निगोड़ी जवानी-2

मैंने कई बार डॉक्टर को लुभाने किसी न किसी बहाने से अपने स्तन भी दिखा दिए, जिन्हें वो चोरी छुपे देख भी रहे थे। एक बार उनके चेंबर में साड़ी में कीड़ा है, कहकर जांघें तक दिखा डाली परन्तु कैसे उन पर अपना जादू चलाऊँ, यह समझ नहीं आ रहा था।

अब मैं हरसंभव कोशिश में थी कि किस तरह डॉक्टर को इस काम के लिए राजी करूँ कि वो मुझे चरित्रहीन भी न समझने लगें और मेरी प्यास भी बुझा दें। पर मेरी बात को वो समझ नहीं पाते, मैं खुलकर कह नहीं पाती।

इसी पशोपश में एक माह और गुजर गया।

निगोड़ी कैसी जवानी हैं ये बात सुने न मेरी,

निगोड़ी बड़ी मस्तानी है ये बात सुने न मेरी !

यह गाना गुनगुनाते हुए अगले दिन मैं जैसे ही शाम चार बजे अस्पताल पहुँची पता चला की डॉक्टर के ससुराल में कोई रिश्तेदार का निधन हो गया है तो डॉक्टर की पत्नी यानि मैडम और बच्चा दो तीन दिन के लिए सुबह ही मायके चले गए हैं।

बहुत जल्दी ही वो मौका भी मिल गया जिसका मुझे इंतजार था। मैं पास ही स्थित डॉक्टर के निवास पर गई और अफ़सोस जताते हुए उनके पास बैठ गई फ़िर खाना बनाने के लिए कहकर मैं रसोई में जाने लगी तो डॉक्टर ने कहा- रहने दो, मुझे भूख नहीं है !

लेकिन मैंने उन्हें परांठे बनाकर खिला दिए, डॉक्टर से कहा- कल मैं छुट्टी ले लूँगी और सुबह का खाना बना दूँगी, आप परेशान न हों !

फिर आठ बजे मैं अपने कमरे पर चली गई। अगले रोज के लिए योजना बनाने लगी, काम मुश्किल था, सोचा, जो होगा देखा जायेगा ! इतना तो तय था कि कामदेव के बाण से कोई नहीं बचता, बस घायल करने की कला आनी चाहिए !

रात जैसे तैसे काटी, सुबह आठ बजे राकेश के जाते ही अपनी योजना के मुताबिक बिना नहाये ही अपने कपड़े लेकर डॉक्टर के घर आ गई।
उन्हें चाय नाश्ता बनाकर देकर कहा- मेरे यहाँ आज नल में पानी नहीं आया, मैं नहाना चाहती हूँ, फिर आपके लिए खाना बना दूँगी। तो डॉक्टर ने बाथरूम दिखा दिया, मैं अपने कपड़े लेकर उसमें चली गई।

बाथरूम बड़ा सुन्दर था। अब मेरी योजना शुरू हुई, मैंने अपने कपड़े निकाल दिए, पेंटी पहन कर नहाई, दरवाजे की कुण्डी खोल दी, फिर बाल्टी को पानी से भरकर ऊँचाई से जमीन पर गिरा दी और चीख मारकर खुद को जमीन पर गिरा लिया।

तुरंत ही डॉक्टर साहब आ गए, मेरा अर्धनग्न भीगा बदन देख वे हतप्रभ रह गए, मैंने अपने नग्न बदन को छुपाने की असफल कोशिश करते हुए कहा- मेरा पैर फिसल गया !

उन्होंने तौलिया मेरे ऊपर डाल दिया और पूछा- कहीं चोट तो नहीं आई?

मैंने तुरंत कहा- मेरी कमर में दर्द हो रहा है, खड़ी नहीं हो पा रही हूँ !

तो सर ने मुझे गोद में उठा लिया, मैंने तत्काल अपनी बाहें उनके गले में डालकर लिपटा दी, सारा शरीर ऊपर से ढका था पर तौलिये के नीचे गीली पेंटी पहने मैं पूर्ण नग्न थी, जैसा मैं चाह रही थी, फिर उन्होंने ले जाकर बैठक के दीवान पर लिटा दिया। मैं उनके चेहरे के भाव पढ़ रही थी।

फिर वो फोन लगाने लगे तो मैंने पूछा- किसको फ़ोन रहे हो?

बोले- ड्यूटी नर्स को बुला लेते हैं।

मैंने कहा- सर मेरे को इस हाल में देख क्या वो आप पर यकीन करेगी?

तो उन्होंने फोन बंद करके रख दिया, बोले- तो मैं तुम्हें दर्द का इंजेक्शन लगा देता हूँ, तुम चिंता मत करो !

उन्होंने दर्द का इंजेक्शन सिरेन्ज में भर लिया। मैंने कहा- अभी रुको सर !

मैंने बोला- सर, पहले मेरे कपड़े दे दो, मैं पहन लूँ !

तो वो आज्ञाकारी की तरह बाथरूम से मेरे वस्त्र उठा लाये, मैंने दिखावे के लिए उठने का प्रयास किया, फिर दर्द से कराहते दीवान पर गिर गई।डॉक्टर चिंतित से नजर आने लगे, मैंने कहा- आप मेरी मदद करो सर !

तो वो आगे आकर मुझे थामने लगे, मुझे बाँहों का सहारा देकर बिठा लिया, तौलिया नीचे सरक गया, मेरे उन्नत उरोज तो वैसे भी कड़क होकर तन गए थे, उनको देख सर की हालत मेरे से छुपी नहीं थी, असर साफ़ दिख रहा था उनकी आँखों में !

मैंने अपनी ब्रा को कपड़ों में से निकाला और पहनने की कोशिश करने लगी, अपने स्तनों पर ब्रा को चढ़ा दिया पर ‘हुक नहीं लगा पा रही हूँ’, यह नाटक करते हुए सर की तरफ देखा तो उन्होंने मेरे पीछे आकर ब्रा के हुक को लगा दिया।

उनके हाथ मेरी चिकनी पीठ पर हरकत करते महसूस हो रहे थे।

फिर मैंने पेंटी को कपड़ों से निकाल तौलिये को अलग कर पेंटी पहनने की कोशिश की पर मैं इस में कामयाब नहीं हो पा रही, यह प्रदर्शित करते हुए दर्द से कराह उठी, उनकी ओर याचनापूर्ण नजरों से देखने लगी।

फिर उसे सर की ओर बढ़ा दिया तो उन्होंने पेंटी मेरे हाथ से लेकर मेरे पैरों की ओर आ गए पर उनके चेहरे की शिकन तब और बढ़ गई जब उन्होंने मुझे गीली पेंटी में देखा, यानि पहले इसे उतरना है फिर दूसरी पहनानी है।

मैंने आँखें बंद करने का नाटक करते हुए अपनी टांगों को थोड़ा ऊपर उठाते हुए ढीला छोड़ दिया, मेरी चिकनी दाग रहित गुदाज मांसल जांघों को देख कर सर की हालत बिगड़ती जा रही थी, वो कभी मेरी जांघों को देखते, कभी मुझे !

उन्हें देखने में लगा कि मैं आंखे बंद किये हूँ पर मैं उनकी हर हरकत पर नजर रखे हुए थी।

फिर उन्होंने कांपते हाथों से मेरी गीली पेंटी को निकालने की कोशिश की पर यह तब सम्भव था जब मैं अपने चूतड़ों को थोड़ा ऊपर उठा कर उन्हें सहयोग करती। वो कोशिश कर रहे थे, मैं मजे ले रही थी, उनके हाथ मेरे भरे पूरे उभरे नितम्बों पर महसूस कर रही थी।

फिर मैंने अपने नितम्ब थोड़े उठा दिए तो सर ने पेंटी को सरकाते हुए टांगों से बाहर निकाल दी।

उनके हाथों के स्पर्श से मेरी योनि में गुदगुदी महसूस होने लगी, वो ख़ुशी के आँसू बहाने लगी।

मैंने दर्द का बहाना बनाते हुए अपनी टांगों को खोलकर अपनी चिकनी चूत के दर्शन सर को करा दिए, फिर पैर पटकते हुए कहा- सर बहुत दर्द हो रहा है, आप इंजेक्शन लगा दो पहले ! मेरे से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा !

तो वो इंजेक्शन लेकर आये, मुझे पेट के बल लिटा दिया, फिर स्प्रिट लगी रुई मेरे नितम्ब पर रगड़ने लगे।

मुझे अच्छा लग रहा था, वो भी मेरे पूर्ण अनावृत नितम्ब को बड़े प्यार से देखते हुए जैसे सहला रहे हों, ऐसा लग रहा था।

जैसे ही वो इंजेक्शन उठाने लगे, मैंने कहा- अभी रुको, अब दर्द कम हो गया, थोड़ा सा बाम मेरी कमर में लगा दो !

तो उन्होंने बाम अपनी अंगुली पर लेकर मेरे कमर पर लगाना शुरु किया।
उनके मर्दाना हाथों का स्पर्श मुझे उत्तेजित कर रहा था, उनके हाथ मेरी कमर से पीठ तक फिर नीचे स्तनों तक मालिश करने लगे, कभी कमर से नितंबों पर होकर जांघों तक फिसल रहे थे।

फिर मैं चित्त होकर अपनी रानों के बीच बसी हुई अनमोल चूत को एक बार फिर उभार कर दिखाने की कोशिश करते हुए बोली- मेरी पेंटी पहना दीजिए।

तो उन्होंने मेरी पेंटी टांगों में डालकर ऊपर सरकाते हुए मेरे नितम्बों को खुद उठा कर पेंटी पहना दी। उनकी आँखों में लाल डोरे दिखाई दे रहे थे, जिसे मैंने महसूस कर लिया था।

मैं अब ब्रा-पेंटी पहने डॉक्टर के मकान में उनके ही दीवान पर अपनी जवानी लुटाने को बेताब पड़ी हुई थी, हालांकि सर का लंड अब उनके नियंत्रण में नहीं था, यह अनुमान उनके लोअर में आये तम्बूनुमा परिवर्तन को देख मैंने लगा लिया था।

मैंने बाकी कपड़े पहनने की इच्छा जाहिर की तो वो अन्दर से एक काले रंग की खूबसूरत रेशमी मेक्सी उठा लाये, बोले- तुम्हें अपने कपड़े पहनने में कष्ट होगा, इसे आसानी से पहन लोगी !

मैंने कहा- यह तो मैडम का है, इसे मैं कैसे पहन सकती हूँ?

तो सर बोले- मैडम अभी आने वाली नहीं हैं। फिर उन्हें पता भी नहीं चलेगा !

मैं समझ गई कि मेरा काम बनने वाला है, मेरा तीर सही निशाने पर लग चुका है, मैं बोली- मेरे से तो यह्य भी नहीं होगा, आप ही पहना दो !

तो उन्होंने मेरे को अपने हाथों से मेक्सी पहना दी। लेटी औरत को मेक्सी पहनाना कितना मुश्किल होता है, यह तो कोई मेरे सर से पूछे।
लेकिन उन्होंने भी पूरे आठ मिनट में अपनी लगन और पूरी शिद्दत के साथ मुझे मेक्सी पहना ही दी।
लेकिन इस काम में उन्होंने जो मजे मेरे चूचे दबाकर लूटे, मेरी चिकनी पीठ और सपाट पेट पर जो प्यार भरा स्पर्श किया, फिर मेरी भरीपूरी चिकनी गांड को तो मसल ही डाला था।

यही नहीं मैक्सी को ठीक करने के लिए जांघों को भी सहलाते हुए मेरी गीली बुर को भी छूने में कसर नहीं छोड़ी।

इतना सब करने के बाद मेक्सी पहनाई !

अरे इतना सब करना था तो मेक्सी पहनाने की क्या जरूरत थी।

मैंने सर को पकड़कर अपने ऊपर खींच लिया, वो भी मेरे ऊपर आकर मेरे से लिपट गए, मेरे चेहरे को थामकर मेरे होंठों का रसपान करने लगे। उनका खड़ा लंड मुझे अपनी नाभि के पास चुभता महसूस हो रहा था।

कहानी जारी रहेगी।

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