जिस्म की जरूरत -26

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कुछ देर हम एक दूसरे के शरीर को सहलाते हुये अपनी गर्म साँसों से कमरे को महकाते रहे. फिर जो हुआ उसकी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी… अचानक वंदना ने अपने लब मेरे लबों से छुड़ाए और…
बिना कोई देरी किये झट से अपने घुटनों पर बैठ गई!

मैं यूँ ही विस्मित सा खड़ा रहा और वंदु के अन्दर आई इस फुर्ती का आशय समझने की कोशिश करता रहा.
अब तक वंदु के हाथ मेरे नितम्बों को सहलाते हुए शॉर्ट्स से बाहर झांकती मेरी जाँघों पे चलने लगे. शॉर्ट्स में एक कड़क सिपाही की तरह अकड़ कर खड़ा हुआ मेरा लंड हर आधे सेकंड में ठुनकी मारता हुआ अपनी बेचैनी का सबूत दे रहा था और वंदना किसी भूखी शेरनी की तरह उसे एक तक निहार रही थी.

वंदना ने अपने हाथों को वैसे ही मेरी जाँघों को सहलाते हुए छोड़ कर अपने चेहरे को मेरे लंड के करीब किया और लंड के अगले सिरे को अपने गालों पे रगड़ने लगी, कभी दायें तो कभी बाएं गाल पे लंड के अगले भाग से पिछले भाग तक यूँ रगड़ते हुए वंदना ने एक बार को मेरी तरफ देखा.
मैं तो पहले से ही वंदना की इस हरकत से थोड़ा सा अचंभित था और एकटक उसकी तरफ ही देख रहा था, अब उसकी आँखें मेरी आँखों से टकराईं तो मैंने हल्के से मुस्कुरा कर अपनी ख़ुशी का इज़हार किया और इसके जवाब में वंदना ने बड़ी अदा से अपने होंठों को गोल कर मेरी तरफ एक चुम्मी उछाल दी.

मैं तो पहले ही उसकी अदाओं का दीवाना था और उसकी इस अदा ने थोड़ा सा और घायल कर दिया… मेरे हाथ जो अब तक यूँ ही लटक रहे थे, धीरे से वंदना के सर पर आ गए और उसके चेहरे को अपने नवाब साहब के पास खींचने का प्रयास करने लगे.
वंदना का चेहरा एक बार फिर से मेरे लंड के बिल्कुल करीब आ गया और इस बार मैं अपने लंड को उसके गालों और होंठों पे रगड़ने लगा.

कल रात कार में उसके साथ चुदाई तो हुई थी लेकिन सही ढंग से मुख-मैथुन का आनन्द नहीं ले पाए थे हम दोनों!
अब मुझे यह तो नहीं पता था कि वंदना ओरल-सेक्स को अहमियत देती है या नहीं… या फिर उसे ओरल सेक्स के आनन्द का आभास है भी या नहीं… लेकिन मैं तो ओरल-सेक्स का दीवाना हूँ और इसे चुदाई के खेल का एक अभिन्न अंग मानता हूँ.
इस वक़्त मेरी ये ख्वाहिश हो रही थी कि वंदना पूरी तरह से मस्त होकर मेरे लंड को अपने कोमल होंठों के बीच फंसा कर मुझे वो आनन्द दे जो मुझे पूरी तरह से उसका गुलाम बना दे.

लेकिन ख्वाहिशें तो ख्वाहिशें ही होती हैं… पूरी हो भी जाती हैं और नहीं भी !!

मैं वंदना के साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं करना चाहता था… सच कहूँ तो मैंने कभी भी किसी लड़की या महिला के साथ ज़बरदस्ती मुख-मैथुन करने की कोशिश नहीं की है…लेकिन ज़्यादातर अपने तरीकों से उन्हें उसके लिए राज़ी करने में कामयाबी ज़रूर हासिल की है.
यहाँ भी मैं वंदना को उसी तरह से उत्तेजित कर उसके होंठों में अपना लंड फंसाने की कोशिश कर रहा था. कभी उसके होंठों पे लंड के सुपारे को रगड़ कर तो कभी उसके सर पे घूम रही मेरी उंगलियों को उसके गले और गालों पर कामुक अंदाज़ में सहला सहला कर!

वंदना मेरी इस प्रयास को कैसे सफल होने देती है, यह मेरे लिए भी उत्सुकता का कारण बना हुआ था… लेकिन कहते हैं न कि सच्चे दिल से कुछ चाहो तो वो मिल ही जाता है. यहाँ भी ऐसा ही हुआ…
वंदु ने शॉर्ट्स के ऊपर से ही अपने होंठों को खोलकर मेरे अकड़ते लंड को दबोच लिया और अपने दांतों को लंड के सुपारे पर गड़ा दिया…
‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ मेरे मुँह से उसके दाँतों की चुभन की पीड़ा एक सिसकारी के रूप में बाहर निकली, मेरी उंगलियों ने वंदु के बालों को जोर से दबोच लिया.

इधर वंदु ने कुछ सेकेंड्स तक यूँ ही अपने दांतों को लंड के सुपारे पर गड़ाए रखा और फिर धीरे से लंड को आज़ाद किया.

मुझे थोड़ी सी राहत मिली लेकिन यूँ दांत गड़ाने की वजह से लंड में खून का एक और दौरा बढ़ गया और लंड कुछ ज्यादा ही उछलने लगा. वंदना ने लंड को यूँ उछलते देखा और अपना चेहरे मेरी तरफ उठा कर एक कातिल और शरारत मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखना शुरू किया.
हम दोनों आँखों-आँखों में ही अपने मज़े का इज़हार करते रहे और फिर वंदु के हाथ एक बार फिर से मेरे शॉर्ट्स की इलास्टिक में फंस गए और धीरे-धीरे मेरा शॉर्ट्स अपनी जगह छोड़ने लगा.

यूँ तो इस तरह की स्थिति में अमूमन लड़कियाँ होती हैं जहाँ लड़के इस रोमांटिक अंदाज़ में उनकी पैंटी उतारते हैं और लड़कियाँ शर्म और मज़े से सिसकारियाँ लेती रहती हैं. लेकिन यहाँ मैं वंदु की इस हरकत का शिकार हो रहा था और बढ़ती हुई धड़कनों के साथ अपने शॉर्ट्स को उतरते हुए महसूस कर रहा था…
सिसकारियाँ मेरी भी निकल रही थीं लेकिन मैंने उन्हें दबा रखा था.

अब स्थिति यह थी कि मेरा शोर्ट मेरी कमर से तो फिसल चुका था लेकिन नीचे नहीं आ रहा था. हम दोनों तो बस एक दूसरे की आँखों में ही खोये हुए थे और वंदना के हाथ मेरे शॉर्ट्स को नीचे खींचने का असफल प्रयास कर रहे थे लेकिन शॉर्ट्स था कि मेरे बिल्कुल खड़े और सख्त लंड पे आकर अटक गया था.
ऐसा अमूमन होता है…

वंदना ने एक बार जोर का झटका दिया लेकिन शॉर्ट्स का इलास्टिक लंड को आधा नंगा करता हुआ वापस अपनी जगह पे चला गया. उसकी इस खींचा तानी में इलास्टिक की रगड़ से लंड को सिहरन सी हुई और मेरा ध्यान इस बार अपने शॉर्ट्स पर चला गया जिसे वंदु अब भी निकालने की कोशिश में जुटी थी.

मुझे एक बार तो थोड़ी सी हंसी आई और मैंने उसे अपने प्रयास में लगे रहने दिया.
‘आःह्ह्ह…’ मेरे मुँह से अचानक से निकल पड़ा.
मैंने ध्यान दिया तो पता चला किन वंदु ने झुंझलाहट में एक बार फिर से मेरे लंड पर अपने दांत से काट लिया था.

खैर यह लाज़मी भी था… मैं वंदु की झुंझलाहट को समझ सकता था… अगर उसकी जगह मैं भी होता तो शायद वही करता जो उसने किया.

इस बार मैंने खुद अपने हाथों से अपने शोर्ट को निकल फेंकने का निश्चय किया और वंदना के सर से थोड़ा दूर होकर बड़ी कठिनाई से अपने शॉर्ट्स को निकल फेंका…

आज़ाद होते ही मेरे लंड ने ठुमक कर वंदना को सलामी दी और वंदना ने भी इस सलामी को जवाब लंड के बिल्कुल करीब आकर उसे अपने हाथों में पकड़ कर दिया. आज़ाद लंड को हाथों में जकड़ते हुए उसने एक बार मेरी तरफ देखा और बिना किसी देरी के अपने होंठों को लंड के नंगे सुपारे पर रख दिया…
‘उफ्फ्फ्फ…’ मैंने एक बार फिर से वंदु का सर पकड़ कर उसे और भी करीब खींचने का प्रयास किया ताकि मैं लंड को पूरी तरह से उसके मुँह में घुसा सकूँ!

लेकिन वंदु का इरादा कुछ और ही था, उसने सख्ती से अपने सर को वैसे ही रहने दिया और अपने होंठों से मेरे लंड के अगले भाग को चूमती रही.
एक बार को मुझे इसा लगा मानो वंदु बस इतना ही सुख देगी मुख-मैथुन का… और यह सोच कर मैंने उसके सर से अपना दबाव कम कर दिया.

लेकिन मैं गलत था… पहले तो वंदु ने कई बार लंड को चूमा फिर उसने लंड को अपने दोनों हाथों से मुठ मारने की तरह आगे पीछे करना शुरू किया. अब मेरे लंड का सुपारा अपने चमड़े से बाहर निकल और छुप रहा था.
वंदु एकटक उस लाल टमाटर से सुपारे को देखे जा रही थी जिस पर अब काम रस की बूँदें उभर आई थीं.

सच कहूँ तो वंदना इस अंदाज़ में मेरे लंड को आगे-पीछे कर रही थी कि अगर कुछ देर और ऐसे ही करती रहती तो मेरा सारा रस उछल कर वंदु के पूरे चेहरे पे छा जाता!
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मैं मज़े से वंदु की इस हरकत का मज़ा ले रहा था कि तभी वंदु के हाथ रुक गए… मैं एक पल को चौंका और देखा तो पाया कि वंदना ने अपने होंठों को गोल कर लिया था और उन गोल होंठों के बीच से उसकी जुबान बाहर निकल रही थी. उसकी जुबान का निशाना ठीक सामने की ओर था यानि मेरे लंड के सुपारे की तरफ!

मेरी आँखें आने वाले पल के बारे में सोच कर चमक उठीं, मुझे यक़ीन हो गया कि अब मुझे वो सुख मिलेगा जिसकी उम्मीद मैंने छोड़ दी थी.

आख़िरकार वही हुआ, वंदु ने अपनी जीभ की नोक को मेरे लंड के सुपारे के ठीक उस जगह पर टिका दिया जहाँ से काम रस की बूँदें आहिस्ता-आहिस्ता रिस रही थीं. यूँ तो पूरा सुपारा ही संवेदनशील होता है लेकिन वो छोटा सा कटा हुआ हिस्सा जिसके रास्ते इस सृष्टि के सृजन का बीज निकलता है वो कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित करने वाला होता है.
वंदु ने जीभ की नोक से उस जगह को हौले-हौले घिसना शुरू किया और मैं अपनी आँखें बंद करते हुए मुँह से आनन्द भारी सिसकारियाँ निकालते हुए उसके माथे पर अपने हाथों से सहलाने लगा मानो उसकी इस हरकत पर अपना भाव व्यक्त कर रहा हूँ.

अब धीरे-धीरे उसकी जीभ की लम्बाई बढ़ती गई और उसके घिसने का घेरा भी बढ़ने लगा, अब वो पूरे सुपारे को अपनी जीभ से अच्छी तरह से सहला रही थी मानो सोफ्टी के ऊपर रखे आइसक्रीम के गोले को चाट रही हो.
ब्यान करना मुश्किल है कि मैं किस एहसास से गुज़र रहा था, जिन्होंने यह सुख भोगा है उन्हें पता है उस वक़्त की मनोस्थिति!

ख़ैर, थोड़ी देर यूँ ही अपने जीभ से उस लाल सुर्ख़ हो चुके सुपारे को चाटने के बाद वंदु ने अपने होंठों को थोड़ा खोला और सुपारे को अपनी गिरफ़्त में ले लिया. पूरा सुपारा अब एक गर्म और गीले बंद डिब्बे में फँसा हुआ प्रतीत हो रहा था.
ऐसे ही सुपारे को अपने होंठों में क़ैद किए हुए उसने अपनी जीभ को फिर से हरकत दी और सुपारे के चारों तरफ़ जीभ को फिरना शुरू किया… मैंने आनन्द से विभोर होकर उसे सर पे थोड़ा दबाव देना शुरू किया ताकि मेरे नवाब को वंदु के मुँह में थोड़ी और जगह मिल जाए!

पर यह क्या… वंदु ने अपने सर को कड़ा कर लिया और बस ऐसे ही केवल सुपारे को अपनी जीभ से चुभलाते हुए अपने हाथों को फिर से लंड के ऊपर नीचे करना शुरू किया, मानो वो सुपारे को अपने होंठों में क़ैद कर लंड को मुठ मारने की तरह हिला-हिला कर उसका रस निकलना चाहती हो.

अब मुझे बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था और एक पल को ऐसा लगा मानो मेरा लावा फूट ही पड़ा हो… पर तभी वंदु ने लंड को बिल्कुल आज़ाद छोड़ दिया और मेरी तरफ़ देख कर लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगी. उसके हाथ अब मेरी जाँघों को थामे हुए थे और उसका चेहरा मेरी तरफ़ ऊपर की ओर मेरे चेहरे को निहार रहा था.

यूँ अचानक लंड को उस अवस्था में छोड़े जाने की वजह से मैं लगभग चौंक सा गया था और अपनी आँखें खोलकर वंदु की तरफ़ यूँ देखने लगा मानो मैं उससे पूछ रहा होऊँ कि लंड को इतना तड़पा कर यूँ छोड़ क्यूँ दिया!

हमारी नज़रें मिलीं और वंदु ने अपने चेहरे पर उत्तेजना से भरे भाव के साथ मुस्कुराते हुए मेरी आँखों में देखा जो उससे बिना कुछ कहे सवाल किए जा रही थीं.

पल भर का भी समय गँवाए वंदु उठ कर खड़ी हो गई और मुझे लगभग धक्का देते हुए बिस्तर पे पूरी तरह से गिरा दिया.

अब हालात कुछ ऐसे थे कि मैं बिस्तर पे लेटा हुआ अपने टनटनाए लंड को हर साँस के साथ ठुनकते हुए देख रहा था और अपनी ऊँची नीची होती हुई साँसों को सम्भालने की कोशिश कर रहा था वहीं दूसरी तरफ़ वंदु अपने आपको अपने कपड़ों की क़ैद से आज़ाद कर रही थी.
ऊपर से तो वो पहले ही नंगी थी और अब शायद नीचे से भी नंगी हो रही थी.

मुझे सब कुछ देख कर भी कुछ देखने और समझने का होश नहीं था… मुझे तो बस ऐसा लग रहा था कि किसी तरह मेरे लंड में भरे लावे का ग़ुबार बाहर निकले और मुझे राहत मिले!

ख़ैर, वक़्त बरबाद ना करते हुए वंदु फटाफट बिस्तर पे चढ़ गई और मेरे ऊपर लेट गई. अब उसके हाथ मेरे सीने पे इधर उधर घूमने लगे और उसके दोनों पैर मेरे पैरों के बराबर में एक दूसरे से रगड़ खाने लगे. वो कुछ इस तरह से लेटी थी कि मेरा तमतमाया लंड जो आग उगल रहा था, अब उसके पेट और नाभि के बीच वाले हिस्से से दब गया था, उसकी जाँघें मेरी जाँघों के ऊपर और उसकी जाँघों के बीच का वो हिस्सा जो उस वक़्त सबसे ज़्यादा उत्तेजित था यानि ‘चूत’ मेरे लंड के नीचे लटक रहे अंडों के ऊपर रगड़ कर रही थी.

वंदु पूरे जोश में अपने पूरे शरीर को मेरे शरीर से रगड़ रही थी और मेरी हालात ख़राब कर रही थी. मेरा लंड उसके बोझ तले दब कर भी ठुनक रहा था… मेरा दिल तो कर रहा था कि उसके पेट में ही लंड घुसेड़ दूँ…

उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़…

मैंने अपने दोनों हाथों को थोड़ी हरकत दी और वंदु की पीठ पे अपनी उंगलियाँ फिरनी शुरू कर दीं या यूँ कहें कि उसे अपने बदन से और भी चिपकाने की कोशिश शुरू कर दी.
रेंगते-रेंगते मेरे हाथ वंदु के चूतड़ों तक पहुँचे तो मुझे एक बार और चौंकने का मौक़ा मिला.
हुआ यूँ कि मेरी उंगलियाँ वंदु के पिछवाड़े पे लिपटी पेंटी से टकराईं और मैं सोचने पे मजबूर हो गया कि अभी तो उसने अपने आपको कपड़ों से आज़ाद किया था फिर यह छोटी सी पेंटी क्यूँ रहने दी?
मन में कई विचार कौंधे और फिर समझ आया कि भले ही वंदु मुझसे कितना भी प्यार करती हो या कितनी भी समर्पित हो… लेकिन है तो एक नारी ही!! और वो नारी सुलभ लज़्ज़ा का प्रदर्शन तो स्वाभाविक था.
ये विचार मेरे व्यक्तिगत विचार थे… हो सकता है पाठक इससे इत्तेफ़ाक ना रखते हों!

कहानी जारी रहेगी.
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