जेम्स की कल्पना -2

(James Ki Kalpna- Part 2)

लीलाधर 2016-04-28 Comments

This story is part of a series:

मेरा मन उल्टे कल्पना करता है – वहाँ बंद कमरे में यौवन की नदी उमड़ रही होगी। जेम्स उसमें डूब-डूबकर नहा रहा होगा। कल्पना की भरी-भरी मांसल बाँहें, जो मुझे अपनी गर्दन और कंधों पर महसूस होती थीं, वे जेम्स के गले में कस रही होंगी… मुझे आश्चर्य हुआ क्या सचमुच ऐसा हो रहा होगा?

वैसी ही जोर से? या फिर कल्पना संकोच में होगी? उसके होंठों का अनूठा स्वाद, उसकी साँसों की मादक गंध! क्या जेम्स उन पर…? मुझे पैंट के अंदर एक सुगबुगाहट महसूस हुई।
साले अपनी बीवी को दूसरे के पास छोड़ के आया है, कैसा मर्द है बे तू? मैंने खुद को गाली दी।

पार्क में कुछ बच्चे क्रिकेट का सामान लिए खेलने आ रहे थे, दोपहर के आरंभ का समय था, पार्क खाली-सा था, सूनी डालियों पर चिड़ियाँ चहचहा रही थीं, हल्की हवा में मंद-मंद पेड़ हिल रहे थे, ऊपर बादल रहित आकाश में चीलें उड़ रही थीं।

नई नई ब्रा… फिरोजी रंग की… ‘अमान्ते’ कंपनी की अत्यंत महंगी लिंगरी! इस मौके के लिए खास खरीदी गई।
पतली अर्द्धपारदर्शी जाली पर बेलबूटे का सुंदर काम… कल्पना के वक्ष उभारों पर ऐसे फिट बैठती थी मानों उन्हीं के लिए बनी हो।
उसका अर्द्धचंद्राकार अंडरवायर स्तनों की जड़ में पसलियों पर चिपककर बैठ जाता था और वक्षों को अपने कपों में सुंदर आकार में ढाल देता था।
कपों में बेलबूटों की पारदर्शी फाँकों से अंदर की गोरी त्वचा ऐसे झाँकती थी कि लगता बेलबूटे त्वचा पर ही कढ़े हुए हों।

खरीदने के बाद फिटिंग देखने के लिए जब कल्पना ने पहना था तभी देखा था, आज जेम्स उसका उद्घाटन कर रहा होगा! कैसा लग रहा होगा उसे?
क्या कल्पना उसे देखने छूने-सहलाने दे रही होगी? कपों में खूबसूरती से उभरे लचकदार भारी स्तन… जेम्स की नजर उन पर चिपकी होगी, वह उन्हें सहला रहा होगा।

ब्रा की रेशमी छुअऩ! पीछे हाथ बढ़ाकर पीठ पर उसकी हुक खोल रहा होगा… नंगे स्तन प्रकट हो रहे होंगे अपने भार से किंचित झूलते! भरे हुए मांस पिंड, हाथों में समाते, अनुकूल आकारों में ढलते…
जेम्स पागल हो रहा होगा!

मुझे विस्मय हुआ… क्या सचमुच ऐसा हो रहा होगा! खुशी की एक तरंग मुझमें दौड़ गई। मैं एब्नार्मल तो नहीं हूँ?

मैं उठा और एक नल खोलकर उसके नीचे हथेलियों का दोना बनाकर पानी पीने लगा।
पानी गले के अंदर जाने पर महसूस हुआ कि मुझे प्यास लगी थी। मुँह का पानी हाथ से पोछकर पैंट में पोंछ लिया। पार्क के पार बिग बाजार का बड़ा सा साइनबोर्ड धूप में चमक रहा था।

मैं चलता एक बेंच पर बैठ गया। पृष्ठभूमि की सफेदी पर काले अक्षर अधिक चमक रहे थे।
मैं यहाँ खाली बैठा हूँ और वहाँ मेरी बीवी का काम चल रहा होगा।
कितनी पुरानी इच्छा! पत्नी के किसी परपुरुष से संभोग होने की।

वह उसके भार के नीचे दबी, उसके लिंग की मोटी कील से भिदी, छटपटा रही हो और वह वार पर वार किए जा रहा हो और वह पानी छोड़ती सीत्कारें भर रही हो, जबर्दस्त मैथुन से चौड़ी होकर योनि के होंठ किंचित खुल गए हों… उनके अंदर का गुलाबी अंधेरा झाँक रहा हो… वह चरमसुख प्राप्ति के बाद आँखें मूंदें निढाल पड़ी हो थकी हुई… गहरी साँसें लेती, होंठों के किनारे से लार और योनि से डबडब वीर्य बहाती, बिस्तर को भिगोती… कितने ही दृश्य, कितनी ही कल्पनाएँ… सबकुछ कल्पना को ही लेकर।

मुझे आश्चर्य होता था कि मुझमें स्वयं दूसरी औरत से मैथुन की उतनी रंग-बिरंगी फंतासी नहीं थी। हालाँकि कल्पना को ‘विनिमय’ के लिए राजी करते समय मैंने किसी दूसरी औरत से संभोग-सुख लेने की गहरी इच्छा को ही कारण बताया था।

जेम्स बांका नौजवान है, कमउम्र, मुझसे ज्यादा ताकत से मैथुन करेगा।
आज उस वीडियो दृश्य में उसका लिंग साइज भी मुझसे बड़ा लगा।
अगर करेगा या कर रहा होगा तो कल्पना की हड्डी-हड्डी चटखा देगा… आज घर्षण से उसकी योनि फूल जानी चाहिए। लाल, टुस-टुस दुखती!

मुझमें रक्त की एक लहर सी उठी, मैंने मुट्ठी में दबोचकर उसे एक बार जोर से मरोड़ा ‘ओ जानेमन, आज तुम्हारा बेड़ा पार ही हो जाए..!!’

मैं मॉल के अंदर चला गया, कुछ देर तक स्टॉल में लगी वस्तुओं को देखता रहा पर जल्दी ही बाहर चला आया, बिना कुछ खरीदे खाली घूमना भी ठीक नहीं लगा।

बादल, बच्चे, क्रिकेट… दोपहर, धूप… आकाश… चीलें… बिग बाजार मॉल… दबते स्तन… गीले लार से चमकते चूचुक… रेशमी गुलाबी ब्रा… साँय साँय करती साँसें… गूंजते सीत्कार… बंद कमरे के अंदर जांघों पर पड़ती थापें थप थप थप…

मैंने अपनी पैंट की जोड़ चेक की, वहाँ गीलापन तो नहीं आ गया? हालाँकि अंदर सख्ती नहीं थी।
घड़ी में देखा, ग्यारह बज रहे थे, एक घंटा हो गया था, मैंने मोबाइल से जेम्स का नंबर मिलाया, फिर सोचा रहने दो। ज्यादा देर का मतलब है दोनों की ज्यादा देर की नजदीकी, ज्यादा संभोग।
मैं चाहता था कि आज पहले अनुभव में कल्पना की वो ठुकाई हो कि वो उसकी दीवानी हो जाए, दोनों में बार बार सेक्स होता रहे।
मेरी पत्नी की बार बार चुदाई… वल्ले वल्ले…

कुछ देर बाद मैंने कल्पना को फोन लगाया, उधर से जेम्स की आवाज आई!
तो इतनी जल्दी दोनों में दोस्ती हो गई?
जेम्स बोला- हो गया है, जल्दी आ रहे हैं।

तो क्या हो गया है? क्या उसने कल्पना को?
मेरे दिमाग में उन दोनों के संभोग की संभावना प्रबल हो गई, लिंग में रक्त दौड़ गया।
मैंने जेम्स को बता दिया कि मै कहाँ पर हूँ।
मैं सड़क की तरफ ही बैठा था।

कल्पना के फोन पर जेम्स… कल्पना के होंठों पर जेम्स के होंठ, उसके जननांगों पर उसका प्रहार!
अगर यह हो गया है तो आज का दिन याद रखूंगा… 17 अक्टूबर, मेरी पत्नी के बेवफा संभोग का बेहद खास दिन!
लेकिन पता नहीं ऐसा होगा भी कि नहीं।
कल्पना काफी तेज और सबल है, जेम्स उससे जबर्दस्ती नहीं कर सकता, अगर नहीं करने दिया तो फिर क्या किया एक घंटा उन दोनों ने?

मोबाइल बजा, कल्पना थी- कहाँ हैं?
उसकी मीठी आवाज में खनक थी, गुस्सा या व्यंग्य नहीं, मेरे उत्तर देने से पहले ही दूर मोड़ पर प्रकट होती जेम्स की मोटरसाइकिल दिख गई।
वह आ रही थी, जेम्स सामने हैंडिल पकड़े था, सीना फैलाए, पीछे से झाँकती कल्पना!
मेरी आँखों में यह दृश्य बैठ गया।

जब बाइक सामने आकर रुकी तो मुझे खुशी हुई। अभी एक घंटा पहले जो स्त्री अपने स्वाभाविक अभिमान में तनी हुई थी वह अभी उसी की भोग्या बनकर उससे सटकर बैठी थी। हालाँकि उसने जेम्स की कमर में बाँह नहीं डाल रखी थी, जैसा कि मैं चाहता था। लेकिन इतना भी कोई कम मजेदार नहीं था।

मेरी आशंका के विपरीत वह मुस्कुरा रही थी, हालाँकि वह मुस्कुराहट औपचारिक भी हो सकती थी।
जेम्स के चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ परेशानी भी थी।
मैं पूछना चाहता था, काम हुआ?
पर डायना की माँ ही हालत और खराब हो गई थी और उसे फोन पर फोन आ रहे थे। ऐसे में मुझे उसे डायना को शीघ्र भेजने के लिए कहने में भी संकोच हो रहा था।

पर उसने हमें आश्वस्त किया कि वह जाकर डायना को जल्दी भेज देगा।
जेम्स के जाने के बाद कल्पना सीरियस हो गई थी, उससे मैंने पूछा, कहाँ चलोगी? होटल या कहीं और?
वह कुछ उखड़ी सी बोली- मैं नहीं जानती।
थकी-सी लग रही थी।

हमें एम जी रोड देखना था, उसके विलासितापूर्ण बाजार की बड़ी चर्चा सुनी थी। मैंने एक ऑटो रुकवाया और वहीं चल पड़ा।
ऑटो में कल्पना मुझ पर लदकर बैठी। इतनी सुस्त पड़ गई कि लगभग सारे बदन का बोझ मुझ पर डाल दिया। मैं उसे सम्हाले था, नहीं तो गिर पड़ ही जाती।
उसकी यह हालत देखकर मुझे आश्चर्य हो रहा था। ऐसी थकान!! भला और किस चीज की हो सकती है? पक्का यह चुद चुकी है और भरपूर चुदी है।
वाह रे जेम्स! क्या हालत कर दी इसकी!

रति-क्लांत औरत…
उसे मैं खुद पर सम्हाले था, दिल कर रहा था ऑटो का सफर यूँ ही चलता रहे।
कोई और कार्यक्रम भी तो नहीं था। जब तक उन लोगों का फोन नहीं आता, इंतजार ही करना था।

कल्पना आँखें मूंदे सो रही थी या जगी, पता नहीं, मैं उसे प्यार से, कभी ममता से, कभी ईर्ष्या से, कभी बस ‘वो मेरी औरत है’ इस एहसास से उसे देखता था, मन में गाने की पंक्तियाँ गूंज रही थीं ‘गाता रहे मेरा दिल!’

एमजी रोड सचमुच विलासितापूर्ण जगह है। पर वह कलकत्ते की महानगरीय विलासिता की तुलना नहीं कर सकता। यहाँ ऐसी कितनी ही जगहें हैं।
कल्पना की थकान देखते हुए मैंने ज्यादा घूमना-फिरना नहीं किया, हम एक रेस्तराँ में गए, कल्पना ने कुछ नहीं खाया। कहीं डूबी-सी थी। ऐसा बंद हो गई थी कि उससे कुछ कहना-पूछना संभव नहीं था।
मैंने अपनी प्रचंड उत्सुकता को दबा रखा था, चलो बाद में पता लगेगा।

उन लोगों का फोन नहीं आ रहा था, मैं जब भी उनका फोन लगाता, व्यस्त आता। हमें संदेह होने लगा था कि कहीं धोखा तो नहीं दे रहे वे लोग?
कल्पना गुस्सा कर रही थी। मुझे डर हो रहा था कहीं डायना की माँ बहुत ही सीरियस तो नहीं हो गई। ऐसी हालत में डायना भला कैसे आएगी।
कल्पना का गुस्सा मैं समझ रहा था।

दो घंटे बाद हमपर गाज गिरी, उनका SMS आया – Diana’s mother expired. Pray for her soul!
हम दोनों एक-दूसरे को देखते रह गए। हार्ट अटैक का मामला होने के कारण मुझे डर तो था, लेकिन मर ही जाएगी इसका यकीन नहीं था।
अब?
हमारे सामने जैसे बंद दीवार थी, नाटक का पर्दा जैसे कहानी के बीच में ही गिर गया था, कल्पना की कुंठा का अंत नहीं था, बुरी तरह ठगी गई थी बेचारी… दूसरा पुरुष उसे भोगकर चला गया था और जाकर अंगूठा दिखा दिया था।

उसका गुस्सा फूट पड़ा, उसने उन लोगों को बुरा-भला कहते हुए मुझे इतनी झाड़ लगाई कि मुझे सचमुच लगने लगा कि मैं दुनिया का सबसे नाकारा, सबसे गधा, सबसे मुँहचोर, सबसे घोंचू आदमी हूँ। जिस औरत को भोगने आया था उस औरत का मुँह तक नहीं देख पाया था।

मैं उन लोगों को एक फोन तक नहीं कर पा रहा था, डूब मरने की बात थी।
भला कौन सा ऐसा मर्द होगा जो अपनी बीवी को चुदवाकर यूँ अपना-सा मुँह लिए लौट जाए?
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हम लोगों ने उसी रात मद्रास वापसी की बस पकड़ ली। हालाँकि हमारे पास कल शाम की वापसी यात्रा का ट्रेन टिकट था।
रात को जेम्स का फोन आया, उस समय हम लोग बस में बैठे थे। उसने जल्दी-जल्दी में ही गहरा अफसोस प्रकट किया, कई बार सॉरी कहा, माफी मांगी।
घटना ऐसी हो गई थी कि क्या किया जा सकता था, डायना बहुत रो रही है, सगे-संबंधियों से घिरी है, बाहर के लोग जल्दी-जल्दी पहुँच रहे हैं, वगैरह।
हमने उसे नहीं बताया कि हम आज ही लौट रहे हैं। बताकर क्या करना था।

अगले दिन दोपहर को डायना का फोन आया- तुम कहाँ हो, किस समय लौट रहे हो, स्टेशन पर तुम्हें कम से कम देखने आऊंगी।
मैंने अपने को बेइंतहा बेवकूफ महसूस करने के बावजूद उससे संवेदना जताई – तुम हमारी चिंता मत करो, हम ठीक से हैं, माँ का जाना बहुत बड़ा नुकसान है, तुम उनकी अकेली बेटी हो, अंतिम क्रियाओं को पूरा करो, हम फिर कभी मिलेंगे, हम बाहर घूमने निकल पड़े हैं, उधर से ही मद्रास चले जाएंगे, वगैरह।

मेरी कल्पना में उसका रोता आँसू भरा चेहरा आ रहा था, कैसी माँ की लाश पड़ी होगी, लोग-बाग जमा होंगे, वह रो रही होगी। ऐसे में सेक्स की बात सोची भी कैसे जा सकती है।

लेकिन कल्पना फुँफकार रही थी- उसे डाँटा क्यों नहीं, माँ की ऐसी हालत थी तो हमें क्यों बुलाया? धोखेबाज कहीं की, अपने पति के लिए औरत जुटा रही थी। वही हर समय बढ़-बढ़कर बात करती रही थी, फिर स्वैप के लिए पहले खुद क्यों नहीं आई? जेम्स को पहले क्यों भेज दिया? वह धूर्त है, अपना काम निकाल लिया, अब उसको क्या पड़ी है। तुम उसको बोलो कि अब क्रिया-करम निपटाकर तुम एक महीने के बाद कलकता आओ। अब उसको आना पड़ेग, उसको झाड़ो कस कर!

मैं मनों क्या, टनों शर्म में दबा जा रहा था।
न कोई असावधानी थी, न धोखा, न मक्कारी।
यह हद से हद डायना के गलत अंदाजे और जल्दबाजी का नतीजा था, माँ बीमार थी, एक महीने से उसको अस्पताल में भर्ती करना, निकालना चल रहा था, तो ऐसे में इंतजार करना चाहिए था, हम लोग बाद में भी आ सकते थे।

हमने कहा भी था कि माँ को ठीक हो जाने दो, फिर आएंगे लेकिन डायना शुरू से ही जल्दबाज थी, उसने कहा कि नहीं, इतने दिन से इंतजार कर रहे हैं। अब प्लान कर लिया है और टिकट भी हो गया है तो आ ही जाओ, हम मैनेज कर लेंगे।

अब एकदम से माँ को हार्ट अटैक ही आ जाएगा इसकी भविष्यवाणी कौन कर सकता था। दोष आधा डायना की जल्दबाजी का, आधा परिस्थिति का था।

मुझे खुशी थी कि कल्पना का काम हो गया था, अपने बारे में तो शंकित पहले से ही था, कल्पना का कराना जरूरी था। मैं बल्कि डायना को धन्यवाद ही दे रहा था कि उसने पहले जेम्स को भेजा और इस तरह कल्पना का सतीत्व टूटा। लेकिन मैं यह खुशी उससे बाँट नहीं सकता था।

जिस समय वह गुस्से में नथुने फुलाए फुँफकार रही थी उस वक्त भी मैं उसकी योनि की तहों में जेम्स के घूमते वीर्य की कल्पना कर रहा था।
मुझे खुद के लिए उतना अफसोस नहीं था। ये जरूर था कि मैं भी कर लेता तो अच्छा रहता।

हमने एक दिन रुककर मद्रास देखा और एक लम्बी कहानी को समाप्त करते हुए वापस कलकत्ता लौट गए।

लगभग एक साल लगे कल्पना को इस घटना पर थोड़ा थोड़ा बात करने लायक नॉर्मल होने में। उसके बाद टुकड़ों में सुन-सुनकर मैंने घटनाओं की कड़ियाँ जोड़ीं। जेम्स और कल्पना ने मिलकर उस दिन उस कमरे में जो किया था वह कुछ इस तरह था :

कहानी जारी रहेगी।
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