सुपर स्टार-3

(Super star-3)

This story is part of a series:

मेरे दिल की धड़कन अब आसमान पर पहुँच चुकी थी। उसके घर में तीन बेडरूम थे.. तीनों हॉल से जुड़े थे। मैं जहाँ खड़ा था.. वहाँ पर बाथरूम था और मेरे ठीक सामने तृषा की माँ सोफे पर बैठ टीवी देख रही थीं। मैं हल्की सी आवाज़ भी नहीं कर सकता था.. और उधर कामवाली कभी भी सीढ़ियों से नीचे आ सकती थी।

उधर पास में ही हाथ धोने के लिए बेसिन लगा था और वहाँ पर टिश्यू पेपर पड़े थे।
मैंने एक पेपर लिया और उस पर पानी से लिखा, ‘निशु’ और उसे दरवाज़े से नीचे सरका दिया।

अब तो मैं बस दुआ ही कर सकता था कि ये तृषा को मिले और वो दरवाज़ा खोल दे।

अभी मैं सोच ही रहा था कि छत पर दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई। मेरी तो धड़कन रुकने वाली थी।
तभी तृषा के दरवाज़े की खुलने की आवाज़ आई। इससे पहले कि कोई मुझे देख पाता.. मैं तृषा के कमरे में था।
मैंने राहत की सांस ली। तृषा मेरे सीने से लगी थी.. उसके आंसुओं ने और उस कमरे की हालत ने बहुत कुछ बयाँ कर दिया था।

मैंने पहले कमरा बंद किया और तृषा के चेहरे को थोड़ा ऊपर किया.. उसका चेहरा जो कभी कमल के फूलों सा खिला-खिला रहा करता था.. आज वो चेहरा न जाने कहाँ खो गया था।

मैं गुस्से में पागल हुआ जा रहा था।

मैं पलटा और दरवाज़े को खोलने ही वाला था कि तृषा ने मुझे रोक लिया। उसने मेरे होंठों पर ऊँगली रखी और इशारे से मुझे शांत होने को कहा।

मैंने उसे कस कर अपने सीने से लगा लिया। दरवाज़े की कुण्डी लगाई और बिस्तर पर आ गया। तृषा ने मुझे बिस्तर पे लिटा दिया और खुद मेरे कंधे पर सर रख कर लेट गई।

बाहर टीवी का शोर इतना था कि हमारी आवाज़ बाहर नहीं जा सकती थी।

मैं- क्या हुआ था मेरे जाने के बाद?
तृषा- मम्मी ने फ़ोन तोड़ दिया और… वैसे ये सब बातें इतनी जरूरी नहीं हैं। तुम मेरे पास हो इतना ही काफी है। मम्मी-पापा ने जो भी किया.. वो उनका हक़ था.. वो मेरी जान भी ले लेते तो भी मुझे कोई अफ़सोस नहीं होता।

मैंने उसके होंठों पर अपने हाथ रख दिए। पता नहीं क्यों.. मेरी आँखों में आंसू आ गए थे। कभी भी मैंने ये नहीं सोचा था कि हमारे परिवार वाले नहीं मानेंगे। हमारी कास्ट अलग थी.. पर हमारा पारिवारिक रिश्ता काफी गहरा था।

आंटी हमेशा मुझे ‘बेटा जी’ कह कर ही बुलाती थीं और आज हमारे बीच इतनी दूरियाँ पैदा हो गई थीं कि एक-दूसरे को देखना भी गंवारा नहीं था।

तृषा- मेरी शादी होने वाली है.. अगले महीने..

इस बात से मुझ पर तो जैसे बिजली गिर गई हो, मैंने उससे कहा- और तुम? शादी की शॉपिंग करने कब जा रही हो?
यह कहते हुए मेरा गला भर आया था।

तृषा- मैंने कहा न उनका मुझ पर इतना हक़ है कि वो चाहें तो मेरी जान भी ले लें..

मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था, मुझे रोना आ गया, मैं उठ कर बैठ गया।

तृषा ने मुझे पकड़ते हुए कहा- जानू तुम्हीं तो कहते थे न.. मैं तो फंस गया तुम्हारे चक्कर में.. कोई और आप्शन दिखती भी है तो.. छोड़ना पड़ता है।
मैं- जा रहा हूँ मैं.. अब कभी तुम्हारे सामने नहीं आऊँगा.. तुम्हारा यही फैसला है.. तो यही सही.. मर भी जाओगी.. तो तुम्हारी तरफ देखूँगा तक नहीं..।

तृषा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर से मेरे गले लग गई।
तृषा- ऐसे मत जाओ.. आज मुझे तुमसे एक वादा चाहिए.. अगर तुमने मुझसे प्यार किया है.. तो मुझे ‘ना’ नहीं कहोगे।

मैं- जब मैं कुछ हूँ ही नहीं तुम्हारे लिए.. फिर क्यूँ करूँ तुमसे कोई वादा?
तृषा- मैं हमेशा से तुम्हारी थी.. हूँ.. और हमेशा रहूँगी.. मेरे लिए ये आखिरी बार मेरी बात मान लो।

मैं- कौन सी बात?
तृषा- जब मैं अपनी शादी का जोड़ा पहनूँ.. तब मुझे सबसे पहले तुम देखोगे.. जब भी मैंने शादी के सपने सजाए हैं.. हर बार मैंने यही कल्पना की है कि तुमने मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले देखा है।

मैं- किसी और के नाम के जोड़े में अपने प्यार को देखूँ.. इससे अच्छा तो मेरी जान मांग लेती.. एक बार भी ‘ना’ नहीं कहता।
तृषा- बस मेरे प्यार के लिए.. मान जाओ।
वो ये कहते हुए मेरे गले से लग गई और रोने लगी।

मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि जिसे मैं प्यार करता हूँ.. उसे इतनी तकलीफ देने वाला मैं ही होऊँगा। मुझे एहसास था कि उस वक़्त मेरे दिल पर क्या बीतेगी जब वो शादी के जोड़े में होगी.. वो भी किसी और के नाम के जोड़े में..

पर इश्क में दर्द भी किस्मत वालों को ही मिलते हैं।

मैंने उससे कहा- ठीक है।

कमरे में सन्नाटा सा पसरा था। मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था कि क्या बात करूँ उससे.. तभी बाहर के दरवाज़े खुलने की आवाज़ आई.. शायद तृषा के पापा कोर्ट से आ चुके थे। उसके पापा शहर के जाने माने वकील थे।

लगभग 15 मिनट बाद तृषा ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाहर चली गई। मैं दरवाज़े के पास खड़ा हो गया.. ताकि बाहर क्या हो रहा है.. मैं सुन सकूँ।

तृषा के पापा अब हॉल में बैठ चुके थे। तृषा भी मम्मी-पापा के साथ हॉल में बैठ गई।
तृषा- पापा मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ।

उसके पापा- कहो।

तृषा- आप हमेशा कहते थे न.. कि हम चाहे कोई भी मसला हो.. एक साथ बैठ कर.. शांत दिमाग से बात करें.. तो उसे सुलझा सकते हैं। आज आप मेरे लिए थोड़ी देर शांत होकर- मेरी बात सुनिएगा।

उसके पापा- ठीक है बेटा.. कहो।

तृषा- मुझे पता है.. मैंने आपका दिल दुखाया है। मैं आपकी राजकुमारी नहीं बन सकी। आपने जो भी किया वो आपका हक़ था। आप मुझे जान से भी मार देते तो भी मुझे अफ़सोस नहीं होता। मैंने आपको बहुत तकलीफें दी हैं.. पर अब आप जैसा कहेंगे.. मैं करने को तैयार हूँ.. पर क्या आप मेरी एक बात मानेंगे?

उसके पापा- मैं तुम्हारा भला ही चाहता हूँ.. मैं तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं हूँ और गलती सभी से होती है.. आपसे हुई तो मुझसे भी हुई है। खैर.. बताओ तुम्हें क्या चाहिए?

तृषा- पापा मैं नक्श को समझा दूँगी और मुझे पता है.. वो मान जाएगा। मैं अपनी शादी से पहले फिर से वही मुस्कुराते चेहरे देखना चाहती हूँ.. जो कभी हम दोनों के घर में हुआ करता था। क्या हम पहले की तरह नहीं रह सकते? और एक आखिरी बात.. अब मैं जाने वाली हूँ.. तो आप दोनों ने मुझसे अब तक जितना प्यार किया है.. उसका दोगुना प्यार मुझे आने वाले दिनों में चाहिए।

मैंने दरवाज़े को ज़रा सा सरकाते हुए हॉल में क्या हो रहा है.. उसे देखने की कोशिश की.. हाल में तृषा बीच में बैठी थी और उसके मम्मी-पापा उसे माथे पर चूम रहे थे।

मैंने देखा कि तृषा के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून था।
थोड़ी देर में तृषा कमरे में आई.. उसने मुझे बिस्तर पर पटका और अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था।

आखिर ये लड़की चाहती क्या है? उधर अपने मम्मी-पापा को ये कह कर आई कि आप जहाँ कहोगे.. मैं शादी करूँगी और इधर मेरी बांहों में… क्या कोई ये बताएगा मुझे… कि लड़कियों को समझा कैसे जाए।

मैं तृषा की आँखों में अपने सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करने लगा.. पर शायद मैं भूल गया था कि ये वहीं आँखें हैं.. जिसने मुझे कभी ऐसे कैद किया था.. किस जादू से.. कि मैं आज तक बाहर नहीं आ पाया हूँ।
जितना मैं उसे देखता गया.. उतना ही उसका होता चला गया। हमारी साँसें तेज़ होती गईं.. हम दोनों एक-दूसरे में खोते चले गए।

आज पहली बार मैं उसके इतने करीब होते हुए भी उससे खुद को कोसों दूर पा रहा था.. पर अब भी शायद थोड़ी ये उम्मीद बाकी थी कि वो मेरी अब भी हो सकती है।
मैं उसके इंच-इंच में इतना प्यार भर देना चाहता था कि चाह कर भी वो किसी और की ना हो पाए। आज मैं उसे खुद से किसी भी हाल में दूर नहीं होना चाहता था। जब-जब वो मुझे खुद थोड़ा अलग करती.. मैं उसे खींच कर फिर से अपने सीने से लगा लेता।

हमारे कपड़े वहीं कमरे के कोने में पड़े हुए थे.. हमारी साँसें एक हो गई थीं।
पर आज जैसे मुझे किसी भी काम में भी मन नहीं लग रहा था। मेरे सीने की आग इतनी ज्यादा बढ़ी हुई थी कि ये तन की आग भी उसे काबू में कर पाने में असमर्थ थी।

तृषा मेरी इस हालत को समझ गई.. उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे पूरे जिस्म पर अपने होंठों की छाप छोड़ने लग गई। वो मुझे चूमते हुए मेरे लिंग के पास पहुँची और उसने मेरे लिंग को अपने मुँह में भर लिया।

मेरे लण्ड को चूसते हुए उसके नाख़ून मेरे जिस्म को खरोंच रहे थे।

आखिरकार मेरे अन्दर भी शैतान जाग उठा। मैंने उसी अवस्था में उसे बिस्तर पर पटका और अपने लिंग को उसके गले तक पहुँचाने लगा।
फिर उसे घोड़ी वाले आसन में उसके पिछले छेद में अपनी तीन ऊँगलियाँ अन्दर तक घुसा दीं और उसकी योनि को अपने लिंग से भर दिया।

अब मैं उसे बिस्तर के किनारे तक ले आया था। अपने लिंग और उँगलियों को उसी जगह पर रख अपने पैर के अंगूठे को उसके मुँह में दे दिया।
इसी अवस्था में थोड़ी देर में मेरी भावनाओं का ज्वार शांत हुआ और मैं निढाल होकर- उसके साथ बिस्तर पर गिर पड़ा।

कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं।
कहानी जारी है।
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