तीन पत्ती गुलाब-8

(Teen Patti Gulab- Part 8)

This story is part of a series:

रात को देरी से नींद आई तो सुबह उठने में भी देरी हो गई। स्कूल जाते समय मधुर ने मुझे जगाया। अक्सर मेरे देरी से उठने पर वो बहुत उलाहना सा देते हुए मुझे जगाया करती है पर आजकल तो उसका यह चुलबुलापन जैसे गायब ही हो गया है।

जब मैं बाथरूम से बाहर आया, तब तक मधुर स्कूल जा चुकी थी। गौरी ने बताया कि आज दीदी नाश्ता करके नहीं गई, उनको आज स्कूल में जल्दी जाना था।

मधुर भी पता नहीं आजकल किन चक्करों में लगी रहती है। गौरी के आने के बाद उसके व्यवहार में अचानक बदलाव सा आ गया है। पहले तो हम कितना समय एक दूसरे के साथ बिताया करते थे और दिन में भी 2-3 बार किसी ना किसी बहाने ऑफिस में उसका फोन भी आ जाया करता था पर आजकल तो वो कितना लापरवाह सी हो गयी है कि जैसे मेरे लिए उसके पास समय ही नहीं बचा।

मैं हॉल में सोफे पर बैठकर अखबार पढ़ने लगा। आज मैंने टी-सर्ट और बरमूडा पहना था। गौरी चाय बना कर ले आई थी। गौरी भी आज उदास सी लग रही थी। पता नहीं क्या बात थी? हो सकता है मधुर ने कुछ बोल दिया हो?

मैंने गौरी से पूछा- गौरी क्या बात है आज तुम उदास सी क्यों हो? कहीं मधुर के साथ कोई बात तो नहीं हो गई?
“किच्च.”
“तो क्या बात है?”
“तुछ नहीं.”
“ना कोई बात तो जरुर है? आज मधुर भी उदास सी थी, नाश्ता भी नहीं किया और तुम भी उदास लग रही हो? बताओ ना क्या बात है? तुम्हें मेरी कसम?”
“वो … वो …” कहते कहते गौरी रुक गई।

मेरे दिल की धड़कन और असमंजस बढता जा रहां था। पता नहीं कोई और बम तो नहीं फूटने वाला?
“प्लीज बताओ ना क्या बात है?”
“वो दीदी ने तल मुझे लूला दिया.”
“क … क्यों?”
“ऐसे ही?”
“कमाल है? ऐसे कैसे रुला दिया? कोई तो बात होगी?”
“वो दीदी ने मुझे एत पली और राजतुमाल ती तहानी सुनाई थी”
“हुम्! पर परी और राजकुमार वाली कहानी में रोने वाली क्या बात थी? गौरी प्लीज पूरी बात बताओ?”

फिर जो गौरी ने बताया वो आप भी सुन लें:
(इसे तोतली भाषा की बजाये सामान्य भाषा में लिखा है.)

कल आपके जाने के बाद दीदी लगभग 1 बजे ही आश्रम से लौट आई थी। आज वो बड़ी खुश नज़र आ रही थी। आपके बारे में पूछा तो मैंने बताया कि आप भोंसले साहब के घर गए हैं। फिर उन्होंने पूछा कि खाना खाकर गए या नहीं तो मैंने बताया कि नाश्ता करके गए हैं। खाने का मना कर दिया बोले ‘तुम खा लेना मैं आकर देखूंगा।’ दीदी ने मेरे बारे में भी पूछा कि मैंने खाना खाया या नहीं तो मैंने कहा कि नाश्ता कर लिया था अकेली के लिए खाना नहीं बनाया।

“तुम भी आलसी हो गई हो। समय पर खाना खा लेना चाहिए।”
“हओ! आपने खाना खाया या बनाऊं?”
“ना मैं आश्रम से खाकर आई हूँ?”
“हुम्”
“गौरी! देख मैं तुम्हारे लिए क्या लाई हूँ?”
मैंने उत्सुकता से उनकी ओर देखा तो उन्होंने पर्स से एक कलावा और काला धागा निकाला और कहा- यह आश्रम वाले गुरूजी ने दिया है. लाओ तुम्हारी कलाई पर बाँध देती हूँ.
“यह क्या है?”

“ओहो … एक तो तुम बहस बहुत करती हो?”
“सॉरी.”
“इससे तुम्हें नज़र नहीं लगेगी और कोई अशुभ नहीं होगा.”
मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने उनके कहे अनुसार वो धागा बंधवा लिया। फिर उन्होंने मेरे बाएं पैर पर भी एक काला धागा बाँध दिया।
“पैर पर इस काले धागे को बांधने से नहाते समय पाप नहीं लगता.”

“पाप … कैसे?”
“तुम भी बहुत भोली हो?”
सच में मुझे कुछ समझ नहीं आया कि नहाने से पाप कैसे लग सकता है।
“अरे बुद्धू! हम जब नहाते हैं तो सारे कपड़े उतार देते हैं ना? इससे निर्वस्त्र होने से पाप लगता है। अगर यह काला धागा बाँध लो तो फिर निर्वस्त्र होकर नहाने से कोई पाप नहीं लगता। अब समझी?”
“हओ”
“गौरी!”
“हुम्”
“वो तुम्हारे लिए उस दिन हम शॉर्ट्स और टॉप लाये थे ना?”
“हओ”
“वो पहना या नहीं?”
“किच्च.”
“अरे उसका क्या अचार डालोगी? पागल लड़की! गर्मी का मौसम है कभी कभी शॉर्ट्स पहन लिया करो?”
“हओ”
“चलो आज उसे पहन कर दिखाओ.”
“हओ”
मुझे शॉर्ट्स पहनने में थोड़ी शर्म तो आ रही थी पर दीदी का कहा टालना मेरे बस की बात नहीं थी। फिर मैं स्टडी रूम में गई और अलमारी से सफ़ेद शॉर्ट्स और टॉप निकाला। शॉर्ट्स थोड़ा टाइट सा था। पूरी जांघें दिखाई देने लग गई थी। जाँघों के संधि स्थल के बीच का भाग तो फूला हुआ सा लग रहा था और टॉप भी बस मेरे उरोजों को ही ढक रहा था पूरा पेट और नाभि सब दिख रहे थे।
मैंने आज ब्रा पैंटी भी नहीं पहनी थी। सच कहूं तो इन कपड़ों में मुझे दीदी के सामने जाने में शर्म सी आ रही थी।
मैं हिम्मत करके शर्म के मारे अपनी मुंडी नीचे किये धीरे धीरे बाहर आई तो दीदी मुझे देखती ही रह गई।

“हे भगवान्!”
“क्या हुआ?”
“ओहो … गौरी तुम तो बहुत ही खूबसूरत लग रही हो इन कपड़ों में … बिल्कुल नाजुक कलि जैसी।”
अब मैं क्या बोलती। मुझे तो असहज सा लग रहा था। मैं सिर झुकाए खड़ी रही।

फिर दीदी मेरे पास आई और मुझे ऊपर से नीचे तक एक बार फिर देखा और बोली- सच कहती हूँ अगर प्रेम तुम्हें इन कपड़ों में कोई देख ले तो सच में तुम्हारे ऊपर लट्टू हो जाए और तुम्हें अपनी बांहों में भरकर भींच ले।
मुझे तो बड़ी शर्म सी आ रही थी।
“एक तो तुम शर्माती बहुत हो? तुम्हारी खूबसूरती की तारीफ़ करने के बाद भी कुछ नहीं बोला?”

मैं भला क्या बोलती। मुझे अपनी सुन्दरता के बारे में सुनकर अच्छा तो लग रहा था पर थोड़ी शर्म भी आ रही थी। फिर दीदी ने मुझे बांहों में भर कर अपनी छाती से लगा लिया- भगवान् करे तुम्हें किसी कि बुरी नज़र ना लगे.

मैं तो दीदी के इस प्रेम को देखकर अभिभूत सी हो गयी थी। मैंने अपनी पूरे जीवन में कभी माँ-बाप, मौसी या किसी और से ऐसे प्रेम का अनुभव नहीं किया था। फिर दीदी ने मेरे सिर को अपने दोनों हाथों में पकड़कर मेरे माथे और गालों पर कई चुम्बन लिए।
फिर उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों से लगा कर चूमना शुरू कर दिया। मेरे पूरे बदन में एक अनूठी सिहरन सी होने लगी थी। पूरा बदन एक नए रोमांच में भर गया। मुझे लगा मेरे अन्दर एक लावा सा भर गया है वो बाहर निकल जाने को आतुर है।

दीदी ने मुझे प्रथम चुम्बन के अहसास के बारे में बताया था कि ‘चुम्बन प्रेम भावनाओं की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। चुम्बन प्रेमानुभूति का प्रतीक है। प्रेम सागर में डूबे दो लोग अपनी भावनाओं को चुम्बन के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं। सबसे खूबसूरत और कोमल इंसानी अहसासों को व्यक्त करने की सुन्दरतम अभिव्यक्ति है। प्रेम सागर में डूबे दो लोग अपनी भावनाओं को चुम्बन के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं। चुम्बन इंसानी अहसासों को व्यक्त करने की सबसे खूबसूरत और कोमल अभिव्यक्ति है। इसके माध्यम से एक प्रेमी अपने साथी को अपने प्रेम को दर्शाता है। इससे इनके रिश्तों में मिठास आती है और इसी कारण हर प्रेमी की इच्छा होती है कि वो अपने साथी को प्यार भरा चुम्बन करे। प्रेम करने वाला पति या प्रेमी जब भी अपना प्रेम भरा स्पर्श उनके अधरों पर करता है तो उनमें अपनी ख़ूबसूरती का अहसास जाग उठता है।’

दीदी ने और भी बहुत सी बातें चुम्बन के बारे में बताई थी पर मुझे ज्यादा कुछ समझ नहीं आया था। फिर मैंने रात को दीदी ने जो मोबाइल दिया था उसमें यू ट्यूब पर विडियो में भी चुम्बन दृश्य देखे थे।

सच कहूं तो मेरे लिए तो यह सब अप्रत्याशित, अप्रतिम, अनूठा और अकल्पनीय सा था। मैं अपने आप को किसी सातवें आसमान में महसूस कर रही थी। मुझे तो लग रहा था जैसे मैं कोई परी हूँ और मेरे पंख लग गए हैं और अभी कोई देवदूत आकर मुझे अपने आगोश में लेकर उड़ जाएगा। एक मधुर सा, गुदगुदी भरा मीठा सा अनमोल अहसास! मैं निहाल हो गई।

मैं अपने रूमानी ख्यालों में डूबी थी कि अचानक दीदी बोली- तुम्हें परी और राजकुमार की कहानी सुनाऊँ?
“हओ”

एक राज कुमार था बहुत सुन्दर। रात को वह जब अपने बाग़ में सैर करने जाता था तो वहाँ रोज चांदनी रात में एक खूबसूरत परी उससे मिलने आया करती थी। दोनों में प्रेम हो गया।

एक दिन राजकुमार ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। परी ने मना कर दिया और बताया कि किसी परी का विवाह किसी आदमजात (मनुष्य) से नहीं हो सकता। विवाह उसी अवस्था में हो सकता है जब परी अपने पंख कटवा ले। परी ने पंख कटवाने से मना कर दिया और फिर परी उस रात के बाद कभी वापस उस राजकुमार से मिलने नहीं आई। बेचारे राजकुमार ने उस निष्ठुर परी के विरह में अपनी जान दे दी।

इतना कहकर दीदी चुप हो गई। मुझे तो यह कहानी सुनकर रोना सा आ गया। मुझे लगा मैं अभी जोर-जोर से रोने लगूंगी। मुझे उस दुष्ट परी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। अगर मैं उसकी जगह होती तो अपने पंख क्या अपनी जान दे देती पर उस राजकुमार को कभी छोड़कर नहीं जाती।

दीदी ने मुझे अपने पास सोफे पर बैठा लिया। मैं उस समय अपने सपनों के राजकुमार के बारे में सोच रही थी कि वो किसी दिन आएगा और फिर मेरे कोमल अंगों को सहलायेगा, उन्हें मदहोश कर देगा, मेरे गुप्त अंगों से खेलेगा और अपने बाहुपाश में लेकर जोर से भींच डालेगा। इन्हीं ख्यालों में मेरी योनि भीग गई थी और मैं सिसक उठी।

मैं गुमसुम हुई अभी भी उस परी और राजकुमार के बारे में सोच रही थी कि अचानक दीदी ने मेरा हाथ अपने हाथ में पकड़कर कहा- गौरी मुझे आज एक वचन दे?
“क्या?” मैं कुछ समझ ही नहीं पा रही थी। पता नहीं आज दीदी को क्या हो गया है।
“गौरी! अगर मुझे कुछ हो जाए तो मेरे ‘लव लड्डू’ का ख्याल रखना, वह बहुत भोला है।” कह कर दीदी ने मुझे एक बार फिर अपनी बांहों में भर लिया।

मुझे लगा दीदी अभी रोने लगेंगी। मेरी तो उनके इस प्रेम को देखकर रुलाई ही फूट पड़ी। दीदी ने मेरी आँखों से निकले आंसू अपनी साड़ी के पल्लू से पौंछे और फिर अपने पास सोफे पर बैठा लिया।
“गौरी!”
“हओ”
“पहले का जमाना कितना अच्छा होता था। एक पुरुष 2-2, 3-3 शादियाँ कर लेता था। मेरा वश चलता तो मैं तुम्हारी शादी करवा कर हमेशा के लिए तुम्हें अपने पास ही रख लेती?”
“दीदी मैं तो सदा आपके पास ही हूँ? मैं आपको छोड़कर तभी नहीं जाऊँगी।”
“हाँ मेरी लाडो! जा अब रसोई में जाकर खाना खा ले। मैं भी अब आराम करुँगी.”

मैं स्टडी रूम में आकर अपने बेड पर लेट गई। और बहुत देर तक इस घटनाक्रम के बारे में सोचती रही। मुझे सच कहूं तो कुछ भी समझ नहीं आया पर इतना तो जरुर समझ सकती थी कि दीदी के मन की गहराइयों में कोई ना कोई दुःख या बात जरूर पैठी है।

गौरी इतना कहकर चुप हो गई। सच कहूं तो मधुर के इस व्यवहार के बारे में मुझे भी कुछ समझ नहीं आया। हाँ उसे एक और बच्चे की चाहत तो जरुर है पर इसके अलावा और क्या बात हो सकती है? समझ से परे है।

मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ। आपने ऊपर वर्णित घटनाक्रम और मधुर के इस बदले हुए अजीब से व्यवहार के बारे में पढ़ा क्या आप कुछ समझ पाए? अगर आप लोग इस बारे में अपनी कीमती राय लिखेंगे या मेल करेंगे तो मुझे हार्दिक ख़ुशी होगी।

गौरी मेरे पास सोफे पर बैठी थी। उसने अब भी अपनी मुंडी नीचे झुका रखी थी। लगता है कुछ सोच रही थी। माहौल थोड़ा संजीदा (गंभीर) हो गया था।
“अरे गौरी!”
“हओ?” गौरी ने चौंकते हुए कहा।
“अरे यार! बातों बातों में यह चाय तो आज फिर ठंडी हो गई?”
“ओह … मैं दुबाला बनाकल लाती हूँ.” कहकर गौरी रसोई में चली गई।

थोड़ी देर में गौरी फिर से चाय बनाकर ले आई थी। अब तो वह बिना झिझके ही स्टूल के बजाये सोफे पर बैठने लगी थी।
मैंने गाँव वालों की तरह गिलास से सुड़का लगाकर चाय पीना शुरू कर दिया। मेरी इस हरकत पर गौरी मंद-मंद मुस्कुराने लगी थी।

“गौरी एक बात बताऊँ?”
“हओ.”
“ये सुड़का लगाकर गिलास में चाय पीने का मज़ा ही अलग है? है ना?”
“आप भी निले बच्चे जैसे हलकतें कलते हैं.”
“अरे कभी-कभी बच्चे बन जाने में भी बहुत अच्छा लगता है। मेरा मन तो कई बार फिर से छोटा बच्चा बन जाने का करता है।
“त्यों?”
“हाय! बचपन के भी क्या मज़े थे? जो चाहो खाओ, जहां चाहो घूमो फिरो ना कोई फिक्र ना कोई फाका!”
हम दोनों ही हंसने लगे।

“एक और भी मजे वाली बात है?”
“त्या?”
“जो चाहो पहनो और अगर मन ना हो तो कुछ ना पहनो बस नंग-धडंग घूमो.”
“हट!” कह कर गौरी मंद-मंद मुस्कुराने लगी।

मेरा लंड बन्दूक की नली की तरह पूरा खड़ा हो गया था। उसका उभार और ठुमकना बरमूडा के ऊपर से स्पष्ट देखा जा सकता था। गौरी भी कनखियों से बार-बार इसकी ओर देख रही थी। उसके होंठ थोड़े कंपकंपा से रहे थे। उसने अपनी मुंडी नीचे झुका सी रखी थी और वह मुझ से नज़रें मिलाने से कतरा सी रही थी। मेरा लंड बार-बार ठुमके लगा रहा था। मुझे लगा मैंने अभी कुछ नहीं किया तो इसकी नसें फट जायेंगी।

प्रिय पाठको और पाठिकाओ! आप सोच रहे होंगे- ‘यार प्रेम गुरु … क्या चुतियापा कर रहे हो लोहा गर्म है मार दो हथोड़ा। क्यों अपने और हमारे लंड को तड़फा रहे हो? ठोक दो साली को।’

मित्रो! आपका सोचना अपनी जगह दुरुस्त हो सकता है पर मेरा मनाना है कि चुदाई से पहले किसी भी लौंडिया को मस्त करना बहुत ही ज़रूरी होता है। खैनी को जितना रगड़ोगे उतना ही मज़ा आएगा। प्रेम सम्बन्धों में थोड़ा धैर्य रखना बहुत ज़रूरी होता है इसमें में उतावलापन अच्छा नहीं होता। मैं चाहता हूँ गौरी मानसिक रूप से इसके लिए मन से तैयार हो जाए ताकि जब भी हम दोनों प्रेम के अंतिम पड़ाव पर पहुंचें और इस नैसर्गिक सुख को भोगें उसमें मन में लेश मात्र भी शंका, भय, पाप, ग्लानी या अपराध बोध का भाव ना हो।

“ग … गौरी! एक काम करोगी?”
“त्या?”
“पहले वादा करो कि ना नहीं कहोगी और शरमाओगी नहीं?”
“त्या?”
“ना वादा करो तब बताऊंगा?”
“थीत है”
“पक्का?”
“हओ.”

“वो शॉर्ट्स और टॉप पहनकर मुझे भी दिखाओ ना प्लीज!”
“हट!”
“क्या हट!”
“मुझे शल्म नहीं आएगी त्या?”
“इसका मतलब तुम अपनी दीदी से प्रेम नहीं करती?”
“वो तैसे?”
“देखो अब तो मधुर ने भी तुम्हें बोल दिया कि शर्माना नहीं चाहिए और तुमने मुझसे भी वादा किया है.”

“ओह … देखो आपने फिल मुझे बातों में फंसा लिया ना?”
“यार इसमें फ़साने वाली कौन सी बात है भला?”
“फिल भी आपते सामने शल्म तो आएगी ना?”
“ठीक है भई! कोई बात नहीं। एक तरफ अपना भी कहती हो और मेरी तो क्या अपनी प्रिय दीदी की भी बात नहीं मानती। ठीक है भई अपनी तो किस्मत ही खराब है.” कह कर मैंने एक लम्बी सांस ली और उदास होने का नाटक शुरू कर दिया।

गौरी कुछ सोचने लगी थी। उसके मन में उथल-पुथल सी चल रही थी। मैंने तो भावनात्मक रूप से उसे इस प्रकार अपनी बातों में उलझा लिया था कि अब मेरी बात मानने के सिवा उसके पास कोई चारा ही नहीं बचा था।
“वो … तपड़े बदलने और पहनने में बहुत टाइम लगेगा तो आपतो ऑफिस जाने में देली हो जायेगी?”
“कोई बात नहीं मैं ऑफिस से छुट्टी मार लूँगा तुम उसकी चिंता मत करो.”

“दीदी तो पता चला तो मुझे और आपतो तच्चा चबा जायेगी?”
“प्लीज बस एकबार वो शॉर्ट्स और टॉप पहनकर दिखा दो फिर और कुछ नहीं मांगूंगा.”
“ओहो … आप भी बच्चों की तलह ज़िद कलते हैं.”
“गौरी देखो! मेरा दिल कितना जोर-जोर से धड़क रहा है? देख लो अब अगर कुछ हो गया तो तुम ही संभालना फिर?”

गौरी ने मेरी ओर तिरछी नज़रों से देखा। उसके चहरे पर दुविधा की स्थिति साफ़ झलक रही थी। उसकी साँसें थोड़ी तेज़ हो चली थी। मुझे अपने प्लान पर पूरा यकीन था कि अब चिड़िया पूरी तरह मेरे जाल में फंस चुकी है और अब उसका निकल पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

“वो … वो … मैं शाम तो पहनतल दिखा दूंगी … प्लीज!”
“आह … हमें तो अपनों ने लूट लिया?” मैंने अपने सीने पर हाथ रखकर थोड़ा झुकने की एक्टिंग की।
“दीदी सच तहती है आप भी एत नम्बल के जिद्दी हो। अच्छा लुतो (रुको)” कहकर गौरी हंसने लगी।
हंसी तो फंसी।

और फिर नजाकत से अपने दोनों नितम्बों को मटकाते हुए वह वाश बेसिन की ओर जाने लगी। उसने पहले साबुन से अपने हाथ धोये और फिर चहरे पर पानी के छींटे मारे। फिर उसने माउथ फ्रेशनर से कुल्ला किया और फिर तौलिये से मुंह पोछते हुए स्टडी रूम (जहां गौरी के सोने की व्यवस्था है) की ओर जाने लगी।

पाजामे में कसे उसके नितम्बों की खाई तो जैसे मेरा कलेजा ही मांग रही थी। आज भी उसने अन्दर पैंटी नहीं पहनी थी। मुझे यकीन है अब तो उसे मेरी भावनाओं और इरादों का अच्छी तरह अंदाजा हो ही गया होगा।

हे लिंग देव! उसकी गांड का छेद तो अभी गुलाबी ही होगा। पता नहीं उसे देखने, छूने और चूमने का वक़्त कब आएगा। भरे जिस्म पर वो उठे हुए कसे कसे बड़े बड़े उरोज … वो पतला सा पेट … पतली सी कमनीय कमर … और फिर चौड़े नितम्ब और उसकी वो मादक जांघें … पतली लम्बी सुतवां मखमली रोम विहीन टाँगें … उफ़ … मैं बेसब्री से उसका इंतज़ार करने लगा.

और फिर कोई 15 मिनट के बाद स्टडी रूम का दरवाज़ा खुला …
जैसे आसमान में कोई आफताब चमका हो बादलों की ओट से पूर्णिमा का चन्द्र निकल आया हो … गौरी अपनी मुंडी झुकाए हौले-हौले चलती हुई मेरी ओर आने लगी.

आज पहली बार मैंने गौरी को इन कपड़ों में देखा था। सफ़ेद रंग की कसी हुई हाफ पैंट जैसी शॉर्ट्स और ऊपर गुलाबी रंग का टॉप। पतले गुलाबी होंठों पर हलकी लिपस्टिक, पैरों में स्पोर्ट्स शूज, सिर पर नाईके की टोपी, बालों कि एक चोटी उसके स्तनों के ऊपर जैसे पहरा सा दे रही थी।

मैं सच कहता हूँ अगर वो एक हाथ में टेनिस का रैकेट पकड़ ले तो लगेगा जैसे सिमरन (काली टोपी लाल रुमाल) ने ही दूसरा जन्म ले लिया है। मुझे लगा मैं गश खाकर वहीं गिर पडूंगा। उफ़ … जैसे क़यामत बस 4 कदम दूर है।

मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था और साँसें तेज हो गई थी मेरे कानों में सांय-सांय सी होने लगी थी। हलक जैसे सूख सा गया था और मुझे लगने लगा था जैसे मेरा दिल हलक के रास्ते अभी बाहर निकल आएगा।

गुलाबी टॉप के अन्दर कसे दो सिंदूरी आम, कमलनाल की तरह तरासी हुयी लम्बी छछहरी चिकनी बांहें। पैंटी और टॉप के बीच उसका नग्न मुलायम पेट पर नाभि का गहरा सा छेद। नाभि के नीचे उभरा हुआ सा पेडू, मखमली रोम विहीन पतली जाँघों का संधि स्थल के ऊपर का भाग थोड़ा सा उभरा हुआ। मैं तो मंत्र मुग्ध हुआ बस भगवान् के बनाए इस फित्नाकर मुजस्समे को देखता ही रह गया।

गौरी सोफे के पास आकर खड़ी हो गई। उसने अपनी मुंडी झुका रखी थी और शायद आँखें भी बंद थी। पता नहीं कितनी देर मैं उसे इसी तरह अपलक देखता ही रहा।

फिर धड़कते हुए दिल के साथ मैं सोफे से उठा। मुझे लगा मेरे पैरों का खून जम सा गया है। मैं गौरी के पास आ गया। उसने मारे शर्म के अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक सा लिया। उसके कुंवारे और अनछुए बदन से आती खुशबू ने तो मेरे सारे स्नायुतंत्र को मदहोश ही कर दिया। उसने शायद कोई परफ्यूम भी लगाया था।

मैंने धीरे से एक हाथ से उसकी ठोड़ी को पकड़कर ऊपर उठाते हुए कहा- गौरी, आँखें खोलो ना प्लीज?
उसने शर्माते हुए धीरे से अपनी आँखें खोली। उसकी सपनीली आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे। उसके अधर थोड़े काँप से रहे थे और तेज होती साँसों के साथ छाती का उभार ऊपर नीचे हो रहा था।
बेसाख्ता मेरे मुंह से निकल पड़ा …

एक हुश्न बेपर्दा हुआ और वादियाँ महक गई …
चाँद शर्मा गया और कायनात खिल गई …
तुम्हारे रूप की कशिश ही कुछ ऐसी है,
जिसने भी देखा बस यही कहा …
ख्वाबों में ही देखा था किसी हुस्न परी को,
किसे खबर थी कि वो जमीन पर भी उतर आएगी …
किसी को मिलेगा उम्र भर का साथ उसका
और उसकी तक़दीर बदल जायेगी।

हजारों सुनहरे सपने जैसे उसकी आँखों में तैर रहे थे। गौरी आँखें बंद किये हसीन ख्याबों में डूबी थी। मेरा एक-एक शब्द जैसे उसके कानों में किसी सुरम्य घाटी में बने मंदिर की घंटियों की तरह गूंजने लगा था। गौरी के दिल की धड़कन मैं साफ़ सुन सकता था। उसका गला भी सूख सा रहा था। साँसें तेज थी और उसके माथे और कनपटी पर जैसे पसीना सा झलकने लगा था।

“गौरी! तुम बहुत खूबसूरत हो!!!”

मैंने धीरे से अपने जलते होंठ उसके लरजते लबों पर रख दिए। उसका शरीर एक बार थोड़ा सा कांपा। मुझे लगता है वह इस स्थिति के पहले अपने आप को पहले से ही तैयार कर चुकी थी।

होंठों का गहरा मिलन और साथी का कसकर आलिंगन यह दर्शाता है कि आप मोहब्बत के चरम अवस्था पर जाने के लिए तन और मन से तैयार हैं। किसी भी लड़की या स्त्री को प्रेम करने वाला पति या प्रेमी जब भी प्रेम भरा प्रथम स्पर्श उनके अधरों पर करता है तो उनमें अपनी ख़ूबसूरती का अहसास जाग उठता है। चुम्बन प्रेमानुभूति का प्रतीक है और यहीं से प्रेम अंकुरित होता है।

मैंने अपने होंठों को उसके कोमल गुलाबी अधरों पर होले से फिराया। उसका पूरा बदन जैसे झनझना सा उठा। सारे बदन पर पसीना छा गया और रोएँ खड़े हो गये। कामदेव ने अपने तरकस से जैसे हजारों तीर एक साथ छोड़ दिए हों। प्रकृति ने इस काम में इतना रस भरा है तभी तो यह कायनात (सृष्टि) इतनी खूबसूरत लगती है। भगवान् की इस खूबसूरत रचना को इसी काम और प्रेम ने अमरता दी है। जैसे चांदनी की कि मनोहारिणी छटा किसी नदी के शीतल जल पर बिखर गयी, हवाओं में मधुर संगीत गूंजने लग, भौरों के सरस शोर से ‘काम’ राग का अलाप सुनाई देने लगा, दो आग में तपते शरीर की गर्मी से जैसे हिमालय की बर्फ पिघलने लगी।

मैंने अपना एक हाथ एक हाथ उसकी पीठ पर रखा और दूसरे हाथ से कमर को पकड़कर उसे अपने आगोश (आलिंगन) में ले लिया। अपने शरीर से चिपका लिया। मेरे ऐसा करने से मेरा तन्नाया लंड उसके पेडू से जा लगा।

गौरी अपने पंजों के बल थोड़ी सी ऊपर हो गयी अब तो मेरा लंड उसके जाँघों के संधि स्थल के बीच उभरे भाग पर रगड़ खाने लगा। उसके उरोज मेरे सीने से दबकर पिसने से लगे थे। मेरा एक हाथ फिसल कर उसके नितम्बों का जायजा लेने लगा।

हे भगवान् उसके खरबूजे जैसे गोल आकार के नितम्ब और उसकी गहरी खाई इतनी दिलकश थी कि मुझे लगा मेरा पानी तो बिना कुछ किये ही निकल जाएगा। गौरी का शरीर रोमांच और नए अनुभव से थिरकने सा लगा था। उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था साँसें बेकाबू सी होने लगी थी जैसे उसने अपनी सुध-बुध ही खो दी थी।

अचानक गौरी का शरीर थोड़ा सा अकड़ा। उसने अपने हाथ मेरी कमर पर जोर से कस लिए और मेरे होंठों को जोर जोर से चूमना शुरू कर दिया।
ईईईई ईईईई ईईईई ईईई …
अचानक उसके मुंह से एक किलकारी सी निकली और उसका शरीर ढीला पड़ने लगा।

वह आसमान की बुलंदियों से कटी पतंग की तरह मेरी बांहों में झूल सी गई। लगता है यह उसका पहला ओर्गस्म था। उसने अपने काम जीवन का पहला परम आनन्द भोग लिया था।

मैंने उसे अपनी बांहों में भींच लिया और फिर एक साथ कई चुम्बन उसके होंठों, गालों और माथे पर ले लिए। वह तो जैसे सपनों की सतरंगी दुनिया में खो सी गई थी। बस अब तो प्रेम की अंतिम मंजिल जैसे 2 कदम नहीं दो बिलांद की दूरी पर ही खड़ी हम दोनों का इंतज़ार कर रही है।

मेरा लंड जोर जोर से बरमूडा के अन्दर उछल रहा था और उसने प्री-कम के कई तुपके छोड़ दिए थे। उत्तेजना इतनी ज्यादा थी कि मुझे लगने लगा था जल्दी ही कुछ नहीं लिया तो मेरा लंड कच्छे में ही शहीद हो जाएगा। मैं सोच रहा था अब अगर हम सोफे पर बैठ जाएँ तो दोनों को सहूलियत होगी।

पर इससे पहले कि मैं कुछ करता टेबल पर पड़ा मोबाइल गनगना उठा …

इस अप्रत्याशित मोबाइल से हम दोनों चौंक से गए। हे लिंग देव! इस समय कौन हो सकता है? गौरी छिटक कर मेरी बांहों से अलग हो गई। अब सिवा मोबाइल उठाने के कोई चारा नहीं था। मैंने स्क्रीन पर नंबर देखा।
ओह … यह तो मधुर का फ़ोन था …
लग गए लौड़े!!!

“हेलो … हाँ … मधुर …”
“बहुत देर लगाते हो मोबाइल उठाने में? क्या कर रहे थे?”
“ओह … सॉरी … वो … वो … मैं .. ” मैं चूतिये की तरह क्या बोल रहा था मुझे पता नहीं। मैं तो इस समय कुछ सोच ही नहीं पा रहा था। मधुर का नाम सुनते ही गौरी स्टडी रूम में भाग गई और उसने दरवाजा बंद कर लिया।

“प्रेम वो … गुलाबो है ना?”
“भेन चुद गई साली की …”
“हेलो … क्या बोल रहे हो?” उधर से आवाज आई.
“ओह.. हाँ मेरा मतलब है अब क्या हुआ उसे? वो नगरपरिषद् वाला काम तो उसका करवा दिया था?”

“वो बीमार है, लगता है उसे हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा?”
“ओह … तो फिर?”
“वो घर पर और कोई नहीं है तो गौरी को एक बार अभी तुरंत घर जाना पड़ेगा.”
“ओह … ”
“तुम प्लीज ऑफिस जाते समय उसे घर छोड़ देना.”
“ठ … ठीक है.”
“और हाँ … उसे 2000 रुपये भी दे देना.”
“हुम्म …”

भेनचोद ये किस्मत भी लगता है भगवान् ने अपने लौड़े से ही लिखी है। मंजिल जैसे ही पास आती है नाव हिचकोले खाकर डूबने लगती है।

थोड़ी देर में गौरी कपड़े बदलकर आ गई।
“दीदी ता फोन था त्या? त्या बोला दीदी ने?”
“वो … वो तुम्हारी मदर की तबियत थोड़ी खराब है तो तुम्हें घर बुलाया है.”

“सब मेली ही जान ते दुश्मन बने हैं.”
गौरी की सूरत रोने जैसी हो गयी थी। मुझे लगता है गौरी को इस समय यहाँ से जाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।
“तब जाना होगा?” उसने रुआंसी मरियल सी आवाज में पूछा।
“मैं ऑफिस जाते हुए तुम्हें ड्राप कर दूंगा.”
“आपते लिए नाश्ता बना दूं?”
“नहीं रहने दो गौरी! अब भूख नहीं है। मैं ऑफिस में ही कुछ खा लूँगा.”

यह कहानी साप्ताहिक प्रकाशित होगी. अगले सप्ताह इसका अगला भाग आप पढ़ पायेंगे.
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