प्रियंवदा: एक प्रेम कहानी-2

(Priamvada Ek Prem Kahani- Part 2)

मेरी कामुक कहानी के पहले भाग
प्रियंवदा: एक प्रेम कहानी-1

जवानी और शराब के नशे में चूर उसका हर कदम किसी मदमस्त हथिनी की तरह जमीन पर पड़ता था। उसके यौवन को देख लगता था कि प्रेम रस यहीं से रचा गया है, वो प्रेम रस के सभी कवियों की प्रेरणा सी प्रतीत हो रही थी। दुनिया की कोई भी औरत उसके सामने फीकी नज़र आने लगी थी। उसका दमकता बदन पूनम के चांद की तरह चमक रहा था।

जाम खत्म कर वो अचानक पानी में जा कूदी और किसी जलपरी की तरह गोते लगाने लगी।

मेरे अंदर का मर्द चैलेंज कर रहा था ‘जा बेटा कूद जा… हुस्न और शबाब के दरिया में!
लेकिन बाहर का नौकर अंदर के मर्द पर कहीं भारी पड़ता हुआ मुझे मेरी औकात बता रहा था।

दो छोटे छोटे ब्रा व पैंटी नामक अंतर्वस्त्रों से ढके जवानी से भरपूर उसके मखमली बदन को यूं घूरना, ताड़ना उसके जवानी के घमण्ड को और नशे को और बढ़ा रहा था। मालिक जैसे जैसे उसके हुस्न की तारीफ करता, मुझे ना जाने क्यों उस ठरकी बुड्ढे पर गुस्सा आ जाता।

मैं मन ही मन भगवान की उस सबसे सुंदर कलाकृति को अपना मान बैठा था या यूं कहें कि उसके प्रेम दरिया में बह चुका था। पता नहीं क्यों मुझे अंदर से यूं लगने लगा कि ये सिर्फ मेरी है, इस पर सिर्फ मेरा हक है, भगवान ने इसे केवल मेरे लिए यहाँ भेजा है, किसी पति को अपनी पत्नी पर जितना अधिकार महसूस होता है उससे कई हज़ार गुना हक मुझे उस नई प्रेयसी पर अंदर से महसूस हो रहा था.
उस बुड्ढे में मुझे सारी हिंदी फिल्मों के विलेन नज़र आने लगे।

मेरा प्रेम भंवर मालिक के पानी में कूदने की आवाज से टूटा- अरुण एक एक पैग और बनाओ!
और मैं इंजीनियरिंग का होनहार छात्र एक कुशल बार टेंडर की तरह अब तक दोनों को शराब एक बोतल शराब परोस चुका था और मैं खुद जलन जवानी और कामुकता का जहर पी रहा था।

अब दोनों पानी में मस्ती कर रहे थे, कभी चिपक रहे थे तो कभी एक दूसरे को चूम रहे थे, दोनों फ्रेंच किस में मशगूल थे. बुड्ढे का हाथ कभी उसके स्तन दबाता तो कभी पीठ सहलाता, तो कभी पानी के अंदर जाकर ना जाने उस कहाँ कहाँ से छूता, मुझे बुड्ढा पैसे से ज्यादा हुस्न के मामले में नसीब वाला दिखा।

मैडम (क्योंकि अभी तक मैं उसका नाम नहीं जानता था, और बूढ़ा डार्लिंग, जान, लवली, बेबी, स्वीटहार्ट जैसे नामों से सम्बोधन कर रहा था) का एक हाथ मालिक की गर्दन पर तो दूसरा पानी के अंदर ना जाने कहाँ क्या कर रहा था।
जिस नवयौवना को मैं केवल दो घण्टे पहले मिला था, वो मुझे मेरे पिछले कई जन्मों की साथी दिखाई देने लगी, मैं मन ही मन में उस पर अपना हक समझने लगा था। उनकी पानी में हो रही अठखेलियों पर मुझे यूं तकलीफ हो रही थी जैसे किसी बच्चे से कोई उसका मनपसंद खिलौना छीन कर उसके उसके सामने ही उससे खेलने लगे।

तभी अचानक बुड्ढे में जोश आया और उसने अचानक मैडम की ब्रा निकाल फेंकी तो मैडम ने कहा- कंट्रोल यार!
तब मालिक ने कहा- तुम्हें देखने के बाद कोई कंट्रोल कर सकता है क्या?
और फिर मालिक ने को मैडम को जोर से अपनी बांहों में दबोच लिया।

वो जलपरी अब उस बुढ्ढे के आगोश में समा रही थी। बुड्ढा जोर-जोर से कश्मीरी सेब जैसे गालों पर स्ट्रोबेरी जैसे रसीले होठों पर, पके हुए अल्फांसो आम जैसे स्तनों पर चुम्बन पे चुम्बन जड़े जा रहा था।
‘आहा…’ मैं खुली आँखों से उस रूपसी के यौवन को निहार रहा था और कल्पनाओं में बुड्ढे की जगह खुद को देख रहा था।

कसम से दोस्तो… लाखों सुन्दरियों की सुंदरता व यौवन भी उस रूपसी के अर्धनग्न गदराए बदन के सामने फीका पड़ रहा था। बुड्ढा मुझे आज दुनिया का सबसे किस्मत वाला दिखाई दे रहा था और मैं सबसे बड़ा बदकिस्मत।

मैडम का एक हाथ मालिक की पीठ सहला रहा था तो दूसरा पानी के अंदर ना जाने क्या कर रहा था, मेरे लिए यह पल और भी डूब कर मर जाने जैसा था। मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था.

इतने में मालिक ने मुझे शैम्पेन लाने को कहा.
मैं एक कुशल वेटर की तरह ट्रे में एक बोतल शैम्पेन लेकर स्विमिंग पूल के कोने पर मालिक और अधनंगी मैडम के पास पहुंचा, मेरी आँखों पर मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि वो नवयौवना मुझसे केवल एक हाथ की दूरी पर थी।
जैसे एक देश के तने हुए फौजी टैंक विपक्षी सेना को चिढ़ाते हैं ठीक उसी तरह उस मादक हसीना के वो दोनों तने हुए कसे हुए स्तन मानो मुझे चिढ़ाकर चुनोती दे रहे हों।

मालिक ने शैम्पेन की बोतल उठाई और मैडम के स्तनों पर स्प्रे कर दी। दूध और शराब का मेल यहीं देखने को मिला। मुझे यह सब देख कर लग रहा था कि मैं कहीं अमेरिका या ब्रिटेन या किसी पश्चिमी देश में आ गया हूँ, क्योंकि यह सब कभी मेरी कल्पनाओं में भी नहीं था।

कुछ देर की चुम्मा चाटी और शैम्पियन से सने अलफांसो आम चूसने के बाद मालिक ने मैडम को पूल के किनारे पर बिठा दिया और खुद पानी में ही खड़े रहे.
अब मुझे वहाँ से जाने का आदेश दे दिया गया।

मेरी हालत तड़पती हुई मछली जैसी थी, मुझे जीवन में कभी किसी से नफरत नहीं हुई लेकिन जैसे ही मालिक ने मुझे वहाँ से जाने का आदेश दिया तो मुझे वह मेरा सबसे बड़ा शत्रु दिखाई देने लगा, बार बार मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वह मेरी सबसे प्यारी चीज को छीन कर मुझे वहाँ से भगा रहा है।
मुझे कभी-कभी ऐसा भी लगा कि यह केवल मेरा भ्रम है।

मेरी और उसकी औकात में जमीन आसमान का फर्क था लेकिन फिर भी इस दिल का क्या करें।

उधर पूल के किनारे पर न जाने बुड्ढा क्या क्या कर रहा होगा… यह सोचकर ही मेरी हालत खराब हो रही थी। मैं किसी भी तरह काम रस में डूबी हुई उस कामिनी को देखना चाहता था, भोगना चाहता था लेकिन मेरी औकात यहाँ भी आड़े आ गई।

जैसे ही मैं वहाँ से आया मेरे दिमाग में ख्याल आया कि मालिक के कमरे की खिड़की पूल की तरफ़ है, मैं तुरंत दबे पांव मालिक के कमरे में पहुंचा, जहाँ पूल साइड खिड़की पर पर्दे लगे थे मैंने तुरंत लाइट बंद की और एक पर्दे को थोड़ा सा हटा दिया, वहाँ खड़ा खड़ा स्विमिंग पूल पर हो रही काम लीला को देखने लगा।
अब मुझे दिखाई तो सब कुछ दे रहा था लेकिन सुनाई कुछ नहीं दे रहा था।

मैंने देखा कि मालिक ने मैडम की पैंटी भी उसके जिस्म से अलग कर मैडम को पूर्ण नग्न कर दिया। मैडम को वहीं स्विमिंग पूल के कोने पर बिठाकर मालिक उस काम की देवी हसीनाओं की हसीना हुस्न की मल्लिका की दोनों जांघों के बीच में अपना सर डाले हुए थे।

मुझे समझते देर ना लगी कि बुड्ढा कामिनी का काम रस पी रहा है।

अब मेरी हालत और खराब हो रही थी, मेरे अंदर एक आग सी जल रही थी या तो बुड्ढे को यहीं मार दूँ या खुद इसी पूल में डूबकर मर जाऊं और चिल्ला चिल्ला कर उस रूपसी को कहूँ कि मैं तुझे किसी और के साथ नहीं देख सकता।
लेकिन औकात फिर वहीं रोक देती थी।

कुछ देर बाद बुड्ढा पुल से निकला और खुद भी नग्न हो गया, बुड्ढे का लिंग उस मादक महबूबा की जवानी को बार-बार सलामी ठोक रहा था।
अब बुड्ढा उस कोने पर बैठा था और मैडम पानी के अंदर, सीन बदल गया था अब अब मैडम के स्ट्रोबेरी जैसे रसीले होठों में बुड्ढे का लिंग अंदर बाहर हो रहा था।

बमुश्किल मैडम ने एक से डेढ़ मिनट अपनी रसीली जीभ बुड्ढे के लिंग पर फैलाई होगी कि बुड्ढे का मामला स्वाहा हो गया। अब बुड्ढा और मैडम दोनों पूल से आगे की तरफ आ गए। मैडम ने अपने गदराए बदन पर बाथ गाउन पहन लिया और बुड्ढे ने टॉवेल लपेट लिया।

मुझे लगा कि यह प्रेम लीला वहीं पर और जारी रहेगी इसलिए मैं वहीं से खड़ा हुआ देखता रहा.
किंतु यह क्या… वो दोनों तो अंदर की तरफ आ रहे थे।

मैं तुरंत वहाँ से बाहर निकला और बाहर खड़ा हो गया जैसे ही मालिक आए, मैंने फिर अपने आप को नौकर होने का एहसास कराते हुए उन दोनों का अभिवादन झुक कर किया और पूछा- सर खाना लगवा दूँ?
मालिक ने कहा- खाना कमरे में ही भिजवा दो।

मैंने खाना अंदर कमरे में भिजवा दिया, मैडम और मालिक दोनों उसी अवस्था में भोजन कर रहे थे, उनको खाना खिलाते वक्त मैंने महसूस किया कि मालिक कुछ ज्यादा ही नशे में थे लेकिन मैडम पूरे होशोहवास में थीं।
मालिक के लड़खड़ाते हाथों से खाना भी ठीक से नहीं खाया जा रहा था, जैसे तैसे उन्होंने एक छोटे बच्चे की तरह से खाना खाया।
उसके बाद उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया और हम सब बाहर आ गए।

दरवाजा बंद होते ही फार्म हाउस का सारा स्टाफ मालिक की छोड़ी हुई शराब और बचे हुए खाने की ओर टूट पड़ा, लेकिन मुझे भूख कहाँ थी, मुझसे कुक ने खाने की पूछी तो मैंने तबियत ठीक ना होने का बहाना बना दिया।

मैं इधर से उधर चक्कर काट रहा था और आकाश में हाथ उठा उठा कर ऊपर वाले से दुआ मांग रहा था कि उस महबूबा का एक दीदार करवा दे।
बार पता नहीं क्यों मेरा मन उसके लिए तड़प रहा था छटपटा रहा था मैं उसकी एक झलक पाने के लिए, पता नहीं क्यों मुझे उससे मोहब्बत हो गई थी या मैं उसको नग्न देखकर वासना में अंधा हो गया था।

टहलते टहलते मैं फार्म हाउस के पिछवाड़े में वहीं स्विमिंग पूल पर आ पहुंचा जहाँ कुछ देर पहले मेरे सपनों की रानी किसी गैर मर्द पर अपना प्रेम रस लुटा रही थी या यूं कहें कि अपनी जवानी उस बुड्ढे पर बर्बाद कर रही थी।
स्विमिंग पूल पर घूमते-घूमते मैं उसी कोने में आ पहुंचा जहाँ मेरी कल्पनाओं की महबूबा उस बुड्ढे संग रामलीला कर रही थी वहाँ मैंने मैडम की गीली पैंटी को पड़ा हुआ पाया. उस पर अंग्रेजी में Agent Arovocateur लिखा था लेकिन मुझे तो उस पैंटी में भी मैडम की तस्वीर दिखाई दे रही थी।

इतने में मुझे कमरे से कुछ हलचल दिखाई देने लगी मैं बिना देर किए कमरे की खिड़की के पास आ पहुंचा जहाँ से मुझे अंदर का नजारा साफ दिखाई दे रहा था लेकिन मैं उससे तिरछा खड़ा हो गया जिससे कि मैं उनको ना दिख पाऊं.

वैसे भी बाहर की लाइट बंद हो चुकी थी और अंधेरा था अंदर की रोशनी में उस काम देवी का दमकता बदन हजारों चंद्रमाओं की रोशनी की तरह चमक रहा था।
दोनों बैड पर बेड कबड्डी खेल रहे थे, कभी मैडम की पीठ इधर होती तो कभी मालिक की।

मेरे लिए और भी मुश्किल हो रहा था क्योंकि अब मेरी जलन और बढ़ रही थी क्योंकि मुझे पता था अभी एक-दो जिस्म एक जान हो जाएंगे।

शेष अगले अंक में। आपके हौसला अफजाई ईमेल के द्वारा जरूर चाहूंगा।
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कहानी का अगला भाग: प्रियंवदा: एक प्रेम कहानी-3

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