जूनियर की बीवी-3

(Junior Ki Biwi- part 3 )

चूतेश 2018-05-26 Comments

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अलका को घर बहुत करीने से सजा के रखने का शौक है. ड्राइंग रूम में छह बड़ी बड़ी आराम कुर्सियां रखी हुई थीं और एक बड़ा सा दीवान था. कमरे की सजावट नीले और मैरून रंगों में थी. शायद ये अलका के मनपसंद रंग होंगे. आराम कुर्सियों के कुशन गहरे नीले, सीट हल्के नीले कपड़े की. परदे भी एक नीला और एक मैरून. दीवान हल्के नीले रंग का उस पर रखे हुए कई गाव तकिये मैरून. कमरे में दो टेबल लैंप की मद्धम मद्धम रौशनी आ रही थी. दोनों लैम्पों के शेड भी नीले थे, इसलिए रौशनी हल्का सा नीलापन लिए थी, वातावरण को बहुत कामुक बना रही थी. चुदाई के लिए यह बिलकुल सही माहौल था.

अलका ने एक छोटा सा पजामा, जो उसके घुटनों के तीन या चार इंच नीचे तक था, पहना हुआ था. सफ़ेद पजामा और हल्के नीले रंग का ढील ढाला स्लीवलेस टॉप जो उसके बदन पर खूब फब रहा था. पजामे के नीचे से उसकी सुन्दर, साटिन सी चिकनी टाँगें देख कर मेरे भीतर तूफान आ गया. पैरों में मखमली से कपड़े के नीले जूते थे. काश यह जूते न पहने होते तो अलका के हसीन पांव भी दिख जाते. कोई नहीं कुछ देर के बाद सही.

उस ने अपने लम्बे केश लपेट के एक पोनी टेल में बांधे हुए थे. दो तीन लटें उसके माथे और गालों पर टपकी हुई थीं. हरामज़ादी बेहद हसीन लग रही थी और उतनी ही सेक्सी भी. कोई मेक अप नहीं था. लिपस्टिक भी नहीं. वैसे तो अलका इतनी खूबसूरत थी कि उसे किसी मेकअप की आवश्यकता थी ही नहीं. शानदार स्वस्थ दमकती हुई त्वचा की स्वामिनी थी. हुस्न और कामुकता कूट कूट के भरे हुए थे मादरचोद के मदमस्त बदन में. बेपनाह हुस्न की मल्लिका थी यह चुदक्कड़ अलका.

अलका ने कहा- आइये आइये लेखक महाशय… आपकी कॉफ़ी तैयार है. आप बैठिए मैं लेकर आती हूँ.
अलका किचन की तरफ चल दी.

मैंने पीछे से एक टेबल लैंप बुझा दिया. अब रोशनी केवल दीवान के पास वाले लैंप से आ रही थी और पहले से भी बहुत मद्धम हो गई थी. फिर मैं अलका के पीछे पीछे किचन में जाने को ही था कि वो एक ट्रे में दो मग कॉफ़ी लिए आ गई.
यह पक्का है कि उसने एक लैंप बुझा हुआ नोटिस कर लिया होगा, किन्तु कुछ बोली नहीं.

जो ब्रांडी मैं लाया था, वो आधी आधी मैंने दोनों मगों में डाल दी- अलका मैडम जी आपकी बढ़िया नींद का जुगाड़ यह रहा… अब कॉफ़ी पीजिए और मस्त होकर सोइये.
सोना किस मादरचोद को था? यह सब तो ड्रामेबाज़ी चल रही थी. पहला कदम उठाने से पहले की भूमिका.

अलका ने कॉफ़ी मग के पास नाक ला कर दो तीन गहरी गहरी सांसें लीं- हूँ… खुशबू तो बढ़िया है इस ब्रांडी की… आइये लेखक साहिब आराम से बैठ कर कॉफ़ी पीते हैं.
अलका ने मग को दीवान के पास एक छोटी सी टेबल पर रख दिया और खुद दीवान पर पसर गई जैसे लड़कियां अक्सर घुटने मोड़ के, पांव अपने चूतड़ों के नीचे दबा के पसर जाया करती है. एक पांव नितम्ब के नीचे और दूसरा नितम्ब से थोड़ा बाहर निकलता हुआ. सभी लड़कियों से लेकर बुढ़ियों तक का यही स्टाइल है आराम से बैठने का.

“मिस्टर लेखक जी. आप कितनी गन्दी गालियां लिखते हैं कहानी में… सिर्फ लिखने के लिए या असल ज़िन्दगी में भी गालियां देते हैं आप… कई गालियां तो मेरी समझ में भी नहीं आईं… और भी कुछ बातें समझ नहीं आईं.”
मैंने पूछा कि मैडम जी क्या क्या नहीं समझ में आया आप बोलिये तो मैं समझा दूंगा.
मगर मैडम जी ने कोई उत्तर नहीं दिया, बल्कि बात का प्रसंग बदलते हुए कॉफ़ी के मग के पास नाक लाकर एक गहरी साँस भरी और बोली- इस ब्रांडी की सुगंध तो बहुत मस्त है… टेस्ट भी अच्छा ही होगा… एक चुस्की लेकर देखती हूँ.
अलका ने एक सिप लिया और सर हिलाकर जताया कि ब्रांडी मिक्स कॉफ़ी के स्वाद में मज़ा आया.

हम चुपचाप कॉफ़ी पीते रहे. शायद दोनों ही नर्वस थे कि अगला कदम कैसे उठाया जाए. मेरा तो लंड फुदक फुदक के परेशान कर रहा था. अलका की चूत भी संभवतः आग बबूला हो रही होगी. वो नर्वस तो काफी थी. यह उसके पैरों से ज़ाहिर हो रहा था. वो अपने पंजों को तेज़ी से पहले फैला लेती, फिर सिकोड़ लेती. मैं मंत्रमुग्ध सा उसके खूबसूरत पंजों का छटपटाना देखे जा रहा था.

यारो, इन हसीन तरीन पांवों को तो मैं चौबीसों घंटे सहला सहला के चाटता रहता, तब भी मेरी नियत न भरती.
यही बात उसके सुन्दर हाथों के साथ भी थी. सुडौल मांसल उंगलियां, सुन्दर तराशे हुए नाख़ून!!! उम्मम्मम आआआआ… बहनचोद!!! मुंह में पानी भर आया. इन सुन्दर, मुलायम, रेशमी हाथ पांव चूसूंगा तो कितना आनंद आएगा, यह मैं कल्पना कर कर के बेहाल हो रहा था.

खैर कॉफ़ी ख़त्म हुई तो अलका ने दोनों मग लिए और किचन में उनको रखने चल दी. उसको एक भी चीज़ किसी गलत जगह रखी मंज़ूर न थी. जूठा मग किचन सिंक में होना चाहिए तो वहीं रख दिया गया.

जैसे ही अलका पलट के वापिस ड्राइंग रूम में आयी, मैंने झपट के उसको अपनी बाँहों में जकड़ लिया और उसके गुलाब की पंखुड़ियों सरीखे होंठ चूमने की कोशिश की.
“यह क्या कर रहे हैं आप… निवास जी छोड़ दीजिये मुझे… यह गलत है… प्लीज़ ऐसा न करिये.” अलका ने मेरी छाती पर हाथ रखकर मुझे धकेलते हुए मेरे बाहुपाश से निकलने की असफल चेष्टा की.

मैं जानता था कि वो ऐसा ही करेगी इसलिए मेरी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वो मुझे एक इंच भी पीछे न धकेल पायी. दो चार दफा जब कोशिश करने पर जब मेरी पकड़ ढीली न हुई तो उसने फिर कहा- प्लीज़ मुझे छोड़ दीजिये न… आप ऐसा गलत काम क्यों कर रहे हैं… मैं ऐसी वैसी लड़की नहीं हूँ… आप जाइये अपने घर.

मैंने फूल सी नाज़ुक अलका को बाँहों में उठा लिया और उसको दीवान की तरफ ले चला.
वो प्लीज़… प्लीज़… छोड़िये… यह गलत काम है… कहती रही लेकिन मैंने सुनी अनसुनी करते हुए उसको दीवान पर पटक दिया और झपट कर उसके साथ कस के लिपट गया. इसके पहले कि वो संभल पाती मैंने उसके मुंह से मुंह चिपका दिया एवं अपने होंठों के बीच से जीभ निकाल के उसके होंठों पर फिराने लगा.

अलका ने खूब छटपटाते हुए मुझसे अलग होने का प्रयास किया. खूब क़शमक़श भी की, परन्तु मेरे ज़ोरदार बाहुपाश से छूट न सकी. जैसा मेरा अनुमान था ठीक वैसा ही हुआ. दो चार मिनटों में उसका संघर्ष रुक गया. उसकी बाहें मेरी गर्दन से लिपट गयीं. मैं लगातार उसके होंठों पर जिह्वा फिरा रहा था.

इस बार अलका ने अपने होंठ थोड़े खोल दिए और मैंने जीभ उसके मुंह में सरका दी. उसकी जीभ और मेरी जीभ आपस में लिपटने की नाकाम कोशिश करते हुए एक दूसरी को चाटने लगीं. दोनों के मुंह में लार टपकने लगी. तभी अलका ने अपनी लात भी मेरे नितम्बों पर लपेट ली और मेरी गर्दन को कस के अपनी तरफ खींच लिया जिससे हमारे होंठ आपस में यूँ चिपक गए जैसे लिफाफा और टिकट चिपक जाते हैं.

हमारी गरम गरम सांसें हमारे चेहरों पर टकरा रही थीं. अलका के भीतर से सांसों के साथ मेरे नथुनों में आकर समाती हुई उसकी सुगंध ने नशा चढ़ा दिया था. हमारी जीभें आपस में खिलवाड़ किये जा रही थीं. मैं महसूस कर रहा था कि उसके होंठ फड़फड़ा रहे हैं. मेरे आग़ोश में फंसा हुआ उसका मुलायम शरीर भी रह रह के कांप उठता था.

उसके टॉप के पीछे से हाथ घुसकर मैंने उंगलियां उसकी पीठ पर हल्के से फिराईं, नीचे से ऊपर तक. अलका सिहर गई और उसका बदन तड़फड़ा उठा.
अलका की पीठ को सहलाने से पता चला गया कि उसने ब्रा नहीं पहन रखी थी. देखता हूँ साली ने चड्डी भी डाली है या नहीं. उसी तरह उंगलियां कमर पर फिराते हुए मैंने हाथ उसके पाजामे में डाल कर उसके नितम्ब हौले से दबाये. बहनचोद रांड ने पेंटी भी नहीं पहन रखी थी. कुतिया चुदने की पूरी तैयारी में थी. ऊपर से दिखाने के लिए नौटंकी कर रही थी जैसे उसे चुदाई में कोई दिलचस्पी ना हो.

डायलाग तो सुनो कमीनी के: निवास जी यह गलत काम है… छोड़िये मुझे… मैं ऐसी वैसी लड़की नहीं हूँ… क्या कर रहे हैं… यहगलत है… आप जाइये अपने घर..वग़ैरा वग़ैरा.
किसी शायर ने सच ही कहा है- सोचती है ज़्यादा, कम वो समझती है… दिल कुछ कहता है, कुछ और ही करती है.

क्या गोल गोल मुलायम मुलायम नितम्ब थे अलका के. रेशम से चिकने कि छूने में हाथ ही फिसल जाए. दबाये तो आनंद आ गया.
अलका चिहुंक उठी… मेरी गर्दन छोड़ के मुंह अलग किया और ज़ोर से सीत्कार भरी.
लगता है काफी देर से आहें रोके हुए थी. एक के बाद एक आहें भरीं, ऊँची आवाज़ में सी सी सी किया.

तब तक मैंने उसको आलिंगन से मुक्त करके बिजली की तेज़ी से पजामा खींच के उतार दिया था. चूत पर उंगलियां लगाईं तो पाया कि चूत रस से भरी हुई है, दोनों उंगलियां पूरी तरह से रस में तर हो गयीं. उनको चाट के अलका के चूतरस का अलौकिक स्वाद लिया और उसे कंधों से पकड़ के उठा कर उसकी टॉप भी निकाल डाली. अब वो मादरजात नंगी थी.

फटाफट मैंने भी अपना लोअर व टी शर्ट उतार दी और फिर ज़रा सा पीछे हट के अलका रानी को निहारने लगा.
“आह आह आह वाह वाह वाह… क्या मदमस्त जवानी थी! बदन ऐसा जिसको देख कर साधु महात्मा सारा महात्मापन भूल के लंड को हिलाने लग जाएं. देवता ही नहीं, इंद्रदेव तक स्वर्गलोक की अप्सराओं को भूल जाएं. और मैं? मैं तो शायद सांस लेना भी भूल गया था.

शरीर में भयंकर चुदास की लहरें ऊपर से नीचे, दाएं से बाएं फिर नीचे से ऊपर बिजली के करंट के समान दौड़ने लगीं. मन लुभावने चूचुक पर अकड़ी हुई घुंडियां तनी हुई थीं. हरामज़ादी की सांसें तेज़ तेज़ चल रही थीं जिससे उसके चूचुक कभी ऊपर कभी नीच होते. बड़ी सुन्दर सी नाभि. एक निपुण मूर्तिकार द्वारा घड़ी गयी किसी हसीन मूर्ति सी पतली कमर, उसके नीचे ग्रेसफुली फैलता हुआ नितम्ब तक का बदन, फिर उतना ही ग्रेसफुली टांगों तक जाता हुआ साटिन सा चिकना शरीर. सुडौल सुन्दर बाहें. उसके हाथ और पांवों की सुंदरता का बखान मैं पहले ही कर चुका हूँ. मैंने सटाक से अलका को आलिंगन में बांध लिया.

जैसे ही मैंने उसको चूमने के लिए मुंह बढ़ाया तो उसने मेरी ठुड्डी पर उंगली रख के मुझे रोक दिया और फिर मेरे दोनों गाल अपने नरम हाथों में थाम के बहुत ही धीमे स्वर में बोली- निवास अब देर न करो… जल्दी से जो करना है करो… अब रुका नहीं जा रहा… चुम्बन वग़ैरा बाद में.

सेक्सी भाभी की कहानी जारी रहेगी.
आपका चूतेश

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