अन्तहीन कसक-4

Antheen Kasak-4

वो चिल्ला उठी- उईईईइ… ममीईईइ!!!

मैं घबरा गया और कहा- क्या हुआ?
उसने कहा- कुछ नहीं, ऐसे ही थोड़ा सा दर्द है।

मैं लण्ड बुर में डाले हुए ही उसके ऊपर लेट सा गया।

लेकिन तभी मुझे लण्ड के सुपाड़े पर गर्मी सी महसूस हुई, मेरा लण्ड उसकी चूत के गोल छल्ले में फंसा हुआ था, चूत मेरे लण्ड को निचोड़ने लगी…
मेरा शरीर अकड़ने लगा, मैं झड़ने लगा ‘आआह्ह..’ की आवाज मेरे मुख से अनायास ही निकलने लगी।

वो मेरी पीठ सहलाने लगी।

मुझे बहुत बुरा लगा कि मैं इतनी जल्दी कैसे झड़ गया, मैं उदास होकर उसकी बगल में लेट गया।

वो अपनी बुर से मेरा वीर्य साफ़ करते हुए बोली- अरे बाबू !!! पहली बार ऐसा होता है, डोंट वरी !

फिर हम साथ साथ लेट गए।

वो मेरे लण्ड को हाथ में लेकर खेलने लगी और बोली- मेरी उससे खून निकला है, लगता है कि झिल्ली पूरी तरह से आज फटी है।

मैंने कहा- क्या विनोद ने कभी ये नहीं किया?

उसने कहा- नहीं, उनका इतना खड़ा ही नहीं होता।

मैंने पूछा- तुम्हें मेरा सामान कैसा लगा?

तो उसने कहा- बहुत पसंद आया।

करीब 15 मिनट के बाद मैं फिर से चुदाई के लिए तैयार था, उसने कहा- अब मुझे भी तैयार कर दो!

मैंने उसे खूब चूमा, उसकी चूचियाँ चूसी, उसकी चूत चाटी, वो जब तैयार हो गई तो बोली- अब करो।

उसने मेरे कंधे पर पैर रख दिए, मैंने उसकी बुर के छेद पर लण्ड का सुपारा रखा, चूत पर्याप्त गीली थी, उसके मुँह पर सूखा खून भी लगा था, मैंने धीरे धीरे डालना शुरू किया, वो सिकुड़ने सी लगी।

फिर जब पूरा लण्ड चला गया तो उसने कहा- किसी और चीज के बारे में सोचो और धक्के मारो!

दोस्तो, कमाल की थी वो !

मैंने अपना ध्यान दीवार पर लगे एक चित्र पर केन्द्रित किया और अपने लौंड़े को उसकी चूत में पेलने लगा।
उसका सिर मेरे सीने के लेवल पर था मुझे पकड़ने के लिए कुछ चाहिए था तो मैंने उसका सिर पकड़कर उसे चोदना शुरू कर दिया।

‘पच्च -पच्च की आवाज़ आने लगी, वो चीखने लगी, मैं मस्त होने लगा।

‘मेरे… जाआअ नूऊउ… मेरे… बे…बी ..और करो…’

मैं जोश में आ गया और जोर जोर से उसे चोदने लगा, उसके चूतड़ मेरी जांघ से लड़कर तड़…तड़ बजने लगे।

उसकी बुर पच्च ..पच्च की आवाज़ करने लगी।

इसी तरह से मैंने उसे करीब 8-10 मिनट चोदा.. इस बीच वो 3 बार झड़ी, फिर मैंने फुल स्पीड कर दी और घातक प्रहारों से उसकी चूत को भोसड़ा बनाने लगा।

फिर करीब 7-8 धक्के लगाने के बाद मेरा वीर्य छूट पड़ा।

‘आआआ…’ मैं चीख पड़ा, मैंने अपना लण्ड निकाल लिया, उसकी बुर कटोरी की भांति वीर्य से भर उठी, मेरा वीर्य उसकी बुर से निकलकर उसके चूतड़ों और बिस्तर पर गिरने लगा।

हम दोनों करीब 15 मिनट कटे पेड़ की भाँति निढाल और नंगे पड़े रहे।

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मैं उसके चूतड़ों पर हाथ फेर रहा था और वो मेरे सिर के बालों में उंगली फिरा रही थी।

फिर थोड़ी देर बाद उसने कपड़े पहने, फिर आने का वादा करके चुम्बन देकर वो चली गई।

फिर तो रोज का यही सिलसिला चल निकला, मैं रोज कॉलेज छोड़कर रूम पर आ जाता, उसकी चूत मारता और सोया रहता, नतीजतन मेरी उपस्थिति कम होने लगी, मैं पढ़ाई में भी पिछड़ने लगा।

लेकिन मुझे इसका कोई गम नहीं था, शर्मिष्ठा भी अब बहुत खुश रहने लगी थी उसके चेहरे पर निखार आ गया था।

ऐसे ही एक साल बीत गया, मैं प्रथम वर्ष की परीक्षा पास करके दूसरे वर्ष में चला गया, अब मेरी क्लिनिकल पोस्टिंग शुरू होने वाली थी, जो मैं हॉस्टल से रहकर ही कर सकता था क्योंकि शर्मिष्ठा का घर बहुत दूर था मेरे हॉस्पिटल से।

अब मुझे हॉस्टल लेने का दबाव बढ़ने लगा, लेकिन मैं शमी को नहीं छोड़ना चाहता था, मैं छोड़ता भी नहीं क्यूंकि हम दोनों बहुत आत्मीय थे एक दूसरे के साथ।

विनोद के वीर्य में बच्चा पैदा करने की सामर्थ्य न थी, शमी अक्सर रोती थी और मुझसे बोलती थी- उदित, मुझे एक बेबी दे दो, मैं बाँझ होकर नहीं मरना चाहती, मुझे कहीं ले चलो।

मेरे पास उसके इन सवालों का कोई जवाब नहीं होता, मैं बस किसी तरह उसको ढांढस बंधा देता था।

वैसे तो हम लोग सेक्स के दरम्यान बहुत सतर्क रहते थे कि कहीं वो प्रेगनेन्ट ना हो जाए, सेफ पीरियड में बिना कंडोम के और अनसेफ पीरियड में कंडोम लगाकर ही चुदाई करते थे।

लेकिन आखिर में एक गलती हो गई, शमी ने अपनी डेट्स गलत जोड़ ली, जिससे हम बिना कंडोम के डेंजर पीरियड में मिले।

शमी को अगले पीरियड्स नहीं आये, उसको उल्टियाँ तथा मितली भी बहुत होने लगी, आंटी जी को शक हो गया, लेकिन आंटी जी ये बच्चा चाहती थी, ताकि उन्हें एक वंशज भी मिल जाय और विनोद की नामर्दगी की बात भी छिप जाए।

करीब ढाई महीने का गर्भ होने के बाद आखिर एक दिन विनोद को पता चल ही गया, उसने आग बबूला होकर शमी को बहुत मारा, शाम को जब मैं कॉलेज से वापस आया तो मुझसे भी गाली गलौज की, हाथापाई भी की।

एक बार तो मुझे लगा कि विनोद भी अपने स्थान पर सही है, इसलिए मैंने उसका कोई विरोध नहीं किया, मैंने उस जैसे मरियल के हाथो मार भी खा ली।

लेकिन मेरी शमी रोते हुए मुझे बचाने आई, मैंने देखा की शमी के गाल सूज गए है और आँखों के चारों ओर खून जमा हो गया है, यह देखकर मेरा खून खौल उठा, मैंने उसे तब तक मार जब तक मेरी उंगली की हड्डी न टूट गई।

आंटी और अंकल जी ने उसे छुड़ाया और कमरा छोड़ने की मिन्नतें की, मेरे पापा को बुलाया गया।

मैं बहुत शर्मिन्दा हुआ।

आखिरकार मैंने कमरा छोड़ने का निश्चय कर लिया।

फिर हमारी जुदाई की घड़ी भी आ पहुँची, जिस दिन मैं जा रहा था, शमी अन्दर रो रही थी, मुझमे हिम्मत न थी कि अपने प्यार से आखिरी विदा भी ले सकूँ।

मैंने अपना सारा सामान एक लोडर में रखा और हॉस्टल आ गया।

शमी के पास मोबाइल भी नहीं था जिससे हम संपर्क कर सकते, लेकिन कभी कभी वो मुझे घर के लैंडलाइन से फ़ोन करती थी, एक दिन उसने जो खबर मुझे बताई, वो सुनकर मैं फ़ूट फूटकर रोया।

उसने बताया कि उसका गर्भपात करा दिया गया है।

उसका गला रुंधा हुआ था वो मानो अपने गम को आत्मसात किये इसे पी लेना चाहती थी लेकिन मेरे पहले बच्चे का इस निर्मम तरीके से दुनिया से मिटा देने का कृत्य सहा न गया, मैं रोता रहा शमी मुझे ढाढस बंधाती रही।

फिर जब उसने बताया कि शमी के विरोध करने पर विनोद ने उसे जूते से मारा तो मेरा खून खौल उठा।

पूछते पूछते मैं नगर निगम ऑफिस पहुचा, करीब 15 लड़कों के साथ विनोद की छुट्टी होने का इंतज़ार करने लगा।

शाम को पांच बजे वो जैसे ही छूटा, मैंने उसे बहुत पीटा, उसका कान फट गया, मैंने कहा- अगर शर्मिष्ठा पर हाथ उठाया तो फिर ऐसे ही मारूँगा।

उसने मुझ पर एफ.आई.आर दर्ज करा दिया।

मेरे पापा आये थाने में पैसा देकर मामला रफा दफा करवाया और मुझे अपने साथ घर ले गए, फिर डेढ़ महीने बाद वापस ले आये।
फिर उसके बाद मुझे कभी शमी का पता नहीं चला।

अब भी सोचता हूँ तो मन पीड़ा से भर उठता है कि ‘आखिर कौन होगा उसके पास उसके ज़ख्मों पर मरहम लगाने के लिए?’

काश मैं उससे एक वादा कर पाता कि सारी ज़िन्दगी मैं उसके पास रहूँगा…
काश उसके मोती जैसे आंसुओं को अपनी उंगली के पोरों पर सज़ा लेता और झूठा ही सही.. एक वादा कर पाता… आखिरी बार कि ‘दूर कहाँ जा रहा हूँ? तुम्हारे पास ही तो रहना है।

शमी से प्यार करने के बाद कई लड़कियाँ मेरी जिंदगी में आई, लेकिन सच्चा और निस्वार्थ प्रेम मैंने शमी से ही सीखा और उसी से किया।

आज भी सिर्फ उसी के सुन्दर मुखड़े की स्मृति मेरे मन में प्रेमल सिहरन पैदा कर जाती है, साथ ही दे जाती है एक टीस, हमेशा दिल को शालने वाला विछोह और अन्तहीन कसक…

मेरे जीवन की यह घटना आपको कैसी लगी…
मुझे जरूर लिखें।

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