खामोशी: द साईलेन्ट लव-1

(Khamoshi: The Silent love- Part 1)

This story is part of a series:

नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम है महेश कुमार. अभी तक आपने मेरी कहानियों में मेरे बारे में तो जान ही लिया होगा। सबसे पहले तो मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि मेरी सभी कहानियाँ काल्पनिक हैं जिनका किसी के साथ भी कोई सम्बन्ध नहीं है, अगर होता भी है तो ये मात्र एक संयोग ही होगा।

आपने मेरी‌ पिछली कहानी
वासना का खेल
को पढ़ा और उसको पसन्द किया, उसके लिये आप सभी पाठकों का धन्यवाद।

मैं अब उसके आगे का एक नया और बेहद अनूठा वाकया लिख रहा हूं, उम्मीद है कि ये कहानी भी आपको‌ पसन्द आयेगी।

चलिये, अब मैं कहानी पर आता हूं. जैसा कि आपने मेरी पिछली कहानी ‘वासना का खेल’ में मेरे कम्प्यूटर कोर्स के बारे में पढ़ा था कि जब तक मेरा कम्प्यूटर कोर्स चला तब तक मैं सुलेखा भाभी, नेहा और मेरी सबसे ज्यादा चहेती प्रिया के साथ उनके घर ही मजे करता रहा।

मेरा वो कम्प्यूटर कोर्स बस चालीस दिन‌‌ का‌ ही था‌ इसलिये कोर्स खत्म हो जाने के बाद मुझे अब वापस अपने घर पर आना पड़ गया। तब तक मेरा बारहवीं कक्षा का परीक्षा-परिणाम‌ भी आ गया था।
आपने मेरी पिछली कहानियों में यह भी पढ़ा ही होगा कि मैं साल भर किसी न किसी के चक्कर में फँसा ही रहता था इसलिये परीक्षा में किसी तरह पास तो हो गया, मगर मुझे इतने कम अंक‌ मिले कि जिस कॉलेज में मेरे भैया मेरा दाखिला करवाना चाहते थे उस कॉलेज में मुझे दाखिला नहीं मिल रहा था।

कम अंक आने के कारण वैसे ही मेरे सारे घर वाले मुझ पर गुस्सा थे, अब उनको जब यह बात पता चली कि कॉलेज में मुझे दाखिला भी नहीं मिल रहा है तो वो मुझ पर और भी नाराज हो गये। वो तो शुक्र था कि उस समय मेरे भैया घर पर नहीं थे, नहीं तो मेरी शामत ही आ जानी थी।

खैर, अब ये बात भैया को पता चली तो उन्होंने मुझे अब किसी दूसरे कॉलेज में दाखिला लेने से मना कर दिया और उनके छुट्टी आने तक मुझे इन्तज़ार करने के लिये कह दिया। भैया के कहने पर मैंने अब कहीं दाखिला तो लिया नहीं था इसलिये मैं सारा दिन घर पर ही रहता था जिससे मेरे मम्मी पापा मुझे कुछ न कुछ सुनाते ही रहते थे।

मेरे कम अंक आने से मेरी भाभी भी मुझसे‌ गुस्सा‌ थी इसलिये उन्होंने भी मुझे अब अपने‌ कमरे में सोने से मना‌ कर दिया था, जब कभी भाभी‌ का दिल‌ होता तो वो खुद ही मेरे पास आ जाती, नहीं तो मैं अब ड्राईँग रूम‌ के अंदर अकेला ही सोता था।

अब ऐसे ही मेरे दिन निकल रहे थे कि एक दिन मेरी मम्मी‌ ने मुझे कमला के बारे में बताते हुए कहा- आज कमला कुछ पैसे उधार लेने के लिये आई थी और वो पूछ रही थी कि तुम मोनी को रायपुर छोड़ आओगे क्या?

कहानी को आगे बढ़ाने से पहले मैं कमला के बारे में कुछ बता देता हूँ. मोनी कमला चाची की लड़की का नाम है। कमला चाची मेरी कोई सगी चाची नहीं है। कमला चाची का घर हमारे घर के बिल्कुल सामने ही है इसलिये हमारा और उ‌नका काफी आना जाना है। वैसे तो कमला चाची के पति का देहान्त हो चुका है मगर जब उनके पति जिन्दा थे तब से ही उनके साथ हमारे काफी अच्छे सम्बन्ध रहे हैं।

कमला चाची की तीन बेटियाँ है‌ मोनी, सोनम और कोमल। कमला चाची के पति बहुत अधिक शराब पीते थे इसलिये लीवर खराब हो जाने के कारण मोनी जब दस ग्यारह साल की थी तभी कमला चाची के पति का देहान्त हो गया था। कमला चाची अब एक स्कूल‌ में साफ-सफाई और चपरासी का काम करके अपना गुजारा कर रही थी।

हमारे साथ कमला चाची के काफी अच्छे सम्बन्ध हैं इसलिये कमला चाची को जब भी पैसे की या किसी और काम‌ की जरूरत होती है तो वो मेरे मम्मी पापा से ही कहती हैं। उनकी गरीबी के कारण मेरे मम्मी-पापा भी जितनी उनकी मदद कर सकते हैं वो कर देते हैं और कमला चाची‌ भी जब कभी हमारे घर काम की दिक्कत होती तो घर के काम में हाथ बँटा देती है। 

आपको तो पता ही है कि मेरी मम्मी की तबियत खराब रहती है इसलिये मेरी भाभी वैसे तो अपने मायके कम ही जाती है मगर जब भी मेरी भाभी अपने घर जाती है तो कमला चाची या फिर मोनी या सोनम‌ में से कोई न कोई ही हमारे घर के सारे काम करती है।

अपनी गरीबी के कारण कमला चाची अपनी बेटी पूनम (मोनी) को ज्यादा तो नहीं पढ़ा सकी थी, उन्होंने उसकी शादी कर दी थी। मोनी की शादी में भी मेरे मम्मी पापा ने कमला चाची की काफी मदद की थी। मेरी कोई बहन तो है नहीं इसलिये मेरे मम्मी पापा कमला चाची की लड़कियों को अपनी बेटी की तरह समझते हैं, खास तौर से तो मोनी को मेरे मम्मी-पापा बहुत मानते हैं. और कमला चाची भी हमारे घर को‌ अपना‌ मानकर कोई भी जरूरत पड़ने पर मेरी मम्मी-पापा से ही कहती है।

मोनी के ससुराल के बारे में मुझे ज्यादा कुछ तो नहीं पता, बस इतना ही पता है कि मोनी की शादी पास के ही गाँव में हुई है. मगर उसका पति रायपुर में किसी फैक्ट्री में काम करता है। मोनी के ससुर का तो पहले ही देहान्त हो चुका था और शादी के कुछ दिन बाद ही उसकी सास भी चल बसी‌ थी इसलिये मोनी के पति ने गाँव के घर को बेचकर रायपुर के पास ही कुछ जगह ले ली और मोनी को भी वहाँ अपने साथ रखने लगा।

अब कुछ दिन‌ तो वहाँ सब ठीक से चला मगर बाद में पता चला कि मोनी का पति बहुत अधिक शराब पीता है इसलिये मोनी का हमेशा ही उससे झगड़ा होता रहता है। अपने पति के साथ झगड़ा होने के कराण मोनी अब अधिकतर कमला चाची के पास ही रहती थी।

मेरी मम्मी मुझे मोनी के साथ जाने के लिये कह ही रही थी कि तब तक कमला चाची भी आ गयी। अब कमला चाची भी मुझे मोनी के साथ रायपुर जाने के लिये कहने लगी।

मैं वहाँ जाना तो नहीं चाहता था मगर फिर भी मैंने अब कमला चाची से ऐसे ही पूछ लिया कि किसलिये जाना है.
तो कमला चाची ने बताया- मोनी के पति को बहला-फुसलाकर उसके चाचा-चाची ने उनके गाँव के घर तो पहले ही ले लिया. अब रायपुर में थोड़ी बहुत जगह है, वो उसे भी बेचकर खाने के चक्कर में हैं। उसका (मोनी का पति) क्या है, वो तो जहाँ काम करता है वहीं पड़ा रहता है। उसे तो बस शराब से मतलब है, उसको अपने घर या मोनी से थोड़े ही मतलब है. वो तो वहाँ कभी-कभी ही आता है, अब मोनी भी वहाँ पर नहीं रहेगी तो गांव का घर तो पहले ही नहीं रहा, अगर रायपुर में थोड़ी बहुत जगह है वो भी छिन जायेगी तो फिर मोनी कहाँ जायेगी.

यह बताते-बताते कमला चाची की आँखों में अब आँसू भर आये थे जिससे मुझे भी अब उन पर तरस-सा आ गया। 

इतनी दूर मोनी के साथ मेरा जाने का दिल तो नहीं था मगर कमला चाची की बातें सुनकर मैं मोनी के साथ जाने के लिये तैयार हो गया। वैसे भी मैं घर मे‌ खाली‌ ही‌ पड़ा रहता था और मेरे मम्मी पापा की डांट सुन-सुनकर मैं तंग आ गया था, इसलिये मुझे अब मोनी के साथ जाना ही सही लगा।

वैसे तो मोनी मुझसे एक-डेढ़ साल बड़ी है मगर बचपन‌ से‌‌ ही हम‌ दोनों साथ खेलते आ रहे हैं इसलिये मैं मोनी को नाम से ही बुलाता हूं और मोनी भी मुझे नाम से ही बुलाती है। बचपन में तो हम साथ साथ ही खेलते थे मगर जैसे-जैसे बड़े होते गये वैसे-वैसे ही हम‌ दोनों का बात करना कम‌ हो गया‌ क्योंकि मोनी अब घर के कामकाज मे व्यस्त हो गयी थी और मेरे बारे में तो आपको पता ही है.

वैसे कुछ जरूरत या काम होने पर हमारी बात हो जाती थी मगर बचपन की तरह नहीं कि सारा-सारा दिन ही खेलते कूदते रहें। वैसे भी मोनी बचपन से ही काफी सीधी, शर्मीली और डरपोक सी लड़की रही है इसलिये वो अपने काम से ही काम रखती है।
मैं तो मोनी के घर कम‌ ही जाता था मगर मोनी हमारे घर आती रहती थी इसलिये ज्यादा तो नहीं, मगर फिर भी कभी कभी हमारी बातचीत हो जाती थी। वैसे भी मोनी की अब शादी हो गयी थी इसलिये न तो वो मुझसे इतना बात करती थी और न ही मैं कभी उससे इतना अधिक बात करने की कोशिश करता था।

खैर, कमला‌‌ चाची‌ को‌ मैंने मोनी के‌ साथ जाने‌ के‌ लिये‌ हाँ कर दी थी इसलिये अगले‌ दिन‌ सुबह ही मैं और मोनी रायपुर के‌ लिये निकल गये। हमारे शहर से दिल्ली तक तो हम बस में गये और आगे के लिये हमने दिल्ली से ट्रेन पकड़ ली।

अब ट्रेन में हमारा रिजर्वेशन तो था नहीं और शायद मोनी के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि पैसे से ही सीट का कुछ इंतजाम हो जाये। वैसे मोनी तो सामान्य श्रेणी में ही जाने के लिये कह रही थी मगर मेरे लिये इतनी भीड़ में जाना मुश्किल था इसलिये अब मैंने ही कुछ पैसे-वैसे देकर एक सीट का इन्तजाम किया. तब जाकर हम रायपुर तक पहुँच पाये।

मैं रास्ते में काफी परेशान हो गया था इसलिये रायपुर पहुँच कर सबसे पहले तो मैंने अपने वापस जाने के लिए रिजर्वेशन करवाया ताकि मुझे वापस जाने में दिक्कत न हो. मेरा रिजर्वेशन हो गया जो कि मुझे पन्द्रह दिन बाद का मिला। वैसे भी मैं वहाँ कुछ दिन रुकने के लिये ही मोनी के साथ आया था इसलिये इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं थी।

हम रायपुर तो सुबह सात बजे के करीब ही पहुँच गये थे, मगर एक तो मेरा रिजर्वेशन करवाने में हमें देर हो गयी थी ऊपर से मोनी का घर रायपुर से भी 15 किलोमीटर दूर एक गाँव में था. इसलिये रायपुर से आगे हमें बस से जाना पड़ा और ग्यारह बजे के करीब हम‌ मोनी के घर पहुँच पाये।

मोनी के घर के बारे में क्या बताऊं मैं … वो घर तो क्या था, बस चार दिवारी के अन्दर एक कमरा ही था जिसमें सामान के नाम पर बस सोने के‌ लिये एक बेड पड़ा था. वैसे उसे बेड तो नहीं कह सकते थे क्योंकि वो चारपाई से तो बड़ा था मगर बेड से छोटा था, लगभग पाँच बाय छह फीट का लकड़ी का एक पलंग था जिस पर ऐसे ही कुछ कपड़े पड़े हुए थे। पँखा नहीं था, बस खिड़की‌ में एक‌ छोटा सा‌ कूल‌र लगा हुआ था। एक टेबल थी, जिस पर एक‌ पुराना छोटा सा ब्लैक एंड व्हाईट टीवी रखा हुआ था और एक‌ पुरानी लकड़ी की कुर्सी थी।

वैसे मोनी के‌ पास कमरा तो एक ही था, मगर वो कमरा था काफी‌ बड़ा. उसके एक कोने‌ में ही टेबल डालकर उसने‌ रसोई बनाई हुई थी, जिस पर गैस चूल्हा, कुछ बर्तन और छह-सात डिब्बे रखे हुए थे। कमरे के‌ दूसरे कोने में ही बाथरूम था जिसमें कि‌ दरवाजा नहीं था, दरवाजे की जगह एक पुरानी चादर बँधी हुई थी।

मोनी‌ की हालत पर मुझे तरस सा आ रहा था क्योंकि घर में गुजारा करने के लिये जितने सामान की जरूरत होती है उससे भी बुरी हालत थी मोनी की। वैसे तो मैं वहाँ ये सोचकर गया था कि जब तक मेरे भैया छुट्टी नहीं आयेंगे तब तक मैं वहीं पर रहूंगा और ये बात मैं घर पर भी बोल आया था. मगर मोनी की हालत देखकर मेरा दिल अब वहाँ पर एक दिन भी रुकने के लिये नहीं हो रहा था।

मैं उस कमरे में इधर-उधर देख ही रहा था कि तभी मोनी बोली- मुझे पता है कि तेरा दिल तो यहां नहीं लगेगा, तुम्हें तो आदत नहीं होगी ऐसे रहने की!
मोनी ने अपनी खस्ता हालत पर अफसोस सा जाहिर करते हुए कहा। 

मोनी का चेहरा थोड़ा उतर सा गया था जिससे मुझे उस पर अब बड़ी ही दया सी आ गयी। मेरा वहाँ पर रुकने का दिल तो नहीं कर रहा था मगर मोनी को कहीं बुरा न लगे इसलिये मैं अब वहाँ पर रुकने के बारे में ही सोचने लगा. 
वैसे भी मुझे वापसी का रिजर्वेशन पन्द्रह दिन बाद का मिला था इसलिये मैंने सोचकर मोनी को जवाब दिया- इसमें क्या है? मैं कौन सा कहीं का नवाब हूं जो‌ यहाँ रह नहीं सकता? ऐसे ही रहूंगा जैसे तुम रहती हो!
यह कहते हुए मैं अब सीधा ही उस पलंग पर पसर गया।

“अरे … रे … रे … ये क्या … रुक, रुक तो … बस थोड़ी देर रुक, मैं इसे झाड़ तो देती हूं…” मोनी ने मुझे रोकते हुए कहा और जल्दी-जल्दी उस बिस्तर को झाड़कर सही करने लगी। मोनी के चेहरे पर अब थोड़ी मुस्कान सी आ गयी थी।

“एक काम करेगा? जब तक‌ मैं यहा सफाई‌ करती हूं तब तक तू बाजार से थोड़ा सामान‌ ले आयेगा क्या?” मोनी ने मुझे संकोच सा करते हुए कहा।

जाहिर था कि मोनी का पति तो यहाँ इतना आता नहीं था और मोनी भी यहाँ दो तीन महीने बाद आई थी इसलिये घर में खाने-पीने का राशन नहीं था।
“हां हां … क्या लाना है?” मैंने हामी भरते हुए कहा।

मोनी‌ ने‌ मुझे अब एक‌ कागज‌ पर कुछ राशन‌ की सूची (लिस्ट) बनाकर दे दी, साथ ही जो पैसे वो घर से लाई थी उनमें से राशन लाने‌ के‌ लिये उसने मुझे पाँच सौ रुपये पकड़ा दिये। मोनी से पैसे लेना मुझे सही नहीं लग रहा था इसलिये मैंने मोनी से वो सामान की लिस्ट तो ले‌ ली मगर पैसे वापस करते हुए मैंने कह दिया- अभी मेरे पास पैसे हैं और जब मुझे जरूरत होगी तब मैं अपने आप ही माँग लूंगा.

मना करने के बाद भी उसने मुझे अब जबरदस्ती भी पैसे देने की कोशिश की मगर उसकी हालत को देखकर मुझे उसके पैसे लेना‌ सही‌ लग नहीं रहा था। मेरे पास पहले से ही एक हजार रुपये थे और घर से आते समये अपने खर्चे के लिये मैंने अपनी मम्मी पापा से एक हजार रुपये और ले लिये थे‌। कुल मिलाकर मेरे पास दो हजार रुपये के करीब थे इसलिये मैंने‌ मोनी से पैसे नहीं लिये और अपने पैसे से ही बाजार से सामान लेने के लिये चला गया।

मोनी के घर से बाजार काफी दूर था इसलिये बाजार से राशन लाने में मुझे दो‌ घण्टे से भी ज्यादा का समय लग गया और जब तक‌ मैं राशन लेकर घर पहुँचा तब तक‌ मोनी ने घर की लगभग सारी साफ सफाई‌ कर ली थी‌।
मोनी को देखकर लग रहा था कि मेरे जाने के बाद से उसने एक मिनट भी आराम‌ नहीं किया था,पसीने से वो सारी भीगी हुई थी। वो थकी हुई थी मगर फिर भी मुझे देखते ही वो अब जल्दी से दरवाजे‌ पर आ गयी और बोली- तू सोच रहा होगा कि साथ लाकर परेशान कर दिया न मैंने?
मोनी ने मेरे हाथ से राशन का बैग लेकर उसे खुद उठाते हुए कहा।

मोनी की बातों व व्यवहार से जाहिर हो रहा था कि वो मेरा उसके साथ आने का काफी अहसान मान रही थी इसलिये वो मुझसे कोई भी काम नहीं करवाना चाहती थी। घर से आते समय रास्ते में भी मोनी यही कोशिश ‌कर रही थी कि मुझे कोई‌ दिक्कत न हो‌, इसलिये मैंने जो एक सीट ली थी उस पर वो खुद आराम करने की बजाय मुझे ही सोने के लिये बोलती रही मगर मैंने ही उसे मना कर दिया था।

वैसे मैं परेशान तो हो गया था मगर मोनी को मैं जाहिर नहीं करना चाहता था इसलिये मैंने बात को टालते हुए जवाब दिया- नहीं-नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, मैं घर पर भी तो काम करता हूं, फिर यहाँ काम करने‌ में‌ क्या दिक्कत है?
मैंने हँसते हुए ही कहा और मोनी के पीछे ही अन्दर आ गया।

मोनी ने राशन के बैग को रसोई में रख दिया और मुझे नहाने के लिये बोलकर वो खुद अब खाना बनाने में लग गयी। अब जब तक‌ मैं नहा-धोकर तैयार हुआ तब तक‌ मोनी‌ ने भी खाना‌ बना‌ लिया था इसलिये खाना खाकर मैं टीवी देखने लग गया और मोनी‌ घर के कुछ बचे हुए काम निपटाने‌ में लग गयी।

अब इसी तरह दिन‌‌ निकल‌ गया और रात हो गयी। दिन में तो मोनी घर के‌ काम‌‌ करने में लगी रही थी‌ इसलिये मैं उस पलंग पर सो गया था मगर रात को‌ खाना खाने के‌ बाद मैं अब सोचने‌ लगा कि बिस्तर तो यहाँ पर एक ही है. एक‌ ही बिस्तर पर तो हम‌ दोनों कैसे सोयेंगे?

फिर सोचा कि चलो जैसे भी हो और जो‌ भी करना है वो मोनी को‌ ही करना है. इसके‌ बारे में मोनी से कुछ पूछकर मैं उसे शर्मिंदा नहीं करना चाहता था इसलिये ‌खाना खाकर मैं अब ऐसे ही टहलने‌ के‌ बहाने‌ घर से बाहर आ‌ गया।

मैं बाहर टहल ही रहा था कि कुछ देर बाद ही मोनी ने मुझे आवाज देक‌र वापस अंदर बुला‌ लिया। मैंने अब घर जाकर देखा‌ तो‌ मोनी ने घर के सारे काम‌ निपटा लिये थे और उसने अपना बिस्तर नीचे फर्श पर लगाया हुआ था।

मैंने‌ मोनी से‌ एक दो बार कहा भी कि मैं नीचे सो जाता हूं और वह बिस्तर पर ऊपर सो जाए, मगर मोनी ने‌ ये कहकर मना‌ कर दिया कि उसे तो पहले से ही नीचे सोने‌ की‌ आदत है. इसलिये उसने मुझे ही ऊपर वाले बिस्तर पर सोने के लिए बाध्य कर दिया. मैंने भी अब उससे ज्यादा कुछ नहीं कहा और चुपचाप पलंग पर सो गया।

अगले दिन सुबह मैं ग्यारह बजे के‌ करीब सोकर उठा। मोनी को भी घर के‌ काम‌ के अलावा और कोई काम‌ तो था नहीं, इसलिये शायद मोनी भी लगभग मेरे से कुछ देर पहले ही उठी‌ थी क्योंकि जब मैं उठा‌ था उस समय‌ वो घर के‌ काम‌ ही निपटा रही‌ थी।‌
खैर, मैं शौच आदि से निवृत्त होकर जब तक तैयार हुआ तब तक दोपहर के खाने का समय हो गया था, इसलिये खाना खाकर मैं अब टीवी देखने लग गया और मोनी कुछ देर तो घर के‌ काम‌ में लगी रही फिर काम निपटा कर वो अपनी पड़ोसन के घर चली गयी।

इसी तरह दिन निकल‌ गया और रात हो गयी। अब रात को खाना खाने के बाद मैं टीवी देख रहा था और मोनी बर्तन आदि साफ कर रही थी। उस दिन गर्मी कुछ ज्यादा ही थी. ऊपर से उस कमरे में पँखा भी नहीं था। बस खिड़की में एक कूलर लगा हुआ था और उसकी हवा भी बस पलंग पर ही लगती थी।
गर्मी के कारण मैं बस निक्कर और बनियान में ही सोता था मगर फिर भी मुझे गर्मी के कारण पसीना निकल रहा थे, इसलिये मैं अब सोचने लगा कि पलंग पर सोने में भी मुझे जब इतनी गर्मी लग रही है तो मोनी‌ नीचे कैसे सोती होगी?

मोनी ने तब तक घर के काम निपटा लिये थे और वो आज भी अपना बिस्तर नीचे लगाकर सोने की तैयारी कर रही थी।
गर्मी को देखकर मुझसे अब रहा नहीं गया, मैंने मोनी से कह ही दिया- इतनी‌ गर्मी‌ में तू नीचे कैसे सोयेगी? मुझे कूलर की हवा में भी पसीने निकल रहे हैं, तो फिर तू नीचे कैसे सोयेगी? तू घर काम करके थक जाती‌ होगी, मैं तो दिन में भी सो लेता हूं मगर तू दिन‌ में भी आराम नहीं करती इसलिये तू ऊपर सो जा और मैं नीचे सो जाता हूं.
मैंने मोनी को नीचे सोने से मना‌ करते हुए कहा।

मगर मेरे बहुत कहने के बाद भी मोनी ने अब भी कल के जैसा ही जवाब दिया कि उसे पहले से ही नीचे सोने की आदत है।
मुझे पता था कि नीचे सोने में मोनी को गर्मी तो लगती है, मगर वो बस दिखावे‌ के‌ लिये ही ऐसा कह रही है क्योंकि मुझे जब कूलर की हवा में भी पसीने निकल रहे थे तो नीचे तो बिल्कुल भी हवा नहीं लगती थी।

मोनी जब उपर सोने के लिये तैयार नहीं हुई तो मैंने अब उस कूलर को ही खिड़की से निकालकर नीचे मोनी के पास लगा दिया जिससे मोनी मुझ पर थोड़ा गुस्सा हो गयी।
मोनी मुझे भी कूलर के बगैर गर्मी में नहीं सुलाना चाहती थी इसलिये मैंने उस पलंग को भी हटाकर एक तरफ कर दिया और हम दोनों के लिये नीचे ही एक चौड़ा सा बिस्तर लगा लिया.

दोनों का बिस्तर जमीन पर लग गया था जिससे मोनी ने मेरे साथ अब एक ही बिस्तर पर सोने मे थोड़ा संकोच तो किया मगर फिर बिना कुछ कहे चुपचाप एक तरफ होकर सो गयी। मोनी शायद दिन भर काम करके थक गयी थी इसलिये लेटते ही उसे नींद आ गयी। मोनी के सो जाने के बाद मैंने अब कुछ देर तो टीवी देखा फिर टीवी बन्द करके मैं भी सो गया। 

अब ऐसे ही हफ्ता भर बीत गया। मैं रात को तो उस कूलर को नीचे रखकर हम दोनों का बिस्तर नीचे लगा लेता था, मगर दिन में उसे वापस खिड़की में ही लगा देता था। शुरू शुरू में एक दो दिन तो मोनी ने मेरे साथ नीचे एक ही बिस्तर पर सोने मे संकोच सा किया मगर फिर बाद में तो वो अपने आप ही मेरे साथ सो‌ जाती थी‌।

वैसे भी वहाँ रायपुर में मेरे और मोनी के अलावा घर में और कोई तो था नहीं, इसलिये दिन रात लगभग हम साथ ही रहते थे जिससे मोनी अब मेरे साथ थोड़ा बहुत खुल भी गयी थी। 
कहानी दूसरे भाग में जारी है. कहानी आप को पसंद आ रही हो तो कमेंट या मेल करके जरूर अपनी प्रतिक्रिया दें.

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