मेरी दीदी के कारनामे-3

(Meri Didi Ke Karname-3)

बदनाम 2012-05-29 Comments

This story is part of a series:

हेलो दोस्तो, पुणे वाला रोहित फिर से आ गया है ‘मेरी दीदी के कारनामे’ की अगली कड़ी लेकर !

दोस्तो, मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि मेरी लिखी हर कहानी सच्ची है। यह जो सिरीज़ आप पढ़ रहे हैं, यह मेरी एक सेक्स मित्र की ज़िंदगी की कहानी है.. बस यह कहानी मैं उसके भाई की नज़र से लिख रहा हूँ..

बात है उस समय की जब मैं रक्षाबन्धन के लिए दीदी के घर जा रहा था।

पुरानी बातों को काफ़ी समय बीत चुका था और अब मैं चूत का स्वाद चख चुका था, पूरे रास्ते मैं दीदी के गदराये बदन को याद कर रहा था और मेरा लंड ऐंठा जा रहा था। वो दीदी की मटकती भारी गाण्ड और वो गोरे गोरे पेट का सारी की बगल से दिखना, वो दीदी के गोरे गोरे चाँद से चेहरे पर लाल रंग की रसीली लिपस्टिक, वो छोटे से ब्लाउज़ में से गोरी गोरी चूचियों का बाहर झांकना..

मुझे अभी भी याद है उन कुछ दिनों की जब दीदी को मैंने मकान मलिक से चुदते हुए देखा था, रोज़ जब वो नहा कर बस पेटिकोट और ब्लाउज़ में बाहर आती थी। वो पूरे बदन पर हल्की छोटी छोटी पानी की बूंदें, वो पानी से गीले होने के वजह से दीदी के ब्लाउज का पारदर्शी होना और उसमें से निप्पल की झलक मात्र से मेरा रोम रोम मचल उठता था, वो गीले पेटिकोट का दीदी के चूतड़ों की दरार में घुस कर उनके चूतड़ों का आकार दर्शा जाना… और उसके बाद जब दीदी अपनी जवानी का जलवा गिराते हुए मचल कर चलती थी..

क्या बताएँ दोस्तो, लंड सब कुछ फाड़ कर बस दीदी की चूत में घुस जाना चाहता था।

खैर इन्हीं यादों के चलते मुझे ट्रेन में दो बार मूठ मारनी पड़ी और इस तरह मैं अपनी दीदी के घर रक्षाबन्धन मनाने पहुँच गया।

जैसे ही दरवाजा खुला मेरी दीदी मेरे सामने खड़ी थी… उन्हें देखते ही मेरा दिल एक बार तो बहुत ज़ोर से धड़का, इस पूरे एक साल में दीदी और भी सेक्सी ही गई थी, कुछ ही देर में मुझे एहसास हो गया कि दीदी की चूचियाँ और कूल्हे दोनों ही पहले से बड़े और मस्त हो गये हैं.. क्या मादक गाण्ड थी दीदी की.. मन कर रहा कि वहीं उन्हें सोफे पर झुका कर पीछे साड़ी उठाकर उनकी गाण्ड में घुस जाऊँ और जी भर कर रस पी जाऊँ..

लेकिन मेरी किस्मत में बस देखना ही लिखा था।

चलिए अब आपको अपनी बहन के नया कारनामा बताता हूँ..

मेरे जीजाजी की नौकरी अब दूसरी जगह लग गई थी और कुछ ही दिन पहले उनकी नाइट शिफ्ट लगी थी.. तो पूरे दिन मैं दीदी और जीजा जी बात करता रहा, शाम होते ही जीजाजी अपनी जॉब पर चले गए।

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फिर मैं छत पर अपने भान्जे से साथ खेलने लगा, तभी वहाँ बाजू की छत से एक आदमी हमारी छत पर आ गया, उसकी छत हमसे एक मंज़िल नीची थी, फिर भी वो सीढ़ी लगा कर हमारी छत पर आया.. यह मुझे थोड़ा अजीब लगा..

मेरे भान्जे ने उसे नमस्ते किया और फिर उस आदमी ने मुझे मेरे बारे में पूछा।

थोड़ी बातचीत होने पर पता लगा कि वो बाजू का पूरा घर उसका है और वो खुद पुलिस में किसी बड़े पद पर काम करता है। देखने में भी वो काफ़ी बड़े शरीर वाला लग रहा था, करीब 6’5′ कद, काफ़ी मजबूत पूरे शरीर पर बाल !

किसी अखाड़े के पहलवान जैसे सेहत और आवाज़ में काफ़ी रुआब ! उसे देख कर तो मुझे भी डर लग रहा था।

तभी उसने मेरे भान्जे से मेरी दीदी के बारे में पूछा।
मैं बोला- वो नीचे खाना बना रही है।
वो बोला- मुझे ज़रा बिजली ठीक करने वाले का नंबर लेना है, मैं अभी आता हूँ।

अब अपनी दीदी को तो मैं अच्छी तरह जानता था, मुझे लगा कि देखना तो पड़ेगा कहीं कुछ नज़ारा ही देखने को मिल जाए..

वो नीचे जाकर सीधा रसोई में घुस गया और मैं चुपचाप नीचे उतर कर आया और अंदर की बातें सुनने की कोशिश करने लगा।

‘इशह ! क्या करते हो? ऊई माँ ! अह्ह्ह ! आहह… ओइंआ ! मान भी जाओ ना .. आहह !’
फिर दीदी की गुस्से में आवाज़ आई- जाओ यहां से ! मुझे नहीं बात करने तुमसे..

फिर बहुत धीरे बातें करने की आवाज़ें आने लगी और तभी रसभरे चुंबन की आवाज़ें आने लगी जैसे कोई बेहताशा किसी को चूस रहा हो, चाट रहा हो..

दीदी की मादक आवाज़ गूँ गूँ में लिपट कर मुझे अपने मन में अंदर के मादक नज़ारे की बनाने के लिए मजबूर कर रही थी..

मुझसे रहा ना गया तो मैंने एक बार अंदर झाँक कर देखने की कोशिश की..

मैंने देखा कि दीदी की बगल मेरी तरफ है.. और वो आदमी दीदी की जीभ को अपने मुँह में भर कर चूस रहा है..

दीदी की एकदम लाल जीभ और उस पर चमकता राल, और वो उसे अपने होंठों में भर भर कर चूस रहा था मानो जैसे आज दीदी की जीभ तो पूरी खा ही लेगा.. दीदी के होंठ के आसपास सब राल से गीला होकर चमक रहा था..

कितना मादक था यह नजारा ! बता नहीं सकता दोस्तो.. शब्द कम पड़ रहे हैं..

और उधर वो दोनों हाथों से दीदी के मोटे चूतड़ों को साड़ी के ऊपर से मसल रहा है..

तभी मेरी नज़र उसके पाजामे पर पड़ी, दीदी का हाथ उसके पाजामे के अंदर था और उसके लंड की सहला रही थी… क्यूँकि दीदी को एहसास नहीं था मेरे होने का ! उन्होंने उसके लंड की पकड़ कर पाजामे से बाहर निकाल लिया।

हे भगवान ! क्या लंड था उस आदमी का.. ! किसी सेक्स मूवी की तरह एक फुट लंबा और इतना मोटा, ऐसा कुछ नहीं था..

लेकिन मेरे अंदाज़ से वो आधा खड़ा लंड ही 6-7 इंच का होगा।

लेकिन हैरान करने वाली तो उनके लंड की मोटाई थी.. देखने से ऐसा लग रहा था कि शायद उसकी गोलाई दीदी के हाथ में नहीं समा पा रही थी, कम से कम मेरी कलाई जितना मोटा लंड था… एक बार तो मेरा गला सुख गया.. और मैं डर के मारे वहाँ से वापिस जाने ही वाला था कि मेरी नज़र ऊपर उठी तो देखा कि वो आदमी मुझे ही देख रहा है.. और उसे देख कर लगा मानो वो बहुत गुस्से में है…

बस मैं तो तुरंत वहाँ से भाग कर छत पर आ गया..

कुछ देर बाद वो छत पर आया.. उसे अपनी तरफ आते देख तो मेरी गाण्ड फट गई.. और फटे भी क्यूँ ना ! मैं कहाँ एक मासूम 18 साल का लड़का और वो 35-40 साल का एक पहलवान..

वो एकदम भारी आवाज़ में मुझसे बोला- तुम नीचे क्यूँ आए थे.. क्या देखा तुमने?

डरा तो मैं पहले से हुआ था, उसकी भारी आवाज़ सुन कर और डर गया.. काम्पती आवाज़ में मैं बोला- कुछ नहीं, प्यास लगी थी तो पानी पीने आया था.. मैंने कुछ नहीं देखा..

वो बोला- देख रे, अगर तूने यह बात किसी को भी बताई तो झूठ केस में जेल में डाल कर पूरी रात तेरी गाण्ड में मिर्च का डंडा घुसा दूँगा.. समझ आया?

मैं बोला- हाँ !

मेरी तो आवाज़ ही नहीं निकल रही थी.. वो हल्का सा मुस्कुराया और बोला- तू समझदार लगता है मुझे इन मामलों में, अगर कुछ नहीं बोलेगा तो तुझे भी बहुत मज़ा आएगा।

मैं बोला- वो क्या?

उसने अपने लंड पर हाथ फिराते हुए बोला- तेरी बहन बहुत बड़ी रंडी है, कसम से बिना चोदे रात नहीं बीतती मेरी… आज रात भी चोदूँगा उसे.. तुझे देखना है तो बता?

मैं अजीब भी असमंजस में था, देखना भी चाहता था मगर कहूँ कैसे?

मैंने बस सिर नीचे कर लिया।

वो फिर बोला- अगर देखना हो रात में एक बजे छत पर आ जाना चुपचाप… लेकिन हाँ, अगर कुछ हरकत करने की कोशिश की तो यह मत भूलना कि मैं पुलिस में बहुत बड़ा अफ़सर हूँ, गाण्ड में डंडा डाल कर मुँह से निकाल लूँगा.. वो तुमने देख लिया, इसीलिए जितना मज़ा दिला रहा हूँ, ले लो ! वरना यह भी कोई ना करता..

और फिर वो चला गया।

फिर रात के खाने के वक़्त दीदी मुझे बहुत घूर रही थी, शायद उन्हें भी मालूम था कि मैं उनकी इन सब रंगरलियों के बारे में सब जानता हूँ.. लेकिन वो कुछ बोली नहीं..

रात को सोने की तैयारी हो रही थी.. दीदी ने अपने ही कमरे में सोने के लिए बोला क्यूँकि जीजा जी तो थे नहीं.. कुछ देर बाद दीदी नहा कर कमरे में आई.. कुछ सिल्की पेटिकोट पहन रखा था और ऊपर एक सफेद ब्लाउज़, दीदी को देखा तो उनके निप्पल मुझे साफ दिख रहे थे और जब वो कमरे से बाहर जा रही थी तो हिलते चूतड़ बता रहे थे कि उन्होंने पैंटी भी नहीं पहनी..

यह सब सोच कर ही मेरा लंड खड़ा हो गया…

तभी दीदी वापिस अंदर आई और थोड़ी कड़क आवाज़ में बोली- सुन छोटे, आजकल मोहल्ले में चोरी बहुत होती हैं, और चोर छत पर से अंदर घुस कर चोरी करते हैं.. इसीलिए हर घर से कोई एक ऊपर छत पर सोता है, तेरे जीजाजी तो है नहीं.. तो मैं छत पर सोने जा रही हूँ.. तू यहीं सोना !

मैं बोला- दीदी मैं नीचे बोर हो जाऊँगा.. मैं भी ऊपर ही बिस्तर लगा लेता हूँ..

दीदी तुरंत गुस्से में बोली- नहीं.. तू यहीं सो ! दो दिन के लिए आया है, आराम कर तू..

कुछ ही देर में दीदी ऊपर चली गई सोने के लिए.. मुझे पूरा यकीन था कि यह चोर वाली बात सब झूठ है, मामला तो वही है जो मैं और आप सभी समझ रहे हैं।

खैर मैं तो एक बजने का इंतजार कर रहा था लेकिन समय बीत ही नहीं रहा था, मैंने सोचा कि क्यूँ ना थोड़ा पहले ही जाकर देखा जाए..

अब ज़रा पहले यह बता दूँ कि दीदी का घर उस मोहल्ले में सबसे ऊँचा है, मतलब दीदी की छत पर और कोई नहीं देख सकता, हाँ, हमारी छत से सबकी छत दिखती है।

तो अब आगे बताता हूँ…

मैंने पहले नीचे से ही सीढ़ियों की बत्ती बंद कर दी और चुपचाप ऊपर चला गया.. सबसे ऊपर आकर कर मैंने चुपचाप छत का दरवाजा धीरे से खोला तो सामने छत पर कुछ ही दूर दीदी एक बड़ी सी खाट पर लेटी हुई थी और फोन पर किसी से बात कर रही थी…

कुछ देर सुनने पर पता लगा वो जीजाजी से सेक्सी बातें कर रही थी… इस वक़्त दीदी कामदेवी लग रही थी..

‘नहीं, मैं नहीं बोलूँगी…’

‘हटो ना आप ! नहीं आप तो मेरी सौतन के पास ही रहना, घुस जाओ उस छीनाल के भोंसड़े में !’

‘क्या राज, तुम तो जानते हो मुझसे गर्मी बर्दाश्त नहीं होती और आपने कितने दिन से नहीं किया है !’

‘हाँ हाँ ढूंढ लूँगी आसपास में मुस्टंडा कोई ! लेकिन सच कहूँ राज ! आप चुदाई के मामले में जादूगर हो, मुझे किसी और का ख्याल ही नहीं आता.. आप ही मेरे सब कुछ हो..’

दीदी ने एक तरफ करवट ले रखी थी, उनके चूतड़ मेरी तरफ थे.. जीजाजी से बातें करते करते उन्होंने अपना पेटीकोट ऊपर उठाता और चूत सहलाने लगी… मेरी तरफ से दीदी की मांसल जांघें एकदम चमकती हुई दिख रही थी.. और दीदी की बड़ी भारी गाण्ड.. एकदम गोल गोल.. रूई की तरह मुलायम लग रही थी। बीच बीच में दीदी का बदन हिलता तो उनके कूल्हे कुछ देर तक हिलते रहते..

‘आह.. आहह !’ क्या मस्त चूतड़ थे दीदी के ! दिल तो कर रहा था कि पूरी जिंदगी दीदी की गाण्ड ही चाटता रहूँ..

मैं वहीं बैठा दीदी को बातें करता देख रहा था और अपना लंड सहला रहा था.. तभी…

कहानी जारी रहेगी।
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