कमाल की हसीना हूँ मैं-1

(Kamaal Ki Haseena Hun Mai-1)

शहनाज़ खान 2013-04-23 Comments

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अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा सलाम ! उम्मीद करती हूँ आप सबको मेरी यह कहानी पसंद आयेगी।

मैं शहनाज़ हूँ। छब्बीस साल की एक शादीशुदा औरत, गोरा रंग और खूबसूरत नाक नक्श। कोई भी एक बार मुझे देख लेता है तो बस मुझे पाने के लिये तड़प उठता है। मेरा फिगर 36-28-36, बहुत सैक्सी है। मेरा निकाह जावेद से छः साल पहले हुआ था। जावेद एक बिज़नेसमैन है और निहायत हैंडसम और काफी अच्छी फितरत वाला आदमी है, वो मुझे बहुत ही मुहब्बत करता है।

मगर मेरी किस्मत में सिर्फ एक आदमी से मुहब्बत नहीं लिखी हुई थी। मैं आज एक बच्चे की माँ बनने वाली हूँ मगर जावेद उसका बाप है कि नहीं, मुझे नहीं मालूम। खून तो शायद उन्हीं के परिवार का है मगर उनके वीर्य से पैदा हुआ या नहीं, इसमें शक है। आपको ज्यादा बोर नहीं करते हुए, मैं आपको पूरी बात बताती हूँ।

कैसे एक सीधी सादी लड़की जो अपनी पढ़ाई खत्म करके किसी कंपनी में सेक्रेटरी के पद पर काम करने लगी थी, एक सैक्स मशीन में तब्दील हो गई। निकाह से पहले मैंने किसी से जिस्मानी ताल्लुकात नहीं रखे थे। मैंने अपने सैक्सी जिस्म को बड़ी मुश्किल से मर्दों की भूखी निगाहों से बचाकर रखा था। एक अकेली लड़की का और वो भी इस पद पर अपना कौमार्य सुरक्षित रख पाना अपने आप में बड़ी ही मुश्किल का काम था। लेकिन मैंने इसे मुमकिन कर दिखाया था। मैंने अपना कौमार्य अपने शौहर को ही सौंपा था।

लेकिन एक बार मेरी चूत का बंद दरवाज़ा शौहर के लंड से खुल जाने के बाद तो पता नहीं, कितने ही लंड धड़ाधड़ घुसते चले गये, मैं कई मर्दों के साथ चुदाई का मज़ा ले चुकी हूँ, कई लोगों ने तरह-तरह से मुझसे चोदा।

मैं एक खूबसूरत लड़की हूँ, जो एक दरमियानी दर्जे के कुनबे के ताल्लुक रखती थी। पढ़ाई खत्म होने के बाद मैंने शॉर्ट हैंड और ऑफिस सेक्रेटरी का कोर्स किया। कोर्स खत्म होने पर मैंने कई जगह एप्लाई किया। एक कंपनी *** इंडस्ट्रीज़ से पी.ए. के लिये काल आया। इंटरव्यू में सिलेक्शन हो गया। मुझे उस कंपनी के मालिक मिस्टर खुशी राम के पी-ए की पोस्ट के लिये सिलेक्ट किया गया। मैं बहुत खुश हुई।

घर की हालत थोड़ी नाज़ुक थी। मेरी तनख्वाह गृहस्थी में काफी मदद करने लगी।

मैं मन लगा कर काम करने लगी मगर खुशी राम जी कि नीयत अच्छी नहीं थी। खुशीराम जी देखने में किसी भैंसे की तरह मोटे और काले थे। उनके पूरे चेहरे पर चेचक के निशान उनकी शख्सियत को और बुरा बनाते थे। जब वो बोलते तो उनके होंठों के दोनों किनारों से लार निकलती थी। मुझे उसकी शक्ल से ही नफरत थी। मगर क्या करती, मजबूरी में उसे झेलना पड़ रहा था।

मैं ऑफिस में सलवार कमीज़ पहन कर जाने लगी जो उसे नागवार गुजरने लगा। लंबी आस्तीनों वाली ढीली ढाली कमीज़ से उसे मेरे जिस्म की झलक नहीं मिलती थी ना ही मेरे जिस्म के तीखे कटाव ढंग से उभरते।

‘यहाँ तुम्हें स्कर्ट और ब्लाऊज़ पहनना होगा। यही यहाँ की पी.ए. का ड्रेस कोड है।’ उसने मुझे दूसरे दिन ही कहा।

मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया। उसने शाम तक एक टेलर को वहीं ऑफिस में बुला कर मेरे ड्रेस का ऑर्डर दे दिया। ब्लाऊज़ का गला काफी गहरा रखवाया और स्कर्ट बस इतनी लंबी कि मेरी आधी जाँघ ही ढक पाये।

उसने शाम को मुझे चार हज़ार रुपये दिये और कुछ जोड़ी ऊँची हील के सैंडल खरीदने को कहा।

दो दिन में तीन-चार जोड़ी ड्रेस तैयार हो कर आ गये। मुझे शुरू में कुछ दिन तक तो उस ड्रेस को पहन कर लोगों के सामने आने में बहुत शर्म आती थी। मगर धीरे-धीरे मुझे लोगों की नजरों को सहने की हिम्मत जुटानी पड़ी। मेरा लिबास तो इतना छोटा था कि अगर मैं किसी कारण झुकती तो सामने वाले को मेरे ब्रा में कैद बूब्स और पीछे वाले को अपनी पैंटी के जलवे दिखाती।

मैं घर से सलवार कमीज़ में आती और ऑफिस आकर अपना ड्रेस चेंज करके ऑफिशयल स्कर्ट ब्लाऊज़ और ऊँची हील के सैंडल पहन लेती। घर के लोग या मोहल्ले वाले अगर मुझे उस ड्रेस में देख लेते तो मेरा उसी पल घर से निकलना ही बंद कर दिया जाता। लेकिन मेरे अम्मी-अब्बू पुराने खयालों के भी नहीं थे। उन्होंने कभी मुझसे मेरी निजी जिन्दगी के बारे में कुछ भी पूछताछ नहीं की थी।

एक दिन खुशी राम ने अपने केबिन में मुझे बुला कर इधर-उधर की काफी बातें की और धीरे से मुझे अपनी ओर खींचा।

मैं हाई हील सैंडल के कारण कुछ लड़खड़ाई तो उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया। उसने मेरे होंठों को अपने होंठों से छू लिया। उसके मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी। मैं एकदम घबरा गई, समझ में ही नहीं आया कि ऐसे हालात का सामना किस तरह से करूँ। उसके हाथ मेरी दोनों चूचियों को ब्लाऊज़ के ऊपर से मसलने के बाद स्कर्ट के नीचे पैंटी के ऊपर फिरने लगे। मैं उससे अलग होने के लिये कसमसा रही थी। मगर उसने मुझे अपनी बाँहों में बुरी तरह से जकड़ रखा था।

उसका एक हाथ एक झटके से मेरी पैंटी के अंदर घुस कर मेरी टाँगों के जोड़ तक पहुँच गया। मैंने अपनी दोनों टाँगों को सख्ती से एक दूसरे के साथ भींच लिया लेकिन तब तक तो उसकी उँगलियाँ मेरी चूत के द्वार तक पहुँच चुकी थीं। दोनों उँगलियाँ मेरी चूत में घुसने के लिये कसमसा रही थी। मैंने पूरी ताकत लगा कर एक धक्का देकर उससे अपने को अलग किया और वहाँ से भागते हुए निकल गई।

जाते जाते उसके शब्द मेरे कानों पर पड़े- तुम्हें इस कंपनी में काम करने के लिये मेरी हर इच्छा का ध्यान रखना पड़ेगा।’

मैं अपनी डेस्क पर लगभग दौड़ते हुए पहुँची, मेरी सांसें तेज़-तेज़ चल रही थी। मैंने एक गिलास ठंडा पानी पिया। बेबसी से मेरी आँखों में आँसू आ गए। नम आँखों से मैंने अपना इस्तीफा टाईप किया और उसे वहीं पटक कर ऑफिस से बाहर निकल गई। फिर दोबारा कभी उस रास्ते की ओर मैंने पाँव नहीं रखे।

फिर से मैंने कई जगह एप्लाई किया। आखिर एक जगह से इंटरव्यू कॉल आया। सिलेक्ट होने के बाद मुझे सी-ई-ओ से मिलने के लिये ले जाया गया। मुझे उन्हीं के पी.ए. की पोस्ट पर अपायंटमेंट मिली थी। मैं एक बार चोट खा चुकी थी।

इसलिये दिल बड़ी तेजी से धड़क रहा था। मैंने सोच रखा था कि अगर मैं कहीं जॉब करुँगी तो अपनी इच्छा से, किसी मजबूरी या किसी की रखैल बन कर नहीं। मैंने सकुचाते हुए उनके कमरे के दरवाजे को खटखटाया और अंदर गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

‘यू आर वेलकम टू दिस फैमिली !’ सामने से आवाज आई।

मैंने देखा सामने करीब 55 साल का बहुत ही खूबसूरत आदमी खड़ा था। मैं सी-ई-ओ मिस्टर ताहिर अज़ीज़ खान को देखती ही रह गई। वो उठे और मेरे पास आकर हाथ बढ़ाया लेकिन मैं बुत की तरह खड़ी रही। यह तहज़ीब के खिलाफ था। मैं अपने बॉस का इस तरह से अपमान कर रही थी। लेकिन उन्होंने बिना कुछ कहे मुस्कुराते हुए मेरी हथेली को थाम लिया।

मैं होश में आई। मैंने तपाक से उनसे हाथ मिलाया। वो मेरे हाथ को पकड़े हुए मुझे अपने सामने की कुर्सी तक ले गये और चेयर को खींच कर मुझे बैठने के लिये कहा। जब तक वो घूम कर अपनी सीट पर पहुँचे, मैं तो उनकी शराफत पर मर मिटी। इतना बड़ा आदमी और इतनी नेक शख्सियत। मैं तो किसी ऐसे ही एंपलायर के पास काम करने का सपना इतने दिनों से संजोये थी।
कहानी जारी रहेगी।
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