धोबी घाट पर माँ और मैं -11

(Dhobi Ghat Per Maa Aur Main-11)

जलगाँव बॉय 2015-07-31 Comments

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ओह माँ, दिखा दो ना, बस एक बार। सिर्फ़ देख कर ही सो जाऊँगा।’
पर माँ ने मेरे हाथों को झटक दिया और उठ कर खड़ी हो गई, अपने ब्लाउज़ को ठीक करने के बाद छत के कोने की तरफ चल दी।

छत का वो कोना घर के पिछवाड़े की तरफ पड़ता था और वहाँ पर एक नाली जैसा बना हुआ था जिससे पानी बह कर सीधे नीचे बहने वाली नाली में जा गिरता था।

माँ उसी नाली पर जा के बैठ गई, अपने पेटिकोट को उठा के पेशाब करने लगी।
मेरी नजरें तो माँ का पीछा कर ही रही थी, यह नज़ारा देख कर तो मेरा मन और बहक गया, दिल में आ रहा था कि जल्दी से जाकर माँ के पास बैठ कर आगे झांक लूँ और उसकी पेशाब करती हुई चूत को कम से कम देख भर लूँ।
पर ऐसा ना हो सका, माँ ने पेशाब कर लिया, फिर वो वैसे ही पेटिकोट को जांघो तक एक हाथ से उठाये हुए मेरी तरफ घूम गई और अपनी फ़ुद्दी पर हाथ चलाने लगी जैसे कि पेशाब पौंछ रही हो और फिर मेरे पास आकर बैठ गई।

मैंने माँ के बैठने पर उसका हाथ पकड़ लिया और प्यार से सहलाते हुए बोला- हाय माँ, बस एक बार दिखा दो ना, फिर कभी नहीं
बोलूँगा दिखाने के लिये।
‘एक बार ना कह दिया तो तुझको समझ में नहीं आता है क्या?’
‘आता तो है, मगर बस एक बार में क्या हो जाएगा?’
‘देख, दिन में जो हो गया सो हो गया, मैंने दिन में तेरा लण्ड भी मुठिया दिया था, कोई माँ ऐसा नहीं करती। बस इससे आगे नहीं बढ़ने दूँगी।’

माँ ने पहली बार गंदे शब्द का उपयोग किया था, उसके मुख से लण्ड सुन कर ऐसा लगा, जैसे अभी झड़ कर गिर जायेगा।
मैंने फिर धीरे से हिम्मत करके कहा- हाय माँ, क्या हो जाएगा अगर एक बार मुझे दिखा देगी तो? तुमने मेरा भी तो देखा है, अब अपना दिखा दो ना।

‘तेरा देखा है, इसका क्या मतलब है? तेरा तो मैं बचपन से देखते आ रही हूँ। और रही बात चूची दिखाने और पकड़ाने की, वो तो मैंने तुझे करने ही दिया है ना, क्योंकि बचपन में तो तू इसे पकड़ता चूसता ही था। पर चूत की बात और है, वो तो तूने होश में कभी नहीं देखी ना, फिर उसको क्यों दिखाऊँ?’

माँ अब खुल्लम-खुल्ला गन्दे शब्दों का प्रयोग कर रही थी।
‘हाय, जब इतना कुछ दिखा दिया है तो, उसे भी दिखा दो ना! ऐसा कौन सा काम हो जायेगा?’
माँ ने अब तक अपना पेटिकोट समेट कर जांघों के बीच रख लिया था और सोने के लिए लेट गई।

मैंने इस बार अपना हाथ उसकी जांघों पर रख दिया, मोटी-मोटी गुदाज जांघों का स्पर्श जानलेवा था। जांघों को हल्के-हल्के सहलाते हुए मैं जैसे ही हाथ को ऊपर की तरफ ले जाने लगा, माँ ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- ठहर, अगर तुझसे बरदाश्त नहीं होता है तो ला, मैं फिर से तेरा लण्ड मुठिया देती हूँ।
कह कर मेरे लण्ड को फिर से पकड़ कर मुठियाने लगी, पर मैं नहीं माना और ‘एक बार, केवल एक बार’ बोल कर जिद करता रहा।

माँ ने कहा- बड़ा जिद्दी हो गया रे, तू तो, तुझे जरा भी शर्म नहीं आती अपनी माँ को चूत दिखाने को बोल रहा है। अब यहाँ छत पर कैसे दिखाऊँ? अगल बगल के लोग कहीं देख लेंगे तो? कल देख लियो।
‘हाय, कल नहीं अभी दिखा दे, चारों तरफ तो सब कुछ सुनसान है, फिर अभी भला कौन हमारी छत पर झांकेगा?’
‘छत पर नहीं, कल दिन में घर में दिखा दूँगी आराम से।’
तभी बारिश की बूंदें तेजी के साथ गिरने लगी। ऐसा लगा रहा था, मेरी तरह आसमान भी चूत नहीं दिखाये जाने पर रो पड़ा है।

माँ ने कहा- ओह, बारिश शुरु हो गई। चल, जल्दी से बिस्तर समेट ले, नीचे चल के सोयेंगे।
मैं भी झटपट बिस्तर समेटने लगा और हम दोनों जल्दी से नीचे की ओर भागे।

नीचे पहुँच कर माँ अपने कमरे में घुस गई, मैं भी उसके पीछे पीछे उसके कमरे में पहुँच गया।
माँ ने खिड़की खोल दी और लाईट जला दी। खिड़की से बड़ी अच्छी, ठण्डी ठण्डी हवा आ रही थी।

माँ जैसे ही पलंग पर बैठी, मैं भी बैठ गया और माँ से बोला- हाय, अब दिखा दो ना। अब तो घर में आ गये है हम लोग।
इस पर माँ मुस्कुराती हुई बोली- लगता है, आज तेरी किस्मत बड़ी अच्छी है। आज तुझे मालपुआ खाने को तो नहीं, पर देखने को जरूर मिल जायेगा।

फिर माँ ने अपना सिर पलंग पर टिका कर अपने दोनों पैर सामने फैला दिए और अपने निचले होंठों को चबाते हुये बोली- इधर आ, मेरे
पैरों के बीच में, अभी तुझे दिखाती हूँ। पर एक बात जान ले तू पहली बार देख रहा है, देखते ही तेरा पानी निकल जाएगा, समझ गया?
फिर माँ ने अपने हाथों से पेटिकोट के निचले भाग को पकड़ा और धीरे धीरे ऊपर उठाने लगी।

मेरी हिम्मत तो बढ़ ही चुकी थी, मैंने धीरे से माँ से कहा- ओह माँ, ऐसे नहीं।
‘तो फिर कैसे देखेगा रे?’
‘हाय माँ, पूरा खोल कर दिखाओ ना?’
‘पूरा खोल कर से तेरा क्या मतलब है?’
‘हाय, पूरे कपड़े खोल कर!’
मेरी बड़ी तमन्ना है कि मैं तुम्हारे पूरे बदन को नंगा देखूँ, बस एक बार!’

इतना सुनते ही माँ ने आगे बढ़ के मेरे चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया और हंसते हुई बोली- वाह बेटा, उंगली पकड़ कर पूरा हाथ पकड़ने की सोच रहा है क्या?’
‘हाय माँ, छोड़ो ना ये सब बातें, बस एक बार दिखा दो। दिन में तुम कितने अच्छे से बातें कर रही थी, और अभी पता नहीं क्या हो गया है तुम्हें? सारे रास्ते सोचता आ रहा था मैं कि आज कुछ करने को मिलेगा और तुम हो कि…’

‘अच्छा बेटा, अब सारा शरमाना भूल गया। दिन में तो बड़ा भोला बन रहा था और ऐसे दिखा रहा था जैसे कुछ जानता ही नहीं। पहले कभी किसी को किया है क्या? या फिर दिन में झूठ बोल रहा था?’

‘हाय कसम से माँ, कभी किसी को नहीं किया, करना तो दूर की बात है, कभी देखा या छुआ तक नहीं।’
‘चल झूठे, दिन में तो देखा भी था और छुआ भी था।’
‘हाय कहाँ माँ, कहाँ देखा था?’
‘क्यों, दिन में मेरा तूने देखा नहीं था क्या? और छुआ भी था तूने तो।’
‘हाय, हाँ देखा था, पर पहली बार देखा था। इससे पहले किसी का नहीं देखा था। तुम पहली हो जिसका मैंने देखा था।’

‘अच्छा, इससे पहले तुझे कुछ पता नहीं था क्या?’
‘नहीं माँ, थोड़ा बहुत मालूम था।’
‘क्या मालूम था? जरा मैं भी तो सुनूँ?’ कह कर माँ ने मेरे लण्ड को फिर से अपने हाथों में पकड़ लिया और मुठियाने लगी।
इस पर मैं बोला- ओह छोड़ दो माँ, ज्यादा करोगी तो अभी निकल जायेगा।
‘कोई बात नहीं, अभी निकाल ले। अगर पूरा खोल कर दिखा दिया तो फिर तो तेरा देखते ही निकल जाएगा। पूरा खोल कर देखना है ना
अभी?’
इतना सुनते ही मेरा दिल तो बल्लियों उछलने लगा। अभी तक तो माँ नखरें कर रही थी और अभी उसने अचानक ही जो दिखाने की बात कर दी। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे लण्ड से पानी निकल जायेगा।
‘हाय माँ, सच में दिखाओगी ना?’
‘हाँ दिखाऊँगी मेरे राजा बेटा, जरूर दिखाऊँगी। अब तो तू पूरा जवान हो गया है और काम करने लायक भी हो गया है। अब तो तुझे ही दिखाना है सब कुछ। और तेरे से अपना सारा काम करवाना है मुझे।’

माँ और तेजी के साथ मेरे लण्ड को मुठिया रही थी और बार-बार मेरे लण्ड के सुपाड़े को अपने अंगूठे से दबा भी रही थी।
माँ बोली- अभी जल्दी से तेरा निकाल देती हूँ, फिर देख तुझे कितना मजा आयेगा। अभी तो तेरी यह हालत है कि देखते ही झड़ जाएगा। एक पानी निकाल दे, फिर देख तुझे कितना मजा आता है।’

‘ठीक है माँ, निकाल दो एक पानी। मैं तुम्हारा दबाऊँ?’
‘पूछता क्या है? दबा ना!’ पर क्या दबायेगा, यह भी तो बता दे?’ यह बोलते वक्त माँ के चेहरे पर एक शैतानी भरी कातिल मुस्कुराहट खेल गई।
‘हाय माँ, वो तुम्हारी छातियाँ माँ हाय।’
‘छातियाँ, ये क्या होती हैं? ये तो मर्दों की भी होती है, औरतों का तो कुछ और होता है। बता तो, सही नाम तो जानता ही होगा ना?’
‘चु… चू… हाय माँ, मेरे से नहीं बोला जायेगा, छोड़ो नाम को।’
‘बोल ना, शरमाता क्यों है? माँ को खोल कर दिखाने के लिये बोलने में नहीं श्र्माता है, पर अंगों के नाम लेने में शर्माता है?’
‘हाय माँ, तुम्हारी…’
‘हाँ हाँ, मेरी क्या? बोल?’
‘हाय माँ, तुम्हारी चु उ उ उंची।’

ये शब्द बोल कर ही इतना मजा आया कि लगा जैसे लौड़ा पानी गिरा देगा।
‘हाँ, अब आया ना लाईन पे… दबा मेरी चूचियों को, इससे तेरा पानी जल्दी निकल जाएगा। हाय, क्या भयंकर लौड़ा है!’
पता नहीं जब इस उम्र में यह हाल है इस छोकरे के लण्ड का तो पूरा जवान होगा तो क्या होगा?’

मैंने अपनी दोनों हथेलियों में माँ की चूचियाँ भर ली और ऊन्हें खूब कस कस के दबाने लगा, गजब का मजा आ रहा था, ऐसा लगा रहा था, जैसे कि मैं पागल हो जाऊँगा।
दोनों चूचियाँ किसी अनार की तरह सख्त और गुदाज थी। उसके मोटे- मोटे निप्पल भी ब्लाउज़ के ऊपर से पकड़ में आ रहे थे।
मैं दोनों निप्पलों के साथ साथ पूरी चूची को ब्लाउज़ के ऊपर से पकड़ कर दबाये जा रहा था।

माँ के मुख से अब सिसकारियाँ निकलने लगी थी और वह मेरा उत्साह बढ़ाए जा रही थी- हाय बेटा, शाबाश ! ऐसे ही दबा मेरी चूचियों
को। हाय क्या लौड़ा है? पता नहीं घोड़े का है, या सांड का है? ठहर जा, अभी इसे चूस कर तेरा पानी निकालती हूँ।
कह कर वो नीचे की ओर झुक गई, जल्दी से मेरा लण्ड अपने होंठों के बीच कैद कर लिया और सुपारे को होंठों के बीच दबा कर खूब कस कस कर चूसने लगी जैसे कि पाईप लगा कर कोई कोका कोला पीता है।

मैं उसकी चूचियों को अब और ज्यादा जोर से दबा रहा था, मेरी भी सिसकारियाँ निकलने लगी थी, मेरा पानी अब छुटने वाला ही था- हाय रे, मेरी माँ !!! निकाल रे निकाल मेरा, निकल गया, ओह माँ, सारा, सारा का सारा पानी, तेरे मुंह में ही निकल गया रे।
माँ का हाथ, अब और तेज गति से चलने लगा, ऐसा लगा रहा था जैसे वो मेरे पानी को गटागट पीते जा रही है।

मेरे लण्ड के सुपारे से निकली एक एक बूंद चुस जाने के बाद माँ ने अपने होंठों को मेरे लण्ड पर से हटा लिया और मुस्कुराती हुई मुझे देखने लगी और बोली- कैसा लगा?
मैंने कहा- बहुत अच्छा।
और बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क गया।
मेरे साथ-साथ माँ भी लुढ़क के मेरे बगल में लेट गई और मेरे होंठों और गालों को थोड़ी देर तक चूमती रही।

थोड़ी देर तक आंखें बंद कर के पड़े रहने के बाद जब मैं उठा तो देखा कि माँ ने अपनी आंखें बंद कर रखी हैं और अपने हाथों से
अपनी चूचियों को हल्के हल्के सहला रही थी।
मैं उठ कर बैठ गया और धीरे से माँ के पैरों के पास चला गया। माँ ने अपना एक पैर मोड़ रखा था और एक पैर सीधा करके रखा हुआ था, उसका पेटिकोट उसकी जांघों तक उठा हुआ था, पेटिकोट के ऊपर और नीचे के भागों के बीच में एक गैप सा बन गया था, उस गैप से उसकी जांघ, अन्दर तक नजर आ रही थी। उसकी गुदाज जांघों के ऊपर हाथ रख कर मैं हल्का सा झुक गया अन्दर तक देखने के लिये।

हाँलाकि अंदर रोशनी बहुत कम थी, परन्तु फिर भी मुझे उसकी काली काली झांटों के दर्शन हो गए।
झांटों के कारण चूत तो नहीं दिखी, परन्तु चूत की खुशबू जरूर मिल गई।
कहानी जारी रहेगी।
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