कमाल की हसीना हूँ मैं-45

शहनाज़ खान 2013-06-06 Comments

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हमने जो पैकेज चुना था उसके मुताबिक वो आठ लौड़े बदल-बदल कर हमारे लिये हाज़िर रहेंगे ताकि एक घंटे तक एक वक्त में बिना रुकावट उनमें से कोई भी दो लौड़े हमारी खिदमत में मौजूद हों।

हम दोनों ने खुशी-खुशी चार-चार सौ यूरो निकाल कर उसे दे दिये। मेरी हालत ऐसी थी कि इस वक्त चार सौ की जगह हज़ार यूरो भी देने पड़ते तो भी मैं सोचती नहीं।

वैसे भी ससुर जी ने पैरिस आते ही मुझे शॉपिंग वगैरह के लिये चार हज़ार यूरो दे दिये थे और अब तक मैंने सिर्फ बारह सौ यूरो ही खर्च किये थे।

“योर केबिन इज़ ऑन सेकेंड फ्लोर ! योर चॉइस ऑफ ड्रिंक्स विल बी इन द केबिन एंड इफ यू हैव एनी प्रॉब्लम… यू कैन कॉल मी फ्रॉम द फोन इन द केबिन! एन्जॉय!” कहते हुए उस औरत ने हमें चाबी पकड़ा दी। (तुम्हारा केबिन दूसरी मंजिल पर है, ड्रिन्क्स वगैरा सब केबिन में हैं, कोई परेशानी हो तो केबिन में उपलब्ध फ़ोन से आप मुझसे बात कर सकती हैं। मज़े करो !)

इंडियन रेलवे के फर्स्ट-क्लास कूपे जितना केबिन था। अंदर दो कुर्सियाँ और एक टेबल थी और दीवार पर बड़ा सा टीवी भी लगा था। नीचे रिसेप्शन पर साशा ने जो पसंद की थी, वो स्कॉच की बोतल और चार गिलास भी टेबल पर पहले से मौजूद थे। टेबल पर ही एक डब्बे में कंडोम के पैकेट भी रखे थे।

साशा ने उन कंडोम के पैकेटों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ग्लोरी-होल में से पेशेवर ज़िगोलो-मर्दों के लौड़ों को चूसते वक्त चाहे ना सही पर उनसे चुदवाते वक्त मैं कंडोम इस्तेमाल करना ना भूलूँ।

साइड की दोनों दीवारों में अलग-अलग ऊँचाई पर कई छेद थे। सभी छेद अभी बंद थे और हर छेद के पास एक बटन था। अपनी पसंद और जरूरत के हिसाब से हम जिस छेद का बटन दबायें, उसी छेद में से लौड़ा निकल कर हमारी खिदमद में हाज़िर हो जायेगा। पहला बटन दबाने के बाद ही हमारा एक घंटे का वक्त शुरू होना था

इसलिये केबिन का दरवाज़ा लॉक करने के बाद साशा ने दो पैग बनाये और दो सिगरेट सुलगा कर केबिन की रोशनी थोड़ी मद्धिम करके ब्लू-फिल्म ऑन कर दी।

हम दोनों स्मोक करते हुए अगल-बगल बैठ कर स्कॉच के पैग पीते हुए सामने स्क्रीन पर ब्लू-फिल्म देखने लगीं। मैं नहीं जानती कि यह इत्तेफाक था या फिर साशा ने जानबूझ कर यह फिल्म चुनी थी क्योंकि इस ब्लू फिल्म में दो गोरी औरतों का दस-बारह काले हब्शियों से गैंग-बैंग दिखाया गया था। उन गोरी औरतों को मोटे-मोटे काले लौड़े चूसते देख कर मुझे ओरिजी और उसके दोस्तों की याद आ गई।

मेरे मुँह और चूत दोनों से लार टपकने लगी। तभी साशा मेरी गोद में आ कर बैठ गई और मेरे होंठ चूमते हुए फुसफुसाई, “फिनिश अप योर ड्रिंक फास्ट !”(अपना ड्रिन्क जल्दी से खत्म कर लो !)

जैसे ही मैंने अपना पैग दो घूँट में खत्म किया तो उसने हाथ से गिलास लेकर सामने मेज पर रख दिया। फिर से मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में घुसेड़ दी। हम दोनों ने ऐसे ही एक दूसरे के जिस्म सहलाए और होंठ चूमते हुए एक दूसरे के कपड़े उतार दिये। हाई हील सेंडलों को छोड़कर हम दोनों ही अब बिल्कुल नंगी थीं।

वो मेरी तरफ मुँह करके मेरी गोद में बैठी थी और हम दोनों चिपक कर चूमते हुए एक दूसरे के मम्मों से मम्मे रगड़ते हुए आँहें भरने लगीं। केबिन में गूँज रही ब्लू-फिल्म की चुदाई की मस्ती भरी आवाज़ें हमें और ज्यादा भड़का रही थीं। करीब दस मिनट बाद जब वो मेरी गोद में से उठ कर खड़ी हुई तो हम दोनों बेहद गर्म हो चुकी थीं।

मेरा हाथ पकड़ कर साशा मुझे अपने साथ खींचते हुए ज़मीन पर अपने घुटने मोड़ कर बैठ गई और हम दोनों ने एक ही दीवार में अगल-बगल के ग्लोरी-होल के बटन दबा दिये। बटन दबाते ही उन छेदों के पीछे के शटर खुल गये और कुछ ही पलों बाद दोनों छेदों में से दो मोटे-मोटे लौड़े निकल कर लहराने लगे।

बस फिर क्या था, हम दोनों एक-एक लौड़े पर भूखी शेरनियों की तरह टूट पड़ीं और उन्हें मुठिया-मुठिया कर चूसने लगीं। स्कॉच की बोतल हम दोनों ने अपने बीच में रख ली ताकि लौड़े चूसते हुए बीच-बीच में एक-दो घूँट पी सकें।

जब पहला लौड़ा झड़ा तो मैं भौंचक्की रह गई। झड़ते हुए लौड़ों में से सैलाब की तरह इस कदर वीर्य उमड़ा कर मेरे मुँह में भरने लगा कि उतनी तेज़ी से उसे निगलते हुए लौड़ा मुँह में रख पाना मेरे बस में नहीं था। हार कर मैंने लौड़ा अपने मुँह से बाहर निकाला तो भी वो लगातार वीर्य की पिचकरियाँ मेरे चेहरे, गले और चूचियों पर दागता रहा। जब उसका झड़ना बंद हुआ तो वो लौड़ा पीछे खींच लिया गया और कुछ ही पलों में एक नया लौड़ा उस ग्लोरी-होल में से निकल कर हाज़िर हो गया।

इसी बीच में साशा अपना वाला लौड़ा मुठियाते हुए मेरे पास खिसक कर वीर्य से सना हुआ मेरा चेहरे चाट कर साफ करने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

ब्लू-फिल्म अभी भी चल रही थी लेकिन हमारा ध्यान उसमें बिल्कुल भी नहीं था। हब्शियों से चुद रही औरतों की आहें और चीखें जरूर हमारी मस्ती में इज़ाफा कर रही थीं। जब साशा वाला लौड़ा झड़ा तो उसकी हालत भी मेरे जैसी ही थी।

उसका चेहरा, बाल, मम्मे वगैरह सभी वीर्य से बुरी तरह सन गये थे। मैं भी पीछे नहीं रही और उसके पास खिसक कर उसके चेहरे से वीर्य चाटने लगी। तभी मैंने महसूस किया कि साशा अपने मुँह में भरे वीर्य का जैसे कुल्ला सा कर रही है और अगले ही पल उसने अपने होंठ मेरे होठों से चिपकते हुए अपने मुँह का वीर्य मेरे मुँह में ट्रांसफर कर दिया।

अगले करीब आधे घंटे में इसी तरह तीन-तीन लौड़ों से वीर्य छुड़ा कर हम दोनों चुदैल औरतों ने जी भर कर वीर्य पीने के साथ-साथ वीर्य की गंदी होली खेली। जैसे ही एक लौड़े का झड़ना पूरा होता तो वो छेद में पीछे खींच लिया जाता और उसकी जगह नया लौड़ा हाज़िर हो जाता।

उसके बाद मैंने देखा कि साशा ने बटन दबा कर वो छेद बंद कर दिया और खड़ी होकर पीछे वाली दीवार में थोड़ा ऊँचे वाले ग्लोरी-होल का बटन दबा दिया। कुछ ही पलों में उस ग्लोरी-होल में से नया एक फुट लंबा और काला लौड़ा निकल आया।

मैं समझ गई कि साशा का इरादा उसे अपनी चूत में लेकर चोदने का था। साशा उस लौड़े पर थूक-थूक कर उसे मुठियाने लगी। मैं भी अब चुदने के लिये बेकरार थी। मैंने भी अपनी दीवार में उँचे वाले ग्लोरी-होल का शटर खोल दिया और मेरे लिये भी करीब एक फुट लंबा लौड़ा हाज़िर हो गया लेकिन यह बिल्कुल गोरा-चिट्टा लौड़ा था। साशा की तरह मैं भी उसे मुठियाने लगी।

इस दौरान साशा घूम कर दीवार से अपनी पीठ सटा कर खड़ी हो चुकी थी। उसने अपने आगे एक कुर्सी खींच ली थी और एक टाँग उठा कर अपना पैर उस पर रख कर अपने सेंडल की पेंसिल हील कुर्सी की गद्दी में गड़ा रखी थी। अपना वाला लौड़ा मुठियाते हुए मैं पीछे गर्दन घुमा कर देख रही थी कि साशा किस तरह लौड़ा अपनी चूत में ले रही है।

दीवार से अपनी कमर और कूल्हे सटाते हुए वो थोड़ी आगे झुकी और अपनी टाँगों के बीच में हाथ डाल कर उस लौड़े को पकड़ कर उसका सुपाडा अपनी चूत पर टिकाते हुए अंदर घुसेड़ लिया। अपने सामने कुर्सी की बैक पर अपने दोनों हाथ टिका कर वो अपने चूतड़ दीवार पर पीछे ठोंकने लगी और वो लौड़ा उसकी चूत में अंदर बाहर खिसकने लगा।

दीवार के पीछे मौजूद अन्जान आदमी भी धक्के मारते हुए साशा की मदद कर रहा था। साशा सिसकते हुए मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी। मेरे ग्लोरी-होल वाला लौड़ा भी मेरे थूक से बुरी तरह भीग कर चिकना और मुठियाने से बेहद कड़क हो चुका था। मैंने भी दीवार से अपनी कमर टिका कर वो लौड़ा अपनी चूत में ले लिया। इतना बड़ा लौड़ा अपनी चूत में लेने में मुझे कुछ खास दिक्कत नहीं हुई। मेरी दीवार के पीछे वाला अंजान आदमी भी दनादन मेरी चूत में लौड़ा पेलने लगा।

अब साशा और मैं बिल्कुल आमने-सामने खड़ी अपने चूतड़ पीछे दीवारों पर ठोक-ठोक कर ग्लोरी-होल में निकले हुए लौड़ों से चुदवा रही थीं। इसलिये सहारे के लिये मैंने भी आगे झुक कर साशा वाली कुर्सी की बैक पर ही उसके हाथों के पास अपने दोनों हाथ टिका दिये। केबिन इतना संकरा था कि साशा ने बड़े आराम से अपनी एक बाँह मेरी गर्दन में डाल दी और हम दोनों चुदते हुए एक-दूसरे को चूमने लगीं। मेरी सहूलियत के लिये साशा ने कुर्सी थोड़ी घुमा ली जिससे कि मैं भी एक टाँग उठ कर अपना पैर उस पर रख सकूँ।

जब हमारा एक घंटे का वक्त पूरा हुआ तो हम दोनों की चूतों में दो-दो लौड़े अपना वीर्य भर चुके थे। इस दौरान मैं कई मर्तबा झड़ी और मेरी चूत ने हर बार इस कदर पानी छोड़ा कि मेरी दोनों टाँगें बुरी तरह भीग गई थीं। साशा की भी करीब-करीब यही हालत थी। हम दोनों ही हाँफती हुई ज़मीन पर टाँगें पसारे दिवारों से पीठ टिका कर बैठ गई।

कहानी जारी रहेगी।

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