वो सात दिन-2

(Vo Saat Din -2)

This story is part of a series:

प्रीत आर्य
आपने मेरी कहानी वो सात दिन का पहला भाग तो पढ़ा ही होगा…

आज मैं अपनी कहानी का दूसरा भाग आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।

घर पहुँचा तो देखा मम्मी स्वाति आंटी से ही फोन पर बातें कर रही थी- हाँ…हाँ… क्यूँ नहीं… और ठीक ही है… अकेले के लिये खाना बनाने का मन भी तो नहीं करता… जब तक शरद भाई और मीत नहीं आते, मैं प्रीत को रोज शाम को तुम्हारे घर भेज दूँगी… वो डिनर भी तुम्हारे यहाँ ही करेगा… और तुम्हारे घर ही सो जाया करेगा… हाँ…हाँ… तुम उसके साथ बहुत सारी बातें करना… प्रीत पर मेरा जितना अधिकार है उतना ही तुम्हारा भी तो है… डोन्ट वरी… ठीक है… जय श्री कृष्ण… !

मन ही मन आंटी के दिमाग़ की दाद देते हुए दिखावे के लिये एक बार फिर नहाया, चाय-नाश्ता किया और अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने चला गया पर दिल तो स्वाति आंटी में ही लगा था। खेल कर घर आया, खाना खाया और फिर सो गया। लगभग तीन घंटे सोने के बाद मोबाईल की रिंग से नींद खुली तो देखा, स्वाति आंटी का काल था इसलिये तुरन्त उठ कर रिसीव किया- सो रहे थे क्या… कितनी देर से रिंग बज रही थी…!

”हाँ आंटी… आपने रात को बहुत थका दिया… और फिर रात को जगना भी तो है…!” मैंने शरारत भरा जवाब दिया।

”मैंने इसलिये काल किया कि शाम को थोड़ा जल्दी आ जाना… डिनर साथ में करेंगे… और तुम्हारे लिये एक सरप्राईज़ भी है… यू विल रियली एन्जोय इट… ओके बाय… शाम को मिलते हैं… !” ऐसा कह कर स्वाति आंटी ने फोन काट दिया पर अब मेरा दिन काटना और भी मुश्किल हो गया, जैसे तैसे टीवी देख कर दो घंटे बिताये और ठीक 7 बजे मम्मी को कह कर लिफ्ट में सवार हो 19वें फ्लोर की ओर बढ़ गया।

स्वाति आंटी ने आज वेस्टर्न बड़े गले का टाप और थ्री फोर्थ जीन्स पहनी थी जिसमें वो कयामत लग रही थी। अन्दर पहुँचा तो देखा कि वहाँ पहले से ही आंटी की दो सहेलियाँ मौजूद थी।

मुझे लगा कि मैं शायद ज्यादा जल्दी आ गया हूँ इसलिये शरमा कर धीरे से आंटी से पूछा- मैं थोड़ी देर से आऊँ…?

आंटी ने कहा- नहीं… नहीं… आ जाओ अन्दर… यहीं हमारे साथ बैठो… !

कहते हुए आंटी ने मुझे अपने साथ सोफे पर बैठने का इशारा किया, वो दोनों मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहीं थीं।

मैंने फिर भी कहा- नहीं आंटी… मैं मीत के रूम में बैठ जाता हूँ… !

पर स्वाति आंटी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने साथ सोफे तक ले गई और अपने पास बिठाते हुए कहा- बैठो ना… बी ईज़ी… !

फिर सामने बैठी अपनी सहेली की ओर इशारा करते हुए कहा- इनको तुम जानते हो…? ये हमारी बिल्डिंग के ट्वेल्थ फ्लोर पर ही रहती हैं… !

“हाँ… ये पार्थ की ममा हैं… हैं ना…? आंटी… पार्थ इज़ वेरी स्वीट चाईल्ड… ग्राउन्ड में खेलने आता है… और मैंने आपको यहाँ भी कई बार देखा है !” मैंने जवाब देते हुए उनको हैलो किया तो उन्होंने मादक अंदाज़ में कहा- मेरा नाम अनुभूति है… और तुम मुझे अनु कह सकते हो… नो आंटी… ओके…!

सच में… मॉडर्न छोटे हेयर कट, गोरे गालों, कसे हुए उरोज़ों, पतली कमर और मस्त जाघों वाली अनु टाईट जीन्स, टी शर्ट में किसी भी ऐन्गल से आंटी नहीं लगती थी… उनको देख कर कोई नहीं कह सकता कि वो दस साल के पार्थ की मम्मी थी। मैं उनको निहार रहा था तभी स्वाति आंटी बोली- और यह परिणीति है… हमारे सामने वाले डुप्लैक्स में रहने वाले मिस्टर शाह इसके डैडी हैं… !

”हाँ… इनको तो मैंने कई बार आपके यहाँ ही देखा हैं… !” मैंने तुरन्त जवाब दिया।

मासूम चेहरा, नीली आँखें, मध्यम आकार के नुकीले उभार, कमसिन बदन और मिनी शोर्ट्स में झांकती लम्बी गोरी टांगों को एक के ऊपर एक चढ़ाये परिणीति कमाल की सैक्सी लग रही थी।

मैं इन दोनों के उतार-चढ़ाव में खोया था तभी स्वाति आंटी बोलीं- और ये है प्रीत… माई स्वीट लिटिल बोय… जिसके बारे में मैंने तुमको आज बताया था… ! कह कर उन्होंने मेरे गाल पर किस कर दिया।

मैं डर गया कि आंटी यह क्या कर रहीं हैं पर वो उन दोनों की ओर इशारा करते हुए तुरन्त बोलीं- प्रीत… ये ही तो आज का सरप्राईज़ है… हम तीनों बेस्ट फ्रेंड्स है और आपस में अपनी हर बात शेयर करतीं हैं… आज सुबह परिणीति ने तुमको यहाँ से जाते हुए देखा और उसी वक्त वो मेरे पास आई तुम्हारे बारे में पूछा तो मैंने कल की सब बात बता दी तब तीनों ने मिलकर डिसाइड किया कि ये एन्जोय भी हम शेयर करेंगे… अगर तुम हाँ करो तो… !”

मुझे तो जैसे खज़ाना मिल गया था, फिर भी भाव खाते हुए स्वाति आंटी की ओर देख कर बोला बोला- आपका जैसा कहें आंटी… !” स्वाति आंटी खिलखिलाती हुई बोली- डेट्स लाइक ए गुड बोय… वैसे… आज अनु हमारे साथ नहीं है… वो कल हमें जोइन करेगी… आज परी हमारे पास रुकने वाली है… और प्रीत… तुम जानते हो… परी अभी तक वर्जिन है…!”

मैं बड़े आश्चर्य से बोला- रियली… आप अभी तक… आप तो इतनी मॉडर्न हैं… और इतनी गुड लुकिंग भी… फिर भी…?”

परिणीति ने जवाब दिया- पहले स्टडी के कारण ये सब करने का टाईम ही नहीं मिला… अब बहुत मन करता है पर डरती हूँ कि पापा-मम्मा को मेरे कारण नीचा ना देखना पड़े… पर कभी-कभी हम तीनों एक दूसरे को सेटिस्फाई कर लेते हैं।”

”मैं चलती हूँ… पार्थ को आज थोड़ा फीवर है… कल मैं जरूर आऊँगी।” कहती हुई अनुभूति उठ कर जाने लगी तो स्वाति आंटी ने कहा- ओके डियर… टेक केयर ओफ पार्थ… आज परी को एन्जोय कर लेने दो… ।”

दोनों हंसने लगी तभी अनु मेरे पास आई और मेरे होंठों को अपने होंठों से मिला कर एक प्यारा सा गुडबाय किस किया और चली गई… स्वाति आंटी भी मेन डोर बंद कर के रसोई में चली गई।

परी मेरे पास आकर निमंत्रण की मुद्रा में बैठ गई मैंने भी तुरन्त उसका आमंत्रण स्वीकार कर लिया। मेरा एक हाथ परी की चिकनी जांघों पर और दूसरा हाथ परी के टी-शर्ट पर उसके उरोज़ों को दबाने लगा था, परी भी दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ कर मेरे होठों को चूमने, चूसने लगी।

उसके तन की सुगंध से मैं पागल हुआ जा रहा था। मैंने उसके टी-शर्ट को पकड़ कर ऊपर किया तो उसने भी बाहें ऊपर उठा कर टी-शर्ट को उतार फेंका और खुद ही अपनी ब्रा खोल बाहें फैलाकर मुझे निमन्त्रण देने लगी।

इतने खूबसूरत, कसे उरोज़ मैंने कभी किसी मूवी में भी नहीं देखे थे, मैं तुरन्त परी के छोटे-छोटे गुलाबी निप्पलों को चूसने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

वो भी मदहोश हो कर मेरे बालों में हाथ फिराने लगी, तभी आंटी की आवाज से हम दोनों चौंक गये- अभी नहीं… पहले डिनर कर लो… मुझे पहले ही पता था… इसलिये मैंने डिनर पहले ही रेडी कर माईक्रोवेव में रख दिया था… जल्दी से उठ कर खा लो… हमारे पास सारी रात पड़ी है ये सब करने को… प्रीत बेटा… प्लीज़… !

छोड़ने का दिल तो नहीं था पर फिर भी उठा और डाईनिंग टेबल पर जाकर बैठ गया, परी भी फिर से टी-शर्ट पहन कर मेरे पास आकर बैठ गई।

आंटी खाना बनाने में भी परफेक्ट थी… हम सबने डिनर किया… आंटी उठ कर रसोई समेटने चली गई और हम दोनों सोफे पर बैठ फिर अपनी रासलीला में लग गये। मैंने फिर से परिणीति का टी-शर्ट उतारा और उसे सोफे पर गिरा कर उसके शोर्ट्स को खोल कर उसकी गुलाबी लिन्गरी को पुचकारने लगा और कुछ ही सेकंडों के बाद उसे भी धीरे से उतार फेंका। मैंने आज तक इतनी कसी हुई, बिना बालों वाली गुलाबी योनि कभी किसी मूवी में भी नहीं देखी थी इसलिये अन्दर ही अन्दर रोमांच से भर गया और तुरन्त अपने होठों को परी की योनि से लगा कर अपनी जीभ से उसे चूसने, चाटने लगा।

वो भी मदहोशी से आँखें बन्द किये मेरे सिर पर हाथ फिरा रही थी- आह… प्रीत… अन्दर तक घुसाओ… सूपर्ब… बहुत अच्छे… प्रीत… प्लीज़ और ज़ोर से… !

फिर स्वाति आंटी की आवाज़ से रासलीला में खलल पड़ा- चलो उठो दोनों… बैडरूम में चलो… मैं भी फ्री हो गई हूँ… वहीं एन्जोय करेंगे… !

हम दोनों तो वहीं करने को तैयार थे पर आंटी भी साथ थी इसलिये मैंने उठकर परी को अपनी गोद में उठा लिया और आंटी के पीछे-पीछे बैडरूम की ओर चल पड़ा।

बैडरूम में पहुँच कर परी को बैड पर लिटाया और अपने कपड़े उतार कर फिर से परी को चूमना शुरू किया तो उसने मुझे नीचे लेटने को कहा और मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे लिंग को मुँह में ले कर चूसने लगी। आंटी भी म्युज़िक ओन कर के अपने कपड़े खोल कर बैड पर आई और अपनी योनि मेरे मुंह पर रख घुटनों के बल बैठ गई और मैं उनकी योनि चूसने लगा। कुछ देर में वो हटी और परी को हटा उसको सिखाने की मुद्रा में मेरे लिंग को चूसने, चाटने लगी। थोड़ी देर बाद ही उन्होंने मुझे उठा कर परी को नीचे सुलाया और उसकी योनि चूसने लगी।

कुछ देर चूसने के बाद स्वाति आंटी बोलीं- आओ प्रीत… फक हर नाऊ… !” कह कर आंटी ने परी के नितंबों के नीचे तकिया लगाया और मुझे कन्टीन्यू करने को कहा।

मैंने तुरन्त अपनी उंगलियों से उसकी योनि के छेद को थोड़ा फैलाया और लिंग को परी की योनि पर रख हल्का दबाव दिया जिससे परी कराह उठी फिर थोड़ा और जोर से धक्का दिया जिससे लिंग आधा अन्दर तक घुस गया। परी हल्की आवाजों में सिसकारियाँ भर रही थी फिर मैंने अपना लिंग थोड़ा जोर से अन्दर घुसा दिया।

परी जोर से चिल्लाई- प्रीत… नहीं… प्लीज़… बाहर निकालो… बहुत दर्द हो रहा है… जोर से नहीं… !

पर आंटी ने कहा- नहीं प्रीत… रुकना नहीं… कन्टीन्यू रखो… अभी उसको ठीक लगने लगेगा… !

मैंने अपने कूल्हों से धक्के तेज कर दिये जिससे अब लिंग पूरा अन्दर घुस रहा था और कराहें अब सिसकारियों में बदल गई थी- आह्ह… प्रीत… कम ओन… अब अच्छा लग रहा है… रियली फ़ीलिंग लाईक हैवन नाऊ… करते रहो… वाओ… बहुत मस्त है… यू आर रियली ग्रेट प्रीत… और जोर से… !

”ये मज़ा मुझे पहले क्यूं नहीं मिला… प्रीत… यू आर अमेज़िंग… मैं फ़िनिश होने वाली हूँ… प्रीत… मुझे मसल दो… क्रश मी… वाओ… उफ़्फ़… !” मादक सिसकारियाँ करते हुए परी दस ही मिनट में स्खलित हो कर निढाल हो गई।

मैं भी थक गया था पर अभी तक स्खलित नहीं हुआ था, इसलिये तुरन्त स्वाति आंटी को पकड़ कर लिटाया और अपना लिंग उनकी योनि में घुसा दिया। स्वाति आंटी भी तैयार थी… उन्होंने अपने पैर उठा कर मेरे कूल्हों पर रख दिये और धक्कों मे मेरी हैल्प करने लगीं जिससे मुझे थकान महसूस नहीं हो।

अब कमरा आंटी की उत्तेजक आवाज़ों से गूंजने लगा था- प्रीत… यू आर सो स्वीट… फक मी… और जोर से… तुम्हारा स्टेमिना गज़ब का है… माई स्वीट बोय… आह्ह… बहुत अच्छा है… रुकना नहीं… उफ्फ… आई लव यू प्रीत… !

काफी देर ठोकने के बाद मैं भी स्खलित हो गया पर फिर भी आंटी के फिनिश होने तक धक्के मारता रहा… कुछ देर में आंटी भी उत्तेजक चीत्कारों के साथ चरम पर आकर फिनिश हो गई। मैं अलग हो कर बैड पर गिर गया… सारा बदन पसीने से तर-बतर और थक कर चूर हो चुका था।

परिणीति को थोड़ी ब्लीडिंग हुई थी इसलिये वो टोयलेट में जाकर अपनी योनि धोकर आई और मुझे अपनी योनि पर बोरोलीन लगाने को कहा। मैंने अपनी उंगली पर बोरोलीन लगा कर उसकी योनि में धीरे से घुसा दी और हिलाने लगा जो उसे अच्छा तो लग रहा था पर दर्द भी हो रहा था इसलिये मुझे रोक कर अपने पास लेट जाने को कहा।

हम दोनों एक रजाई में ही बिना कपड़ों के लेट गये तभी आंटी दूध लेकर आई, हम सबने दूध पिया और फिर काफी देर तक सैक्स की बातें करते रहे। मैं काफी थक गया था इसलिये कब नींद आई पता ही नहीं चला, वो दोनों अब भी बातें कर रहे थे।

”प्रीत उठो… कपड़े पहन लो… थोड़ी देर में बाई भी आ जायेगी… !” आंटी की आवाज़ से नींद खुली तो देखा कि आठ बज गये हैं, परिणीति भी अपने घर जा चुकी थी और स्वाति आंटी चाय लिये मेरे पास बैठी मेरे सिर पर हाथ फिरा रही थी।

मैंने जल्दी से उठकर कपड़े पहने और आंटी के पास बैठ चाय पीने लगा… चाय पीते हुए आंटी ने उदास होते हुए कहा- मैं आज तुमको जोइन नहीं कर पाऊंगी… पेट दुख रहा है शायद थोड़ी देर में पीरियड शुरु हो जाये… वैसे तो पीरियड में सैक्स करने में कोइ दिक्कत नहीं पर मुझे पीरियड में बहुत पेन होता है… खैर… अब तुम तो मेरे पास ही हो… पीरियड के बाद कर लेंगे… और आज तो अनु भी आ जायेगी… तुम तीनों एन्जोय करना… !

कह कर आंटी हंसने लगी और बोली- अब तुम जाओ प्रीत… क्योंकि मैं नहीं चाहती कि बाई तुमको यहाँ देखकर बातें बनाये… मैं बैडशीट भी चेंज कर देती हूँ जिस पर परी को ब्लीडिंग हुई थी… !” मैं आंटी की समझदारी पर खुश होते हुए उठा और आंटी से चिपक कर किस किया और अपने घर की ओर बढ़ गया…

आगे की कहानी फिर कभी…

आपके कमेंट्स का इन्तज़ार करूँगा…

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