कट्टो रानी-1

(Katto Rani- part 1)

समीर 2012-01-02 Comments

मुझे बड़ी खुशी है कि मेरी कहानी अन्तर्वासना के पटल पर रखी गई जिसे पाठकों ने बहुत पसन्द किया. मुझे काफ़ी मेल आईं, उसके लिये मैं सभी वासना के पुजारियों और काम की देवियों का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ.

मैं समीर आपके सामने अपनी ज़िन्दगी की एक और घटना सुनाने जा रहा हूँ, आशा है कि आप सबको पसन्द आएगी और आप इसका पूरा मजा लेंगे. यह मेरी ज़िंदगी की वो घटना है जब पहली बार मुझे एक कुंवारी चूत चोदने को मिली थी. जिन्होंने मेरी कहानी
राज़ की एक बात
नहीं पढ़ी, उनसे अनुरोध है कि वे इसे अवश्य पढ़ें.

बात अक्टूबर, 2012 की है जब मैं अपनी बुआ की लड़की की शादी मैं गाज़ियाबाद गया हुआ था. मुझे शादी का माहौल बहुत पसन्द है, जी भर के मौज-मस्ती, खाना-पीना, नए लोगों से मिलना और सबसे खास चीज़…’कट्टो’.

मेरे मम्मी-पापा भी साथ में थे. हम रेलगाड़ी से गाज़ियाबाद पहुँचे, फिर हमने घर जाने के लिये ऑटो लिया और घर की तरफ़ रवाना हुए. जब हम गली के सामने पहुँचे तो हमने देख़ा कि बुआ का लड़का संजू हमारे स्वागत के लिये गली के मोड़ पर ख़ड़ा है. उसने ऑटो को रुकवा लिया और कहने लगा- अभी आप घर नहीं जा सकते.

तभी बुआ और फ़ूफ़ा भी वहाँ पहुँच गये, उनके साथ एक आंटी भी आई थी. उस आंटी को मैंने पहले कभी नहीं देख़ा था, क्या मस्त माल थी यार, एकदम गोरी-चिट्टी, भरा-पूरा बदन और एकदम कातिल मुस्कराहट और साड़ी में एकदम कयामत लग रही थी.

पर यह हमारी कहानी की कट्टो नहीं है, उसके लिये ज़रा इन्तजार कीजिये. फिर मैं अपने सोच के सागर से बाहर आया…
मैंने बुआ-फ़ूफ़ा के पैर छूकर नमस्ते की और आंटी को भी नमस्ते की.
बुआ ने कहा- अभी आप सब घर नहीं जा सकते, पहले भात की रस्म होगी उसके बाद ही घर जा सकते हो.
मैंने कहा- बुआ जी, फिर क्या तब तक हमें सड़क पर ही खड़ा रख़ोगी?
बुआ- नहीं बेटा, रस्म तो शाम को होगी. तब तक आप सब इनके घर पर रुकोगे, बुआ ने आंटी की तरफ़ इशारा किया.

फिर हम सब बुआ के साथ आंटी के घर की तरफ़ चल पड़े. आंटी का घर बुआ के घर से थोड़ा पहले उसी गली में था. हम आंटी के घर पहुँचे, आंटी ने हमे गैस्ट रूम में बिठाया. कमरे में एक सोफ़ा सैट, एक पलंग, एक डाईनिंग टेबल और कुछ कुर्सियाँ रखी हुई थी. हम सभी उसी कमरे में बैठ गये और आपस में बातें करने लगे.

आंटी अन्दर चली गई और थोड़ी देर बाद नाश्ता लेकर आईं, जब वो आई तो मेरी आँख़ें फ़टी की फ़टी रह गई. अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने ऐसा क्या देख़ा…

आंटी के साथ एक लड़की थी जो कि चाय की ट्रे लिये हुए हमारी तरफ़ आ रही थी. मम्मी के पूछने पर आंटी ने बताया कि वो उनकी बेटी है…पूजा!

हमारी कहानी की कट्टो!

पूजा 18 साल की कमसिन जवान लड़की थी, वो ‘बी सी ए’ प्रथम वर्ष में थी. उसकी आँख़ें बड़ी शरारती थी, बालों को बांध कर जूड़ा बनाया हुआ था जिससे वो बहुत कामुक लग रही थी, उभरे हुए स्तन, गुलाबी होंठ, आँख़ों में सुरमा. उसने गुलाबी रंग का सूट पहना हुआ था और उस पर जालीदार दुपट्टा, एकदम परी लग रही थी.

मैं काफ़ी देर तक उसे देख़ता रहा, मेरा ध्यान तब टूटा जब उसने मुझे चाय लेने को कहा, तब जाकर मुझे होश आया कि वहाँ सभी बैठे हुए थे.

मैंने एक मुस्कान के साथ चाय का कप पकड़ा और उसने भी एक कातिल मुस्कराहट दी. फिर पूजा वहाँ से चली गई. नाश्ते के बाद पापा, फ़ूफ़ा जी के साथ बाहर चले गये, बुआ-मम्मी-आंटी आपस में बातें करने लगीं. मैं वहाँ बैठा-बैठा बोर हो रहा था, मेरे दिमाग में तो पूजा नाम की परी घूम रही थी.

तभी आंटी ने मुझे देखकर एक कातिल मुस्कान के साथ कहा- क्या हुआ बेटा? तुम्हारा मन नहीं लग रहा क्या, मैंने भी एक मुस्कान दी पर कुछ नहीं बोला.

तभी आंटी ने आवाज़ लगाई- मोनू… मोनू…!
एक करीब 13-14 साल का लड़का कमरे में आया.
आंटी- यह मेरा बेटा है…मोनू!
मम्मी- आपके कितने बच्चे हैं?
आंटी- दो… एक लड़का और एक लड़की मोनू और पूजा.
फिर आंटी ने मोनू से कहा- जाओ भईया, को अपने कमरे में ले जाओ!
मोनू ने मुझसे कहा- आईए भईया!

मैं उसके पीछे-पीछे चल दिया. हम सीढ़ियों से होते हुए ऊपर वाली मंजिल पर पहुँच गये. वहाँ आमने-सामने दो कमरे बने हुए थे, बीच में थोड़ी जगह खाली थी, और एक तरफ़ तीसरा कमरा था. उससे उपर वाली मन्जिल पर सिर्फ़ एक ही कमरा था. यह सब मैं आप सब को इसलिए बता रहा हूँ ताकि आप लोग अपनी कल्पना को अच्छी तरह उभार कर कहानी का पूरी तरह मजा ले सको.

तो बीच वाली मन्जिल पर जो आमने-सामने के कमरे थे, उनमे से एक मोनू का था और उसके सामने वाला उसकी बहन पूजा का. मोनू मुझे अपने कमरे में ले गया और मुझे बैठने को कहा, उसने टीवी ऑन किया और म्यूज़िक चैनल पर लगा दिया. मैंने देखा कि टीवी के पास में प्ले-स्टेशन (विडियो गेम) रखा हुआ था, तो मैंने उससे पूछ लिया- मोनू तुम्हें गेम्स पसंद हैं क्या?

मोनू- हाँ… मुझे विडियो गेम्स खेलना बहुत अच्छा लगता है, क्या आप खेलेंगे मेरे साथ?
मैं- नहीं मोनू, मैं तो बस यूँ ही पूछ रहा था.
फिर मोनू बच्चों की तरह ज़िद करने लगा- प्लीज भईया एक-एक मैच, मैं फ़ाइटिंग की डी-वी-डी लेकर आता हूँ, इतन कहकर वो नीचे चला गया. तभी मैंने सामने पूजा के कमरे की ओर देखा जिसका दरवाज़ा बंद था. मैंने सोचा कि पूजा के कमरे में जाकर उससे मिलना चाहिए, अब वो अकेली भी है, फिर मुझे लगा कि कहीं उसे इस तरह बुरा ना लगे.

तभी मुझे मोनू के ऊपर आने की आवाज़ आई, मैं टी-वी की तरफ मुँह करके बैठ गया. तभी मोनू कमरे में आया और मुझे डी-वी-डी दिखाने लगा, फिर उसने प्ले-स्टेशन ऑन किया और डी-वी-डी लगा दी. वो ड्ब्लू-ड्ब्लू-ई की डी-वी-डी थी, हमने अपने-अपने प्लेयर चुने और शुरु हो गये.

उसने प्ले-स्टेशन के साथ कम्प्यूटर के स्पीकर जोड़ दिये थे, जिससे बहुत तेज़ आवाज आ रही थी. हम दोनों बड़े उत्साह के साथ खेल रहे थे, और मोनू जोर-जोर से चिल्ला रहा था. पूजा का कमरा पास होने के कारण उस तक बहुत शोर जा रहा था.

थोड़ी देर के बाद पूजा ने कमरे का दरवाज़ा खोला और कमरे में घुसते ही मोनू पर चिल्लाई- इतना शोर क्यो कर रहे हो, तुम्हारे इस शोर की वजह से मैं पढ़ नहीं पा रही हूँ.

मोनू ने पूजा और मेरा परिचय करवाया…
मोनू- आप भी हमारे साथ खेलो ना दीदी, बहुत मजा आ रहा है.
मैं पूजा से- जी बिल्कुल, अगर आप भी हमारे साथ खेलेंगी तो और भी मजा आएगा.
…इससे पूजा का गुस्सा कुछ कम हुआ.
पूजा मुस्कराती हुई- जी नहीं… मुझे पढ़ाई करनी है.
मोनू- प्लीज़ दीदी, थोड़ी देर के लिये खेलो ना.
पूजा- ठीक है बाबा लेकिन सिर्फ़ थोड़ी देर के लिये ही खेलूँगी.
मोनू- तो दीदी तैयार रहिये, अगली बारी आपकी है.

मोनू हम दोनों के बीच में बैठा हुआ था, मोनू और मैं खेल रहे थे लेकिन मेरा ध्यान गेम की तरफ़ कम और पूजा की तरफ़ ज्यादा था. मेरा प्लेयर बुरी तरह पिट रहा था, पूजा खिलखिला कर हंस रही थी.

फिर उसने मेरी तरफ़ देखकर कहा- समीर जी, आपको तो खेलना ही नहीं आता.
मैंने कहा- मोनू बहुत अच्छा खेल रहा है, इसलिए मैं हार रहा हूँ, उसे क्या पता था कि मैं उसी की वजह से हार रहा हूँ.

तभी किसी ने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया, पूजा ने जाकर देखा.
पूजा- मोनू, तुम्हारा दोस्त आया है.
मोनू- मैं अभी आता हूँ.
मोनू ने अपने दोस्त से कुछ बातें की, फिर कहा- मैं अपने दोस्त के साथ जा रहा हूँ, आप दोनों खेलो. इतना कह कर वो दरवाज़ा बंद करके चला गया.

इतनी जल्दी हुई इस गतिविधि से मेरी तो बांछें खिल गईं थी, मुझे कहाँ पता था कि मुझे इतनी जल्दी मौका मिल जाएगा पूजा से अकेले में मिलने का. मैंने पूजा की तरफ़ देखा तो उसने शरमा कर मुँह नीचे कर लिया और मुस्कराने लगी.
उसकी ये अदायें देखकर मैंने धीरे से अपने आप से कहा- बेटा समीर…अब तो लौंडिया फ़ंसी समझो.
पूजा- कुछ कहा आपने…
मैं झिझकते हुए- नहीं… नहीं तो, कुछ भी तो नहीं.
मैं फ़िर से- बड़े तेज़ कान हैं साली के.
पूजा- आपने फिर कुछ कहा…
मैं- मैं… वो मैं कह रहा था कि खेल शुरु करते हैं.
पूजा- प्लीज़ रहने दीजिये ना मेरा मन नहीं है, चलिये ना कोई मूवी देखते हैं.
मैं- ठीक है, जैसी आपकी मर्ज़ी…

पूजा ने टी-वी ओन किया और चैनल बदल-बदल कर देखने लगी, कुछ देर बाद उसने टीवी बंद कर दिया.
मैं- क्या हुआ…?
पूजा- कोई भी ढंग की फ़िल्म ही नहीं आ रही, चलो, मैं आपको अपने लैपटोप पर फ़िल्म दिखाती हूँ.
मैं- ठीक है, आप यहीं पर ले आओ.
पूजा- आइये ना मेरे कमरे में ही चलते हैं.
मैं फ़िर खुद से- लगता है साली चुदने के लिए बड़ी उतावली हो रही है..!!
पूजा- आपने फिर कुछ कहा…
मैं- कुछ नहीं चलिए…

फ़िर हम दोनों पूजा के कमरे में गये, कमरे में बहुत अच्छी खुशबू फ़ैली हुई थी. गद्देदार बैड… मानो हम दोनों को सम्भोग के लिए बुला रहा हो. कमरे में एक ओर पढ़ाई की मेज और दो कुर्सी रखी हुई थीं, एक कोने में किताबों का रैक रखा हुआ था, एक कपड़ों की अलमारी और बैड के साथ में एक सोफ़ा चेयर रखा हुआ था. पूजा ने मेज पर रखी किताबों को रैक में रख दिया और अलमारी का लॉक खोल कर उसमें से लैपटोप निकाला.
मैं- आप लैपटोप को अलमारी में क्यों रखती हो?
पूजा- मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है कि कोई मेरी चीज़ों को हाथ लगाये, खास कर के मेरे लैपटोप को, मैं इसे कभी भी किसी के साथ साँझा नहीं करती इसीलिए मैं इसे अलमारी में रखती हूँ.
मैं- फ़िर आप मुझे क्यों दिखा रहीं हैं?
पूजा- आप तो…हमारे खास मेहमान हैं!
इतना कहकर वो कातिल मुस्कान बिखेरने लगी.

मैं भी मुस्कराकर- फ़िर… चलो ना अब दिखा भी दो.
पूजा चौंकते हुए- क्या…
मैं- वही… जिसके लिये आप मुझे अपने कमरे में लाई हो.
पूजा- मैं तो आपको फ़िल्म दिखाने लाई हूँ.
मैं- तो… मैं भी तो फ़िल्म दिखाने के लिए ही तो कह रहा हूँ.
पूजा- आपकी हंसी तो कुछ और ही बयान कर रही है.
मैं- हंस तो आप भी रही हो मैडम, आपकी हंसी का क्या राज़ है?
पूजा- मैं तो… बस यूं ही.

तभी नीचे से आंटी की आवाज़ आई- पूजा…!!
पूजा कमरे से बाहर निकलकर- हाँ मम्मी…?
आंटी- नीचे आ… थोड़ा काम है.
पूजा- मैं अभी थोड़ी देर में आती हूँ.
इतना कहकर वो नीचे चली गई.
पूजा के जाने के बाद मैंने सोचा क्यों न जब तक पूजा आती है तब तक लैपटोप की जांच-पड़ताल कर ली जाए. दूसरों के कम्प्यूटर की खोजबीन करने में मुझे बड़ा मजा आता है. मैंने लैपटोप ऑन किया लेकिन पूजा ने लैपटोप पर पासवर्ड लगा रखा था. मैंने पासवर्ड खोलने की कोशिश की, सबसे पहले मैंने पूजा का नाम डाला फिर पूजा रानी और तरह-तरह के शब्दों का प्रयोग किया लेकिन मेरा डाला गया कोई भी पासवर्ड सही नहीं निकला.
फिर मेरे दिमाग में एक शब्द आया- ‘शोना’
लड़कियों को यह शब्द बहुत पसंद है तो मैंने पासवर्ड में शोना डाला और लैपटोप का पासवर्ड खुल गया. मैंने अपने आप को शाबाशी दी और लगा लैपटोप का मुआयना करने. मैंने सोचा कि पूजा एक कामुक लड़की है, अभी-अभी उसने जवानी में कदम रखा है, अपना लैपटोप सबसे छुपा कर रखती है तो पक्का उसके लैपटोप में रेलगाड़ी होगी. अब आप लोग सोच रहे होगें कि लैपटोप में कौन-सी रेलगाड़ी होती है, दोस्तों मैं सैक्सी फ़िल्म की बात कर रहा हूँ. मैं और मेरे दोस्त इसे रेलगाड़ी कहते हैं. हम लोगों ने शाहिद कपूर की फ़िल्म ‘इश्क विश्क’ देखी थी, उसमे सैक्सी फ़िल्म को रेलगाड़ी की संज्ञा दी गई थी, बस तभी से हम लोग भी इसे रेलगाड़ी कहने लगे.
कहानी जारी रहेगी…
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कहानी का दूसरा भाग : कट्टो रानी-2

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