माँ-बेटी को चोदने की इच्छा-28

(Maa Beti Ko Chodne ki Ichcha-28)

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आप सभी पाठकों को मेरा नमस्कार, दोस्तो, इतने दिनों तक मैंने कहानी को रोके रखा इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ.. क्योंकि पिछले कुछ दिनों से काम के चलते मैं अपनी कहानी को नहीं बढ़ा सका। अब आप सभी का मनोरंजन करने के लिए मैं फिर से हाज़िर हूँ..

कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा था..

जब मुझे मालूम हुआ कि माया आंटी की लड़की रूचि और लड़का विनोद को ट्रेन से आने में अभी देर है तो मैं माया को चोदने में जुट गया पर मेरे अनुमान के पहले ही वे दोनों घर आ गए और दरवाजा खटखटाया.. हड़बड़ा कर हम दोनों उठे और जब मैं माया को आधा-अधूरा चोद कर मुठ मार कर रह गया था.. और बाथरूम में चला गया था।

खैर.. मैं धीरे से अपना मुँह धोते हुए बाहर निकला.. तो मैं हक्का-बक्का सा रह गया क्योंकि रूचि के हाथों मेरी और माया की चड्डियाँ थीं.. उसके दाए हाँथ में मेरी और बाएं हाथ में माया की.. और वो बड़े ही गौर से मेरी चड्डी को बिस्तर पर रखकर माया की चड्डी के गीले भाग को बड़े ही गौर से देखते हुए सूंघने लगी और अपनी ऊँगली से छूकर शायद यह देख रही थी कि ये चिपचिपा-चिपचिपा सा क्या है?

इतने में मैंने अपनी मौजूदगी को जाहिर करते हुए तेज़ी से बाथरूम का गेट बंद किया.. जिससे रूचि भी हड़बड़ा गई और उस चड्डी को बिस्तर पर फेंकते हुए मुझसे बोली- तुम यहाँ क्या कर रहे थे?

तो मैंने बाथरूम की ओर इशारा करते हुए बोला- यहाँ क्या करते हैं?

तो मैंने सोचा.. इसको तो अब कुछ तो बताना ही होगा.. मैं बहुत असमंजस में पड़ते हुए बोला- यहाँ सोता था!

मेरी और माया की चड्डी उठाते हुए बोली- ये सब क्या है?

तो मैंने पूछा- किसकी बात कर रही हो?

वो बिस्तर को दिखाते हुए बोली- यहाँ की..

तो मैंने सोचा यार इसको तो अब कुछ तो बताना ही होगा। मैं बहुत असमंजस में पड़ते हुए बोला- मैं यहाँ सोता था।

वो मेरी और माया की चड्डी उठाते हुए बोली- ये सब क्या है?

फिर उसने गीला तकिया जो कि माया के गीले बालों से भीगा सा लग रहा था।

तो मैंने मन ही मन सोचा.. विनोद के यहाँ आने के पहले.. इसका कुछ तो करना ही पड़ेगा।

अब आगे बढ़ कर मैंने उससे बोला- तुम्हें क्या लग रहा है?

तो वो मुझसे बोली- वही तो समझने की कोशिश कर रही हूँ कि मुझे क्यों सब कुछ गड़बड़ लग रहा है या फिर बात कुछ और है?

तो मैंने उसे बोला- जो तुम्हें लग रहा है पहले वो बोलो.. फिर अगर सही होगा तो मैं ‘हाँ’ या ‘न’ में जवाब दूँगा और तुम गलत हुई.. तो मैं बता दूँगा.. पर ये बात मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगी।

मैं उस दिन बहुत डर गया था.. घबराहट के मारे मेरे माथे से पसीना बहने लगा था। पर जैसे ही उसकी बात सुनी तो मेरी जान में जान आई और मैंने सोचा इसे अपनी बात पूरी कर लेने दो फिर तो मैं इसे हैंडल कर लूँगा।

मैं दरवाजा बंद करने लगा तो उसने कहा- ये क्यों किया तुमने?

मैंने बोला- ताकि कोई यहाँ न आए.. फिर मैं उसी बिस्तर पर जाकर बैठ गया.. और उससे बोला- मेरे पास न सही.. पर चाहो तो सामने वाले बिस्तर पर बैठ जाओ.. नहीं तो थक जाओगी.. अभी तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं है।

तो उसने मुँह बनाते हुए बोला- ज्यादा हमदर्दी दिखाने की कोशिश मत करो..
वो यह कहते हुए बैठ गई।

फिर मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा- अच्छा अब बोलो.. तुम क्या सोच रही थी?

मैंने उसके हाथ की ओर इशारा करते हुए पूछा.. जिसमें वो माया के रस से सनी चड्डी को पकड़े हुए थी।

तो वो बोली- आप कितने गंदे हो.. मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि आप माँ के अंदरूनी कपड़ों को लेकर सोओगे और ये सब करोगे..

तो मैं समझ गया कि ये अभी नादान है.. इसे ज्यादा कुछ नहीं पता लगा।

मैंने भी थोड़ी बेशर्मी दिखाते हुए बोला- क्या.. इस सबसे तुम्हारा क्या मतलब है?

तो वो चड्डी में लगे हुए रस को छूते हुए बोली- ये..

तो मैंने पूछा- तुम्हें नहीं पता कि ये क्या है.. तो तुम मुझे गन्दा कैसे कह सकती हो?

मुझे पता चल गया था कि वो क्या कहना चाह रही थी.. पर उसके मुँह से सुनने के लिए मैंने उसे उकसाया.. तो वो बोली- बेवकूफ मत समझो मुझे.. आपको नहीं मालूम.. ये आपका स्पर्म है। मैंने अपनी सहेलियों से सुना है कि लड़कों का स्पर्म चिकना होता है.. और आपको मैं पहले दिन से नोटिस कर रही हूँ कि आप मेरी माँ को मौका पाकर छेड़ते रहते हैं और…

तो मैंने बोला- और क्या?

बोली- और.. अब तो हद ही हो गई.. आपने हम लोगों की गैरहाज़िरी का फायदा उठाते हुए मेरी माँ पर गन्दी नज़र रखते हुए.. उनके अंडरगार्मेंट्स को अपने साथ लेकर सोने लगे और न जाने मन में क्या क्या करते होंगे.. जिससे आपका स्पर्म निकल जाता होगा..

तो मैंने उससे बोला- तुम्हें पता है.. स्पर्म कैसे निकलता है?

बोली- हाँ.. गन्दा सोचने पर..

मैंने हंस कर बोला- उतनी देर से तुम भी तो मेरे बारे मैं गन्दा सोच रही हो.. तो क्या तुम्हारा भी ‘स्पर्म’ निकल रहा है?

वो तुनक कर बोली- अरे मेरे कहने का मतलब ऐसा नहीं है..

तो मैंने बोला- फिर कैसा है?

बोली- मैं अभी जाती हूँ.. और बाहर जाकर सबको बताती हूँ.. फिर वही तुम्हें समझा देंगे..

ये कह उठने सी लगी तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखे और उसे बैठने को कहा और बोला- पहले ठीक से हम समझ तो लें.. फिर जो मन में आए.. वो करना।

तो बोली- नहीं.. अब मुझे कुछ नहीं समझना.. मैं आपको बहुत अच्छा समझती थी.. पर आप बिलकुल भी ठीक इंसान नहीं हो..

मैंने बोला- अभी सब समझा दूँगा.. पर पहले ये बताओ.. तुम मेरी किस सोच को गन्दा बोल रही थी.. जिससे स्पर्म निकल आया।

तो वो कुछ हकलाते हुए सी बोली- मैं सब सब समझती हूँ.. अब मैं छोटी नहीं रही.. जो आप मुझे बेवकूफ बना लोगे.. आपसे सिर्फ दो ही साल छोटी हूँ।

तो मैंने बोला- तुम्हें कुछ पता होता.. तो अब तक बता चुकी होतीं.. और ये क्या है मुझे भी नहीं मालूम।

तो बोली- ज्यादा होशियारी मत दिखाओ.. जब मन में सेक्स करने के ख़याल आते हैं तो स्पर्म निकलता है और वही तुम करते थे।

मैंने बोला- ऐसा नहीं है।

तो वो बोली- इस उम्र में ये सब होना बड़ी बात नहीं है.. पर मेरी माँ को लेकर तुम्हारी नियत खराब हो गई.. ये बहुत गलत बात है.. मैं अभी भैया और माँ को बताती हूँ।

तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे बैठाया और उसी के बगल में बैठ गया और उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया।

तो बोली- ये आप क्या कर रहे हैं?

तो मैंने बोला- अभी कहाँ कुछ किया.. और जब तक तुम ‘हाँ’ नहीं कहती.. मैं कुछ भी नहीं करूँगा।

तो बोली- मैं समझी नहीं.. आप कहना क्या चाहते हो?

तो मैंने उसे बुद्धू बनाते हुए बोला- प्लीज़ तुम किसी को भी ये बात मत बोलना.. मगर मेरी अब एक बात सुन लो.. फिर तुम अगर चाहोगी तो मैं यहाँ दोबारा आऊँगा.. वर्ना कभी भी अपनी शक्ल तक नहीं दिखाऊँगा।

तो वो बोली- आप पहले मेरे ऊपर से अपने गंदे हाथ हटाएं.. और यहाँ से जल्दी अपनी बात खत्म करके निकल जाएं।

फिर मैं उसे उल्लू बनाते हुए बोला- जो ये तुम्हारे हाथ में चड्डी है..

वो बोली- हाँ तो?

तो मैंने बोला- यह मैं नहीं जानता था कि ये तुम्हारी है या आंटी की.. क्योंकि ये मुझे यहीं मिली थी।

तो वो हैरानी से बोली- मतलब क्या है तुम्हारा? किसी की भी चड्डी में अपना रस गिरा देते हो?

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तो मैंने बोला- नहीं.. ऐसा नहीं है..

वो बोली- फिर कैसा है?

मैंने उससे बोला- मैंने जबसे तुमको देखा है.. मैं बस तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूँ और तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.. और मुझे सच में यह नहीं मालूम कि यह किसकी थी.. मैंने तो तुम्हारी समझ कर ही अपने पास रख ली थी और आंटी को लेकर मेरा कोई गलत इरादा नहीं था। मैं तो सोते जागते बस तुम्हारे बारे में ही सोचता था.. इसीलिए मैंने सोने के लिए बिस्तर भी तुम्हारा ही पसंद किया था.. जिसमें मुझे तुम्हारे बदन की मदहोश कर महक अपना स्पर्म निकालने के लिए मजबूर कर देती थी.. और अगर तुम्हें ये गलत लगता है.. तो आज के बाद मैं तुम्हें कभी मुँह नहीं दिखाऊँगा.. पर मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ.. आगे तुम्हारी मर्ज़ी…

यह कहते हुए मैं शांत होकर उसके चेहरे के भावों को पढ़ने लगा।

उसका चेहरा साफ़ बता रहा था कि अब वो कोई हंगामा नहीं खड़ा करेगी.. तो मैंने फिर से उससे बोला- क्या तुम भी मुझे अपना सकती हो?

तो वो उलझन में आ गई… जो कि उसके चेहरे पर दिख रही थी..

मैं उठा और उससे बोला- कोई जल्दी नहीं है.. आराम से सोच कर जवाब देना.. पर हाँ.. तब तक के लिए मैं तुम्हारे घर जरूर आऊँगा.. पर बाहर ही बाहर तक.. मुझे तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहेगा।

मेरी बात समाप्त होते ही दरवाज़े पर विनोद आ गया और खटखटाने लगा तो रूचि ने मुझे फिर से इशारे से बाथरूम का रास्ता दिखा दिया और मैं अपनी चड्डी की जगह जल्दबाज़ी में माया की ले आया और बाथरूम अन्दर से बंद करके बाहर की आवाज़ सुनने लगा।

विनोद ने घुसते ही पूछा- राहुल किधर है.. माँ ने बोला है कि वो यहीं होगा?

तो रूचि बोली- भैया.. वो तो नहा रहे हैं मैंने भी जब बाथरूम खोलना चाहा तो वो अन्दर से लॉक था.. फिर अन्दर से उनकी आवाज़ आई कि मैं नहा रहा हूँ.. तब मैंने सोचा कि चलो तब तक कपड़ों को ही अलमारी में एक सा जमा दूँ।

भैया बोले- तू बहुत पागल है.. इस तरह से पूरे बिस्तर में कपड़े फ़ैलाने की क्या जरुरत थी? चल जल्दी से निपटा ले।

तभी मैं अन्दर से निकला और मैंने शो करने के लिए शावर से थोड़ा नहा भी लिया था।

मैंने निकलते ही पूछा- अरे रूचि तुम्हारा एग्जाम कैसा रहा?

तो बोली- अच्छा रहा..

वो मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा दी.. फिर मैंने विनोद से पूछा- यार नींद पूरी नहीं हुई क्या.. जो आते ही सो गए।

तो बोला- हाँ यार.. ट्रेन में सही से सो नहीं पाया।

तब तक आंटी ने आवाज़ देते हुए बोला- अरे सुनो सब.. तुम लोग आ जाओ.. नाश्ता रेडी है।

विनोद बोला- रूचि पहले तू फ्रेश होने जाएगी या मैं जाऊँ?

वो बोली- आप हो आइए.. मैं कपड़े रखकर आती हूँ।

मैं मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।

वो मेरी तरफ देखते हुए बोली- तब तक आप चलिए.. हम दोनों आते हैं।

अब मुझे यकीन हो गया था कि ये चिड़िया भले ही मेरे जाल में न फंसी हो.. पर यह बात ये किसी को भी नहीं बोलेगी..
यह सोचता हुआ बाहर आ गया।

माया ने जैसे ही मुझे देखा कि मैं अकेला ही आ रहा हूँ.. तो वो जोर से बोलते हुए बोली- वो लोग कहाँ हैं?

फिर मेरे पास आई और बोली- कुछ अन्दर गड़बड़ तो नहीं हुई न?

तो मैंने उनके गालों को चूमते हुए कहा- आप परेशान न हों.. किसी को कुछ भी शक नहीं हुआ है।

ये कहते हुए मैं डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।

आप सभी का पुनः धन्यवाद। आप अपने सुझावों को इसी तरह मेरे मेल पर साझा करते रहें.. और आप इसी मेल आईडी के माध्यम से फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं। अगले भाग तक के लिए सभी चूत वालियों और सभी लौड़े वालों को मेरा चिपचिपा नमस्कार।
मेरी चुदाई की अभीप्सा की यह मदमस्त कहानी जारी रहेगी।
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