कमसिन कम्मो की स्मार्ट चूत-4

(Kamsin Kammo Ki Smart Choot- Part 4)

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कम्मो तो मुझ पर अपना सब कुछ लुटाने, सबकुछ न्यौछावर करने को प्रस्तुत ही थी; कमी तो मेरी तरफ से थी कि मैं इतनी बड़ी दिल्ली में कोई एकांत कोना नहीं तलाश पा रहा था. ऐसी बेबसी का सामना मुझे पहले कभी नहीं करना पड़ा था. कम्मो मुझसे चिपकी हुई चुपचाप थी, वो बेचारी कहती भी तो क्या.

मैं उसे अपने से चिपटाए हुए उसके धक धक करते करते दिल की धड़कन महसूस करता रहा.

“अंकल जी, क्या आप यहां से मेरे साथ मेरे घर नहीं चल सकते? मम्मी पापा तो खेतों में निकल जाते हैं सुबह ही; मैं सारे दिन घर में अकेली ही रहती हूं.”
उसने मुझे अपना प्रस्ताव दिया.

“देख कम्मो, मुझे तुम्हारे घर चलने में कोई आपत्ति नहीं, लेकिन तुम्हारी आंटी, मेरी बहूरानी अदिति को ये बात अजीब लगेगी कि मैं तुम्हारे गांव क्यों जा रहा हूं. वो जरूर मेरा तुम्हारा साथ जाना इस बात से जोड़ कर देखेगी कि तुम आज दिन भर मेरे साथ अकेली थीं. कम्मो, उसका दिमाग बहुत तेज है वो बात समझ जायेगी.” मैंने उसका दूध मसलते हुए कहा.
“हां अंकल, आपकी ये बात तो सही है आपकी” वो धीमे से बोली.
“तू दिल छोटा मत कर ,मैं बाद में आऊंगा तेरे घर. अब हम लोग व्हाट्सएप्प और फेसबुक पर तो जुड़े ही रहेंगे न!” मैंने उसे दिलासा दी.

“अंकल जी, आओ तो जल्दी ही आना; क्योंकि डेढ़ दो महीने बाद मेरी शादी होने वाली है; उसके बाद कोई पक्का नहीं कि मैं मिल भी सकूंगी या नहीं; लड़की जात की मजबूरियां तो आप समझते ही होगे” वो अपनी एक अंगुली से मेरे सीने पर कुछ लिखती हुई सी बोली. मैंने देखा उसकी आंखें नम थी.
“हां कम्मो, मैं समझता हूं सब. मैं जल्दी से जल्दी आने की कोशिश करूंगा.” मैंने कहा.

“अंकल जी, मेरा पास भाटइसएप और फेसबुक तो है ही नहीं. आप बना के जाना मेरे फोन में!” वो बोली.
“ठीक है कम्मो, मैं अभी चलकर सब बना दूंगा.” मैंने उसे चूमते हुए कहा और और उसका हाथ अपने लंड पर रख कर दबाने लगा. एक बार तो कम्मो ने अपना हाथ हटाने का प्रयास किया भी पर मैंने उसे सख्ती से अपने लंड पर दबा दिया. दिल तो कर रहा था कि मैं अपना लंड बाहर निकाल कर खड़ा लंड पकड़ा दूं कम्मो को; कम से कम यही सुख हासिल हो जाए मेरे लंड को; लेकिन टैक्सी में मैं इतनी हिम्मत नहीं जुटा सका. क्योंकि ड्राईवर मिरर में से कभी कभी हम पर नजर डाल रहा था. पर जितना सावधानी पूर्वक हम लोग मजा ले सकते थे वो तो लेते ही रहे और एक दूसरे के अंगों को छूते मसलते रहे.

साढ़े छः के क़रीब हम लोग वापिस धर्मशाला पहुंच गये. दुकानों की बत्तियां जल उठीं थीं. सर्दियों के मौसम में यूं भी शाम बहुत जल्दी होने लगती है. धर्मशाला पहुंचे तो देखा खूब चहल पहल हो रही थी. बहूरानी के चाचा जिनके लड़के का ब्याह था वो सबको तैयार होने का निर्देश दे रहे थे की जल्दी जल्दी तैयार होजाओ सब लोग कि साढ़े सात बजे बारात चढ़नी है क्योंकि रात दस बजे के बाद डी जे बजना मना था.
लेकिन जैसे कि होता है कोई भी उनकी बात पर ज्यादा ध्यान देता नज़र नहीं आ रहा था.

हमारे पहुँचते ही अदिति बहूरानी हमारे पास आ गयी और कम्मो के हाथ से बैग्स लेकर देखने लगी की क्या क्या लाये थे. कम्मो की वो दोनों ब्रा पैंटी तो मैंने अपने पास पैंट में छुपा रखीं थीं.

फोन और कम्मो के सूट बहूरानी को पसंद आये और उसने मेरी इस बात की तारीफ़ भी की कि मैंने कम्मो को कपड़े दिलवा दिए थे और अपना रिवाज निभा दिया था; अब वो बेचारी क्या जाने कि कम्मो की मचलती उफनती जवानी ने भी अपनी रीति निभा दी थी मेरे संग.

“अंकल जी फोन चला के तो देखो कैसा है?” कम्मो बोली और फोन का डिब्बा मुझे दे दिया.
मैंने फोन को बड़े प्यार से अनबॉक्स किया और बैटरी डाल कर ऑन कर दिया.

फोन अच्छे से चलने लगा तो मैंने फिर उसमें जरूरी सेटिंग्स भी कर दीं. फोन का स्क्रीन लॉक भी कम्मो के फिंगर प्रिंट्स लेकर सेट कर दिया; अब कम्मो का फोन कम्मो के सिवाय और कोई नहीं खोल सकता था.
इस सेटिंग से कम्मो बहुत खुश हुई कि उसकी मर्जी के बिना कोई उसका फोन देख नहीं सकता था; इसके बाद मैंने कम्मो को और जरूरी बातें भी समझा दीं और अपने सामने फोन खोलना बंद करना सब सिखा दिया.

फिर कम्मो का एक फोटो लिया मैंने और कम्मो को सेल्फी लेना भी सिखाया. फिर फोन में सिम कार्ड डाल दिया. सिम चालू हो चुकी थी तो मैंने कम्मो के पुराने फोन से उसके कॉन्टेक्ट्स भी सेव कर दिए और फोन को डायल करना, कॉल रिसीव करना वगैरह सब सिखा दिया. इसके बाद मैंने कम्मो का जीमेल अकाउंट बना कर फेसबुक, व्हाट्सएप्प भी बना दिया और उसे अपनी फ्रेंड बना लिया.
इसके साथ साथ मैंने सारे एकाउंट्स के पासवर्ड्स एक कागज़ पर साफ़ साफ़ लिखकर कम्मो को दे दिए कि अगर कभी वो भूल जाय तो कागज़ से देख सकती है.
इतना सब होने के बाद कम्मो छोटे बच्चे की तरह खुश थी.

इतना सब होने के बाद मैंने कम्मो की वो ब्रा पैंटी अकेले में चुपके से उसे दे दी जिसे उसने झट से अपने बैग में छिपा के रख लीं. इसके बाद कम्मो की एक पप्पी लेना तो बनता ही था सो मैंने दायें बाएं देख कर कम्मो को अपने आगोश में ले लिया; उसके पुष्ट स्तन मेरे सीने से पिस गये और झट से चार पांच चुम्में उसके गालों और होठों पर जड़ दिए.
वो कसमसा कर रह गयी.

“अंकल जी आप भी न. अभी किसी की नज़र पड़ जाती तो?” वो बनावटी गुस्से से बोली. फिर मैंने उसके दोनों दुद्दुओं को झट से दबोचा और निकल लिया वो अरे अरे ही करती रह गयी.
सात बजे के क़रीब वो डी जे वाला आ गया और बारात जल्दी निकालने को बोलने लगा; बोला कि दस बजे के बाद डी जे बजाना सख्त मना है आप लोग फिर कुछ मत कहना.
अदिति के अंकल जी भी सबको जल्दी जल्दी रेडी होने को बोल रहे थे; पर कोई सुने तब न. जैसा कि सभी शादी ब्याह में होता ही है. साढ़े सात के बाद ही सबने हिलना डुलना शुरू किया और तैयार होने लगे.

पीने वालों ने अपनी अलग ही महफ़िल जमा रखी थी एक कमरे में. मैं भी नहा कर अपना सूट, टाई डाल के तैयार हो गया और एक पटियाला पैग ढाल के कुर्सी पर बैठ के आराम से चुस्कियां लेने लगा.

लेडीज वाले एरिया में सब महिलायें सज संवर रहीं थीं, उनकी बातों से सुना कि सर्दी होने के बावजूद कोई भी लेडी स्वेटर या कोट पहनने को तैयार नहीं थी. मैंने सोचा कि अगर ये कोट, स्वेटर वगैरह गर्म कपड़े पहन लेंगी तो फिर इनके जेवर, इनके कपड़े, इनके बूब्स इनकी जवानी कैसे दिखेगी सबको?
मैंने तमाम सर्दियों के शादियाँ अटेंड की हैं और सभी में देखा है कि कितनी भी तेज सर्दी हो, ठंडी हवाएं चल रहीं हों पर ये महारानियां गर्म कपड़े कभी नहीं पहनेंगी चाहे बीमार पड़ जायें बाद में.

बाहर डी जे बजने लगा था और बारात का माहौल जमने लगा था. बड़ी उम्र की महिलायें, नव यौवनाएं, ताज़ी ताज़ी जवान हुयीं छोरियां, कमसिन कच्ची कलियां सब की सब झिलमिल झिलमिल कर रहीं थीं. मेरी बहूरानी अदिति कुछ ज्यादा ही क़यामत ढा रही थी. उसने महारानियों के जैसी भारी भरकम एंटीक डिजाईन का सोने का जड़ाऊ नेकलेस और मैचिंग कंगन और कान के पहन रखे थे, साड़ी ब्लाउज भी वैसा ही राजकुल की स्त्रियों के जैसा आलीशान था.
बहू को वो रूप देखकर मुझे अपने लंड के मुकद्दर पर फ़ख्र हुआ कि इस शानदार जिस्म की मलिका की चूत को मेरा लंड अनगिनत बार भोग चुका था. पहनने ओढ़ने के हिसाब से सभी लेडीज का लगभग यही हाल था. सब की सब एक से बढ़ कर एक हुस्न की परियां नजर आ रहीं थीं.

अपनी कम्मो भी कोई कम सितम नहीं ढा रही थी. नहाई धोई कम्मो ने पीले कलर का कुर्ता और नीचे ढीली ढाली चूड़ीदार सफ़ेद सलवार पहन रखी थी; ये पीले और सफ़ेद रंग का कॉम्बिनेशन बहुत ही अच्छा फबता है इन कुंवारियों के बदन पर. कम्मो का दुपट्टा उसकी छातियों की बजाय गले में लिपटा था जिससे उसके दिलकश स्तनों का जोड़ा उसके सीने पर बहुत ही मस्त और लुभावना लग रहा था; हो सकता है उसने वही ब्रा और पैंटी पहन ली हो जिसे मैंने आज उसे गिफ्ट में दिया था, पर मैं निश्चित तौर पर कोई अंदाजा नहीं लगा सका.

कम्मो के खुले हुए घने काले बाल उसके कंधों पर बिखरे हुए थे और उसने कुछ आर्टिफिशियल ज्वेलरी भी पहन रखी तो जो उसके सौन्दर्य में चार चांद लगा रही थी. आंखों में गहरा काजल डाल रखा था उसने!
अगर शोर्ट में कहूं तो कम्मो हरियाणवी डांसर सपना चौधरी की छोटी बहन जैसी लग रही थी; बिल्कुल वैसी ही कद काठी, वैसा ही जानलेवा जोबन, वैसा ही सलवार कुर्ता, वैसी ही सुन्दर और यौवन के जोश से लबालब.

मैंने कम्मो को इशारे से पास बुलाया तो वो मेरे साथ सकुचाती सी आ खड़ी हुई; मैंने उसके हाथ से उसका नया फोन लेकर अपनी और कम्मो की कई सेल्फी लीं.
“कम्मो तू बहुत ही सुन्दर लग रही है, सब में सुन्दर. सच में!” मैंने कहा

“ह्म्म्म, रहने दो अंकल जी. क्या फायदा अब!” उसने कह कर सूनी सूनी आँखों से मुझे देखा और सिर झुका कर खड़ी रही. उसका ‘क्या फायदा अब’ कहना मुझे भीतर तक चीर गया, जैसे मेरे पुरुषत्व और पुंसत्व पर सवालिया निशान लगा गया. ऐसी बेचारगी का सामना मुझे जीवन में कभी पहले महसूस नहीं करना पड़ा था. मैं समझ रहा था कि वो इमोशनल हो रही थी; चाहत का जो जज्बा, वर्जित फल खा लेने का वो पागलपन हम दोनों पर आज दिन में रेस्टोरेंट में सवार हुआ था वो घोर निराशा में बदला जा रहा था. कम्मो तो मुझे सब तरह से समर्पित हो ही गयी थी कि जो करना है कर लो, जहां ले चलना है ले चलो. कोई लड़की इससे ज्यादा आखिर कह और कर भी क्या सकती है.

मैं कम्मो से कुछ और कहने ही वाला था कि अदिति बहूरानी मेरी ओर आती दिखाई दी साथ में उसके चाचा जी भी थे.

कहानी जारी रहेगी.
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