गलतफहमी-12

(Galatfahami- Part 12)

This story is part of a series:

नमस्कार दोस्तो.. अभी कविता के स्कूल टूअर की बातें चल रही हैं। टूअर के दौरान एक सर ने बस को अपने रिश्तेदार के गांव में रुकवाया और सभी को नहाने के लिए नदी में ले गये। वहाँ पर कविता ने रोहन के कपड़े उठा कर लाकर बस में रख दिए। कुछ लोगों को कविता की इस हरकत पर शक हुआ, पर रोहन ने बात खत्म करने को कह दिया।
बस में ही रोहन और कविता के बीच कपड़े छुपाने वाली बात का खुलासा भी हो गया।
अब आगे..

कविता ने रोहन को थैंक्स या सॉरी की जगह चुम्बन देकर खुश किया, और इसी बात पर दोनों ने मुस्कुरा कर आँखें बंद कर ली थी। और कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।

कुछ देर बाद ही बस झांसी पहुंच गई थी। हमारी नींद भी सीधे वहीं खुली, पर हम दोनों ही नजरें नहीं मिला पा रहे थे, ऐसा नहीं है कि हमारे बीच बहुत कुछ हुआ था, पर छोटी उम्र में विपरीत लिंग को किया गया पहला चुम्बन भी किसी तीर मारने से कम नहीं होता।

हम सीधे किला घूमने गये, हमारे टीचरों ने भ्रमण की जरूरी औपचारिकताएं पूरी की फिर हम सबने अंदर प्रवेश किया.
सर ने सबको साथ-साथ रहने को कहा था, ज्यादा अलग-थलग घूमने वालों को डांट खानी पड़ती। मतलब यह था कि मेरा सामना रोहन से बार-बार होना था। हम लोगों ने एक गाईड रखा था जो सबको पास बुलाकर किले और रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ी घटनाओं के बारे में बताता था।

अनायास ही मेरी और रोहन की नजरें मिल जाती थी और मैं शरमा जाती थी। आप तो जानते ही होंगे ऐसे मामलों में लड़की कितनी भी बेशर्म हो या लड़का कितना भी शर्मीला, पर जब ऐसी कोई बात हो तो लड़की ही ज्यादा शर्माती है और लड़का लड़की को छेड़ने में कोई कमी नहीं करता।
ऐसा ही हमारे साथ भी हो रहा था, जब भी हमारी नजरें मिलती, रोहन अपने गालों को सहलाने लगता.. और आँखों को कामुक बना लेता था, मैं मुस्कुरा के नजरें हटा लेती थी।

अरे..! इन सब बातों के बीच तो मैं यह बताना भूल ही गई कि अब हम लोगों ने पहना क्या था। सबने नदी से नहा के निकलने के बाद अपने अच्छे कपड़े पहने थे। कोई गोल सूट तो कोई फैंसी टाप, मैंने लेमन ग्रीन शर्ट के साथ औरेंज कलर लैंगिंस पहन रखी थी, काटन का शर्ट मुझ पर बहुत निखर रहा था। मैंने अंदर सफेद रंग की ब्रा और मेरुन कलर की पेंटी पहन रखी थी।

जो सीनियर नहाते वक्त बहुत हॉट लग रही थी, उसने लाल टॉप और सफेद जींस पहन रखी थी। मेरी नजर बीच-बीच में उस पर चली ही जाती थी।
रोहन ने नीली जींस और क्रीम कलर की शर्ट पहन रखी थी।

रोहन और मेरी आँख मिचौलियाँ चलती रही, शायद कुछ लोगों को शक भी हो रहा था, वैसे तो हम एक दूसरे से दूरी बना कर रखना चाहते थे, पर क्या करें दिल है कि मानता नहीं।
हम बदनामी के डर से दूर तो रहना चाहते थे, पर बहाने से पास आना और एक दूसरे को छुप कर देखने का कोई मौका हम नहीं गंवा रहे थे। जब हम बाहर निकल रहे थे तब जानबूझ कर वो और मैं थोड़ा धीरे चल रहे थे, और इस बार जब हमारी नजरें मिली तो फिर हम दोनों में से किसी ने नजर नहीं झुकाई, शायद हमारे बीच आँखों में डूब जाने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई थी।

पर मैंने चीटिंग की, थोड़ी ही देर में मैंने उसे आंख मार दी और उसने नजरें नीची कर ली।

मैं अब यह भी नहीं जानती कि जीतने वाले को खुश होना चाहिए या हारने वाले को… पर हम दोनों ने ही मुस्कुराहट बिखेरी और बस में आकर बैठ गये। हम दोनों आपस में नजरें नहीं मिला पा रहे थे।

अभी लगभग तीन बज रहे थे और सबकी हालत भूख से खराब होने लगी थी। फिर बस को एक भोजनालय के सामने रोक कर सबको खाना खिलाया गया और एक धर्मशाला में रुकने के लिए जगह ली गई।
लड़कियों के लिए अलग हॉल था, लड़कों के लिए अलग।
सबने वहाँ अपने-अपने सामान रखे।

सर ने कहा- जिनको आराम करना हो वो आराम करे और जिन्हें घूमने चलना हो वो साथ चले!

मेरा मन आराम करने को था, और साथ में तीन-चार लड़के और दो तीन लड़कियाँ ही आराम करना चाहती थी।
सर ने कहा- इतने कम लोगों को बिना किसी टीचर के यहाँ रुकने नहीं दिया जा सकता।
इसलिए सभी को घूमने जाना पड़ा, शाम के लगभग छ: बजे हम सब झांसी के अन्य जगहों और बाजारों में घूमने निकल पड़े।

कुछ लोगों ने खरीददारी का मूड बनाया हुआ था, तो ज्यादातर समय दुकानों पर ही खड़े होकर बिता दिया।
इस बीच मेरे और रोहन का नैन मटक्का चलता रहा लेकिन मैं मन ही मन उसके लिए अच्छे तोहफे की तलाश में थी, आज मुझे अपने लिए कुछ नहीं सूझ रहा था.

हम लगभग रात के नौ बजे तक घूमते रहे, फिर सर ने एक रेस्टोरेंट के सामने सबको पूछा- किसी को भोजन करना हो या कुछ खाना हो तो खा लें! फिर यहाँ से सीधे धर्मशाला जाना है।
कुछ लोगों ने ही हाँ कहा अधिकांश ने मना कर दिया क्योंकि हमने आज देर से ही भोजन किया हुआ था।
मैंने भी मना कर दिया।

जो लोग भोजन नहीं कर रहे थे उनमें मैं और रोहन भी शामिल थे, हम रेस्टोरेंट के पास ही टहल रहे थे।

तभी मेरी नजर अचानक एक दुकान पर पड़ी जहाँ चाबी के छल्ले पर नाम लिखा जाता था, मैं उस दुकान की ओर लपक पड़ी और वहाँ मैंने एक खूबसूरत सा दिल के आकार का की-रिंग खरीद लिया जिसके ओर मैंने कविता और रोहन लिखवाया और दूसरी ओर पहले से ही आई लव यू लिखा हुआ था।
कीमत सिर्फ तीस रुपये की थी, पर जो लोग बचपने वाली मोहब्बत के इस दौर से गुजरे हैं वो जानते हैं कि ऐसा तोहफा कितना अनमोल होता है।

मैंने की-रिंग को हाथ में पकड़ते ही पूरी शिद्दत के साथ चूम लिया, मानो मैं उस की-रिंग में जान फूंकना चाहती हूँ। और फिर नजर ना लग जाये जैस अपने हाथों में छुपा लिया। मैं स्वयमेव रोमांचित हो रही थी। शायद मैं प्यार के खुशनुमा अहसासों से रूबरु हो रही थी।

फिर मैं रेस्टोरेंट के सामने सबके साथ खड़ी हो गई, लेकिन मुझे रोहन नहीं दिख रहा था, थोड़ी देर बाद मुझे रोहन जेब में कुछ रखते हुए सामने से आता दिखा.
उसके आने के बाद हम बाकी लोगों से थोड़ी दूरी बना कर खड़े हो गये। रात का वक्त था ज्यादा रोशनी नहीं थी। अब मैंने आज सुबह की चुम्बन वाली हरकत के बाद उससे पहली बार कुछ कहने की सोची.. और फिर मैंने उसे छेड़ा- अपनी गर्लफ्रेंड के लिए कुछ लेने गये थे क्या?
वास्तव में मैं उससे बात करने के लिए बेचैन हो गई थी, इसलिए पहल मैंने ही कर दी।

उसने मुस्कुराहट के साथ कहा- थोड़ा सब्र कर लेती तो पूछना नहीं पड़ता।
मैंने मुंह बनाने का नाटक सा किया।
तभी उसने प्रश्न कर दिया- तुमने कुछ लिया क्या?
मैंने तपाक से उसी की बात दोहरा दी- थोड़ा और सब्र कर लेते तो पूछने की जरूरत नहीं पड़ती।

अब हम दोनों ने ही एक मुस्कुराहट बिखेरी और उसने अपनी जेब में हाथ डालकर एक सुंदर सा ब्रेसलेट निकाला, जो चकोर दानों से गुथा हुआ था और उसके अलग-अलग दानों में मेरे नाम की स्पेलिंग लिखी हुई थी, और एक अलग नमूने के दाने में आई लव यू भी लिखा था।
उसे दिखाकर उसने कहा- ये तुम्हारे लिए! और ये बात भी जान लो कि तुम्हारे अलावा ना कोई था ना, ना है, ना होगा।

उसकी बातों से तो मन तो कि अभी गले लगाकर चूम लूं… फिर खुद पर काबू करते हुए मैंने बनावटी अंदाज में कहा- ये ‘आई लव यू’ का क्या मतलब है? और मेरे अलावा का क्या मतलब है, तुम मुझे गर्लफ्रेंड समझते हो क्या?
तो उसने कहा- तुम इन सारे सवालों के जवाब जानती हो, मेरी इतनी औकात नहीं कि मैं तुमसे कुछ भी कह सकूं।
और वो ब्रेसलेट को हाथों में समेट कर जाने लगा।

मैंने तुरंत उसका हाथ पकड़ा और हक से कहा- मेरा ब्रेसलेट मुझे दो… और पहना दोगे तो ज्यादा अच्छा लगेगा।
अब लड़की हूँ तो बातें इशारों से करनी पड़ती हैं।

उसने भी मेरी आँखों में आँखें डाली और ब्रेसलेट पहना दिया.
काश उस वक्त हम खुली सड़क पर ना खड़े होते तो मैं रोहन को गले से लगा कर घंटों चूमती रहती।

पर हम दोनों ने ही आँखों आँखों में अपने मन की बात कही।
अब मैंने उससे कहा- मैंने भी कुछ लिया है।
उसने कहा- क्या लिया है? मेरे लिए लिया है क्या?
वो पहले से ही खुश हुआ जा रहा था।

पर जैसे ही मैं उसे अपना तोहफा देने वाली थी, सारे लोग खाना खा के आ चुके थे, तो मैंने नहीं दिया, और ‘बाद में…’ कह कर हम उनके साथ शामिल हो गये, पर उससे पहले मैंने ब्रेसलेट उतार कर चुपके से रख लिया क्योंकि सब देखते तो बहुत से सवाल होते।

रोहन ने भी मेरी मजबूरी समझी और हम दोनों की आँखें मिली और हम दोनों खुश होकर सबके साथ धर्मशाला लौट आये।
लड़कियाँ अपने हॉल में और लड़के अपने हॉल में सोने लगे, कुछ बदमाश किस्म के लड़के और लड़कियाँ बहाने बना-बना कर एक दूसरे कमरों में झाँकने की कोशिश करते रहे।
पर मेरा रोहन ऐसा नहीं था, और ना ही मैं ऐसी थी।
हम दोनों तो एक दूसरे के ख्यालों में बिस्तर पर ही करवटें बदलते रहे।

रात के ग्यारह बजे सोकर सुबह पांच बजे उठे, पर यह छ: घंटे का समय अपने यार से दूरी की वजह से छ: सौ साल बिताये जैसा लगा। मैं ब्रेसलेट को रात भर हाथों में ही पकड़ के सोई रही।

सुबह हम सब यहाँ से नहा-धोकर ओरछा मंदिर जाने वाले थे, ओरछा को कुछ लोग उरचा के नाम से भी जानते हैं, वहाँ राम जी का मंदिर और पुराना किला है। वो झांसी से लगभग बीस किलोमीटर की दूरी पर है।
सभी जल्दी-जल्दी फ्रेश होने और नहाने लगे, मुझे भी तैयार होना था तो मैंने सबसे पहले ब्रेसलेट को अपने बैग में सुरक्षित रखा और फिर नहाने चल पड़ी।

हम नहा कर तैयार हो रहे थे, तब मेरी नजर फिर से मेरी हॉट सीनियर पर पड़ी आज वो यलो कलर की काटन वाली स्कर्ट के डार्क ब्लू कलर की टाप पहन रही थी। उसने बाल खुले रखे थे और स्कर्ट घुटनों से थोड़ी ही नीचे तक आ रही थी। आज तो वो बहुत ज्यादा हॉट लग रही थी। उसने आँखों में काजल लगा लिया था और होंठों पर लाईट पिंक लिपस्टिक लगाई थी।

मैं उसकी हॉटनेस देख कर मंत्रमुग्ध सी उसे देखती रही, तभी मेरी नजर उससे मिली और उसने मुस्कुराते हुए मुझे आँख मार दी।
मैंने तुरंत ही नजर हटा ली।
लेकिन उसकी बातें मुझे एक बार फिर याद आ गई, कि एक बार तू सैक्स करना शुरू तो कर, तू मुझसे ज्यादा हॉट लगेगी।

सच में उसकी बात याद करके मेरी योनि चिपचिपा उठी पर मैंने खुद पर काबू कर लिया, लेकिन आज मैं भी हॉट दिखने के मूड में आ चुकी थी। मैंने आज ब्लैक कलर की टाईट जींस के ऊपर ब्लैक कलर की ही टाईट टॉप पहन ली, लाल कलर की लिपस्टिक, बड़ा काला चश्मा और खुले बालों के साथ, मैंने कान में लंबे झूल वाली स्टाईलिश लटकन पहन ली।

मेरे टॉप का गला बड़ा था इसलिए वो कंधे पर बहुत दूर तक सरक जाता था, और मुझे इस बात का पूरा-पूरा ख्याल था तभी मैंने जानबूझ कर लाल कलर की ब्रा पहनी ताकि उसकी पट्टी दिखते रहे और रोहन के साथ दूसरों के भी अंडरवियर खराब हो जायें.
मैंने पट्टी को जानबूझ कर ऊपर की ओर बहुत टाईट कर दिया जिससे मेरे उरोज और तीखे नोक वाले और ऊपर उठे दिखे।

मेरा मन अब चार-पांच इंच की हील वाली सैंडल पहनने का था, पर मैं जो पहन कर आई थी उसमें सिर्फ दो इंच की ही हील थी, मुझे उससे ही काम चलाना पड़ा।

एक बात और जो मैंने उस दिन नोटिस की, कि जब आप खुद को खूबसूरत और अच्छा महसूस करते हो, तब आपका आत्मविश्वास बढ़ जाता है और बात करने का तरीका चलने का तरीका सब कुछ बदल जाता है।
मेरे साथ भी यही हुआ… जब मैं तैयार होकर बस में चढ़ी तो मुझे लगा कि सब मुझे ही देख रहे हैं। अब मैं यह यकीन से नहीं कह सकती कि सब मुझे ही देख रहे थे, पर मुझे ऐसा लग रहा था।
रोहन ने अपने पहले दिन वाले ही कपड़े पहन रखे थे, जब मैं उसके बगल में बैठी तो उसके चेहरे पर अलग ही मुस्कान थी, लेकिन मुझे ऐसा भी लगा कि उसे मेरे पहनावे से कोई फर्क नहीं पड़ा। बल्कि उसने कहा- कविता चश्मा उतारो ना, बाद में पहन लेना।
शायद वो नजरें मिलने-मिलाने का आनन्द लेना चाहता था.

पर मैं तो अपने घमंड में चूर थी, तो मैंने कहा.. क्यों अच्छी नहीं लग रही हूँ क्या?
तो उसने कहा- नहीं यार, लग तो बहुत अच्छी रही हो.. पर मैंने ऐसे ही कह दिया।
इतना कहकर वो चुप हो गया.
फिर मैंने भी चश्मा नहीं उतारा।

आज मेरा ध्यान भी सिर्फ उस सीनियर पर ही जा रहा था, वो शुरू से ही एक सर के साथ वाली सीट पर बैठ कर आई थी, और अब भी वहीं बैठी थी। और मैं तो आज मन ही मन उससे प्रतिस्पर्धा में उतर आई थी इसलिए मैं चाहती थी कि मैं उससे अच्छी और हॉट लगूं, और शायद मैं ऐसा लग भी रही थी। पूरे बदन से चिपके कपड़े किसी को भी, बाहर से ही मेरे तन का मुआयना करा रहे थे।

हम सबने ओरछा पहुंच कर पहले तो भगवान के दर्शन किये, फिर नाश्ता किया, उसी दौरान जींस की जेब में हाथ डालने पर मुझे रोहन के लिया तोहफा हाथ आया। मैं अच्छे समय की ताक में थी ताकि मैं रोहन को ये की-रिंग दे सकूं, पर आज मैं सोचने लगी कि क्या रोहन सच में मेरे लायक है?
शायद यह मेरी खूबसूरती का घमंड था।
फिर मुझे उसकी तपस्या और मेरे लिए उसका समर्पण याद आ गया। तब मुझे तोहफे वाली बातें भी याद आने लगी, मेरे हाथ में की-रिंग था पर ब्रेसलेट नहीं मिल रही थी।

मैंने अपने सभी जेब चेक की पर मुझे ब्रेसलेट नहीं मिली, शायद वो बैग में ही छूट गई थी।

नाश्ता करने के बाद सभी इधर-उधर घूमने लगे, ओरछा का किला सुनसान था, वैसे किले सुनसान टाईप ही होते हैं, पर यहाँ किले के अंदर बहुत से संकरे रास्ते और अंधेरी जगह थी, कहीं कबूतर भी थे, तो कहीं चूहे भी दौड़ रहे थे।
यहाँ हमारे पास थोड़ा ज्यादा समय था, यहाँ से हम खाना खा के सीधे वापस होने वाले थे, तो सब फ्री होकर अपने-अपने तरीके से घूम रहे थे, सभी अच्छे से तैयार थे तो सबको फोटो खिंचवाने का मन था। पर सभी के पास मोबाइल या कैमरा नहीं था।
मैं अपने सहेलियों के साथ थी और रोहन अपने दोस्तों के साथ घूम रहा था, जिनके पास भी था हमने उसमें दो-चार ग्रुप फोटो खिंचवाये और फिर घूमने लगे।

मेरा ध्यान रोहन की तरफ ही था, शायद उसका ध्यान भी मेरी ओर ही रहा होगा।

अब ऐसे ही घूमते हुए दो घंटे बीत गये। मैं सहेलियों से बोर होकर उनसे थोड़ी दूरी बनाकर अकेले ही इधर-उधर देखने लगी। मेरी नजर रोहन को भी ढूंढ रही थी।

तभी मेरी नजर ऊपर की ओर जाती हुई अंधेरी सीढ़ियों पर पड़ी, सीढ़ी संकरी थी, और ऊपर देखने लायक कुछ नहीं था इसलिए उस पर लोग कम ही आते-जाते थे। वहाँ मुझे एक कपल के होने का अहसास हुआ जो लिपटे हुए से थे।
मैं सहेलियों से नजर बचा कर उन्हें देखने लगी, वो सभी सीढ़ियों की ही दिशा में सीढ़ियों के पीछे खड़ी थी, और थोड़ी दूर पे वैसी ही दिशा में लड़के खड़े थे। मतलब हालात ऐसे थे कि लड़के और लड़कियाँ मुझे देख पा रहे थे पर उस कपल तक किसी की नजर नहीं जा रही थी, और मैं लड़के, लड़कियाँ और उस कपल तीनों को ही देख पा रही थी, पर मैं खंभे की ओट में ऐसे खड़ी थी कि कपल भी मुझे आसानी से नहीं देख सकते थे।

अब मेरे पैर उस जगह पर जैसे जम से गये, मैं उस कपल को पहचानने की कोशिश करने लगी, पहले तो मैं पहचान ना सकी पर धीरे-धीरे उस अंधेरे पर मेरी नजर जमती गई। नजर तो जम गई पर मेरे पैरों के नीचे से धरती खिसक गई। वो कपल और कोई नहीं थे.. बल्कि वो तो मेरी वही हॉट सीनियर और उनके साथ बैठे कुंवारे टीचर थे और वो भी बिल्कुल कामुक मुद्रा में… मैंने आज से पहले कभी ऐसा दृश्य देखा ही नहीं था, और ना ही सुना या सोचा था।

उस सीनियर लड़की ने अपना एक पैर सर के कमर में लपेट लिया था, जिससे उसकी स्कर्ट ऊपर उठ गई थी, और चिकनी जांघें नंगी हो गई थी। उन दोनो ने एक दूसरे के मुंह में अपनी जीभ डाल ली थी और सर ने अपने दोनों हाथ उसके टॉप के नीचे से डाल कर उसके स्तनों पर पहुंचा दिये थे।
बहुत ही कामुक कामक्रीड़ा चल रही थी, यह देखकर मेरी योनि भी लसलसाने लगी, यह तो गनीमत है कि मैंने काले रंग की जींस पहन रखी थी, वर्ना सबको मेरी हालत का पता चल जाता।
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दोनों एक दूसरे के पूरे शरीर को सहला रहे थे. मेरे मन में आ रहा था कि कोई आकर मुझे भी सहलाये, चूमे, पकड़े, कोई मेरे मम्मों को भी दबाये!
अब वो दोनों अच्छा कर रहे हैं या बुरा, पाप है या पुण्य… यह मेरे दिमाग में आया ही नहीं, मैं तो बस यह सोच रही थी कि दोनों कब से ऐस कर रहे होंगे, शुरूआत कैसे हुई होगी? किसने किसे पहले कहा होगा? रोहन और मैं भी ऐसा ही करेंगे क्या?

मेरे इतना सोचते तक मेरी सीनियर सर के सामने जमीन पर बैठ गई और सर के पैन्ट की चैन खोल कर लिंग निकाल कर चूसने लगी।
यह भी मेरे लिए अजूबा था, लिंग को चूसा भी जाता है, यह मैं पहली बार जान रही थी।

वहाँ रोशनी मद्धम थी इसलिए लिंग का साईज या उसकी विवेचना करने में मैं असमर्थ हूं। पर उनकी काम कला को देख कर मेरी हालत जरूर खराब हो गई।

मैं मन ही मन सोचने लगी कि काश मैं भी ये सारा सुख ले पाती… कोई मुझे भी ऐसे ही मसलता… मैं भी किसी का लिंग चूस पाती, कोई मेरे भी निप्पलों को चूसता..!
तभी मुझे अपने कंधे पर किसी के छूने का अहसास हुआ.. मुझे अच्छा लगने लगा, उस समय मेरे मन में एक ही चेहरा नजर आया, रोहन का!
मैं चाह रही थी कि मुझे रोहन ही छुए और मैं उसकी बांहों में सिमट जाऊं।

मैंने आँखें खोली तो सच में रोहन ने मेरे कंधे को छुआ था। पर मेरा ध्यान कुछ लोगों की हंसी की वजह से भंग हुआ। मैंने देखा कि लड़के दूर से ही हमें देख कर खिलखिला कर हंस रहे हैं।
अब पता नहीं मुझे क्या हुआ कि मैंने ‘बदतमीज…’ कहते हुए रोहन को एक जोरदार तमाचा मारा।
मुझे लगा कि रोहन ने उन लोगों के साथ मिलकर मेरा मजाक उड़ाया है।
और मैं उसे मारकर वहाँ से चली गई।

शायद सर और सीनियर लड़की भी चौकन्ने होकर वहाँ से हट गये।

अब वापसी में मुझे मजबूरी में रोहन के साथ सीट पर बैठना पड़ा। पर हम दोनों ने एक लफ्ज भी बात नहीं की।
और शायद उस सीनियर लड़की और सर ने मुझे अपनी कामक्रीड़ा देखते हुए देख लिया था, इसलिए वो मुझसे घबराये घबराये से रहने लगे थे। पर उन्हें देखकर मेरे मन की सोई हुई कामोत्तेजना जाग जाती थी।

हम सब टूर की खट्टी मीठी यादें लेकर वापस आ गये। कुछ दिनों तक प्रसाद बांटने और टूअर की बातों का सिलसिला चलता रहा।

और फिर हमारे स्कूल के दिन पुन: शुरू हो गये पर रोहन और मेरी बातचीत टूअर में ही शुरू हुई थी और टूअर में ही खत्म भी हो गई थी। पता नहीं अब उसके साथ मेरे संबंध कैसे होंगे?
पर अब मेरे पास याद करने के लिए एक ब्रेसलेट और एक चाबीरिंग था, जिसे देखकर कभी रोहन पर प्यार आता था, तो कभी बहुत जोरों का गुस्सा..!!
मैंने उसकी उन यादों को बड़ी हिफाजत से छुपा कर रखा था।

कहानी जारी रहेगी..
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