कट्टो रानी-2

(Katto Rani- part 2)

समीर 2012-01-03 Comments

कहानी का पहला भाग : कट्टो रानी-1

पूजा के जाने के बाद मैंने सोचा क्यों न जब तक पूजा आती है तब तक लैपटोप की जांच-पड़ताल कर ली जाए. दूसरों के कम्प्यूटर की खोजबीन करने में मुझे बड़ा मजा आता है. मैंने लैपटोप ऑन किया लेकिन पूजा ने लैपटोप पर पासवर्ड लगा रखा था. मैंने पासवर्ड खोलने की कोशिश की, सबसे पहले मैंने पूजा का नाम डाला फिर पूजा रानी और तरह-तरह के शब्दों का प्रयोग किया लेकिन मेरा डाला गया कोई भी पासवर्ड सही नहीं निकला.

फिर मेरे दिमाग में एक शब्द आया- ‘शोना’

लड़कियों को यह शब्द बहुत पसंद है तो मैंने पासवर्ड में शोना डाला और लैपटोप का पासवर्ड खुल गया. मैंने अपने आप को शाबाशी दी और लगा लैपटोप का मुआयना करने.मैंने सोचा कि पूजा एक कामुक लड़की है, अभी-अभी उसने जवानी में कदम रखा है, अपना लैपटोप सबसे छुपा कर रखती है तो पक्का उसके लैपटोप में रेलगाड़ी होगी. अब आप लोग सोच रहे होगें कि लैपटोप में कौन-सी रेलगाड़ी होती है, दोस्तों मैं सैक्सी फ़िल्म की बात कर रहा हूँ. मैं और मेरे दोस्त इसे रेलगाड़ी कहते हैं. हम लोगों ने शाहिद कपूर की फ़िल्म ‘इश्क विश्क’ देखी थी, उसमे सैक्सी फ़िल्म को रेलगाड़ी की संज्ञा दी गई थी, बस तभी से हम लोग भी इसे रेलगाड़ी कहने लगे.

मैं लैपटोप में पड़ी फ़ाइलों के विशाल संग्रह में रेलगाड़ी ढूँढने लगा लेकिन काफ़ी कोशिशों के बाद भी मुझे सफ़लता नहीं मिली. फिर मेरे दिमाग की बत्ती जली और मैंने पहले खोली गई फ़ाईलों का संग्रह निकाला, पहले खोली गई फ़ाईलों की सूची मेरे सामने थी. तभी मैंने एक फ़ाईल को खोला तो मेरे होश उड़ गये, मेरे सामने रेलगाड़ी चलने लगी.

फ़िल्म चलते ही उसमें से कामुक आवाज़ें आने लगी तो मैंने घबरा कर उसे बंद कर दिया कहीं कोई सुन न ले. मैं बहुत खुश था और साथ में आश्चर्य चकित भी. पूजा ने उन फ़ाइलों को बड़ी ही चालाकी से छुपा रखा था, उसने उन फ़ाइलों को विंडोज वाली जगह पर डाल रखा था और उनके नाम की जगह गिनती (1,2,3,4…) डाल रखी थीं. पर उसने एक बहुत बड़ी गलती की थी कि पिछली फ़ाइलों को ना देख पाने का विकल्प नहीं चुना जिसके कारण उसका राज़ खुल गया और मुझे रेलगाड़ी ढूँढने में सफ़लता हासिल हुई.

और आप लोगों को भी यह जानकर हैरानी होगी कि उस लैपटोप में फ़िल्मों का संग्रह 35 जी-बी का था, मैंने इतना बड़ा संग्रह पहले कभी नहीं देखा था.

इतना बड़ा संग्रह देखकर मेरे अंदर रेलगाड़ी देखने की तीव्र इच्छा होने लगी. पहले मैंने कुछ सावधानी बरतने की सोची, मैं कमरे से बाहर निकला और सीढ़ियों से नीचे की ओर देखा के कोई आ तो नहीं रहा, फिर मैंने सोचा के नीचे चल कर देखता हूँ कि पूजा क्या कर रही है और उसे कितना वक्त लगेगा आने में. मैं पानी पीने के बहाने से नीचे गया, सीढ़ियों से उतर कर मैं अंदर की तरफ गया.

मैंने आंटी को आवाज़ दी तो सामने वाले कमरे में से आंटी की आवाज़ आई- आओ समीर अंदर आ जाओ.

मैं कमरे के अंदर गया तो मैंने देखा कि आंटी बैड की चादर बदल रही थीं, उन्होंने चुन्नी नहीं डाली थी और झुकने से उनकी चूचियाँ साफ-साफ दिख रही थीं, एक दम गोरी-गोरी, मोटी-मोटी और रसीली.

मैं कुछ देर तक उनकी चूचियों को ही निहारता रहा. यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं.

आंटी एक शरारती मुस्कान के साथ बोली- बोलो समीर कुछ चाहिए क्या?
शायद उन्होंने मेरी हरकत को देख लिया था.
मैं (मन में)- चाहिए तो बहुत कुछ, आप क्या-क्या दे सकती हैं.
आंटी- क्या…
मैं- वो… आंटी जी मुझे पानी चाहिए.
आंटी- तो इतनी सी बात के लिए झिझक क्यों रहे हो बेटा, इसे अपना ही घर समझो, जाओ रसोई में फ़्रिज रखा है वहाँ से पी लो.
मैं (मन में)- आंटी जी, मैंने जिस चीज़ के नजारे लिए हैं उसे देखकर तो कोई भी झिझकने लगेगा.
मैं- ठीक है आंटी जी…

मैं रसोई की तरफ़ जाते हुए (अपने आप से)- अबे कमीने…या तो माँ को पटा ले या बेटी को, किसी एक की तरफ ध्यान दे. भाई समीर हमें तो चूत चाहिए, जो खुश होकर दे देगी उसी की ले लेंगे चाहे फिर माँ हो या बेटी हमे क्या फर्क पड़ता है. अबे यार… तू बड़ा कमीना इन्सान है.
रसोई में जाकर देखा तो पूजा बर्तन धो रही थी.
पूजा- अरे समीर आप, कुछ चाहिए क्या.
मैं- हाँ वो… मैं पानी पीने के लिए आया हूँ.
पूजा- फ़्रिज से निकाल कर पी लो.

मैं फ़्रिज से पानी की बोतल निकाल कर पानी पीने लगा, फिर उसे वापस फ़्रिज में रख दिया.
पूजा- सॉरी समीर, मैं तुम्हें अकेला छोड़ कर आ गई, मम्मी ने रसोई का काम दे दिया, तुम बोर हो गए होगे ना.
मैं- नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.
पूजा- मुझे अभी शायद आधा घण्टा और लगेगा, तुम लैपटोप चला लो, उसका पासवर्ड शोना है.
मैं- थैंक्स…

उस बेचारी को क्या पता था कि समीर द ग्रेट ने उसके लैपटोप का पासवर्ड पहले ही खोल दिया है और उसके सारे राज़ मेरे सामने आ चुके हैं. फिर मैं ऊपर कमरे में आ गया और दरवाज़ा बंद कर लिया लेकिन कुंडी नहीं लगाई क्योंकि अगर पूजा को इस तरह दरवाज़ा बंद मिलता तो उसे शक हो सकता था कि कुछ गड़बड़ है.

मैंने लैपटोप को मेज पर रखा और कुर्सी पर बैठ गया. मैं उन फ़िल्मों को खोल-खोलकर देखने लगा कि उनमें से कौन सी सबसे अच्छी है. फिर मैंने उनमें से एक क्सक्सक्स फ़िल्म चुनी देखने के लिए.

यह फ़िल्म एक लड़की और उसके ट्यूशन मास्टर की थी, लड़की की उम्र करीब 18 साल और मास्टर की उम्र करीब 35 साल की थी. लड़की सोफे पर बैठी हुई थी और उसके बगल में उसका मास्टर. मास्टर एक किताब में से उसे कुछ पढ़ा रहा था पर लड़की का ध्यान किताब में नहीं था वो अपने मास्टर की तरफ़ कामुक नज़रों से देख रही थी.

कुछ देर बाद लड़की उठी और मास्टर की तरफ़ पीठ करके खड़ी हो गई और अपनी छोटी सी स्कर्ट को ऊपर उठा कर मास्टर को अपनी गांड दिख़ाने लगी. मास्टर किताब को एक तरफ फेंक कर उसकी गांड पर हाथ फ़ेरने लगा. क्या मस्त गांड थी दोस्तों उस लड़की की, मेरा लंड जो कि काफ़ी देर से झटके मार रहा था अपने पूरे रंग में आ गया.

जीन्स में लंड काफ़ी तंग लग रहा था मानो मेरा लंड मुझसे कह रहा हो, यार समीर अंदर मेरा दम घुट रहा है प्लीज मुझे बाहर निकाल. मुझसे भी रहा नहीं गया और मैंने अपनी जीन्स की चैन खोल कर अपना लंड बाहर निकाला तब जाकर मेरे लंड ने चैन की सांस ली अब वो आज़ादी के साथ झटके लगा रहा था.

उधर मास्टर ने लड़की को पेट के बल सोफे पर लिटा दिया और उसकी गांड को जोर-जोर से मसलने लगा और कभी उसकी गांड के गोल-गोल उभारों को चाटता तो कभी मुँह में लेने की कोशिश करता जैसे कि उन्हें खा ही जाएगा. और मास्टर ही क्या अगर किसी को भी इतनी सुन्दर गांड मिलती तो वो भी कोई कसर नहीं छोड़ता. फिर मास्टर सोफे पर बैठ गया और लड़की घुटनों के बल बैठ कर उसकी पैंट की चैन खोलने लगी, मास्टर ने उसकी मदद की और अपने लंड को बाहर निकाल लिया.

लड़की लंड को देखकर बहुत खुश हुई और लंड को पकड़ कर हिलाने और मसलने लगी. तभी मास्टर ने अपने लंड की खाल को पीछे करके लंड की टोपी को बाहर निकाला और लड़की को चूसने के लिए इशारा किया.

पहले तो लड़की ने लंड की टोपी पर अपनी जीभ फिराई और फिर लंड को पूरा मुँह में लेकर चूसने लगी, और मास्टर असीम आनन्द का मजा ले रहा था.

मेरा एक हाथ मेरे लंड महाराज का मन बहला रहा था तो दूसरा लैपटोप के माउस पैड पर था. फिर मास्टर ने लड़की के सारे कपड़े उतार कर उसे पूरी तरह नंगी कर दिया और फिर सोफ़े पे लिटा कर उसके होठों का रस पीने लगा. फिर उसकी चूची चूसने लगा, वो चूचियों को जोर-जोर से मसल-मसलकर उसके चूचकों को चूस रहा था.

लड़की की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. मैं बस फ़िल्म का अधूरा मजा ले पा रहा था क्योंकि मैं फ़िल्म कि आवाज़ नहीं सुन पा रहा था. वहाँ हैडफ़ोन भी नहीं था और मैं कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था.

फिर मास्टर ने अपनी जीभ लड़की की चूत पर लगा दी और उसकी चूत चाटने लगा. कभी वो अपनी जीभ को चूत के अन्दर-बाहर करके लड़की की चूत को चोदता, तो कभी चूत के दाने को अपने होठों से पकड़ कर खींचता. फिर वो दोनों 69 की अवस्था में आ गये और जोर-जोर से एक दूसरे को चूसने लगे. मास्टर अपनी जीभ से लड़की की चूत चोद रहा था और लड़की मास्टर के लंड की जोरदार चुसाई कर रही थी जैसे उसे निगल ही जाएगी.

कुछ देर बाद दोनों अलग हुए.

मास्टर सोफे पर अपनी टांगें नीचे लटका कर बैठ गया और लड़की सोफ़े पर अपने घुटने मोड़कर उसके लंड पर बैठ गई. लड़की का मुँह मास्टर की तरफ था और उसने मास्टर का लंड पकड़ कर अपनी चूत से लगाया और लंड पर बैठकर उसे अपनी चूत में ले लिया.

लड़की लंड पर उछल-उछलकर अपनी चूत मरवा रही थी और मास्टर नीचे से झटके लगा रहा था. मेरे सामने उस लड़की की जबरदस्त चुदाई हो रही थी जिससे मेरे सर पर सेक्स का भूत चढ़ता जा रहा था. मैं अपने लंड को जोर-जोर से सहला रहा था, मेरा मुठ मारने का मन कर रहा था पर मैं डर रहा था कि कहीं मेरी पिचकारी से लैपटोप, मेजपोश या कुछ भी गन्दा हो गया तो मैं फस जाऊँगा. मेरी टांगें अकड़ने लगी थीं.

फिर मैं कुर्सी से उठा और लैपटोप लेकर बैड पर रख दिया. फिर एक तकिये को लंड के नीचे लगा कर लेट गया. फिर मैंने एक दूसरी फ़िल्म चलाई. उसमे शुरु में ही एक लड़का एक मस्त गांड को चोद रहा था, लड़की घुटनों के बल झुकी हुई थी और लड़का उसकी चिकनी गांड को ठोक रहा था. मैंने भी एक हल्का सा धक्का लगाया तो मेरे लंड के नीचे मुलायम तकिया होने के कारण मुझे कुछ मजा आया, तो मैं उस तकिये को लड़की मानकर धीरे-धीरे उसे चोदने लगा.

फ़िल्म में जोरदार चुदाई चल रही थी… मैं पूजा के बारे में सोचते-सोचते तकिये को रगड़ रहा था कि अभी पूजा आ जाये तो मैं उसकी जोरदार चुदाई कर दूँगा. मैं यह सोच कर निश्चिंत था कि अगर पूजा आएगी तो उसके आने की आवाज़ सुनकर मैं अपनी स्थिति ठीक कर लूँगा, तभी किसी ने एकदम से दरवाज़ा खोल दिया.

मैं अपने आप को संभाल नहीं सका और जैसा था वैसा ही लेटा रहा, मैंने फ़िल्म को बंद कर दिया और तकिये को लंड के नीचे से खिसका कर अपनी छाती के नीचे लगा लिया. मैंने देखा कि वो पूजा थी और मेरी हरकतों से मुझे शक भरी निगाहों से देख रही थी.

फिर वो मेरे पास आकर बैठ गई और अपनी भौंहे हिलाकर कहने लगी- क्या कर रहे हो समीर जी?

मैं बुरी तरह घबरा गया था, पूजा को क्या पता था कि मैं किस हालत में लेटा हुआ था. आप लोगों को तो पता ही होगा कि छुप कर सेक्स करने से घबराहट के कारण गला कुछ सूख सा जाता है और आवाज़ दबी-दबी सी निकलती है.

मैं- कुछ नहीं यार, आपके लैपटोप में कोई खास फ़िल्म ही नहीं है.
पूजा- क्या हुआ समीर, आपकी आवाज़ कुछ…
मैं- ऊँ…ऊँह, वो… मेरा गला कुछ सूख गया है इसलिए… एक गिलास पानी मिलेगा?
पूजा- मैं अभी लाती हूँ.

पूजा कमरे से बाहर निकली और उसके दरवाज़ा बंद करते ही मैं जल्दी से उठा और अपने खड़े लंड को मुश्किल से अंदर डाला, तभी पूजा ने झटके से दरवाज़ा खोलकर कहा कि पानी मटके का पियोगे या फ़्रिज का. उसने मुझे पैंट की चैन बंद करते देख लिया था, फिर वो मेरे जवाब का इंतजार किए बिना मुस्कराकर नीचे भाग गई.

मैं काफ़ी घबरा गया था… फिर मैं सोचने लगा कि जब उसे पता था कि मैं फ़्रिज का पानी पीता हूँ, मैंने उसके सामने फ़्रिज से ही पानी निकालकर पीया था तो उसने फिर क्यों पूछा था मुझसे…

शायद वो सब जानती थी कि मैं अकेले में क्या कर रहा था उसके कमरे में, तभी तो वो मुस्करा रही थी, लगता है मुर्गी फ़ंस चुकी है. तभी पूजा पानी लेकर आ गई और मुझे पानी दिया. मैंने पानी पीया तो वो फ़्रिज का था, वो सब जानती थी कि मुझे कैसा पानी चाहिए, उसने तो मेरी हरकतें देखने के लिए पानी के बारे में पूछा था.

मैंने अपने लंड की तरफ ध्यान किया तो वो अभी भी अपने रंग में था, फिर मैंने सोचा कि पेशाब कर आता हूँ जिससे यह शांत हो जायेगा.

मैं पूजा को बोलकर चला गया कि मुझे बाथरूम जाना है. उसी मंजिल वाले बाथरूम में चला गया और पेशाब करने लगा. पर यह इतना आसान नहीं था, ये मेरे पुरुष मित्र भली भांती समझ सकते हैं कि खड़े लंड से पेशाब करना कितना मुश्किल होता है.

जैसे-तैसे मैंने पेशाब किया जिससे मेरा लंड कुछ शांत हुआ. फिर मैं बाथरूम से निकलकर पूजा के कमरे की ओर बढ़ा.

मैं सोचने लगा कि पूजा मेरे बारे में क्या सोच रही होगी और इस वक्त क्या कर रही होगी, मैंने छुप कर पूजा को देखने की सोची. मैं दरवाज़े के पास गया और धीरे से थोड़ा-सा दरवाज़ा खोल कर अंदर झांकने लगा तो मैं दंग रह गया. जो तकिया मैंने अपने लंड के नीचे लगाया था, पूजा उसे बड़ी मदहोश होकर सूंघ रही थी और अपने एक हाथ से कभी अपनी चूची तो कभी अपनी चूत को मसल रही थी. मैं समझ गया कि माल एकदम तैयार है. मैंने भी झटके से दरवाज़ा खोला तो पूजा उसी तरह घबरा गई जैसे मैं घबरा गया था. उसने तकिया एक तरफ फ़ेंका और खड़ी हो गई.

कहानी जारी रहेगी…
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कहानी का तीसरा भाग : कट्टो रानी-3

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