समय और संयोग

कई बार जिन्दगी बहुत ही अजीब खेल दिखाती है. कौन व्यक्ति कहां पर कैसे मिल जाये और किस व्यक्ति से हमारा क्या संबंध जुड़ जाए कुछ पता नहीं चलता. रिश्तों के इन गलियारों में खुद का सच्चा साथी कौन है और कौन नहीं, कहना मुश्किल है. हालातों के बदलते रूप को बयां करती एक दास्तान।

समय और संयोग : ईर्ष्या और बदला

मेरी बीवी और वो लड़का बिस्तर पर साथ बैठे थे। दोनों बातें कर रहे थे और वो लड़का मेरी बीवी के बालों को.. तो कभी हाथों को.. तो कभी जांघ को सहला रहा था।

समय और संयोग: मस्ती सस्ती नहीं, कभी मंहगी भी पड़ती है

सिनेमा हाल के अन्धेरे में बीवी को लन्ड चुसवाने की मस्ती में मेरी मॉडल बीवी को एक गैर मर्द का लन्ड चूसना पड़ गया। वो तो उसे चोद भी देता लेकिन…

समय और संयोग : दोस्त की सच्चाई, बीवी की अच्छाई -2

तूने तो मेरी बीवी के साथ मस्ती कर ली। जब तुम्हारी बीवी आएगी.. तब मैं उसके साथ करूँगा। जब मेरा बाहर जाना होता तो संजय और मेरी बीवी चुदाई करते और मस्ती करते।

समय और संयोग : दोस्त की सच्चाई, बीवी की अच्छाई -1

मेरा दोस्त मेरे घर खाना खाता था. एक बार मॉडलिंग के शूट के कारण दो दिन बाद घर आया.. तो हालात कुछ बदले-बदले से लगे, कीर्ति मुझसे नजरें नहीं मिला रही थी। दोस्त से पूछा तो उसने बताया.

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