गर्ल सेक्स स्टोरी: ललितपुर वाली गुड़िया के मुंहासे-7

(Girl Sex Story: Lalitpur Wali Gudiya Ke Munhase-Part 7)

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मुझे झड़वाने की कोशिश में स्नेहा जैन मेरे लंड पर अपनी चूत रगड़ने लगी लेकिन वो बहुत जल्दी झड़ जाती थी तो मैं तो नहीं झड़ा लेकिन वो झड़ गई.
करीब पांच सात मिनट वो यूं ही मुझसे चिपकी मेरे ऊपर पड़ी रही, उसके दिल की धक् धक् मैं साफ़ सुन पा रहा था.
फिर उसका बदन कुछ रिलैक्स हुआ और मेरे ऊपर से उतर कर वो मेरी बगल में लेट गई और अपनी एक जांघ मेरी कमर से लपेट कर मुझे अपनी ओर खींच लिया.

‘स्नेहा…’ मैंने उसे चूमते हुए कहा.
‘हाँ अंकल जी?’
‘गुड़िया रानी, मेरा तो अभी हुआ ही नहीं. ये तो चीटिंग है ना!’
‘जो करना हो अब आप ही करो, मेरे से घिस लो अपना पेनिस और निकाल लो पानी, कल मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी!’
‘तो ठीक है, तू चित लेट जा अब!’ मैंने कहा.

वो करवट लेकर पीठ के बल सीधी चित लेट गई.
‘गुड़िया मैं चूत पर लंड रगडूंगा अब… चूत की गर्मी से जल्दी ही मेरा भी हो जाएगा!’
‘नहीं अब वहाँ नहीं. मेरे बूब्स में दबा के कर लो चाहो तो!’
‘नहीं बूब्स में नहीं, चूत पर ही करने दो. इसकी गर्मी से जल्दी झड़ जाऊंगा.’
‘नहीं वहाँ नहीं. मुझे डर लग रहा है!’
‘अरे डर कैसा? अभी तुम मेरे ऊपर आके चूत रगड़ रहीं थी मेरे लंड पर, अब मैं तुम्हारे ऊपर आके चूत पर लंड रगडूंगा, सेम बात हुई ना!’
‘ठीक है अंकल जी. लेकिन ऊपर ही ऊपर. मेरे अन्दर मत घुसा देना कहीं!’
‘ठीक है बेबी तू निश्चिन्त रह… अगर मुझे तेरी मर्जी के बिना चोदना होता तो अभी तक तू चुद चुकी होती मुझसे!’
‘ओह थैंक्स अंकल, देटस सो नाईस ऑफ़ यू!’ वो बोली और पैर खोल के चित लेट गई.

फिर मैं पोजीशन ले के उसके पैरों के बीच में आ गया. लंड काफी देर से खड़ा तो इस कारण पेट के निचले हिस्से में हल्का हल्का दर्द भी होने लगा था अब, पानी जितनी जल्दी निकल जाय उतनी ही जल्दी बैठ जाएगा ये, तभी आराम मिलेगा.
यही सोचते हुए मैंने लंड से उसकी चूत पर तीन चार बार चपत लगाईं और उसके दोनों पैर ऊपर उठा कर घुटने उसके पेट की तरफ मोड़ दिए और एक तकिया उसकी कमर के नीचे लगा दिया जिससे उसकी चूत और अच्छे से मेरे सामने उभर गई.

‘गुड़िया बेटा, अब तुम चूत को खोल दो अच्छी तरह से!’
मेरी सुनकर उसके चेहरे पर लाज की लाली दौड़ गई लेकिन उसने अपनी चूत के दोनों होंठ पूरी तरह से खोल दिए मेरे लिए और अपना मुंह दीवार की तरफ करके परे देखने लगी. पहले तो मैंने उसकी चूत में दो उंगलियाँ घुसा के अच्छी तरह से अन्दर बाहर कीं जिससे उसकी चूत के रस से मेरी उंगलियाँ गीलीं हो गईं. फिर मैंने वही चिकनाहट अपने सुपारे पर चुपड़ ली और लंड को उसकी चूत की दरार में लम्बवत रख के रगड़े लगाने लगा.

स्नेहा अभी भी अपनी चूत फैलाये हुए थी और मैं लंड को सटासट उसकी चूत की दरार में चलाये जा रहा था. फिर मैंने लंड का हल्का सा दबाव चूत पर बनाया और स्पीड से लंड का सुपारा चूत के चीरे में चलाने लगा.
ऐसे करने से उसकी चूत बहुत ज्यादा पनिया गई और चूत रस बह बह कर बिस्तर भिगोने लगा.

उधर स्नेहा भी बेचैन होने लगी और अपना सिर दायें बायें हिलाने लगी.
फिर उसने बिस्तर की चादर अपनी मुट्ठियों में जकड़ ली और अपनी कमर बार बार ऊपर उचकाने लगी. जिससे मुझे थोड़ी असुविधा होने लगी, साथ में ये भी लगा कि अगर निशाना जरा सा चूका तो लंड सीधा चूत में घुस जायेगा.
लेकिन मैं बड़े ही एहितयात से सावधानी से रगड़े मारता रहा, मेरा प्रयास था कि जल्द से जल्द मैं झड जाऊं और मुक्ति पा लूं!
लेकिन सुबह ही मैंने बीवी को चोदा था इसलिए झड़ने में देर लग रही थी.

उधर स्नेहा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी और अब अपना निचला होंठ दांतों से दबाये मिसमिसाते हुए नीचे ऊपर खिसकने लगी और खुद चूत को उठा उठा के लंड से लड़ाने लगी और फिर उसे न जाने क्या सूझा कि उसने मेरा लंड अपने हाथ से कसके पकड़ लिया और सुपारा चूत के छेद पर दबाने लगी.

‘अरे ये क्या कर रही हो गुड़िया. छोड़ो लंड को. नहीं तो चूत में घुस जाएगा. छोड़ो इसे!’
‘तो घुसा ही दो अब. मुझे बहुत बेचैनी हो रही है. कब से कोशिश कर रही हूँ कि मेरा भी पानी छूट जाय लेकिन नहीं हो रहा!’
‘नहीं, लंड को घुसाने से तो तुम्हारा कुंवारापन छिन जाएगा.’

‘तो छीन लो न अंकल जी… मुझे नहीं रहना कुंवारी अब. मेरा सब कुछ तो देख, छू लिया आपने अब बचा ही क्या है, बस नाम के लिए कुंवारी हूँ, मुझे नहीं रहना कुंवारी अब; कुंवारी चूत का क्या मैं अचार डालूंगी. ऐसे तो तड़प तड़प के मैं पागल हो जाऊँगी. आप तो जल्दी से अपना लंड घुसा के धक्के मारो चूत में नहीं तो मैं जोर से काट लूंगी आपको!’ वो मिसमिसा कर बोली.

‘नहीं स्नेहा, तुमने मुझे भगवान् की कसम दी है. मैं तुम्हें चोद नहीं सकता, मुझे पाप का भागी मत बनाओ. थोड़ा सब्र रखो मैं कोशिश कर ही रहा हूँ, तुम भी जल्दी ही झड़ जाओगी.’
‘अरे अंकल. भाड़ में गई कसम… मैं वापस लेती हूँ अपनी कसम… भगवान् से माफ़ी मांग लूंगी. आप मेरी कसम से मुक्त हो. आप तो जल्दी से फक करो मुझे. लंड घुसा के कुचल दो इस चूत को आज!’
‘ठीक है गुड़िया… फिर से सोच लो, बाद में मुझे दोष मत देना!’
‘ओफ्फो, सोच लिया है सब. फक में नाऊ प्लीज!’

मैं स्नेहा को जिस मुकाम पर लाना चाहता था, वहाँ वो आ चुकी थी और खुद लंड मांग रही थी अपनी चूत में…
मैंने तुरन्त उसके दोनों पैर उठा कर उसी को पकड़ा दिए और उन्हें ऊंचा उठाये रखने को बोला. उसने भी झट से अपने दोनों हाथ अपनी जाँघों के नीचे डाल के टाँगें ऊपर उठा लीं.
अब उसकी चूत किसी प्यासी बुलबुल की तरह मुंह बाये मेरे लंड को तक रही थी.

मैंने अपनी उंगलियाँ उसके चूतरस में भिगो कर सुपारे को तर किया फिर इसे उसकी चूत के छेद पर टिका दिया और चमड़ी पीछे खींच कर सुपारे को दबा के उसकी बुर में भर दिया.
‘हाय अंकल जी, धीरे!’ वो डरते हुए बोली.

‘डरो मत गुड़िया बेटा… धीरे धीरे ही चोदूँगा तुम्हें, प्यार से लूंगा तुम्हारी!’ मैंने उसे तसल्ली दी.
और फिर उसके दोनों मम्में मुट्ठी में दबोच के लंड को धकेल दिया उसकी चूत में. चूत की मांसपेशियाँ अपनी पूरी लिमिट तक फैल गईं और लगभग एक तिहाई लंड चूत में दाखिल हो गया.

उम्म्ह… अहह… हय… याह… वेदना के चिह्न उसके चेहरे पर उभरे, साथ में उसने मुझसे छूटने की कोशिश में पीछे खिसकने का प्रयास किया. लेकिन मैं उसे कस के दबोचे रहा और पूरी ताकत से एक धक्का और मार दिया.
‘ओई मम्मीं रे… मर गई. आह निकाल लो अंकल इसे मुझे नहीं करवाना आपसे. छोड़ो मुझे!’ उसकी आँखों में आंसू आ गये और वो मुझसे छूटने की भरपूर कोशिश करने लगी.
हालांकि उसकी चूत कोई सील बन्द कली तो नहीं थी जैसे कि उसने खुद बताया था कि वो कोई चीज घुसा के हस्तमैथुन करती रहती है.
लड़की जब अपने हाथों से हस्तमैथुन करती है तो कण्ट्रोल खुद उसके हाथ में रहता है वो खुद को दर्द नहीं होने देती लेकिन लंड की बात अलग होती है. मोटे कठोर लंड का प्रहार चूत की नसों को अधिकतम सीमा तक पसार देता है जिससे खिंचाव और दर्द होता है चूत को.

ऐसी परिस्थिति से मैं परिचित था तो उसके दर्द की परवाह किये बगैर मैं उसे अपने नीचे दबोचे रहा और लंड को हिलाता डुलाता रहा.
उसकी चूत मेरे लंड को यूं कसे हुये थी जैसे वो किसी शिकंजे में फंसा हुआ था. अब जरूरत इस बात की थी कि उसकी चूत खूब रसीली हो उठे ताकि लंड उसमें सरपट आगे पीछे दौड़ सके.
अतः मैंने उसकी दाईं वाली चूची अपने मुंह में भर ली और उसे चुभलाने लगा और बाईं वाले मम्मे को दबाने मसलने लगा; साथ ही साथ उसके निचले होंठ को भी चूस रहा था.

इन सब का फ़ौरन असर हुआ और उसकी बुर फिर से पनिया गई और मेरे लंड को लगा कि चूत की गिरफ्त कुछ ढीली हुई है. अब मैंने लंड को थोड़ा सा बैक लिया और फिर से आगे पेल दिया ऐसे तीन चार बार करने से रास्ता काफी आसान हो गया.
स्नेहा ने भी एक गहरी सांस ली और अपनी कमर उछाल कर लंड को जवाब दिया. यह मेरे लिए ग्रीन सिग्नल था, मैंने अपने घुटनों को ठीक से जमाया और उसकी चूत को ठोकना शुरू किया.

जल्दी ही उसकी चूत उछल उछल कर मेरे लंड का का अभिवादन करने लगी.
‘अंकल, मज़ा आ गया. और दम से पेलो!’
‘ये लो मेरी स्नेहा, मेरी जान …ये ले तेरी चूत में मेरा लंड!’
‘हाय अंकल राजा… मस्त मस्त फीलिंग्स आ रहीं हैं. चोद डालो, खोद डालो मेरी बुर को अच्छी तरह से बहुत सताया है इसने मुझे!’

मैं भी पूरे तैश में था, मुझे भी झड़ जाने की जल्दी थी तो मैंने उसकी चूत में लंड से चक्की चलानी शुरू की, पहले क्लॉक वाइज फिर एंटी क्लॉक वाइज… फिर आड़े तिरछे शॉट्स मारे…
‘अंकल..लल्ल… हाँ ऐसे ही; कुचल डालो इसे… फ़क मी वाइल्डली नाउ… फाड़ डालो. ऍम योर व्होर नाउ… ट्रीट मी लाइक अ बिच… या वंडरफुल… गिम्मी मोर… हाँ..’ ऐसे ही कितनी देर तक वो मस्ती में आ के चहकती रही और लंड लीलती रही.

अब मैं अपनी झांटों से चूत का दाना दबा दबा के घिसने लगा. अपने क्लाइटोरिस पर इस तरह लंड की रगड़ उसे बर्दाश्त नहीं हुई और वो एकदम से डिस्चार्ज हो गई, झड़ने लगी. मुझसे कसके लिपट गई और अपनी टाँगें मेरी कमर में लॉक कर दीं.
मुझे लगा कि जैसे उसकी चूत से रस की बरसात हुई हो, मेरी झांटें तक नहा गईं.

मैंने भी अंतिम कुछ शॉट्स खेले और और फिर मैं भी झड गया, उसकी चूत अपने वीर्य की पिचकारियों से लबालब भर दी. उसकी चूत भी रह रह के मेरे लंड को जकड़ती रही. कभी उसकी चूत का कसाव ढीला पड़ता कभी फिर से कस लेती लंड को; इस तरह उसकी चूत ने मेरे लंड से वीर्य की एक एक बूँद निचोड़ ली.

अच्छे से स्खलित होने के बाद स्नेहा के भुज बंधन, उसका बाहूपाश ढीला पड़ गया और वो शिथिल होकर रह गई.
मैं भी गहरी गहरी साँसें लेता उसके स्तनों में मुंह छुपाये पड़ा रहा.

‘अंकल जी अब तो मेरे मुहाँसे पक्का ठीक हो जायेंगे ना?’ उसने जैसे मुझे चुदने के बाद उलाहना सा दिया.
‘हाँ मेरी जान पक्का. बस जब तक तेरे मम्मी पापा नहीं लौटते ऐसे ही चुदवाती रहना मुझसे!’
‘ओके अंकल जी. अब तो मैं आपकी हो ही गई हूँ जैसे चाहो करो मेरे साथ!’

हम लोग ऐसे ही बातें कर रहे थे कि उसकी चूत सिकुड़ गई और मेरे लंड बाहर निकल गया. साथ ही उसकी चूत से मेरा वीर्य और उसके रज का मिश्रण बह निकला.
‘गुड़िया बेटा, अपनी चूत पोंछ लो और मेरा लंड भी पौंछ दे टॉवल से. फिर मैं जाता हूँ.’

मेरे कहने पर उसने नेपकिन लाकर खुद को और मुझे साफ़ किया. मैंने कपड़े पहन लिए. साढ़े पांच बजने वाले थे, मैं वापिस जाने के लिए चल दिया.
स्नेहा मुझे दरवाजे तक छोड़ने आई और फिर मेरे गले में बाहें पिरो को मुझे एक लम्बा सा चुम्बन दिया होंठों पर… मैंने भी उसका निचला होंठ ले लिया अपने मुंह में, फिर उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में दे दी इस तरह तीन चार मिनट तक चूमा चाटी चलती रही.

‘अंकल जी कल जरूर जरूर आना. मैं इंतज़ार करूंगी.’
‘ओके मेरी जान!’ मैंने उसके दूध पकड़ कर उससे फिर से आने का वादा किया और सावधानी से बाहर निकल गया.

तो मित्रो, स्नेहा और मेरी कहानी कुछ इस तरह से थी अब तक जो आपने पढ़ी.

उस दिन के बाद मैं रोज स्नेहा के घर चोरी छिपे जाता रहा जब तक उसके मम्मी पापा नहीं आ गये. इस दौरान मैंने उसे अलग अलग तरह के आसनों में चोदा और उसे लंड चूसना भी सिखाया. शुरू में तो उसने ना ना की लेकिन मैंने प्यार से लंड पर उसी के हाथों शहद लगवाया फिर उसे लंड से शहद चटवाया; इस तरह उसकी लंड मुंह में लेने की झिझक मैंने दूर की.

अब तो वो चुदाई में सिद्धहस्त और पारंगत हो चुकी है, चूत को कैसे अधिकतम मज़ा मिले ये सब गुण आ गये हैं उसमें; लंड भी अब मजे से बेझिझक चाटती चूसती है.

हाँ, उसके मम्मी पापा के आने के बाद हमारा मिलना मुश्किल हो गया. हालांकि वो जिद करती थी कि शहर से कहीं दूर ले जा के चोदो मुझे. उसे चुदाई की लत लग चुकी थी. लेकिन मुझे अपने से ज्यादा उसकी इज्जत की फिकर रहती थी हमेशा… लड़की जात एक बार बदनाम हुई तो मुश्किल हो जायेगी जिंदगी.
फिर भी डरते डरते कई बार उसे कोचिंग के टाइम बाइक पर बैठा कर दूर जंगल में ले जा के या पास में बांध की तलहटी में चोद कर उसकी प्यास बुझाई भी!

इसके लिए मैंने उसे टिप्स दीं थी कि वो सिर्फ सलवार कुर्ता पहन के आयेगी और इनके नीचे ब्रा या पेंटी नहीं पहनेगी साथ में मैंने उसे ये भी सिखाया कि चूत के सामने जो सलवार का हिस्सा होता है वो वहाँ की सिलाई उधेड़ दे जिससे बिना कपड़े उतारे उसकी चूत में मैं लंड पेल सकूं.

मैंने अपने लिए भी एक ड्रेस कोड बनाया था; मैं भी टीशर्ट और बरमूडा पहन के उसे चोदने जाता था, चड्डी बनियान मैं भी नहीं पहिनता था और मेरे बरमूडा में इलास्टिक थी, झट से नीचे खिसकाया और जरूरत पड़ने पर फट से ऊपर… ना नाड़ा बाँधने का झंझट ना कोई और अवरोध!

इसी तरह हमने बहुतों बार चुदाई की, जहाँ भी सुनसान जगह मिलती, वो मेरी बाइक पकड़ कर झुक जाती या किसी पेड़ का सहारा लेकर एक पैर उठा कर मेरे कंधे पर रख लेती और मैं सलवार के छेद में से उसकी चूत में लंड घुसा के चुदाई करने लगता.
इस तरह से चुदना उसे भी पसन्द आया क्योंकि इसमें कम से कम रिस्क था; अचानक कोई आ भी जाए तो हम कुछ ही सेकंड्स में नार्मल दिख सकते थे.

हाँ, एक बात तो बताना ही भूल गया. इस तरह की कई कई बार की चुदाई से स्नेहा के मुहाँसे बिल्कुल से गायब हो गये जैसे कभी थे ही नहीं और उसका रूप रंग और भी निखर गया. इससे स्नेहा बहुत खुश थी और मेरा अहसान भी मानने लगी थी.

जिंदगी इसी तरह चलती रही. इसी बीच उसके एग्जाम्स हो गये रिजल्ट भी आ गया और वो फर्स्ट डिवीज़न में पास भी हो गई.
आगे की पढ़ाई के लिए उसके घर वालों ने उसे पास के शहर भोपाल भेज दिया क्योंकि यहाँ ललितपुर में उसकी पसन्द का कोई भी कॉलेज नहीं था.
भोपाल में उसके पापा ने उनकी जान पहचान के एक जैन परिवार में उसे किराए का कमरा दिला दिया और वो वहीं रह कर अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने लगी.

मित्रो, आगे की कहानी भी बहुत मस्त लगेगी आपको कि कैसे स्नेहा ने मुझे कसम दे दे के भोपाल बुलाया और खुद भी चुदी और किसी और को भी मुझसे चुदवाया.

कहानी का यह अगला भाग अभी सिर्फ मेरी स्मृति में हैं इसे लिखना शेष है. प्रयास करूंगा कि जल्दी ही समय निकाल कर इसे भी लिख कर यहाँ अन्तर्वासना पर उपलब्ध करा सकूं!

यह कहानी यही समाप्त होती है. हाँ आप सब अपने अपने विचार मुझे नीचे लिखे ई मेल पर अवश्य भेजें ताकि मैं आप सब की रूचि के अनुरूप इस गर्ल सेक्स स्टोरी का अगला भाग प्रस्तुत कर सकूं. धन्यवाद.
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