चूत एक पहेली -7

(Chut Ek Paheli-7)

पिंकी सेन 2015-09-28 Comments

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अब तक आपने पढ़ा..

मुनिया थोड़ा शर्मा रही थी.. मगर उसने ‘हाँ’ में सर हिला दिया।
पुनीत- गुड.. अब सुन.. तुझे ज़्यादा मज़ा लेना है.. तो उस वीडियो की तरह अपने कपड़े निकाल दे.. फिर देख कितना मज़ा आता है।
मुनिया- ना बाबूजी.. मुझे शर्म आती है।
पुनीत- अरे पगली.. शर्म कैसी.. देख मैं भी तो नंगा हूँ और मैं बस तुझे सिखा रहा हूँ.. तू डर मत..
मुनिया- बाबूजी मैं जानती हूँ.. जब लड़की नंगी हो जाती है.. तो लड़का उसके साथ क्या करता है.. मगर मुझे ऐसा-वैसा कुछ नहीं करना।

अब आगे..

दोस्तो, मुनिया गाँव की थी.. सेक्स के बारे में शायद ज़्यादा ना जानती हो.. मगर कुछ ना जानती हो.. ऐसा होना मुमकिन नहीं..
अब देखो इशारे में उसने पुनीत को बता दिया कि वो सेक्स नहीं करेगी।

पुनीत- अरे तू क्या बोल रही है.. क्या ऐसा-वैसा तूने किसी के साथ पहले किया है क्या.. या किसी को देखा है..? बता मुझे.. तुझे किसने बताया ये सब?
मुनिया- ना ना.. मैंने कुछ नहीं किया.. वो बस एक बार हमारे पड़ोस में भाईजी को देखा था.. तब से पता है कि ये क्या होता है।
पुनीत- अरे क्या देखा था.. ज़रा ठीक से बता मुझे?

मुनिया- वो बाबूजी.. एक बार रात को मुझे जोरों से पेशाब लगी.. तो मैं घर के पीछे करने गई और जब मैं वापस आ रही थी.. तो हमारे पास में भैया जी का कमरा है.. वहाँ से कुछ आवाज़ आ रही थीं। मैंने सोचा इतनी रात को भाभी जी जाग रही हैं. सब ठीक तो है ना.. बस यही देखने चली गई और जब मैं नज़दीक गई.. तब देख कर हैरान हो गई।
पुनीत- क्यों ऐसा क्या देख लिया तूने?

मुनिया- व..व..वो दोनों.. नंगे थे.. और भैयाज़ी अपना ‘वो’ भाभी के नीचे घुसा रहे थे।
इतना बोलकर मुनिया ने अपना चेहरा घुमा लिया.. जो शर्म से लाल हो गया था।
पुनीत- अरे ठीक से बता ना.. क्या घुसा रहे थे.. और कहाँ घुसा रहे थे.. प्लीज़ यार बता ना?
मुनिया- मुझे नहीं पता.. मैं बस देखी और वहाँ से भाग गई।

पुनीत- बस इतना ही.. तो तेरे को इतना सा देख कर पता चल गया.. हाँ..
मुनिया- नहीं बाबूजी.. मैंने ये बात सुबह मेरी सहेली को बताई.. जिसकी कुछ दिन पहले शादी हुई है.. तब उसने मुझे बताया कि ये सब पति और पत्नी के बीच चलता है.. और फिर उसने मुझे सब बताया।

पुनीत- ओये होये.. मेरी मुनिया.. मैं तो तुझे भोली समझा था.. तू तो सब जानती है.. चल अच्छा है ना.. मुझे तुमको ज़्यादा समझाना नहीं पड़ेगा। अब चल देर मत कर.. निकाल अपने कपड़े मुझे तेरा जिस्म देखना है।

मुनिया- नहीं नहीं बाबूजी.. मैंने कहा ना.. मुझे वो नहीं करना.. आप उसके अलावा जो सेवा कहो.. मैं कर दूँगी। मगर वो काम नहीं..
पुनीत- अरे क्या.. तू ये और वो.. कह रही है.. साफ बोल कि चुदाई नहीं करूँगी.. तो मेरे को कौन सा तुझे चोदना है.. बस मेरी मालिश करवाने लाया हूँ। अब तुझे पैसे नहीं कमाने क्या.. जिंदगी भर ऐसे ही रहोगी क्या?

मुनिया- सच बाबूजी.. आप मेरे साथ वो नहीं करोगे ना.. तब तो आप जो कहो मैं कर दूँगी।
पुनीत- अरे वाह.. मेरी जान यह हुई ना बात.. चल अब जल्दी से कपड़े निकाल.. मैं बस तेरे जिस्म को देखूँगा। उसके बाद तू मेरे लौड़े को चूस कर इसका दर्द मिटा देना।
मुनिया- बाबूजी पहले आप आँखें बन्द करो ना.. मुझे शर्म आ रही है।

पुनीत ने उसकी बात मान ली और आँखें बन्द कर लीं और मुनिया ने अपने कपड़े निकाल दिए। पहले उसने सोचा ब्रा रहने दें.. मगर ना जाने क्या सोच कर उसने वो भी निकाल दी। अब वो एक कोने में खड़ी अपनी टाँगों को भींच कर चूत को छुपाने लगी थी और हाथों से अपने चूचे छुपा रही थी।

पुनीत- अरे क्या हुआ जान.. अब आँख खोल लूँ क्या.. बोलो ना?
मुनिया- हाँ बाबूजी.. खोल लो..

जब पुनीत ने आँखें खोलीं.. तो उसके सामने एक कच्ची कन्या.. अपनी जवानी का खजाना छुपाए हुए खड़ी थी.. जिसे देख कर उसका लौड़ा फुंफकारने लगा।
वो बस देखता ही रह गया।

पुनीत- अरे ये क्या है.. तुमने तो सब कुछ छुपा रखा है यार.. ऐसे कैसे चलेगा.. अब यहाँ आओ और सुनो हाथ ऊपर करके धीरे-धीरे आना, तुम्हें तेरी माँ की कसम है।

मुनिया- हाय बाबूजी.. आपने माई की कसम क्यों दे दी.. मैं अब क्या करूँ.. मुझे बहुत शर्म आ रही है और माई की कसम भी नहीं तोड़ सकती!

पुनीत- ठीक है.. अब ज़्यादा सोचो मत.. बस मैंने जैसे बताया.. वैसे आओ आराम-आराम से..

मुनिया ने दोनों हाथ ऊपर कर लिए। अब उसके 30″ के मम्मे आज़ाद थे.. जो एकदम गोल-गोल और उन पर हल्के गुलाबी रंग की बटन.. यानि कि उसके छोटे से निप्पल.. सफेद संगमरमरी जिस्म पर वो गुलाबी निप्पल कुदरत की अनोखी कारीगिरी की मिसाल दे रहे थे।

मुनिया धीरे से आगे बढ़ रही थी और पुनीत भी बड़े आराम से ऊपर से नीचे अपनी नज़र दौड़ा रहा था। अब उसकी नज़र मुनिया के पेट से होती हुई उसकी जाँघों के बीच एक लकीर पर गई.. यानि उसकी चूत की फाँक पर गई.. जो ऐसे चिपकी हुई थी.. जैसे फेविकोल से चिपकी हुई हो और चूत के आस-पास हल्के भूरे रंग के रोंए उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे। उसकी मादक चाल से पुनीत का लौड़ा झटके खाने लगा।

पुनीत की नज़र से जब मुनिया की नज़र मिली.. तो वो शर्मा गई और तेज़ी से भाग कर पुनीत के पास आ गई।

पुनीत ने उसे अपने आगोश में ले लिया और उसके नर्म पतले होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वो बस मुनिया के होंठों को चूसने लग गया। उसके मस्त चूचों को मसलने लगा।

इस अचानक हमले से मुनिया थोड़ी घबरा गई और उसने पुनीत को धकेल कर एक तरफ़ कर दिया और खुद जल्दी से खड़ी हो गई।
पुनीत- अरे क्या हुआ मुनिया.. खड़ी क्यों हो गई तुम?
मुनिया- नहीं बाबूजी.. ये गलत है.. मुझे ये सब नहीं करना..

पुनीत- अरे मुझ पर भरोसा रख.. मैं बस तुम्हें प्यार करूँगा और कुछ नहीं.. तुझे वो मज़ा दूँगा.. उसके बाद तू मुझे मज़ा देना बस..
मुनिया नादान थी और इस उम्र में किसी को भी बहला लेना आसान होता है। खास कर पुनीत जैसे ठरकी पैसे वाले लड़के के लिए मुनिया जैसी लड़की को पटाना कोई बड़ी बात नहीं थी।

मुनिया खुश हो गई और बिस्तर पर बैठ गई। उसकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी थी। वो बस पुनीत के लौड़े को निहार रही थी। अब उसका इरादा क्या था.. ये तो वही बेहतर जानती थी।

पुनीत- देख मुनिया.. मैं तुझे एक अलग किस्म की मालिश करना सिखाता हूँ.. जो हाथों और होंठ से होगी। तो सीधी लेट जा.. मैं तेरे जिस्म को मालिश करता हूँ। उसके बाद तू मेरे को वैसे ही करना.. ठीक है..!

मुनिया ने ‘हाँ’ में सर हिला दिया। बस अब क्या था.. पुनीत उस कच्ची कन्या पर टूट पड़ा। उसके नर्म होंठों को चूसने लगा। उसके छोटे-छोटे अनारों को दबाने लगा। कभी वो उसके छोटे से एक निप्पल को चूसता.. तो कभी हल्का सा काट लेता।
मुनिया- आह.. इससस्स.. बाबूजी.. आह्ह.. दुःखता है.. आह्ह.. कककक.. नहीं.. उफ़फ्फ़.. आह्ह..

पुनीत तो वासना में बह गया था। उसको तो बस उस कच्ची चूचियों में जैसे अमृत मिल रहा हो। वो लगातार उनको चूसे जा रहा था और उसका लौड़ा लोहे की रॉड की तरह कड़क हो गया था। मगर पुनीत जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। वो मुनिया को इतना तड़पाना चाहता था कि वो खुद कहे कि आओ मेरी चूत में लौड़ा घुसा दो.. तभी उसके बाद वो उसकी नादान जवानी के मज़े लूटेगा।

पुनीत अब चूचों से नीचे उसके गोरे पेट पर अपनी जीभ घुमा रहा था और मुनिया किसी साँप की तरह अपनी कमर को इधर-उधर कर रही थी।
उसको मज़ा तो बहुत आ रहा था। मगर थोड़ा सा डर भी लग रहा था कि कहीं पुनीत उसकी चुदाई ना कर दे। मगर बेचारी वो कहाँ जानती थी कि इस सबके बाद चुदाई ही होगी।

पुनीत के होंठ अब मुनिया की चंचल चूत पर आ गए थे.. जिसकी खुशबू उसको पागल बना रही थी। वो बस चूत को किस करने लगा।

मुनिया- ककककक आह.. बाबूजी आह्ह.. मेरे बदन में आ..आग सी लग रही है.. आह्ह.. न्णकन्न्..नहीं आह्ह.. यहाँ नहीं.. उफ़फ्फ़..
पुनीत- इसस्सश.. सस्स्सह.. चुपचाप मज़ा लो मेरी जान.. अभी देख तेरा कामरस आएगा उफ्फ.. क्या गर्म चूत है तेरी.. मज़ा आएगा चाटने में..

पुनीत चूत की फाँक को उंगली से खोलने लगा। वाह..अन्दर से क्या गुलाबी नजारा सामने था.. वो बस उसको चाटने लगा और मुनिया तड़प उठी।
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पुनीत चूत के दाने पर अपनी जीभ घुमा रहा था और मुनिया सिसक रही थी। उसका तो बुरा हाल हो गया था.. किसी भी पल उसकी चूत बह सकती थी। उसने अपनी कमर को हवा में उठा लिया.. तो पुनीत ने उसकी गाण्ड के नीचे हाथ लगा दिया और कुत्ते की तरह स्पीड से उसकी चूत को चाटने लगा।

मुनिया- आआ आआ बा..बू..जी.. आह्ह.. इसस्स.. मुझे कुछ हो रहा है ओह.. हट जाओ वहाँ से.. आह्ह.. ससस्स उफ़फ्फ़ मेरा आह्ह.. निकलने ही वाला है।

पुनीत ने आँखों से इशारा किया कि आने दो.. और दोबारा वो चूत को रसमलाई की तरह चाटने लगा। कुछ ही देर में मुनिया झड़ गई। अब वो शांत हो गई थी.. मगर उसकी साँसें तेज-तेज चल रही थीं।

इधर पुनीत के लौड़े में दर्द होने लगा था क्योंकि वो बहुत टाइट हो गया था और वीर्य की कुछ बूँदें उसके सुपारे पर झलक रही थी। अब बस उसको किसी भी तरह चूत में जाना था.. मगर ये सफ़र इतना आसान नहीं था। एक कच्ची चूत को फाड़कर लौड़े को चूत की गहराई में उतारना इतना आसान नहीं होगा.. ये बात पुनीत जानता था।

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