तेरी याद साथ है-24

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“उम्म… हम्म्म्म…” फिर से वही मादक सिसकारी लेकिन इस बार सुकून भरी.. आंटी के ये शब्द मुझे और भी उत्तेजित कर गए और मेरे लंड ने अकड़ना शुरू किया… लेकिन तभी आंटी ने हरकत करी और अपने पैरों को मेरे पैरों से आजाद करके उठने लगीं। मेरा लंड अचानक से उनके घुटनों से जुदा होकर बेचैन हो गया। आंटी ने जल्दी से उठ कर कम्बल मेरे ऊपर डाल दिया और अपनी सीट पर जाकर लेट गईं। मैं एकदम से चौंक कर देखने लगा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। आंटी ने अपने आपको पूरी तरह से ढक लिया और नींद के आगोश में समां गईं…

“धत तेरे की… के.एल.पी.डी !! मैं तड़पता हुआ अपने लंड को अपने हाथों से सहलाने लगा और उसे सांत्वना देने लगा। बस आज रात की ही तो बात थी, फिर तो कल गावं पहुँच कर अपनी प्रिया रानी की चूत के दर्शन तो होने ही थे। मैंने अपने लंड को यही समझाकर सो गया।

एक जोर के झटके ने मेरी नींद खोल दी। आँखें खोलीं तो देखा कि आसनसोल स्टेशन आ गया था और घड़ी में करीब डेढ़ बज रहे थे। पूरा डब्बा नींद की बाँहों में था और एक भी आवाज़ नहीं हो रही थी। स्टेशन पर कोई भी हमारे डब्बे में नहीं चढ़ा। ट्रेन थोड़ी देर रुक कर फिर से चलने लगी, मैं अपने बर्थ से उठ कर खड़ा हो गया और अपने सामने सोये हुए घर के सभी लोगों का मुआयना करने लगा, सामान भी चेक किया। सब कुछ ठीक पाकर मैंने अपने ऊपर एक हल्की सी शॉल डाल ली जो कि मैंने अपना तकिया बना रखा था और बाथरूम की तरफ चल पड़ा।

आंटी की वजह से मेरा लंड बेचारा अब भी तड़प रहा था। मैंने सोचा कि टॉयलेट में मूत्रविसर्जन करके उसे थोड़ा आराम दे दूँ। मैं बाथरूम में घुस कर अपना लोअर नीचे किया और अपने लंड को अपने हाथों में लेकर पुचकारने लगा।

ये क्या, यह तो पुचकारने मात्र से ही फिर से खड़ा हो गया… अब तो मुझे लगा कि मुठ मारे बिना कोई उपाय नहीं है आज। यही सोचकर मैंने अपने लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और धीरे धीरे से मुठ मारने लगा।

“ठक-ठक ! ठक-ठक…! ठक-ठक-ठक…!” अचानक से किसी ने दरवाज़े को लगातार ठोकना शुरू किया…

मैंने झट से अपने लंड को अपने लोअर में डाल लिया और दरवाज़ा खोलने लगा.. सच बताऊँ तो मैं वासना की आग में इतना वशीभूत था कि मेरे दिमाग में सहसा ही यह ख्याल आ गया कि यह आंटी होंगी… और यही सोच कर मैंने दरवाज़ा जल्दी से खोल दिया…

लेकिन दरवाज़े पे जिसे पाया उसे देख कर थोड़ा चौंक गया।

सामने रिंकी खड़ी थी और वो बिना कोई मौका दिए मुझे अन्दर ठेल कर बाथरूम में घुस गई और दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया। दरवाज़ा बंद करते ही पलट कर मेरे सीने से लिपट गई।

अचानक से हुए इस हमले से मैं थोड़ा हड़बड़ा गया और उसे अलग कर दिया…

“तुम कब जागी…और तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ…कोई जग तो नहीं रहा?” एक के साथ एक मैंने कई सवाल पूछ डाले रिंकी से…

“हे भगवन, तुम तो लड़कियों की तरह डर रहे हो और सवाल किये जा रहे हो… ये लाइन्स लड़कियों की हैं..” इतना कहकर वो हंसने लगी।

मुझे सच में एहसास हुआ कि वो सही कह रही है… मैं सच में डरा हुआ था… लेकिन मुझे डर यह था कि सिन्हा आंटी अभी थोड़ी देर पहले तक मेरे साथ जग रही थीं, कहीं वो इधर आ गईं तो सब गड़बड़ हो जाएगी… रिंकी या प्रिया… इन दोनों को चोद कर तो मैंने पहले ही अपने लंड का स्वाद चखा दिया था और उनकी कुंवारी चूतों का रस पी लिया था और उन्हें जब चाहता, तब चोद सकता था… लेकिन अगर आंटी ने हमें देख लिया तो मेरे हाथों से तीन तीन चूत दूर हो जातीं… हाँ दोस्तों, मुझे यकीन हो चला था कि मुझे रिंकी और प्रिया के साथ उनकी माँ की चूत भी मिलने वाली है.. मैं कोई गड़बड़ नहीं चाहता था इसलिए अपनी तरफ से कोई पहल नहीं कर रहा था रिंकी की तरफ।

रिंकी एक बार फिर से मुझसे लिपट गई और मेरे खड़े लंड के ऊपर अपनी चूत को दबाने लगी। मैंने भी उसे अपनी ओर खींच कर दबा दिया और अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ने लगा। मेरा लंड तो पहले से ही तड़प रहा था किसी चूत के पास जाने के लिए, फिर चाहे वो माँ की हो या फिर बेटी की…

रिंकी ने झट से अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड को थाम लिया और उसे मसलने लगी… एक ही चुदाई में बहुत खुल गई थी वो। मैंने भी अपना हाथ उसकी चूचियों पर रख कर दबाया…

“आह्ह…” उसने भी ठीक वैसी ही आह भरी जैसी मेरी प्रिया रानी ने सुबह भरी थी… यानि कि उसकी चूचियों को भी शायद मैंने ज्यादा ही मसल दिया था और वो अब भी दुःख रही थीं।

क्या करूँ, मैं चूचियों का दीवाना था… था नहीं, आज भी हूँ !!

खैर, अब मेरे दिमाग में सीधा यह सवाल आया कि कहीं प्रिया रानी की तरह रिंकी ने भी अपनी चूत पर हाथ नहीं रखने दिया तो मेरा लंड फिर से प्यासा रह जायेगा। इसी लिए मैंने जांचने के लिए अपना एक हाथ बढ़ाकर उसकी चूत को उसके स्कर्ट के ऊपर से सहलाया तो उसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया और रोक दिया… उसने अपनी आँखों में एक अजीब सी विनती भरी नज़र दी जैसे कह रही हो कि तकलीफ है… मैं समझ तो गया था लेकिन फिर भी उसे इशारे से पूछने लगा कि क्या हुआ है..

रिंकी ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी स्कर्ट के नीचे से ले जाकर अपनी चूत पे रख दिया… यहाँ भी वही बात थी, यानि अन्दर कोई वस्त्र नहीं था, चूत बिल्कुल नंगी थी। लेकिन मेरे हाथों को कुछ और ही महसूस हुआ…मेरी हथेली में उसकी चूत बिल्कुल भर सी गई, मानो फूल कर कुप्पा हो गई हो। चूत उतनी ही ज्यादा गर्म थी…

“देख लो क्या हाल किया है तुमने… बेचारी सूज कर लाल हो गई है और गरम हो गई है… भांप निकल रही है।” रिंकी ने मेरे हाथ को अपनी चूत पे दबाते हुए कहा।

मैं तुरंत ही उसकी बात का जवाब दिए बिना नीचे बैठ गया और उसकी स्कर्ट को सीधा उठा दिया। बाथरूम की दुधिया रोशनी में उसकी सूजी हुई चूत को देखता ही रह गया… सच में उसकी चूत का बुरा हाल था। दोनों होंठ और दाना बिल्कुल लाल हो गया था। एक बार को मुझे भी बुरा लगने लगा.. लेकिन फिर अपने लंड पे नाज़ करते हुए मैं मुस्कुरा पड़ा और आगे बढ़ कर उसकी चूत पे अपने होंठों से एक हल्की सी पप्पी ले ली।

“उह्ह्हह… ऐसे मत करो ना.. मैं मर जाऊँगी… कल तक रुक जाओ, फिर मैं इसे वापस तुम्हारे लायक बना दूंगी… बस आज रुक जाओ !” रिंकी ने मुझसे गुहार लगते हुए कहा।

मैं उसके कहने से पहले ही यह फैसला कर चुका था कि आज इस चूत को परेशान नहीं करूँगा, अब तो ये मेरी ही है और आराम से इसका रस चखूँगा… लेकिन फिर भी मैंने अपने चेहरे पे एक दुखी सा भाव लाते हुए कहा, “उफ्फ्फ..। ये अदा ! जब प्यासा ही रखना था तो समुन्दर के दर्शन क्यूँ करवाए?”

मैंने उसके हाथों से अपने लंड को छुड़ाने का नाटक किया।

“ओहो…मेरे रजा जी… मैं तो बस आपके उनसे मिलने आई थी जिन्होंने मुझे जन्नत दिखाई थी।” रिंकी ने इतना कहते हुए मेरे लोअर में हाथ डाल दिया और मेरे लंड को एकदम से बाहर निकाल लिया।

मेरा बांका छोरा तो पहले ही पूरी तरह से अकड़ा हुआ था और उसके हाथों में जाते ही ठनकना शुरू हो गया उसका। रिंकी ने एक बार मेरी तरफ प्यार से देखा और मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए…

उसने इस बार एक मार्गदर्शक की तरह मेरे होंठों और फिर मेरी जीभ को रास्ता दिखाया और एक लम्बा प्रगाढ़ चुम्बन का आदान प्रदान हुआ हमारे बीच। मैं अपने आप में नहीं रह सका और खुद को रिंकी के हवाले कर दिया। रिंकी ने कुछ देर मेरे होंठों से खेलने के बाद धीरे से नीचे बैठने लगी और अपना मुँह सीधा मेरे लंड के पास ले गई। मैं बस चुपचाप खड़ा होकर मज़े ले रहा था।

थोड़ी देर पहले मैं डरा हुआ था और अब मैं यह चाहता था कि वो जल्दी से जल्दी अपने मुँह में मेरा लंड भर ले और इसकी सारी अकड़ निकाल दे…

रिंकी ने लंड को एक हाथ से थाम रखा था और दूसरे हाथ से मेरे अन्डकोषों से खेलने लगी। उसने धीरे से मेरे लंड का शीर्ष भाग चमड़े से बाहर निकाला और अपने होंठों को उस पर रख कर चूम लिया।

‘उम्म…’ मेरे मुँह से मज़े से भरी एक आह निकली और मैंने अपना लंड उसके होंठों पे दबा दिया।

रिंकी ने एक बार मेरी तरफ अपनी नज़रें उठाकर देखा और मुस्कुराते हुए अपने होंठों को पूरा खोलकर मेरे लंड के अग्र भाग को सरलता से अन्दर खींच लिया। थोड़ी देर उसी अवस्था में रखकर उसने अपने जीभ की नोक सुपारे के चारों ओर घुमाई और उसे पूरी तरह से गीला करके धीरे धीरे अन्दर तक ले लिया… इतना कि लंड की जड़ तक अब रिंकी के होंठ थे और ऐसा लग रहा था मानो मेरा नवाब कहीं खो गया हो…

मैं मज़े से बस उसके अगले कदम का इंतज़ार कर रहा था… जिस तरह धीरे-धीरे उसने मेरा लंड पूरा अन्दर तक लिया था ठीक वैसे ही धीरे-धीरे उसने उसने पूरे लंड को बाहर निकाला लेकिन सुपारे को अपने होंठों से आजाद नहीं किया और फिर से वैसे ही मस्त अंदाज़ में पूरे लंड को अन्दर कर लिया…

यह इतना आरामदायक और मजेदार था कि अगर हम ट्रेन में न होते तो शायद मैं रिंकी को घंटों वैसे ही खेलने देता मगर मुझे इस बात का एहसास था कि हम ज्यादा देर नहीं रह सकते और किसी के भी आ जाने का पूरा पूरा डर था। मैंने यह सोचकर ही रिंकी का सर अपने हाथों से पकड़ा और अपने लंड को एक झटके के साथ उसके मुँह में घुसेड़ कर जल्दी जल्दी आगे पीछे करने लगा…

“ग्गूऊऊउ… ऊउन्न… ग्गूऊउ…” रिंकी के मुँह से निकलते आवाज़ों को मैं सुन पा रहा था…मैंने कुछ ज्यादा ही तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे..

लंड उसके थूक से पूरा गीला हो गया था और चमक रहा था… कुछ थूक उसके होंठों से बहकर नीचे गिर रहा था। कुल मिलकर बड़ा मनमोहक दृश्य था… एक तो मैं पहले ही आंटी की चूत के स्पर्श के कारण जोश में था दूसरा रिंकी के मदमस्त होंठों और मुँह ने मेरे लंड को और भी उतावला कर दिया था। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और धका-धक पेलने लगा। मेरी आँखें मज़े से बंद हो गईं और रिंकी की आवाजें बढ़ गईं…

कसम से अगर चलती ट्रेन नहीं होती तो आस पड़ोस के सरे लोग इकट्ठा हो जाते।

“उफ्फ्फ… हाँ मेरी जान, और चूसो… और तेज़… और तेज़… ह्म्म…” उत्तेजना में मैंने ये बोलते हुए बड़ी ही बेरहमी से रिंकी का मुख चोदन जारी रखा और जब मुझे ऐसा लगा कि अब मैं झड़ने वाला हूँ तो रिंकी का चेहरा थोड़ा सा उठा कर उसे इशारे से ये समझाया।

मेरा इशारा मिलते ही रिंकी की आँखों में एक चमक सी आ गई और उसने अपने एक हाथ से मेरे अण्डों को जोर से मसल दिया…

“आअह्ह्ह… ऊओह्ह्ह… रिंकी…” मैंने एक जोरदार आह के साथ उसका मुँह मजबूती से पकड़ कर अपना पूरा लंड ठूंस दिया और न जाने कितनी ही पिचकारियाँ उसके गले में उतार दी…

एक पल के लिए तो रिंकी की साँसें ही रुक सी गईं थीं, इसका एहसास तब हुआ जब रिंकी ने झटके से अपना मुँह हटा कर जोर-जोर से साँस लेना शुरू किया। मुझे थोड़ा बुरा लगा लेकिन लंड के झड़ने के वक़्त कहाँ ये ख्याल रहता है कि किसे क्या तकलीफ हो रही है.

खैर… मैं इतना सुस्त सा हो गया कि लंड के झड़ने के बाद मेरी टाँगें कांपने सी लगीं और मैं वहीं कमोड पे बैठ गया। मेरा लंड अब भी रिंकी के मुँह के रस से भीगा चमक रहा था और लंड का पानी बूंदों में टपक रहा था।

वहीं दूसरी तरफ रिंकी बिल्कुल बैठ गई थी और अपनी कातिल निगाहों से कभी मुझे तो कभी मेरे लंड को निहार रही थी। मैंने पहले ही अपने होशोहवास में नहीं था, तभी रिंकी ने आगे बढ़ कर मेरे लंड को फिर से अपने हाथों में लिया और एक बार फिर से उसे मुँह में लेकर जोर से चूस लिया..

मेरी तन्द्रा टूटी और मैंने प्यार से उसके गालों को सहला कर उसके मुँह से अपना लंड छुड़ाया और उसे अपने साथ खड़ा किया। मैंने अपना लोअर ऊपर कर लिया और रिंकी को अपनी बाहों में लेकर उसके पूरे मुँह पर प्यार से चुम्बनों की बारिश कर दी। रिंकी भी मुझसे लिपट कर असीम आनन्द की अनुभूति कर रही थी।

तभी मुझे ऐसा लगा जैसे कोई बाथरूम की तरफ आया हो…

कहानी जारी रहेगी…

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