा पर ही था जो अब बार बार मुझे देख देख कर मुस्कुरा रही थी।

मैंने दिल ही दिल तय कर लिया कि जैसे भी हो, आज रात को यही रुकना है। मैंने काम की रफ़्तार कम कर दी। फिर कुछ सोच कर गाड़ी के पास गया और गाड़ी की एक तार निकाल दी ताकि वो जब स्टार्ट करने लगे तो स्टार्ट ना हो।

ऐसे ही काम करते करते शाम के सात बज गए और अँधेरा भी हो गया। मैं पानी लेने के बहाने से फिर उसके घर के दरवाजे पर पहुँच गया। मैंने उससे पीने के लिए पानी माँगा तो उसने मुझे अंदर आने के लिए कहा। मैं उसके पीछे पीछे आँगन में चला गया।

मैंने उससे पूछा- तुम घर पर अकेली हो? बाकी घर के लोग कहाँ गए हुए हैं?
तो वो बोली- मेरे सास-ससुर एक रिश्तेदार की शादी में गए हुए हैं और मेरे पति आर्मी में हैं और वो अपनी ड्यूटी पर गए हुए हैं।’
‘मतलब आज रात तुम अकेली हो?’
‘हाँ…’ उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
कहानी जारी रहेगी!
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वो मस्तानी रात….-2

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