मेरी दूसरी सुहागरात-1

(Meri Dusri Suhagaraat-1)

अन्तर्वासना डॉट कॉम पर मेरे सखा-सखियों को सारिका कँवल का नमस्कार!

मैं अपनी नई कहानी लेकर आप सभी पाठकों के लिए फिर से हाज़िर हूँ।

आप सबके प्यार ने मुझे लिखने को बहुत ज्यादा प्रोत्साहित किया और यही प्रयास रहेगा कि मेरी कहानियों से आप सबको खूब मजा आए।

मैं इस बार एक ऐसी घटना का वर्णन करने जा रही हूँ जो मेरे और अमर के पागलपन की हद कही जा सकती है।

बात दरअसल तब की थी जब हम दोनों खूब मस्ती किया करते थे, उन दिनों तो ऐसा लगने लगा था जैसे अमर ही मेरे पति हैं।

अमर के साथ एक दिन में 11 बार सम्भोग करने के बाद मैं इतनी डर गई थी कि करीब एक महीने में मैंने सिर्फ पति के साथ 3 बार सम्भोग किया।

अमर से तो मैं दूर भागने लगी थी, वो मेरे साथ सहवास करना चाहते तो थे, पर मैं कोई न कोई बहाना बना लेती थी, पर ये सब ज्यादा दिन नहीं चल सका।

मेरी भी अतृप्त प्यास बढ़ने लगी थी जो पति के जल्दी झड़ जाने से अधूरी रह जाती थी।

इस बीच मैंने अमर के साथ फिर से सम्भोग करना शुरू कर दिया, पर उन्हें एक दिन में कभी भी 3 बार से ज्यादा नहीं करने देती थी।

हम अब ज्यादा नहीं मिलते थे बस कभी-कभार छत पर बातें करते या फिर जब सम्भोग करना हो तभी मिलते थे, बाकी समय हम फोन पर ही बातें करते थे। रात को जब पति रात्रि के समय काम पर जाते तो हम करीब 3-4 बजे तक बातें करते रहते।

एक दिन हम यूँ ही अपने पहले सम्भोग के बारे में बातें कर रहे थे, बातों-बातों में प्रथम प्रणय-रात्रि यानि सुहागरात की बात छिड़ गई।

उन्होंने मुझे उनकी इच्छा सुहागरात के समय की बताई कि उन्हें कैसे करना पसंद था, पर वो हो नहीं सका।

वैसे जैसे उन्होंने बताया था वैसा मेरे साथ भी कभी नहीं हुआ था।

तभी उन्होंने कहा- मैं फिर से तुम्हारे साथ सुहागरात जैसा समय बिताना चाहता हूँ।

मैंने भी बातों की भावनाओं में बह कर ‘हाँ’ कह दी।

शुक्रवार का दिन था अमर ने मुझसे कहा- अगर तुम आज रात मेरे कमरे में आ जाओ तो मैं तुम्हें एक तोहफा दूँगा।

मैंने कहा- मैं बच्चों को ऐसे छोड़ कर नहीं आ सकती।

तब उन्होंने कहा- बड़े बेटे को सुला कर छोटे वाले को साथ लेकर आ जाओ।

मैंने उनसे कहा- आप मेरे कमरे में आ जाओ।

पर उन्होंने कहा कि जो वो मुझे देना चाहते हैं वो मेरे कमरे में नहीं हो सकता इसलिए उसके कमरे में जाना होगा।

मैंने बहुत सोचा-विचारा और फिर जाने का फैसला कर लिया। पति रात को खाना खाकर काम पर चले गए और बड़े बेटे को मैंने सुला दिया।

फिर करीब साढ़े दस बजे रात को उनके कमरे में गई, कमरे में जाते ही उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया, फिर मेरे पास आए और कहा- दूसरे कमरे में तुम्हारे लिए कुछ है।

मेरा बच्चा अभी भी सोया नहीं था सो अमर ने उसे गोद में ले लिया और कहा- तुम जाओ, मैं इसे सुला दूँगा।

मैंने बच्चे को उनके हाथ में देकर कमरे के अन्दर चली गई, अन्दर एक दुल्हन का जोड़ा रखा था और बहुत सारे गहने भी थे, मैं समझ गई कि अमर सुहागरात वाली बात को लेकर ये सब कर रहे हैं।

वे कपड़े दिखने में काफी महंगे थे, पर मैंने सोचा कि मेरे लिए इतने सारे गहने वो कहाँ से लाए, पर गौर से देखा तो वो नकली थे, उन पर सोने का पानी चढ़ा हुआ था। सो मुझे थोड़ी राहत हुई कि उन्होंने ज्यादा पैसे बर्बाद नहीं किए।

बगल में श्रृंगार का ढेर सारा सामान रखा था और ख़ास बात यह थी कि सारे कपड़े लाल रंग के थे, लाल साड़ी, लाल ब्लाउज, लाल पेटीकोट, लाल ब्रा, लाल पैंटी और लाल चुनरी।

मैंने पहले कपड़े बदले, फिर श्रृंगार किया, लिपस्टिक लगाई, गालों पर पाउडर और लाली, मांग में सिंदूर, पूरे बदन में परफ्यूम छिड़का।

फिर मैंने जेवर पहने, हाथों में कंगन और चूड़ियाँ, मेरे पूरे बाजू में भर गईं, कानों में झुमके, नाक-कान, माथा, कमर और पैर मेरे सारे अंग गहनों से भर गए थे।
इतने गहने तो मैंने अपनी शादी में भी नहीं पहने थे।

मैंने खुद को आईने में देखा मैं सच में बहुत सुन्दर दिख रही थी, पर मेरे मन में हँसी भी आ रही थी कि एक गतयौवना दुल्हन आज सुहागरात के लिए तैयार है।

मैं बाहर आई तो अमर मुझे देखते ही रह गए, काफी देर मुझे निहारने के बाद उन्होंने मुझसे कहा- तुम दूसरे कमरे में जाओ, वहाँ तुम्हारे लिए दूसरा तोहफा रखा है।
मेरा बच्चा सो गया था, सो मैंने उसे गोद में लिया और उसे उसी कमरे में सुलाने को चली गई।
तब तक अमर ने कहा- अब मैं तैयार होने जा रहा हूँ।
मैं जैसे ही कमरे के अन्दर गई और बत्ती जलाई, मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा, कमरा पूरी तरह से सजाया हुआ था और बिस्तर की सजावट का तो कुछ कहना ही नहीं था।

पूरे कमरे में अगरबत्ती की खुश्बू आ रही थी और बिस्तर फूलों से सजाया हुआ था जो सच में किसी भी औरत का दिल जीत ले।

हर एक लड़की चाहती है कि उसकी सुहागरात यादगार हो और उसकी सुहारात की सेज फूलों से सजी हो। मेरी भी यही ख्वाहिश थी, पर वो सब नहीं हो सका था।
ये सब देख कर आज मैं बहुत खुश थी और मैंने दिल ही दिल में अमर को धन्यवाद दिया।

सुहाग की सेज ज्यादा बड़ी नहीं थी, केवल एक आदमी के सोने लायक थी, पर मुझे वो अच्छा लगा क्योंकि ऐसे छोटे पलंग पर एक औरत और मर्द चिपक कर आराम से सो सकते हैं।
दूसरे तरफ एक और बिस्तर था जिस पर मैंने अपने बच्चे को सुला दिया और फिर वापस सेज पर आकर बैठ गई।

बिस्तर को अमर ने गद्देदार बनाया था और दो तकिये भी थे और गुलाब के फूल बिखेरे हुए थे, बिस्तर पर भी खुश्बू का छिड़काव किया था।
बगल में एक मेज थी जिस पर पानी का मग और गिलास था, साथ ही एक छोटे सी प्लेट में चॉकलेट और सुपारी के टुकड़े भी थे।

मैं सब कुछ देख कर बहुत खुश थी और मैंने भी तय कर लिया कि जब अमर ने मेरे लिए इतना कुछ किया है तो आज मैं भी अमर को खुश करने में कोई कमी नहीं रहने दूँगी।

मैं बिस्तर पर घूँघट डाल कर एक नई-नवेली दुल्हन की तरह बैठ गई और अमर का इंतज़ार करने लगी।

थोड़ी देर बाद अमर अन्दर आए और मुझसे आते ही कहा- देखो मुझे… कैसा लग रहा हूँ?

मैंने उनसे कहा- दुल्हन तो घूँघट में है, और यह घूंघट तो दूल्हे को ही उठाना होगा।

मेरी बात सुनकर वो हँसने लगे और फिर मेरे पास आकर मेज पर दूध का गिलास रख दिया फिर मेरे बगल में बैठ गए और मेरा घूँघट उठा दिया।

हम दोनों ने एक-दूसरे को मुस्कुराते हुए देखा।

फिर अमर ने मुझसे कहा- तुम आज बहुत सुन्दर दिख रही हो, एकदम किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह।

मैंने उनसे कहा- हाँ.. एक बुड्ढी दुल्हन…

तब उन्होंने कहा- दिल जवान रहता है हमेशा… मुझे तो तुम आज एक 20 साल की कुंवारी दुल्हन लग रही हो, जिसकी मैं आज सील तोडूंगा ।

मैंने उनसे कहा- क्या सील? वो क्या होता है?

तब उन्होंने कहा- सील मतलब योनि की झिल्ली, जिसको नथ उतारना भी कहते हैं।

मैंने तब हँसते हुए कहा- मैं दो बच्चों की माँ हूँ… अब मेरी झिल्ली तो कब की टूट चुकी है।

अमर ने कहा- मुझे पता है, पर मैं बस ऐसे ही कल्पना कर रहा हूँ और वैसे भी ये हमारी असली सुहागरात थोड़े है, बस मस्ती के लिए नाटक ही तो कर रहे हैं।

तब मैंने शरारत करते हुए कहा- अच्छा तब ठीक है, मुझे लगा कि सचमुच की सुहागरात है और हम सच में सम्भोग करेंगे।

तब वो मुझे घूरते हुए बोले- क्या मतलब? सुहागरात का नाटक है, पर सम्भोग तो सच में ही करेंगे न।

मैं उनको और छेड़ते हुए बोली- नहीं जब सुहागरात नाटक है तो सम्भोग का भी नाटक ही करेंगे।

मेरी बात सुनते ही उन्होंने मुझे बिस्तर पर पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए और बोले- सच का सम्भोग करेंगे और वैसे भी अब तुम चाहो भी तो नहीं जा सकती… मेरी बाँहें इतनी मजबूत है कि आज मैं जबरदस्ती भी कर सकता हूँ।

मैंने कहा- मेरे साथ जबरदस्ती करोगे… किस हक से?

उन्होंने कहा- आज की रात तुम मेरी दुल्हन हो… मतलब तुम मेरी बीवी हो इसलिए मेरा हक है कि मैं जो चाहूँ, कर सकता हूँ और अब ज्यादा नाटक करोगी तो तुम्हारा यौन शोषण भी कर सकता हूँ।

मैंने कहा- अपनी बीवी का कोई ऐसे देह शोषण करता है क्या?

उन्होंने कहा- क्या करें.. अगर बीवी साथ नहीं देती तो मज़बूरी में करना पड़ेगा।

फिर हम हँसते हुए एक-दूसरे के होंठों को चूमने लगे।

थोड़ी देर बाद अमर ने मुझसे कहा- चलो अब बताओ कि मैं कैसा दिख रहा हूँ
और वो बिस्तर से उठ कर खड़े हो गए।

मैंने देखा कि वो एक धोती और कोट पहने हुए हैं, जो ज्यादातर पुराने जमाने में लोग पहनते थे और वो अच्छे भी दिख रहे थे।

उन्होंने बताया- मैंने धोती नई खरीदी है पर कोट शादी के समय का है।

मैंने उन्हें देख कर फिर से चिढ़ाते हुए कहा- काफी जंच रहे हैं.. मेरे बूढ़े दुल्हे राजा…!
और मैं हँसने लगी।

तब उन्होंने मुझे फिर से बिस्तर पर पटक दिया और कहा- वो तो थोड़ी देर में पता चल जाएगा कि मैं बूढ़ा हूँ या जवान… जब तुम्हारी सिसकारियाँ निकलेगीं।

हमने एक-दूसरे को चूमना शुरू कर दिया, फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने दूध का गिलास लिया और मुझे दिया और बोले- पियो।

मैंने उनसे पहले पीने को कहा उन्होंने एक घूँट पिया फिर गिलास मुझे दिया। मैंने भी एक घूँट पिया, फिर वो पीने लगे इस तरह दूध खत्म हो गया।

दूध खत्म करने के बाद उन्होंने मुझे फिर से चूमना शुरू किया और कहा- अब तुम्हारा दूध पीने की बारी है।
और मेरे स्तनों को दबाने लगे, जिससे मेरा दूध निकल गया और ब्लाउज भीग गया।

मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें।
कहानी जारी रहेगी।

मेरी दूसरी सुहागरात-2

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