जिस्मानी रिश्तों की चाह-53

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 53)

जूजाजी 2016-08-06 Comments

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सम्पादक जूजा

कुछ देर आपी की चूत के दाने को चूसने के बाद मैंने 2 उंगलियाँ आपी की चूत में डाल दीं, आपी ने कुछ नहीं कहा.. तो आहिस्ता आहिस्ता अपनी उंगलियों को चूत में अन्दर बाहर करते हुए अपनी ज़ुबान को आपी की गांड पर रख दिया और मेरी ज़ुबान मामूली सी अन्दर चली गई।

आपी अब मेरे लण्ड पर अपना मुँह बहुत तेज-तेज चला रही थीं और मेरे अन्दर जोश भरता जा रहा था।
मैंने भी आपी की चूत में अपनी उंगलियाँ बहुत तेज-तेज चलाना शुरू कर दीं।

मैं पहले तो यह ख्याल रख कर उंगलियाँ चलाता रहा था कि एक इंच से ज्यादा अन्दर ना जाने पाए.. लेकिन अब तेजी-तेजी से अन्दर बाहर करने की वजह से मैं अपने हाथ को कंट्रोल नहीं कर पा रहा था और हर 3-4 झटकों के बाद एक बार उंगलियाँ थोड़ी ज्यादा गहराई में उतर जाती थीं.. जिससे आपी के जिस्म को एक झटका सा लगता और 2 सेकेंड के लिए उनकी हरकत को ब्रेक लग जाती।

मैंने आपी की गाण्ड के सुराख को भरपूर अंदाज़ में चाट कर अपनी ज़ुबान हटाई और दूसरे हाथ की एक उंगली को अपने मुँह से गीला करके आपी की गाण्ड के सुराख में दाखिल कर दी.. जो पहले ही झटके में तकरीबन 1. 5 इंच तक अन्दर चली गई।

आपी के कूल्हों ने एक झटका लिया.. उन्होंने फ़ौरन मेरे लण्ड से मुँह हटाया और तक़लीफ़ से लरज़ती आवाज़ में कहा- उफफ्फ़.. सगीर कुत्ते.. निकाल उंगली.. साले बहुत दर्द हो रहा है..
मैंने उंगली को बगैर हरकत दिए कहा- कुछ नहीं होता आपी.. बस थोड़ी देर दर्द होगा.. बर्दाश्त कर लो।

‘नहीं नहीं सगीर.. निकालो प्लीज़.. मेरा कोई सुराख तो छोड़ दो कमीने.. क्यों इसके पीछे पड़ गए हो?’
‘बस बस आपी एक मिनट में सुराख आदी हो जाएगा तो दर्द नहीं होगा।’

आपी ने गर्दन घुमा कर मेरे चेहरे को देखा और ज़रा अकड़ कर कहा- कहा ना नहीं.. बस.. सगीर.. बाहर निकालते हो उंगली या नहीं?
मैंने मुस्कुरा कर आँख मारी और उन्हीं के अंदाज़ में जवाब दिया- नहीं निकालता फिर.. क्या कर लोगी तुम?

आपी कुछ बोले बगैर घूमी और झुक कर मेरे लण्ड की टोपी को दाँतों में दबा कर बोलीं- कमबख्त निकालो..
वे अपने दाँतों को ज़ोर देकर लण्ड को काटने लगी..
मैंने शदीद तक़लीफ़ से चिल्ला कर कहा- उफफ्फ़.. अच्छा अच्छा.. निकालता हूँ।

आपी ने अपने दाँतों को लूज कर दिया और फिर मैंने भी आपी की गाण्ड से उंगली निकाल कर कहा- कितनी ज़ालिम हो यार आपी.. मेरी जान ही निकाल दी.. इतने ज़ोर से काटा है।

आपी ने खिलखिला कर हँसते हुए कहा- याद रखना बेटा.. कभी उस लड़की से पंगा नहीं लेना.. जिसके मुँह के पास ही तुम्हारा सामान हो।
यह कहते हुए उन्होंने मेरे लण्ड पर एक चुटकी मारते हुए कहा- ये चीज दबी हो।
और वो हँसते हुए दोबारा से मेरे लण्ड को मुँह में लेकर चूसने लगीं।

मैंने भी फिर से आपी की चूत में उंगलियाँ डालीं और उनकी चूत के दाने को चूसते हुए उंगलियाँ अन्दर-बाहर करने लगा।

कुछ ही देर बाद मेरी साँसें तेज हो गईं और मुझे अंदाज़ा हो गया कि मेरा लण्ड अपना लावा बहाने को तैयार है। मेरा जिस्म अकड़ना शुरू हुआ.. तो मैंने आपी की चूत से मुँह हटा कर कहा- आपी, मैं छूटने वाला हूँ।

आपी ने एक लम्हें के लिए मुँह से मेरा लण्ड निकाला और तेज साँसों के साथ कंपकंपाती आवाज़ में बोलीं- मैं मैं भी..

उन्होंने फ़ौरन ही दोबारा मेरा लण्ड मुँह में ले लिया.. मैंने भी फ़ौरन आपी की चूत के दाने को अपने मुँह में लिया और अगले ही लम्हें आपी का जिस्म भी अकड़ गया और आपी के जिस्म को झटके लगने लगे।

मेरी उंगलियाँ आपी की चूत के अन्दर ही थीं, आपी की चूत की अंदरूनी दीवारें मेरी उंगलियों को भींचती थीं और फिर चूत लूज़ हो जाती और अगले ही लम्हे फिर भींच लेती।
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काफ़ी देर तक आपी के जिस्म को झटके लगते रहे और उनकी चूत इसी तरह मेरी उंगलियों को भींच-भींच के छोड़ती रही। उसी वक़्त मुझे ज़िंदगी में पहली बार यह पता चला कि लड़की डिस्चार्ज होती है.. तो उसकी चूत इस तरह सिकुड़ती है और लूज होती है।

आपी के डिस्चार्ज होते ही मैंने अपनी उंगलियाँ चूत से निकालीं और अपना मुँह आपी की चूत से लगा कर चूत के अन्दर से सारा रस अपने मुँह में खींचने लगा।

उसी वक़्त मेरा जिस्म भी अकड़ा और फिर मेरा लण्ड आपी के मुँह के अन्दर ही अपना लावा बहाने लगा और मेरी आँखें बंद हो गईं।

हम दोनों ही डिस्चार्ज हो चुके थे आपी मेरे ऊपर से उठ कर मेरी राईट साइड पर लेटीं और अपनी राईट टांग उठा कर मेरी टाँगों पर रख कर.. मेरे सीने पर हाथ मारा।

उनके मुँह से आवाज आई- ओंन्नाममम ओन्न्णुणन्..

मैंने आँखें खोल कर आपी को देखा तो उन्होंने अपने होंठों को मज़बूती से बंद कर रखा था और होंठों के साइड से मेरे लण्ड का जूस बह रहा था।

मेरे मुँह में भी आपी की चूत से निकला हुआ आबे-ज़न्नत मौजूद था।

आपी ने मेरे गाल पर हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपनी तरफ किया और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए और हम दोनों ही एक-दूसरे की जवानी के जूस से लिपटे होंठों के साथ किस करने लगे।

काफ़ी देर एक-दूसरे के होंठ चूसने और ज़ुबान लड़ाने के बाद हम अलग हुए.. तो एक-दूसरे के मुँह को देख कर दोनों ही हँस पड़े।

फिर आपी ने बिस्तर पर ही पड़ी मेरी ही शर्ट को उठाया और अपना मुँह साफ करने के बाद मेरा मुँह साफ करते हुए बोलीं- गंदे.. मुझे भी अपनी तरह गंदा बना ही दिया ना तुमने..

मैंने निढाल सी आवाज़ में शरारत से कहा- आपी गंदी तो आप थीं ही.. क्योंकि हो तो मेरी ही बहन ना.. बस ये गंदगी कहीं अन्दर छुपी हुई थी.. जो अब बाहर आ रही है।

आपी मेरी बात सुन कर हँसी और उठ कर अपने कपड़े पहनने लगीं, अपने कपड़े पहन कर आपी मेरे पास आईं और मुझे ट्राउज़र पहना कर मेरे माथे को चूमा और मुहब्बत से चूर लहजे में बोलीं- मेरी जान हो तुम.. मुझसे नाराज़ मत हुआ करो।

मैंने जवाब में आपी को मुहब्बतपाश नजरों से देखा और सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया और आपी उठ कर बाहर चली गईं।

अगला दिन भी रूटीन की तरह ही गुज़रा.. रात में जब मैं घर आया तो अब्बू टीवी लाऊँज में ही बैठे टीवी पर न्यूज़ देखने के साथ-साथ अपने लैपटॉप पर काम भी करते जा रहे थे।

मैं उनको सलाम करता हुआ वहाँ ही बैठ गया.. अब्बू ने चश्मे के ऊपर से मुझ पर एक नज़र डाली और अपने लैपटॉप को बंद करते हुए बोले- सगीर तुम्हारे एग्जाम भी होने वाले हैं.. क्या इरादा है तुम्हारा फिर?

‘अब्बू मेरा इरादा तो यही है कि इंजीनियरिंग करूँगा.. इलेक्ट्रॉनिक्स में..’
‘हून्न्न.. नंबर इतने आ जाएंगे कि दाखिला हो जाए तुम्हारा?’
‘जी अब्बू.. मुझे तो पूरी उम्मीद है कि हो जाएगा दाखिला।’

‘सगीर बेटा तुम मेरे दोस्त रहीम को तो जानते ही हो ना..?’
मैंने कहा ‘जी अब्बू.. वो जिनकी इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स का शोरूम है.. वो ही रहीम अंकल ना..?

अब्बू ने अपना चश्मा उतार कर टेबल पर रखा और मेरी तरफ घूम कर बोले- हाँ वो ही..
अब्बू का सीरीयस अंदाज़ देख कर मैं भी संभल कर बैठ गया और अपना मुकम्मल ध्यान उन पर लगा दिया।

‘बेटा मैं अब रिटायर होने वाला हूँ.. मैं काफ़ी दिन से सोच रहा था कि कोई कारोबार शुरू करूँ.. और अब खुदा ने खुद ही एक रास्ता बना दिया है.. उसी के बारे में तुमसे बात करनी है।’

मैं अपने सीने पर हाथ बांधे सवालिया अंदाज़ में अब्बू को देखता रहा.. कुछ देर खामोश रहने के बाद अब्बू ने कहा- मैं कुछ भी करूँ.. संभालना तो तुमने ही है.. क्योंकि मेरे बाद घर के बड़े तुम ही हो।

‘अब्बू आप फ़िक्र ना करें.. मैं हर तरह आप की उम्मीदों पर पूरा उतरूँगा..’

मेरी बात सुन कर अब्बू के चेहरे पर खुशी के आसार पैदा हुए और वो बोले- रहीम भाई ने बहुत मेहनत से अपनी इलेक्ट्रॉनिक्स शॉप बनाई है.. उन्होंने आज ही मुझसे जिक्र किया है कि वो अपने बेटों के पास अमेरिका जा रहे हैं और अपनी शॉप बेचना चाहते हैं। मैंने उनसे तो ऐसी कोई बात नहीं की है.. लेकिन तुम से मशवरा माँग रहा हूँ कि अगर उनसे शॉप ले ली जाए तो संभाल लोगे तुम?

मैंने अब्बू की बात सुन कर चंद लम्हें सोचा और फिर मज़बूत लहजे में जवाब दिया- अब्बू आप मेरी तरफ से बेफ़िक्र हो जाएँ.. आप जानते ही हैं कि मुझे इलेक्ट्रॉनिक्स में दिलचस्पी भी है.. बस आप देख लें कि पैसों का इन्तज़ाम हो जाएगा ना..?

‘वो सब मैं देख लूँगा.. कुछ पैसे देकर बाक़ी के लिए टाइम भी लिया जा सकता है.. वगैरह.. वगैरह..’

मैं और अब्बू दो घंटे तक इसी मोज़ू पर बात करते रहे.. तमाम पॉज़िटिव और नेगेटिव इश्यूस को ज़ेरे-ए-बहस लाने के बाद हमने ये ही फ़ैसला क्या कि खुदा को याद करके काम शुरू कर देते हैं।

मैं अब्बू के पास से उठ कर कमरे में आया.. तो फरहान अपनी पढ़ाई में ही बिजी था।
मैंने उससे ज्यादा बात नहीं की और उसकी पढ़ाई की बाबत मालूम करके कपड़े चेंज किए और बिस्तर पर आ गया।

मेरा यह नेचर है कि मैं जब कोई काम करने लगता हूँ.. तो मेरा जेहन.. मेरी तमामतर तवज्जो.. उसी काम पर जम जाती है और बाक़ी तमाम सोचें पासेमंज़र में चली जाती हैं।

इस वक़्त भी ऐसा ही हुआ और मैं अपने शुरू होने वाले नए कारोबार के बारे में प्लान करता हुआ जाने कब नींद की वादियों में खो गया।

यह वाकिया मुसलसल जारी है।
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