जिस्म की जरूरत-18

(Jism ki Jarurat Chut Chudai Sex-18)

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मैंने अब उसकी आखिरी झिझक को दूर करना ही उचित समझा और उसका एक हाथ पकड़ कर उसे सीधे अपने ‘नवाब साब’ पर रख दिया।

मेरे लिए किसी लड़की या स्त्री का मेरे लंड को छूना कोई पहली बार नहीं था लेकिन फिर भी लंड तो लंड ही होता है… जब भी कोई नया हाथ उसे दुलार करे तो वो ठुनक कर उसका स्वागत जरूर करता है… मेरे लंड ने भी वंदना के हाथ पड़ते ही ठुनक कर उसका स्वागत किया..

लेकिन इस ठनक ने वंदना को थोड़ा सा चौंका दिया और उसने लंड के ऊपर से हाथ हटा लिया लेकिन उसके हाथ अब भी लंड के आस पास ही थे…

‘क्या हुआ… कमरे में तो बहुत तड़प रही थीं आप इन्हें पकड़ने के लिए… अब जब ये खुद आपसे मिलना चाहते हैं तो आप शर्मा रही हैं…!?!’ मैंने धीरे से उसके कानो के पास अपने होठ ले जा कर फुसफुसा कर कहा।

‘धत… बदमाश कहीं के…’ वहाँ अँधेरा था लेकिन मैं इतना जरूर कह सकता हूँ कि यह कहते हुए उसके चेहरे पे लाली जरूर छा गई होगी।

जवाब में मैंने बस उसके होठों पर एक चुम्बन लिया और धीरे से उसके हाथ को एक बार फिर से अपने लंड पे रखते हुए कहा- मुझ पर भरोसा है… अगर हाँ तो डरो मत.. मैं आपको कुछ नहीं होने दूँगा।

मेरी बातों ने वंदना पे जादू सा काम किया और अब उसके हाथों ने थोड़ी हरकत करनी शुरू की… अब मेरे ‘नवाब साब’ पूरी मस्ती में आ गये और जोर-जोर से ठुनकने लगे… पता नहीं कैसे लेकिन हर लड़की और स्त्री को इतना आभास हो जाता है कि लंड महाराज को किस तरह हिलाया जाए या सहलाया जाए… या फिर हो सकता है ये किसी से सीखा भी जाता हो।

खैर जो भी हो… वंदना ने अब मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर हौले-हौले ऊपर नीचे करना शुरू किया। उसकी रफ़्तार बहुत धीमी थी… वरना जितनी देर से मैंने अपने लंड को सम्भाल रखा था, अगर थोड़ी देर और ऐसा ही चलता तो मेरी पिचकारी जरूर चल जाती..

एक बार फिर वंदना और मेरे होंठ एक साथ मिल गए और हमारी जीभ एक दूसरे के साथ अठखेलियाँ करने लगी… और मेरे हाथ उसकी चूचियों का मर्दन करने में व्यस्त हो गए…

लंड की हालत बहुत खराब हो रही थी और उसे हर हालत में अब कोई न कोई छेद चाहिए था… कौन सा छेद, यह हालात पर निर्भर करता है। अगर हम इस वक़्त किसी कमरे में होते तो मैं अपनी पसंद के अनुसार पहले तो मुँह के छेद को इस्तेमाल करता और फिर बाद में उन दोनों छेदों का इस्तेमाल करता जो अनमोल हैं लेकिन इस छोटी सी कार में अपनी हर इच्छा की पूर्ति संभव नज़र नहीं आ रही थी मुझे…

इसी दरम्यान मेरा ध्यान सहसा अपने लंड की तरफ खिंच गया क्यंकि मुझे मेरे लंड से किसी शानदार गद्देदार चीज के टकराने और उससे रगड़ खाने का एहसास हुआ। यूँ तो वंदना की चूचियाँ मेरे हाथों से ही मसली जा रही थीं लेकिन उन चूचियों के बीच की घाटी में वंदना ने मेरे लंड को रगड़ना चालू कर दिया था। यह इस बात का प्रमाण था कि अब वो भी इस खेल के अंतिम पड़ाव पर पहुँचना चाहती थी।

सहसा उसने लंड को अपने सीने पे रगड़ते-रगड़ते अपनी गर्दन झुकाई और मेरे लंड के माथे पे अपने होठों से एक हल्का सा चुम्बन लिया… और बड़ी तेज़ी से अपने होंठ हटा लिए।
अँधेरे का फायदा हो रहा था… आम तौर पे कोई भी नई लड़की पहली बार इतना नहीं खुलती कि खुद से लंड को चूमे या उसे अपने मुँह में ले, और सामान्य हालातों में तो बिल्कुल भी नहीं जहाँ थोड़ से भी उजाले की गुंजाइश हो। लेकिन यहाँ तो घना अँधेरा पसरा हुआ था… बस बीच-बीच में चमकती बिजलियाँ हम दोनों को एक दूसरे के नंगे बदन को देखने और महसूस करने में मदद कर रही थी।

वंदना का मेरे लंड पर चूमना मुझे बहुत खुश कर गया और मैंने उसकी चूचियों को जोर से अपनी हथेलियों में दबाकर और उसके माथे पे अपने होठों से एक चुम्बन देकर अपनी ख़ुशी का इज़हार किया।
मुझे पूरा यकीन था कि अगर मैं थोड़ी सी कोशिश करता तो आराम से वंदना के खूबसूरत रसीले होठों से होते हुए अपने लंड को उसके मुँह में अन्दर तक डाल कर उसका मुख मैथुन कर सकता था… और मेरा लंड भी मुझे बार-बार ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहा था।

पर मुझे इस बात का ख़याल था कि हमें अब ज्यादा देरी किये बिना जल्दी से जल्दी अपनी चुदाई कर लेनी होगी और घर पहुँचना होगा वरना थोड़ी मुश्किल हो सकती थी। और अब मुझे इस बात की तसल्ली थी कि आज के बाद वंदना को जब चाहूँ तब बड़े आराम से चोद सकूँगा तो फिर इतना बेसब्र होने की कोई जरूरत नहीं थी।

इस बार मेरे लंड चुसवाने की जो इच्छा अधूरी रह गई है उसे मैं बड़े ही शानदार तरीके से पूरी करूँगा और वो पल यादगार साबित होगा… वंदना रानी को अपने लंड का ऐसा रस पिलाऊँगा कि वो तृप्त ही हो जाएगी।
फिलहाल तो उसकी रस से लबालब भरी और उत्तेजना में फड़फड़ाती हुई चूत की आग को शांत करना जरूरी था।

अब मैदान छोड़ नहीं सकते.. और कौन कमबख्त इतनी हसीन लड़की को यों काम वासना से तड़पते हुए छोड़ कर जा सकता था।

सारी बातों का ध्यान रखते हुए मैंने वंदना को अब धीरे-धीरे से सीट पे लिटाना शुरू किया और उसे यहाँ-वहाँ चूमते हुए लिटा दिया। वंदना उन्माद से भर कर अपनी चूचियों को हौले-हौले सहलाने लगी और सिसकारियाँ निकलने लगी..

मैंने अब झट से उसके पैरों में फंसी हुई उसकी सलवार और उसकी पैंटी को निकाल फेंका और उसके पैरों को फैलाकर किसी तरह उनके बीच घुसने की कोशिश करने लगा।

आप सब जिन्होंने कभी किसी छोटी कार में इस खेल का मज़ा लिया है उन्हें पता होगा इस कशमकश के बारे में…

खैर जैसे-तैसे मैं उस जगह पर पहुँचने में कामयाब रहा और अब मैं लगभग वंदना के ऊपर आ गया। मैंने अपने हाथों से उसके हाथों को हटाया जो उसकी चूचियों को सहला रहे था… उसके दोनों हाथों को अपने हाथों से थाम लिया मैंने और क्यूँ ये शायद मुझे बताने की जरूरत नहीं… इतने समझदार तो आप हैं।

उसके होठों को एक बार चूम कर मैंने धीरे से फुसफुसाकर बिल्कुल उन्माद भरे स्वर में उससे कुछ कहा- अब इन्हें मेरे हवाले कर दो ‘वंदु’…
पता नहीं मेरे मुँह से ये शब्द कैसे निकल पड़े…

‘आःहह्ह… ये आपके लिए ही हैं समीर… अब उनपर मेरा कोई अधिकार नहीं!’ लड़खड़ाती आवाज़ में वंदना ने मेरी बात का जवाब दिया और अपनी गर्दन पीछे की तरफ धकेलते हुए अपने सीने को उभार दिया।

उसके इस अंदाज़ पे मैं फ़िदा हो गया और झट से अपने होठों में उसकी एक चूची को भर लिया और उसके निप्पल को चूसने लगा.. वंदना अपने मुँह से मादक सिसकारियाँ लेती हुई अपनी चूचियों को मेरे मुँह में ठेलने लगी।

मैंने भी उसकी इच्छा का पूरा सम्मान किया और जितना हो सके उसकी चूचियों को अपने मुँह में भर लिया और मज़े से चूसने लगा।

अब मैंने अपने एक हाथ को आज़ाद कराया और नीचे ले जा कर अपने लंड को पकड़ कर वंदना की चूत पर हल्के से रखा।

‘उह्ह हह्हह्ह… स्स्स्समीर, मुझे डर लग रहा है…’ वंदना ने अचानक से अपनी चूत पर मेरे गरम लंड के सुपारे को महसूस करती ही अपने हाथ से मेरे बालों को पकड़ लिया और कांपते हुए शब्दों में अपनी घबराहट का इज़हार किया।
कहानी जारी रहेगी।

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