ललितपुर वाली गुड़िया के मुंहासे-1

(Lalitpur Wali Gudiya Ke Munhase-1)

This story is part of a series:

प्रिय अन्तर्वासना के मेरे सभी पाठक पाठिकाओं को मेरा नमस्कार. आज बहुत दिनों बाद अपनी नई आप बीती कहानी लेकr प्रस्तुत हूँ. इसके पहले मेरी कहानी
अनोखी चूत चुदाई की वो रात

आपने पढ़ी और सराही, मुझे आप सबके कोई सौ से ऊपर प्यार भरे ई मेल मिले जिनका मैंने यथासंभव जवाब भी दिया.
प्रस्तुत कथा भी आप सबको आनन्दित करेगी ऐसा मेरा विश्वास है.

तो मित्रो इस सत्य चुदाई कथा का आनन्द लीजिये; हाँ एक बात और. इस कहानी में वो सब कुछ है जो आप पढ़ना चाहते हैं. बस थोड़ा धैर्य से पढ़ते रहिये.

यह कहानी स्नेहा जैन की है जो ललितपुर में मेरे ही मोहल्ले में रहती थी. पहले ललितपुर के बारे में बता दूं, ललितपुर शहर दक्षिणी यू पी के छोर पर बसा जिला मुख्यालय है जो तीन तरफ से मध्य प्रदेश से घिरा हुआ है. यूं तो हमारे मोहल्ले में एक से बढ़ कर एक भरपूर जवानियाँ और खिलती कमसिन कलियाँ हैं जिनसे मोहल्ले में रौनक, चहल पहल बनी रहती है, जैसे किसी बाग़ में रंग बिरंगे फूल खिले रहते हैं और तितलियाँ मंडराती रहती हैं और सबको लुभाती रहती हैं. आप सबकी तरह मैं भी हाड़ मांस का बना साधारण इंसान हूँ और ये हुस्न की परियाँ मुझे भी लुभाती रहती हैं और जिनके नंगे जिस्म को अपने ख्यालों में चोदता हुआ न जाने कितनी बार मुठ मार चूका हूँ.

पर बात उन सब की नहीं… स्नेहा जैन की है यहाँ. स्नेहा जैन जो मेरे ही सामने पैदा हुई थी, खेलते खेलते कब बड़ी हुई और वो नाक बहाती मैली कुचैली सी लड़की कब ‘माल’ में परिवर्तित होती चली गई… समय का कुछ पता ही नहीं चला.
बारहवीं कक्षा तक आते आते वो हाहाकारी हुस्न की मलिका में तबदील हो चुकी थी जिसके मदमस्त यौवन के किस्से गली चौराहों में चलने लगे थे.

साइकिल से स्कूल जाती तो अपने सीने के गदराये हुये अवयवों को निष्ठा पूर्वक दुपट्टे से ढक छुपा लेती लेकिन वो कहाँ छुपने वाले थे, किसी के भी कभी नहीं छुपे, सड़क पर जरा सा ऊंचा नीचा होने से साइकिल जम्प लेती और वो कपोत ऊंची उड़ान भरने लगते.
कोई देख रहा होता तो वो झेंप कर अपना दुपट्टा फिर से यथास्थान कर लेती और अगले को कनखियों से घायल करती हुई जल्दी जल्दी पैडल मारती हुई निकल लेती.

धीरे धीरे उसके मदमस्त यौवन की महक चहूँ ओर फैल गई और उसके इन्तजार में भँवरे टाइप के लौंडे लपाड़े रोमियो गली के मोड़ पर खड़े हो उसे रिझाने की प्रतिस्पर्धा करने लगे.

स्नेहा साइकिल से स्कूल और कोचिंग जाती तो कभी कभी मुझसे भी आमना सामना हो जाता. मैं तो बस मुग्ध भाव से उसकी देह यष्टि को निहारता रह जाता. मोहल्ले का ही होने के नाते वो मुझे पहचान कर ‘नमस्ते अंकल जी’ कहती और उसके मोतियों से दांत और हंसती हुई आँखें खिल उठतीं.
‘नमस्ते गुड़िया…’ मैं भी तत्परता से जवाब देता और मेरी नजर उसके सीने के उभारों का जायजा लेती हुई उसकी पुष्ट जंघाओं तक फिसल जाती.
‘अभी से छुरियाँ चलाना सीख गई ये तो!’ मैं मन ही मन सोचता रह जाता.

धीरे धीरे स्नेहा मेरे दिलो दिमाग पर छाती चली गई और मैं अक्सर उसके नाम की मुठ मारने लगा और कई बार अपनी बीवी को चोदते हुए स्नेहा को चोदने का ख्याल मन में लाता और आँख मूंद कर उसे अपने हिसाब से तरह तरह से चोदता जैसे :
‘स्नेहा मेरी जान… ये लो मेरा पूरा लंड’ यह सोच कर अपनी बीवी की ढीली ढाली नदिया सी बहती बुर में पूरे दम से धक्के मारता बदले में उसकी इंडिया गेट जैसी बुर में से छपाक छपाक फच फच की प्रतिध्वनि आती और मेरी अर्धांगिनी अपनी कमर उछाल उछाल के मनोयोग से मेरे लंड को प्रत्युत्तर देती.

‘गुड़िया बेटा, कितनी टाइट कसी हुई चूत है तेरी!’ मैं ऐसे सोचता हुआ मन ही मन स्नेहा को चूमते हुए अपनी बीवी को चोदता और मेरी बीवी मेरी चुदाई से निहाल तृप्त हो उठती और मुझे चूम चूम के मुझ पे न्यौछावर हो जाती. अब उस बेचारी को क्या पता रहता कि मेरे मन में क्या क्या चलता रहता था और मेरी वो मर्दानगी किसकी खातिर थी.

ज़िन्दगी यूँ ही गुजर रही थी और मुझे कोई शिकायत या चाहत भी नहीं थी इससे ज्यादा क्योंकि मेरी गिनती अंकल टाइप के लोगों में होने लगी थी, हालांकि मेरी उमर उस समय कोई चवालीस पैंतालीस की ही रही होगी, दूसरी बात लड़की पटाने के लिए छिछोरों जैसी हरकतें करना मेरे स्वभाव में कभी नहीं रहा. तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि मेरी मान प्रतिष्ठा मोहल्ले में बहुत अच्छी थी अतः मैं किसी भी तरह की कोई भी रिस्क लेने के खिलाफ था या स्थिति में ही नहीं था तो मैं स्नेहा का चक्षु चोदन करके और उसे ख्यालों में लाकर अपनी बीवी को चोद चोद कर या मुठ मार कर ही खुश था.

दिन यूं ही गुजरते रहे.

एक दिन की बात, मोहल्ले में एक लड़के की शादी हुई. रिसेप्शन की पार्टी में जाना पड़ा. वैसे मैं शादी ब्याह की पार्टियों में जाने से मैं बचता हूँ क्योंकि आजकल गिद्ध भोज का प्रचलन है. सैकड़ों की भीड़ में अपनी प्लेट लिये खाना ढूँढना और धक्के खाते खाते खाना खाना मुझे पसन्द नहीं आता. जहाँ तक संभव होता है मैं अपने बीवी बच्चों को ही भेज देता हूँ. हाँ, कोई अपना बेहद ख़ास हो तो
बात अलग है.

तो उस पार्टी में मैं गया, सबसे हाय हेलो के बाद मैंने खाना शुरू किया तभी मुझे स्नेहा दिखी. वो किसी लड़की से बतियाती हुई खाना खा रही थी. स्नेहा को मैंने ज्यादातर कान्वेंट स्कूल की ड्रेस में ही देखा था, वही घुटनों तक के सफ़ेद मोज़े, घुटनों से चार अंगुल ऊपर नीली सफ़ेद चौकड़ी वाली स्कर्ट और उसके ऊपर सफ़ेद शर्ट और गले में लाल टाई…
लेकिन आज वो स्काई ब्लू जींस और नारंगी टॉप पहने थी जिसमें से उसके मम्मों का चित्ताकर्षक उभार सभी के आकर्षण का केंद्र था. नितम्बों में कसी हुई जीन्स उसकी जाँघों का भूगोल बहुत खूबसूरती से दिखला रही थी.
मेरे मन ने उड़ान भरी और उसकी चूत के उभरे हुए त्रिभुज की कल्पना की.

मैं अपनी प्लेट लेकर एक तरफ कोने में खड़ा होकर खाने लगा जहाँ से स्नेहा के रूप के दर्शन और उसका चक्षु चोदन भी साथ ही करता जा रहा था. फिर एक बार उसकी नज़र मुझसे मिली और उसने सिर झुका कर मेरा अभिवादन किया. मौके का फायदा उठाते हए मैंने भी उसके पास जाकर नमस्ते का जवाब दिया.
फिर हम लोग सामान्य बातें करने लगे. खाना खाते खाते बीच बीच में उसकी क्लीवेज का नजारा भी हो जाता था. उसके गले में पहनी हुई पतली सी सोने की चेन उसके मम्मों के बीच जाकर छुप गई थी.

मैं प्लेट से पुलाव खाता हुआ मन ही मन खयाली पुलाव पकाता हुआ बार बार उसकी जाँघों के जोड़ को निहार रहा था जहाँ उसकी जीन्स के नीचे पेंटी होगी और उसके भीतर रोमावली से आच्छादित उसकी कुंवारी योनि या बुर या चूत कुछ भी कह लो, होगी.

‘कहाँ ध्यान है अंकल जी. बड़ी गहरी सोच में हो?’ स्नेहा ने मुझे टोका.
‘कुछ ख़ास नहीं बिटिया, कुछ फ्यूचर की प्लानिंग कर रहा था.’ मैंने खुद को थोड़ा गंभीर जताने का जतन किया.

‘ओके अंकल जी, ये अच्छी बात है. मेरी शुभकामनाएं!’ वो हंस कर बोली.
अब उसे क्या अंदाजा था कि मैं उसकी चूत के ख्यालों में खोया उसे देखने, चूमने, चाटने और चोदने की प्लानिंग कर रहा था; और वो मुझे इसी के लिये विश कर रही थी.
‘थैंक्स स्नेहा, सो नाईस ऑफ़ यू!’ मैंने प्रत्यक्षतः मुस्कुरा के कहा.

बातचीत का सिलसिला यहीं रोकना पड़ा क्योंकि मेरा कोई परिचित हाय हेल्लो करने आ पहुँचा. मैंने जैसे तैसे उससे पिंड छुड़ाया. इसी बीच स्नेहा की सहेली भी अपना खाना खत्म कर बाय करके निकल ली.
अब मैं और स्नेहा आमने सामने थे.
मैंने उसे बड़े गौर से देखा क्योंकि इतने नजदीक से देखने का मौका पहले कभी नहीं मिला था. वैसे भी मोहल्ले की कोई कन्या जिसका नाम ले ले के हम सब मुठ मारते हैं या अपनी बीवी को उसी कामिनी का ध्यान लगा के चोदते हैं तो उसे इतने नजदीक से देखने बतियाने का मौका सालों में ही कभी आ पाता है.

अतः मैंने इस मौके को ‘वन्स इन द लाइफ टाइम अपोर्चुनिटी’ मान कर इस्तेमाल करने का फैसला किया. लेकिन कुछ कहने या बात करने का ओर छोर समझ नहीं आ रहा था.
मैंने स्नेहा की तरफ प्यार से देखा वो तो अपनी प्लेट से दही बड़े खाने में मगन थी.

मैंने पहले जब भी उसे देखा था तो पोनी टेल स्टाइल में बंधे बाल और वही स्कूल की यूनिफार्म लेकिन आज उसका नजारा ही अलग था. आज उसके बाल खुले खुले घने घनेरे कन्धों और पीठ पर बिछे पड़े थे और उसके जिस्म से एक मस्त मस्त भीनी भीनी सुगंध के झोंके रह रह के उठ रहे थे. जरूर उसने कोई परफ्यूम लगा रखी थी. उसके चेहरे पर बहुत ही हल्का सा मेकअप था लेकिन उसके गालों पर मुहाँसों ने दस्तक देनी शुरू कर दी थी और हल्के हल्के चिह्न उसके गालों पर उभर आये थे.

यह मेरे लिए अच्छा संकेत था. लड़की के मुंह पर मुहाँसे आने का मतलब वो चुदासी होने लगी है. उसकी चूत को लंड से चुदने की चुदास सताने लगी है. उसके इसी वीक पॉइंट को मैंने एनकैश करने का मन बना लिया और उसे नजर गड़ा कर देखने लगा.

वो तो अपने दही बड़ों को चटखारे ले ले के खा रही थी, उसे क्या पता कि मेरे तन मन में क्या चटखारे चल रहे थे. मैं उसे लगातार देखे जा रहा था मुझे पता था कि अभी कुछ ही देर बाद उसकी नज़र मेरी तरफ उठेगी.
हुआ भी वैसा ही…
‘सॉरी अंकल जी, दही बड़े इतने टेस्टी हैं कि मैं तो भूल ही गई थी कि आप मुझसे बात कर रहे थे.’
‘अर्रे… आप तो खाली प्लेट लिए खड़े हो. आपके लिए लेके आऊँ दही बड़े?’ स्नेहा बड़ी मासूमियत से बोली.
‘चल, ले आ!’ मैंने कहा.

स्नेहा ने मेरे हाथ से खाली प्लेट ले के पास के डब्बे में डाल दी और हिरनी जैसे कुलांचे भरती हुई चल दी मैं पीछे से उसके नितम्बों का उतार चढ़ाव देखता रह गया.
दो तीन मिनट बाद ही उसने चाट के स्टाल से दही बड़े ला कर मुझे दे दिए.

‘थैंक्स स्नेहा…’ मैंने कहा और दही बड़े खाने लगा साथ में मैं स्नेहा को गहरी नज़र से देखता जा रहा था.

स्नेहा ने मेरी चुभती नज़र से कुछ विचलित हुई- ऐसे गौर से क्या देख रहे हो अंकल जी?
‘कुछ नहीं स्नेहा, तुम बहुत सुन्दर अच्छी हो लेकिन…’ मैंने उसकी तारीफ़ की.
‘लेकिन क्या अंकल जी? आप कहते कहते रुक क्यों गये?’
‘स्नेहा, तुम्हारे चेहरे पर ये फुंसियाँ सी कैसी हैं. ये अच्छी नहीं लगतीं, कोई मेडिसिन क्यों नहीं ले लेती?’
‘अंकल जी, ये फुंसियाँ नहीं मुहाँसे है. बहुत सी मेडिसिन्स ट्राई की, डॉक्टर को भी दिखाया, टीवी पर जितने एड आते हैं सब के सब ट्राई कर के देख लिए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ!’ वो बड़े उदास स्वर में बोली.

अच्छा दिखना सुन्दर दिखना हर लड़की की इच्छा होती है और मैंने स्नेहा की कमजोर नस पर हाथ रख दिया था और मुझे यकीन था कि अगर मैंने सब्र से काम लिया तो उसकी चूत के दर्शन तो पक्का हो ही जायेंगे और हो सकता है कि मेरा काला कलूटा मूसल जैसा लंड भी उसकी गोरी गुलाबी मुलायम कुंवारी चूत की सील तोड़ने में कामयाब हो जाए!

‘स्नेहा, इन मुहाँसों का इलाज नैचुरोपेथी या आयुर्वेद से ही संभव हैं. इन अंग्रेजी दवाइयों से कुछ नहीं होगा, उल्टे इनके साइड इफेक्ट्स बहुत ज्यादा होते हैं.’ मैंने बड़ी गंभीरता से कहा.
‘अच्छा. अंकल जी, ये नेचुरोपेथी क्या होती है?’
‘नेचुरोपेथी का मतलब प्राकृतिक चिकित्सा. किसी रोग या कष्ट का कारण समझ कर उस कारण का निदान करना और सहज प्राकृतिक जीवन जीना नेचुरोपेथी कहलाता है. जब हमारे भीतर कोई गड़बड़ हो रही होती है, शरीर के हारमोंस ठीक से बन नहीं पाते या हम अपने शरीर के सभी अंगों का समुचित इस्तेमाल नहीं करते अथवा अन्य प्रकार के रस, द्रव जो शरीर से बाहर निकल जाने चाहियें वो निकल नहीं पाते तो ये सब लक्षण प्रकट होते हैं. जैसे शरीर पर फुंसियाँ होना, मुहाँसे हो जाना, मुंह में छाले हो जाना, पेट दर्द हो जाना… ये सब सिम्पटम्स हैं, लक्षण हैं स्वयं में कोई रोग नहीं हैं ये तो सिर्फ सिग्नल्स हैं कि शरीर में रोग कहीं भीतर है और उसका उपचार इन पर दवाई लगाने से नहीं बल्कि भीतर की जरूरतों को पूरा करने से ही होगा!’ मैंने उसे लम्बा चौड़ा व्याख्यान दे डाला.

मेरी बातों का उस पर फ़ौरन असर हुआ, उसके चेहरे के भाव बदल गये, वो बात को गहराई से समझने का प्रयास करने लगी. यही मैं चाहता था कि उसके दिमाग में यह बात बैठ जाए कि मुहाँसे मिटाने का पक्का इलाज कोई लंड ही कर सकता है चूत में घुस के.

‘अंकल जी, मैं आपकी बात ठीक से समझ नही पा रही हूँ. थोड़ा और समझा के कहिये न प्लीज!’ इस बार वो बड़ी कोमल और धीमी आवाज में बोली.
‘देखो स्नेहा, जब बात चल ही पड़ी है तो मैं तुम्हें सब डिटेल्स में समझा दूंगा लेकिन प्रॉमिस करो कि मेरी किसी बात का बुरा नहीं मानोगी?’ मैंने उसे प्यार से कहा.
‘प्रॉमिस अंकल जी… मैं किसी बात का बुरा नहीं मानूंगी. आप जो भी कहोगे मेरी भलाई के लिए ही तो कहोगे ना!’ वो विश्वास से बोली.

‘चिड़िया मेरे जाल में फंसती नज़र आ रही थी. अगर मैंने आगे का खेल ठीक से खेला तो पक्का वो मेरे लंड के नीचे होगी, बहुत जल्दी!’ मैंने मन ही मन खुश होते हुए सोचा.
‘तो फिर ठीक है. चलो हम लोग वहाँ चेयर्स पर बैठ के बात करेंगे ठीक से!’ मैंने कहा और अपनी दही बड़े की खाली प्लेट पास की डस्टबिन में डाल दी.

‘कॉफ़ी पियोगे अंकल जी?’ उसने पूछा.
मैंने हाँ में सर हिलाया.
फिर उसने मुझे कहा कि वो कॉफ़ी ले के आ रही है. मैं दूर के कोने में दो कुर्सियाँ रख के बैठ गया.

जल्दी ही स्नेहा भी कॉफ़ी ले के आ गई और मुझे एक कप पकड़ा दिया और मेरे सामने कुर्सी पर बैठ गई.

‘हाँ, अंकल जी. अब बताओ ठीक से?’ वो थोड़ा व्यग्र स्वर में बोली.
‘स्नेहा, एक बात बताओ. तुमने किसी और लड़की के मुंह पर मुहाँसे देखे हैं पहले?’ मैंने सवाल किया.
‘हाँ अंकल जी, देखे हैं न… बहुत सारी लड़कियों के देखे हैं. मेरी फ्रेंड्स, रिश्तेदार वगैरह बहुत गर्ल्स के देखे हैं!’ वो बोली.
‘तो ये भी देखा होगा कि उन लोगों ने बहुत इलाज किया होगा लेकिन मुहाँसे दूर नहीं हुए होंगे लेकिन जैसे ही उनकी शादी हुई होगी, मुहाँसे गायब हो गये होंगे और चेहरा फूल सा खिल गया होगा.’ मैंने कॉफ़ी का घूंट भरते हुए कहा.

‘हाँ अंकल जी, सच कह रहे हो आप, देखा है मैंने ऐसा. मुझे अपनी कजिन सिस्टर की याद है. उसे भी बहुत मुहाँसे थे बड़े बड़े बहुत भद्दे दिखते थे लेकिन शादी के बाद तो वो पहचान में नहीं आ रही थी, उसका फेस इतना सुन्दर और गाल इतने मस्त चिकने हो गये थे.’ वो जल्दी से बोली.

‘तो फिर सोचो कि शादी के बाद ऐसा क्या होता है जिसके असर से मुहाँसे चले जाते हैं और स्किन चमकने दमकने लगती है?’ मैंने कहा.
मेरी बात का अर्थ समझ के उसके चेहरे पर लाज की लाली दौड़ गई और उसने सर झुका दिया. वो बहुत देर तक सर झुकाये सोचती रही.
कहानी जारी रहेगी.
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