दो नौकरानियों की मस्त चुदाई-1

(Naukaraniyon Ki Mast Chudai-1)

यह उन दिनों की बात है जब मैं स्थानान्तरण पर ग्वालियर आया था। घर पर हमने एक काम काज के लिये एक लड़की को रख लिया था। उसका नाम मीना था। वो दुबली पतली और लम्बी लड़की थी। काम में माहिर थी। धीरे धीरे वो मुझे अच्छी लगने लगी थी। घर को ठीक से सेट करने के बाद मेरी पत्नी वापस भोपाल चली गई थी।

दिसम्बर का महीना था और उसका स्कूल 15 मई तक था। मीना यूँ तो एक साधारण लड़की थी, सेक्सी भी नहीं लगती थी, पर उसकी छोटी छोटी चूंचियां और उसके चूतड़ मुझे बहुत भाते थे। वो नजरें चुरा कर मेरी इस हरकत को देखती थी पर कुछ नहीं कहती थी।

धीरे धीरे अब हम दोनों बातें भी करने लगे थे। वो मुझे अधिकतर अपनी बड़ी बहन राधा के बारे में बताती रहती थी। उसकी बड़ी बहन की शादी होने वाली थी। उसकी बड़ी बहन 21 वर्ष की थी, यानी मीना से 2 साल बड़ी थी। अपने जीजू को लेकर मीना बहुत बातें करती थी, उसे लड़कों के बारे में बाते करना अच्छा लगता था। मैं उसे अब अपने पास बैठा कर चाय और कुछ खाने को देता था जिसे वो बड़े शौक से खाती थी।

एक दिन मैंने उससे हिम्मत करके पूछ ही लिया,’मीना, तेरा कोई लड़का दोस्त है?’

पहले तो वो शरमा गई, फिर कुछ गुस्से में बोली- अंकल, राधा है ना, उसने मेरा सारा काम बिगाड़ दिया, उसने हम दोनों को एक साथ देख लिया था !

‘अच्छा, तुम दोनों क्या कर रहे थे।’ मैंने उत्सुकतावश पूछ लिया, वो गुस्से और जोश में बताती चली गई, यह भी भूल गई कि क्या बता रही है।

‘रमेश मुझे अकेला पा कर मुझे चूमने लगा और मेरे शरीर को भी छूने लगा, तो दीदी अचानक आ गई और हमें देख लिया।’

‘अरे प्यार में तो शरीर को छुआ जाता है, इधर उधर हाथ भी लगाते हैं, तो दीदी को तुमसे क्या लेना था?’

‘हां यही तो, वो मेरी छातियों को दबा रहा था, मुझे चूम रहा था, तो वो जल गई !’

‘कैसे, यहाँ छाती पर… ऐसे…?’ मैंने उसकी छोटी सी एक चूची को दबाते हुए कहा।

‘अंकल, अब आप भी… हटो मैं नहीं बताती।’ मेरी इस हरकत पर उसने नाराजगी जाहिर की।

‘क्यों, अच्छा नहीं लगा? रमेश ने किया था तो कैसा लगा था। फिर हाथ लगाने से कुछ होता थोड़े ही है’ मैंने स्थिति को सम्हालने की कोशिश की।

‘अंकल, गुदगुदी होती है ना, मन में भी कुछ होता है, आपका हाथ लगाने से अभी तो हुआ ना !’ उसने शरमाते हुए कहा।

‘तो और लगाऊँ क्या? गुदगुदी में तो मजा आता है ना !’

‘अंकल, अच्छा एक बार सिर्फ़, फिर नहीं… ठीक है ना !’ उसने शरमाते हुए कहा। मेरा मन खिल उठा, यानि इसे मजा आया था और मैंने उसकी भावनाओं को जगा दिया था। मैंने धीरे से उसकी छोटी छोटी चूंचियों को सहलाना चालू कर दिया। कभी कभी उसके निपल भी उमेठ देता था। वो सिसकारी भरने लगी।

‘कैसा लग रहा है मीना, मजा आ रहा है ना?’

‘अंकल, हाय और करो, यहाँ दीदी थोड़े ही है, कौन मना करेगा, हाय अंकल!!!’ वो अब मस्ती में आ गई थी। मेरा लण्ड पजामें में से जोर मारने लगा था।

‘मीना, मुझे चुम्मा दोगी?’ मैंने उससे किस करने को कहा। पर इतना कहने पर तो मेरे से लिपट ही गई और मेरे होंठो को अपने होंठो से दबा लिया।
वह उत्तेजना में बह निकली थी। मेरे शरीर को कसती जा रही थी।
मैंने उसकी वासना को बढ़ने दिया और उसे लेटा दिया। उसे दबाता हुआ उसके ऊपर चढ़ गया।
वो मेरे शरीर के नीचे दब गई और आहें भरने लगी- अंकल आप कितने अच्छे हैं, आह, मेरी इच्छा पूरी कर दो अंकल, मुझे चोद दो…हाय !
उसके मुँह से उसकी इच्छा प्रकट हो गई।

‘मीना, तुम भी बहुत प्यारी हो, आह मेरा लण्ड पकड़ ले रे, मुठ मार दे !’

‘अंकल, मेरे बोबे दबा दो, हाय राम रे ! मैं तो आज मर जाऊंगी !’ मीना सिसकते हुए बोली। उसे मसलने और चूमने के बाद मैं उससे अलग हो गया।

‘मीना, अपना सलवार कुर्ता उतार दो, मैं भी उतार देता हू, मजा करेंगे।’ मैंने अपनी वासना को रोका नहीं, उसे चुदाने के लिये निमन्त्रण दे दिया।

‘हाँ अंकल, बहुत मजा आ रहा था, और करें, अरे ये तो देखो, तुम्हारा गंगाराम कैसा हो रहा है।’ हंसते हुए उसने मेरे लण्ड की तरफ़ इशारा किया।

‘गंगाराम? मतलब?’

‘अरे ये डण्डाराम, रमेश का भी ऐसा ही था।’

‘मीना, फिर चुदाया था तुमने…?’

‘अंकल, नहीं, दीदी ने काम बिगाड़ दिया था ना !’

‘पहले कभी चुदाया था क्या?’

‘अब छोड़ो ना, अब कर लेते हैं, अंकल आपने तो आण्टी को खूब चोदा होगा, कैसा लगता है?’ मीना का शरीर चुदासा हो रहा था। मेरा लण्ड भी चोदने को फ़डक रहा था,’खुद चुदवा के देख लो, तो पता चल जायेगा।’

मैंने अपना पजामा उतार दिया। मेरा तन्नाया हुआ लौड़ा देख कर वो शरमा गई। मैंने उसका सलवार और कुर्ता उतार दिया और उसके नंगे बदन को प्यार करने लगा। वो नंगी ही शरमाती और बदन को छुपाती रही। पर जब मैंने उसकी चूत को खोल कर अपने होंठ उस पर रखे तो वह चिहुंक उठी।

‘अंकल यहाँ नहीं करो… शर्म आती है !’ वो सिमटती हुई बोली।

पर किया उल्टा ही, उसने अपने दोनों पांव चौड़े कर के चूत को खोल दिया और झुकते हुए मेरे बाल पकड़ कर चूत का पूरा जोर मेरे मुख पर लगा दिया। मैंने भी उत्तर में अपनी जीभ उसकी योनि में घुसा दी।

‘अंकल, मर जाऊंगी, हाय रे !’ वो नीचे हाथ बढ़ा कर मेरे लण्ड को पकड़ने की कोशिश करने लगी। मैं अब बिस्तर में एक तरफ़ आ गया।
‘अंकल, मैं आपके लौड़े से खेल लूँ, मजा आयेगा !’ अपनी इच्छा जाहिर की।

मैं सीधा हो गया और उसने मेर खड़ा लण्ड पकड़ लिया और धीरे धीरे ऊपर नीचे करके मुठ सा मारने लगी।
‘आपका लौड़ा मस्त है, लाल टोपी कितनी सुन्दर है !’
‘लौड़ा नहीं, लण्ड बोलो, लण्ड शब्द अच्छा है !’

‘मैं तो लौड़ा ही कहूंगी, मेरी माँ को भी मैंने यही कहते सुना है !’ मैं हँस पड़ा। उसने मेरे लण्ड के सुपाड़े को चाटना शुरू कर दिया। उत्तेजना बहुत बढ़ चुकी थी। मैंने मीना के शरीर को दबा कर नीचे कर लिया और और उस पर चढ़ बैठा।

‘मीना, तैयार हो जाओ चुदने के लिये !’

‘हाय रे, तैयार हूँ, हाय घुसेड दो लौड़ा… मेरे राजा !’ वह उत्तेजना से मचल उठी। उसने अपनी दोनों टांगें ऊपर उठा ली। लण्ड गीली चूत को चूमता हुआ फ़क से अन्दर उतर आया। मैंने धीरे से लण्ड दबाया। चूत टाईट थी। पर मैंने धीरज रखा। धीरे धीरे अन्दर उतारने लगा।

‘अंकल थोड़ा सा दर्द हो रहा है और धीरे करो।’ मुझे पता चल गया कि फूल अभी खिला नहीं है, सील टूटी नहीं है। मैंने उसे प्यार से चूमा और कहा,’थोड़ा सा दर्द शुरू में होगा, फिर तो बाद में मजे ही मजे हैं !’

‘चलो ना, चोद दो ना अब !’ मैंने उसे आश्चर्य से देखा और उसकी चूत में जोर लगा कर पूरा जड़ तक घुसा डाला। वो चीख उठी।

‘अरे, हाय रे… मर गई मैं तो, निकालो वापस !’ उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। उसका चेहरा विकृत हो उठा, दांत भींच लिये। मैं चुप से उस पर लेट गया और उसे प्यार करने लगा।

‘बस बस मीना, शान्त हो जाओ, बस हो गया जो होना था, अब स्वर्ग में चलें?’ आंसू भरे चेहरे में भी वो हंस पड़ी।

‘इतना तेज दर्द होगा, यह मुझे नहीं मालूम था। अब और तो नहीं होगा ना?’

‘बस दो तीन धक्कों में होगा, फिर चूत की मिठास में सब दर्द घुल जायेगा।’ मैं हल्के से और प्यार करते हुये धक्के मारने लगे।

उसे दर्द होता रहा पर वो सहती रही। फिर उसकी रफ़्तार भी बढ़ने लगी, मुझे पता चल गया कि दर्द की जगह मिठास ने ले ली है।
मेरे लण्ड में भी भीनी भीनी मिठास का मजा आ रहा था। उसकी टाईट चूत का मजा अभूतपूर्व था।
शरीर उसका दुबला था पर बहुत ही लचीला था। वो भी अपनी चूत को घुमा घुमा कर लण्ड का मजा ले रही थी। उसकी कमर मशीन की तरह बल खाकर धक्के मार रही थी।
चूत में लाल खून उसकी चिकनाई को बढ़ा रहा था। फ़च फ़च की मधुर आवाजें आने लगी थी। मेर सुपाड़ा भी और लाल हो गया था।
चूत की रगड़ से लण्ड मस्त हुआ जा रहा था। मेरे शरीर में वासना की चिन्गारियाँ निकलने लगी थी। मेरा तन अगन से तड़प उठा था। लग रहा था कि अभी कुछ लण्ड के रास्ते सब कुछ बाहर आ जायेगा।

अचानक मीना की वासनायुक्त खुशी की चीख निकल पड़ी,’अंकल जीऽऽऽ, ये मुझे क्या हो रहा है, हाय रे… मेरा पेशाब निकला जा रहा है… !!’

‘निकाल दे मेरी रानी, कर दे पेशाब यहीं पर, कर दे…रोक मत !’ मैं भी उसके पेशाब का मजा लेना चहता था, पर वो पेशाब नहीं था, उसकी चूत की लहरें बता रही थी कि वो झड़ रही थी। शायद झड़ने का उसका पहला अनुभव था या इस तरह से वो पहली बार झड़ी थी।

मेरा लण्ड भी फूल कर कुप्पा हो रहा था। उसकी चूत के ढीले पड़ते ही मैंने अपना लण्ड उसकी चूत की जड़ में दबा दिया और अपना पूरा जोर लगा दिया। अन्दर का लावा फूट पड़ा। मैंने अब लण्ड बाहर खींच लिया और फ़ुहार निकल पड़ी।
रुक रुक के वीर्य बाहर आ रहा था। उसका पूरा पेट भीग गया। ढेर सारा वीर्य बाहर जमा हो गया। मैंने हाथ से उसे उसके पेट पर मल दिया।

‘छी: ! ये क्या कर दिया। सारा गन्दा कर दिया अंकल आपने तो !’ वह मुझ पर झुंझला उठी। फिर उसने वहीं पेट पर से वीर्य हाथ में लेकर मेरे मुँह पर मल दिया और हंस पड़ी। मैंने पहली बार अपने ही वीर्य का स्वाद चखा, फ़ीका फ़ीका सा, लसलसा, चिकना।

मैं बिस्तर से उठ खडा हुआ और बटुए में से उसे पचास रुपए निकाल कर कहा- मीना यह तेरा इनाम है, तू जब भी चुदवायेगी मैं तुझे पचास रुपए दूंगा।

मीना खुश हो गई उसने झट से रुपये रख लिये। बाथ रूम में जा कर हमने अपने लण्ड और चूत साफ़ कर लिये। मीना पचास रुपए पा कर बहुत खुश थी,’अंकल, आप बहुत अच्छे हैं, अब मैं अपने लिये झुमके खरीदूँगी।’

‘कल भी चुदवायेगी क्या…?’
‘आप मुझे पचास रुपए दें तो मैं अभी और चुदवा लूँ !’ कह कर वो मेरी तरफ़ बढ़ गई।
‘तो फिर आ जाओ मेरी बाहों में !’

‘अंकल, एक बात पूछूँ?’
‘हां जरूर, मेरी जान !’
‘राधा को भी पचास रुपए दोगे?’ मैं सुनते ही चौंक गया।
‘वो भी क्या चुदवायेगी?’

‘उसकी शादी होने वाली है ना, उसे चुदाना ही नहीं आता है, वो सीख भी लेगी और उसके पास कुछ पैसे भी आ जायेंगे।’

‘उसने तुम्हारे साथ ऐसा किया फिर भी तुम उसके लिये ऐसा सोचती हो, तुम हो ही प्यारी !’
‘प्यारे अंकल जी, मान जाओ ना !’
‘उसे कल ले आना, मजा तो रहेगा ही और वो चुदना सीख भी जायेगी!’

मैं बिस्तर पर सीधा लेट गया और मीना मेरे ऊपर चढ़ गई। मेरा लण्ड उसकी चूत में सरसराता हुआ अन्दर जाने लगा और सिसकियों का बाज़ार गर्म हो गया।

मीना अगले ही दिन राधा को मेरे पास लेकर आई!
राधा के साथ क्या हुआ? यह अगले भाग में!
[email protected]

कहानी का अगला भाग : नौकरानियों की मस्त चुदाई -2

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