एक उपहार ऐसा भी- 13

(Ek Uphar Aisa Bhi- Part 13)

संदीप साहू 2020-06-04 Comments

This story is part of a series:

हैलो … आपने मेरी इस लम्बी सेक्स कहानी के पिछले भाग में पढ़ा था कि पायल मेरी कामुक नजरों को भांप कर मुझसे खेलने लगी थी.

हम लोग एयरपोर्ट आए थे इधर से दो मेहमान प्रतिभा और सुमन को ले जाना था. प्लेन आने में कुछ देर थी, तो मैं और पायल बात कर रहे थे.

अब आगे:

मैंने कहा- ऐसा क्या देख लिया मेरी आंखों में, जो इतना शरमा गई?
उसने कहा- अब और मत छेड़ो, आपकी आंखें नशीली हैं, मुझे मदहोश कर रही हैं. मेरी तारीफ-वारीफ कुछ नहीं है आपकी आंखों में … आप झूठे हो.
मैंने कहा- यार भला तुम्हारी सुराही जैसी गर्दन को, नाजुक फूल जैसे बदन को, दूध जैसी गोरी दमकती रंगत को, लचकती बलखाती कमर को, अप्सरा जैसी सुंदरता को, महकती सांसों को उड़ते रेश्मी गेसुओं को, गुलाब की पंखुड़ियों से लबों को, हिरणी जैसी आंखों को, कटार की भांति काजल लगीं धारदार पलकों को, लुभाते लालिम कपोलों को … किसी की प्रशंसा की कोई जरूरत भी है?

वो मेरी तरफ मुँह बाए देख रही थी.

मैं अपनी रौ में कहता चला गया- या मचलती जवानी से भरे उमड़ते हुस्न को, तुम्हारी कातिल अदाओं को, बिजली गिराती निगाहों को, गर्व से फूले सीने को, या पेंडल को जकड़ी घाटियों को.

मेरी बात को काटते हुए पायल ने कहा- बस … बस. अब और आगे नहीं!
मैंने भी कहा- अब एक साहित्यकार को छेड़ा है, तो सुनना तो पड़ेगा ही!
उसने कहा- साहित्यकार हो … ये जान कर ही तो आपको प्रशंसा के लिए कहा.

ये कहते हुए पायल ने शरमा कर सर झुका लिया.

मैंने फिर कहा- सुंदर पीले वस्त्रों में लिपटी नवयौवना के मुखमंडल पर लज्जा की आभा, दमकते सौंदर्य कामातुर दशा रूप लावण्य और जवानी पर इतराते सावन जैसी चंचलता के आगे मैं खुद भी निशब्द हूँ.

उसने सर उठा कर मेरी ओर देखा, उसकी आंखों में नमी थी. पर उसने सागर छलकने से रोक लिया. उसकी नजरें मेरी प्रशंसा के लिए आभार व्यक्त कर रही थीं. और शायद हमारे बीच प्रगाढ़ संबंध की सहमति मांग रही थीं.

मैं भी शांत भाव से उसे देखता रहा, जैसे मैं उसे मौन स्वीकृति प्रदान कर रहा होऊं.

फिर हम दोनों ने नजरें हटा लीं और सर झुका कर स्थिर निगाहों से पृथ्वी को देखते हुए अस्थिर अंतर्मन को संयत करने का प्रयत्न करने लगे.

सर झुकाये हुए पायल क्या सोच रही थी, ये मैं नहीं जानता था. पर मैं सोच रहा था कि मैं किस-किस से दिल लगाऊं, प्रेम का दायरा क्या है?
फिर मन में ख्याल आया कि जो हद में हो, वो प्रेम कहां हुआ!

मैंने सोचा कि अगर आपके अन्दर बहुत सारा प्यार भरा है और आप बहुत से लोगों का प्रेम संभाल सकते हो, तो आगे बढ़ जाना चाहिए. हां किसी को छलना गलत है. पर पायल तो सब कुछ जानकर इस खेल में कूद रही थी.

फिर मैं सोचने लगा कि हो सकता है पायल मुझसे सिर्फ जिस्मानी संबंध बनाना चाहती हो और मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा होऊं. फिर मेरे जेहन में खुशी का ख्याल भी उमड़ आया.
और मैंने निश्चय किया कि पायल अगर प्रेम की बात करेगी, तो उसे समझा कर मना कर दूंगा. और अगर शारीरिक संबंध के लिए कहेगी, तो उसकी चाहत पूरी कर दूंगा.

पायल अब भी शांत बैठी थी. मैं इन्हीं सब उधेड़बुन में डूबा रहा उसी को सोच रहा था. तभी वहां चहल पहल बढ़ गयी. जिससे पायल थोड़ी हड़बड़ा गई, क्योंकि वो भूल ही गई थी कि हम किस काम से आए हैं.

फिर वो तेजी से भागते हुए बोली- जल्दी चलो … वो लोग आ ही रहे होंगे.

पायल और मैं तेजी से चल रहे थे, वहां बहुत सारे लोग बाहर आ रहे थे. उन्हीं के बीच दो अप्सराएं नजर आईं. और पायल ने हाथ लहरा कर उन्हें अपनी मौजूदगी का संकेत दिया.

शायद पायल उन लोगों से पूर्व परिचित थी, इसलिए उन लोगों ने भी पायल को पहचान लिया था.

समीप आकर दोनों अप्सराओं ने हाथ बढ़ाकर परिचय देने से पहले ही कहा- वाहह, तुम तो उम्मीद से ज्यादा हैंडसम हो.

काले रंग की साड़ी और उड़ते गेसुओं वाली अप्सरा ने अपना नाम प्रतिभा दास बताया. उसके गोरे मुखड़े पर स्टाइलिश चश्मा था.
और दूसरी अप्सरा फटी हुई डिजाइन की जींस और ढीली शर्ट में थी, उसने अपना नाम सुमन बताया.

वैसे तो उन्होंने मुझे पहचान लिया था, फिर भी मैंने अपना परिचय दिया- मैं संदीप … संदीप साहू.
उन्होंने मेरे परिचय देने पर एक विशेष मुस्कान बिखेरी. ऐसा होना ही था, आखिर वो अपने पसंदीदा राइटर से जो मिल रही थीं.

दोनों ने कुछ ही पल में मेरी लेखनी की जम कर तारीफ़ करते हुए कहा- आप लेखन में तो माहिर हैं ही, आदमी भी बहुत अच्छे हैं. आपकी लेखनी जब चलती है, तो उसमें से सम्मोहन की तरंगें निकलती हैं और लोग खिंचे चले आते हैं.

मैंने मजाकिया अंदाज में कहा- ऐसा नहीं है, यहां तो लेखक ही पाठकों के बीच खिंचा चला आया है.
प्रतिभा कुछ कहने वाली थी. तभी पायल ने बीच में ही कहा- कैसा लेखन करते हैं संदीप जी? जरा हमें भी तो कुछ पढ़वाइएगा!
तो प्रतिभा ने बात संभाल ली- वो बाद में तुम संदीप से अकेले में पूछ लेना, सोशल सब्जेक्ट पर ये काफी अच्छा लिखते हैं.

शायद पायल कुछ और ना पूछ ले, इस डर से प्रतिभा उसे थोड़ा हटाकर दूसरी बात करने लगी.

सुमन और प्रतिभा में, मुझे प्रतिभा हर लिहाज से सुमन से अच्छी लग रही थी. चश्मे के कारण उसकी आंखों से कुछ पढ़ पाना, तो मुश्किल था, पर प्रतिभा ने हाथ मिलाते वक्त अलग अंदाज से हाथ दबाकर ये बता दिया था कि आज सेब खुद चाकू पर गिरने वाला है.

पायल ने गाड़ी को पास लाने कह दिया था और तब तक मुझे छोड़ कर वो तीनों औपचारिक वार्तालाप में लग गयी.
पर मैं तो खूबसूरती निहारने के लिए स्वतंत्र था, सो मेरी आंखों ने प्रतिभा को चोदना शुरू कर दिया था.

मैंने देखा कि प्रतिभा की साड़ी भी प्राची भाभी की तरह ही नाभि के नीचे बंधी थी. उसका छरहरा बदन काली साड़ी में लिपटकर बलखाती नागिन की भांति प्रतीत हो रहा था.

प्रतिभा का चेहरा गोल … किंतु ठोड़ी नोकदार थी. वो बंगाली बाला थी.

अब तो आप समझ ही गए होंगे कि वक्ष नोकदार ही था और नितम्ब भी काफी उभरा हुआ था. पेट की जगह बिल्कुल अन्दर धंसी हुई थी. मांग में सिंदूर छोटा सा ही था, पर वो रंगी हुई मांग प्रतिभा के शादीशुदा होने का परिचय दे रही थी.

कानों की बड़ी बालियां गजब की लग रही थीं. उसके गले में खूबसूरत सा मंगलसूत्र था. गालों की लालिम आभा ऐसे लग रही थी मानो उसकी काली साड़ी के लाल पल्लू और बार्डर से मुकाबला करना चाह रही हो.

प्रतिभा का अंग अंग सुंदर लाजवाब नजर आ रहा था और जब मैंने उसकी काया के अन्दर उसके हृदय में झांकने का प्रयास किया, तब मुझे कामातुर स्त्री का व्याकुल रूप नजर आया.

प्रतिभा के हाथों में महंगी घड़ी थी, सच कहो, तो आजकल घड़ी शब्द से लोगों को परहेज होने लगा है. फिर भी प्रतिभा स्टाइलिश वॉच पहने हुए थी, जो स्पोर्ट वॉच लग रही थी. वैसे प्रतिभा का शरीर ही बता रहा था कि वो एक्सरसाईज करके अपने आप को फिट रखती है.

प्रतिभा ने फुल स्लीव का ब्लाउज पहन रखा था. पर उसका गला इतना खुला था कि घाटियों को स्पष्ट उजागर कर रहा था. पीछे पीठ की हालत भी वही थी. खुली पीठ चौकोर खुले गले में स्कूल के सफ़ेद बोर्ड की भांति नजर आ रही थी, जिस पर मैं अपनी उंगलियों से अपने प्रेम को उकेरने के लिए बेचैन हो उठा था.

प्रतिभा का रंग साफ था, लेकिन सफेदी नहीं थी. गेंहुए गोरेपन की धनी प्रतिभा का जिस्म बता रहा था कि उसे छूने पर चिकनाई का ऐसा अहसास होगा, जैसा कि मक्खन को छूने पर होता है. उसकी उंचाई भी प्राची भाभी जितनी ही थी, मतलब वो 5′ 3″ की रही होगी.

मैंने तो प्रतिभा की ब्रा पेंटी का माप भी ले लेना चाहा, पर अभी मैं सिर्फ अंदाजा ही लगा सकता था. मैंने 32 डी कप ब्रा होने का और 32 साइज की ही पेंटी होने का अनुमान लगाया था. मन ही मन ब्रा पेंटी के शरीर में धंसे होने का भी अनुमान लगा लिया और कपड़ों को ज्यादा गौर से निहार कर अपनी शंका की पुष्टि कर ली.

किसी का सौंदर्य इतना मनमोहक भी हो सकता है? शायद मैं प्रतिभा से ना मिलता, तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर पाता.

वहीं दूसरी ओर सुमन बहुत गोरी थी, पर उसकी चिकनाई रहित त्वचा रूखी लग रही थी. सुमन का शरीर भारी था और हाइट में कम होने की वजह से वो बहुत मोटी लग रही थी. सुमन कंधे से लेकर कूल्हे तक एक तरह की नाप में गोल-मटोल नजर आ रही थी.

शायद सुमन शरीर के प्रति बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती थी, उसकी ब्रा पेंटी की साईज 38 या 40 की रही होगी. वैसे सुमन भी गोल चेहरे की सुंदर महिला थी और देखकर कोई भी उसको खूबसूरत ही कहेगा, पर मैं ठहरा चुदक्कड़ आदमी, इसलिए मैंने जो व्याख्या की है, वो सेक्स आनन्द के आधार पर की.

हमारी गाड़ी सामने आकर खड़ी हुई और मेरी तंद्रा टूट गई.

एक तरफ कमसिन चंचल टीनएज पायल थी, दूसरी तरफ परफैक्ट प्रतिभा और तीसरी ओर बाहुबली सुमन … अब गाड़ी में कौन कहां बैठगा, ये पायल को तय करना था. पर मैंने पहले ही सामने सीट का दरवाजा खोल लिया.

लेकिन सुमन ने भी लपक कर कहा- मुझे सामने बैठने दीजिए, पीछे बैठने से मेरा सर घूमता है.

मैंने उसे बैठने दिया, अब गाड़ी की पिछली सीट पर एक ओर का दरवाजा पायल ने खोला, तो दूसरी ओर का प्रतिभा ने.

दरवाजा खोलकर दोनों ने ही पहले मुझे बैठने को कहा- मतलब मैं चाहे जिधर से भी बैठूं, बैठना तो मुझे बीच में ही था. मैं बैठ गया. मेरे दाईं ओर प्रतिभा और बाईं ओर पायल बैठ गई.

तीन लोग एक साथ बैठे थे, तो जाहिर है हम बहुत नजदीक बैठे थे … या कहिए कि हम चिपक कर बैठे थे. अब पायल और प्रतिभा आपस में बात करने के लिए एक दूसरे की ओर झुकते थे, तो दोनों के चेहरे मेरे सामने आ जाते थे.

दो खूबसूरत चेहरे और उनके नाजुक होंठ जिन पर खास महंगी लिपस्टिक लगी हो, मेरे सामने आकर मुझे लालच दे रहे थे.

मेरे मोटे से लंड देव तो कब का सलामी देना भी शुरू कर चुके थे. बातों बातों में ही दोनों मेरे पैर पर अपना हाथ भी रख रहे थे … और मौका देखकर दबा भी रहे थे.

तभी प्रतिभा का मोबाइल बज उठा.
प्रतिभा ने मोबाइल निकाल कर कॉल अटैंड करते हुए कहा- हां वैभव, हम पहुंच गए.

वो बात करते हुए शीशे से बाहर देखने लगी. पायल भी प्रतिभा की ही तरह अपनी ओर के शीशे से बाहर देखने लगी.

उसी पल पायल की नजर बाहर देख कर प्रतिभा ने मौका अच्छा जानकर मेरी जंघा पर हाथ फेरना शुरू कर दिया. प्रतिभा इतनी एडवांस होगी, मैं सोच भी नहीं सकता था. उसकी हरकत मुझे गर्म कर रही थी, पर पायल का डर मन को बेचैन कर रहा था. क्योंकि मैं खुलकर उसके सामने नहीं आना चाहता था. मुझे लग रहा था कि पायल को हमारी इन हरकतों से तकलीफ पहुंचेगी.

मैंने प्रतिभा के हाथों की हरकत रोक दी … उसने भी मेरा इशारा जान कर खुद को रोक लिया. अब तक उसकी फोन वार्ता भी समाप्त हो चुकी थी.

अब मैंने पायल से कहा- पायल, मुझे वैभव के पास छोड़ दो, मैं वहां से मिलकर आ जाऊंगा.
पायल ने कहा- ठीक है, पर तुम हल्दी रस्म तक आ ही जाना.

प्रतिभा की एक हरकत ने ये तय कर दिया था कि उसे अपनी चुत में मेरा लंड जल्दी ही चाहिए था. जबकि सुमन की तरफ से ऐसा कोई संकेत अभी नहीं मिला था. मैं भी सुमन की तरफ कुछ विशेष आकर्षित नहीं हुआ था. बस मिल जाएगी तो उसे भी चोद दूंगा, टाइप के विचार मन में आ गए थे.

आगे किस तरह से प्रतिभा के साथ जोड़ी जमेगी. पायल की चुत भी चुनचुनाती हुई लग रही थी. इस सबका खुलासा मैं आने वाली कड़ियों में बारी बारी से बताता जाऊंगा.

आप अपने मेल जरूर भेजिएगा.
[email protected]
कहानी जारी है.

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