प्रशंसिका ने दिल खोल कर चूत चुदवाई-2

(Prashansika Ne Dil Khol Kar Chut Chudwayi- Part 2)

This story is part of a series:

मैंने अपना लैपटॉप बन्द किया और नीचे उतर कर उसकी जांघ पर हाथ रखा और उसके गाल को चूमते हुए बोला- क्या दिखाओगी?
उसने भी अपना लैपटॉप बन्द किया और मेरे साथ टॉयलेट की ओर चल दी।
आगे आगे मैं था और वो पीछे आ रही थी।

टॉयलेट पहुँचने पर वो थोड़ा झिझकी, मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला- सोचो मत, जब कोई आयेगा तो मैं हट जाऊँगा और तुम तुरन्त ही दरवाजा बंद कर लेना।
उसने फिर एक बार मेरी तरफ देखा और फिर कुछ सोची और टॉयलेट के अन्दर चली गई।

रचना के चूतड़ भी काफी मोटे थी इसलिये उसने कपड़े काफी ढीले पहने हुए थे।
अन्दर जाते ही उसने अपनी कुर्ती ऊपर की और नाड़ा खोलकर सलवार नीचे की।
उसकी पैन्टी मुझे कुछ गीली लगी तो मैंने उससे पूछा तो उसने शर्माते हुए अपने सिर को हिलाया और पैन्टी उतार दी।

बुर तो उसकी दिख ही नहीं रही थी क्योंकि बालों का एक जंगल सा था उसकी चूत के ऊपर और चारों ओर… इसलिये मैंने उसकी चूत को छुआ।
उसकी चूत काफी उभरी हुई थी बिल्कुल पावरोटी की तरह…

मैंने इशारे से घुमने को कहा।
वो घूमी…
उसके नंगे कूल्हों के बीच में केवल एक लकीर सी खींची थी, मैं लकीर इसलिये कह रहा हूँ कि उसकी दरार में पूरी उँगली घुस गई पर गांड का छेद नहीं मिला।

उसने भी मेरा लौड़ा देखने की इच्छा जाहिर की, मैंने उसकी इच्छा पूरी की और नाईट किस के साथ हम लोग अपने बर्थ पर आकर लेट गये।

लगभग 3-4 बजे के बीच रचना ने एक बार मुझे फिर जगाया।
मेरे पूछने पर वह बोली कि उसे टॉयलेट लगी है और अकेले जाने में डर लग रहा है।
मुझे उसकी इस बात से बहुत गुस्सा आया लेकिन गुस्से पर काबू करते हुए मैं उसके साथ टॉयलेट की ओर चल दिया।

रास्ते में मैंने पूछा- अगर मैं तुमसे न मिलता तो किसके साथ जाती?
तो वो बोली- तब मैं सुबह तक रोक लेती… लेकिन जब से तुम्हारी कहानी पढ़ी है और अब तुम मुझे मिल गये हो तो मैं अपने जिस्म की एक-एक हरकत का मजा तुम्हारे साथ मिलकर लेना चाहती हूँ।

फिर वो टॉयलेट में अपने पयजामे को उतार कर पैन्टी को उंगली से साईड करके खड़े होकर मूतने लगी।
रात के समय उसके मूत का पीला रंग बिल्कुल कनक (सोना) जैसा लग रहा था।

खैर वो मूत के बाहर आई तो मैंने पूछा- तुम खड़ी होकर मूतती हो?
वो बोली- नहीं, तुम्हारी कई कहानियों में तुम लड़की को खड़ा करके ही मूतवाते हो तो मेरे दिमाग में यह आईडिया आया कि चलो मैं भी तुम्हारे सामने खड़े होकर मूतूँ!

उसकी यह बात सुनकर मेरा गुस्सा कम हो गया और मैं उसके चूतड़ों, जो काफी मखमली से थे, को सहलाते हुए और वो मेरे पिछवाड़े को सहलाते हुए लोग अपनी बर्थ पर आ गये।

सुबह दिल्ली आने के पंद्रह मिनट पहले हम दोनों की आँख खुली, सामान वगैरहा समेट कर हम लोग नीचे साथ साथ बैठ गये और प्लान बनाया कि होटल में हम लोग अलग रूम में रहेंगे।
आपस में हम लोगों ने अपने मोबाईल नं शेयर किये।

प्लेटफार्म से बाहर निकलने के बाद हम लोग स्टेशन के पास एक अच्छे से होटल देख उसी में कमरे बुक कर लिये।
हम दोनों के रूम लगभग तीन रूम के बाद ही थे।
रूम में सामान रखा ही था कि रचना का फोन आया बोली- क्या हम लोग चाय साथ में पी सकते हैं?
मैंने उसे हाँ बोला, तो वो बोली- जल्दी आईयेगा।

मैं समान रखकर उसके कमरे में पहुँचा।
खटखटाने पर कौन की आवाज आई।
जैसे ही मैंने अपना नाम बताया, रचना ने दरवाजा खोला और दरवाजे की आड़ में हो गई।

मेरे अन्दर घुसते ही उसने दरवाजा बन्द कर दिया।
जैसे ही मैं मुड़ा तो देखता हूँ कि, उसे देख कर तो मेरी आँखें फटी की फटी ही रह गई, वो बिल्कुल नंगी थी। चूचे तो उसके खरबूजे के आकार के, चूतड़ तरबूज के आकार के, पेट बाहर काफी निकला हुआ, चूत अन्दर की तरफ बालों के जंगलों के बीच घुसी हुई थी।
जांघें उसकी काफी मोटी थी।
उसके जिस्म में एक आकर्षक जगह थी वो थी उसकी नाभि, ऐसा लग रहा था कि वो भी एक ऐसा छेद है जहाँ लन्ड महाराज यात्रा करना चाहेंगे।

मेरे एक टक देखते रहने से वो अपना को अलग-अलग पोज बनाने लगी।
इस तरह से उसने मुझे आश्चर्य में डालते हुए अपने जिस्म की नुमाईश पूरी तरह से कर दी।
मैंने कहा- ये क्या है?
‘मैं तुम्हारी बिल्कुल दीवानी हो चुकी हूँ और मेरा मन कर रहा था कि तुम्हें कुछ सरप्राईज करूँ… तो मैंने तुम्हारे लिये अपने जिस्म को बिल्कुल नंगा कर दिया है और मैं जानती हूँ कि तुमने अभी तक जितनी लड़कियाँ चोदी होंगी सब स्लिम होंगी।

मैं कुछ बोलने जा ही रहा था कि कमरे की घंटी बजी, रचना दौड़कर बाथरूम में घुस गई, गाउन पहनकर आई, दरवाजा खोला और वेटर से चाय ली और दरवाजा बन्द करके चाय रखकर उसने अपना गाउन फिर उतार दिया और मेरे सामने बैठकर चाय बनाने लगी।

‘हाँ तुम कुछ कहने वाले थे?’ वो बोली।
‘हाँ…’ कहकर मैंने उसकी तरफ देखा और बोला- ये जंगल क्यों उगा रखा है? और उगाया था तो इसको ट्रिम कराकर रखती। चूत तुम्हारी बिल्कुल गन्दी दिखती है। मुझे झांटों वाली चूत बिल्कुल अच्छी नहीं लगती है।
मैं जानबूझकर उससे इन शब्दों में बात कर रहा था।

तभी वो बोली- ठीक है, तुम मेरी झांट बना दो और मेरी चूत को साफ और चिकना बना दो।
‘चलो आओ तुम्हारी चूत को चिकना करते हैं, तुम भी क्या याद रखोगी मेरी जान कि किसने तुम्हारी झांट बनाई हैं।’
मैं इतना बोल कर अपने रूम में जाने वाला था कि तभी वो बोली- अच्छा ये बताओ कि क्या तुम अपने लंड के आस पास झांट नहीं रखते हो?
‘बिल्कुल नहीं!’
‘मुझे दिखाओ न प्लीज!’ वो बोली।

मुझे क्या ऐतराज हो सकता था, मैंने तुरन्त ही अपना लोअर और अन्डरवियर उतार दिया।
मेरा काला नाग फनफना कर खड़ा हो गया।

‘वाओ ओ ओ ओ ओ…’ कह कर रचना मेरे पास आई और मेरे नागराज को हाथ में लेकर बोली- वास्तव में तुम्हारा लंड शानदार है।
वो मेरा लंड हाथ में लेकर सहला रही थी और मैं उसके गुब्बारे जैसे चूची को उछाल रहा था।

दोस्तो जैसा कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने चुदवाने वाला कौन है। मुझे तो चूत चाहिये होती है चोदने के लिये, वैसा ही हाल था रचना को लेकर।
मुझे उसके मोटापे से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
वैसे भी वो मेरे लंड को इतने प्यार से सहला रही थी कि मैं चाय पीना भूलकर केवल उसकी चूची से खेल रहा था या फिर उसके लंबे बालो को सहला रहा था।

तभी सहसा मैंने उससे पूछा- तुम सेक्स कहानी कब से पढ़ रही हो और तुम्हें अन्तर्वासना डॉट कॉम साईट कैसे पता चली?
‘तुम्हें तो मालूम है कि आज का युग इन्टरनेट का है। एक दिन मैं गुगल में कुछ इनर गारमेन्ट की डिजाईन सर्च कर रही थी। मैं की-बोर्ड से टाईप कर रही थी कि मेरे उंगली से antarv लेटर टाईप हो गया तो गूगल ने इससे मिलती-जुलती दूसरी कई लिंक सर्च कर दी। सबसे ऊपर अन्तर्वासना हिन्दी सेक्स स्टोरी लिखा था, मैंने लिंक पर क्लिक किया तो साईट खुल गई। और उसमें सबसे पहले ‘प्रज्ञा संग रंगरेलियाँ’ कहानी थी। उसे मैं उत्सुकतावश पढ़ रही थी, मुझे कहानी अच्छी लग रही थी। धीरे-धीरे मैंने आपकी लिखी सभी कहानियाँ पढ़ डाली और आपकी फैन बन गई।

तभी मुझे याद आया कि हम लोग चाय पीना भूल गये हैं, मैंने इशारे से उसे बताया, लेकिन उसने चाय पर ध्यान नहीं दिया और मेरे लंड के टोपे में नाखून से कुरेदते हुए बोली- शरद जी, अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहना चाहती हूँ।
मैं उसके बालों को सहलाते हुए बोला- जानू, जो बोलना है बोलो, अब जो भी तुम कहोगी, वो मैं करने के लिये तैयार हूँ।
‘थैन्कस शरद, मुझे जानू कहने के लिये!’
‘अरे यार, अब ये थैन्कस वैन्क्स रहने दो, बताओ क्या कह रही थी?’
‘शरद जी मैं… चाहती हूँ कि…’
‘क्या? बोलो?’ मैंने बीच में टोका- हँ-हाँ बोलो!
रचना अपनी नजर नीचे करते हुए बोली- जैसे आप लड़की को टॉयलेट अपने सामने करने के लिये कहते हैं वैसे ही आप मेरे सामने टॉयलेट करो।
मैं उसकी इस अदा पर खूब हँसा।
‘अरे यार, मर्द तो कहीं पर भी खड़े होकर मूतते हैं… तुम तो अक्सर देखती होगी। फिर मैं क्यों?’
‘प्लीज!’
‘ओ.के… पर ये टॉयलेट क्या होता है। यार यह बोलो कि मैं आपको मूतते या पेशाब करते हुए देखना चाहती हूँ। ठीक है, लेकिन मुझे पेशाब तुम कराओगी’
अब तक मैं अपने टी-शर्ट को उतार चुका था।

कहानी जारी रहेगी।
आपका अपना शरद
[email protected]

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