मसक कली मौसी-1

लेखिका : श्रेया आहूजा

मेरा नाम बरखा है ! अभी मैं राजस्थान के प्रसिद्ध शहर जोधपुर में अपने पति और बिटिया के साथ मस्त जिंदगी व्यतीत कर रही हूँ। लेकिन मेरा मायका बीकानेर के करीब एक गाँव में है।

मैं आपको अपनी शादी से पहले की बात बताना चाहती हूँ।

मेरी मौसी की ससुराल भी हमारे ही गाँव में है।

अक्सर मौसी की अपने पति से अनबन हो जाती थी तो वो हमारे साथ ही रहने आ जाया करती थी। घर में हाँथ बटाने में मौसी कभी पीछे नहीं हटती सो किसी को उनके रहने पर ऐतराज़ नहीं था !

मौसी हमेशा पीछे वाले कमरे में रहती थी।

एक बार देर रात की बात है घर पर सब सोये हुए थे और मैं पढ़ाई कर रही थी … मुझे सिसकारियों की सी आवाज़ सुनाई दी, वो आवाज मुझे मौसी के कमरे की तरफ़ से आती महसूस हुई तो मैं मौसी के कमरे की ओर चल पड़ी … दरवाज़ा खुला था .. झांक कर देखा तो मौसी सिर्फ चोली पहने हुई थी, नीचे बिलकुल नंगी टिन के संदूक के ऊपर जांघें फैलाए बैठी थी … वो बार बार एक लकड़ी के डंडे को अपनी योनि में अन्दर-बाहर कर रही थी … वो उस डण्डे को बार बार पास रखे तेल भरे डिब्बे में डुबो रही थी …

मैं : मौसी, यह क्या कर रही है ?

मौसी बिलकुल पसीने पसीने थी….. आँखे हवस से बेचैन !

मौसी : देख नहीं री .. अपने बुर को शांत करण लागरी ! … शैतान बसै इसमैं … हैवानियत भरी इस छेद में …

मैं : मौसी, ऐसा आप ऐसा क्यूँ कह रही है ?

मौसी : अभी तेरा ब्याह ना हुआ ना .. चुदाई का स्वाद नहीं चखी ना तू … जाकै देख तेरी माँ क्या कर री … चुदरी होगी … तेरा बाप बांका मर्द है … घोड़े की तरह ….जालिमों की तरह चोदै है, तेरी मां तांई तै खुस रेहवे है पर मन्ने कोई इसा मज़ा ना देवै ?

मैं : छी. मौसी कितना गंद बोल रही है … ऐसा कोई कहता है भला ? वो तो आपकी बहन है….और अब शायद माँ पापा संभोग भी …

मौसी : मेरी बात्तां पै जकीन नी तो चल … दिखाऊं हूँ तन्नै…

मौसी ने अपना घाघरा पहना और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच कर माँ के कमरे के पास ले गई …

मौसी : देख लै अपनी आंखां खोल कै बारी मां ते … दोन्ना किक्कर लिपटे पड़े …

मैंने पहली बार दोनों को नग्न देखा … माँ के ऊपर पापा चढ़े हुए थे … लंड निकला हुआ था … बहुत बड़ा सा लिंग था … माँ की जांघें पापा को घेरे हुए थी … शायद अभी अभी ही पापा का स्खलन हुआ होगा … वीर्य माँ की जांघों और पेट पर गिरा हुआ था … मुझे नहीं पता था कि वे अभी भी संभोग करते हैं …

मौसी : देख लिया … थोड़ी होर देखेगी .. तेरा बाप फिर तेरी माँ नै उठा उठा कर चोदे सबेरे तैं …

मैं : चलो मौसी यहाँ से …

हम दोनों वहाँ से वापिस चलने लगे …मध्य रात थी …

मैं : मौसी … मौसा जी भी तो हट्टे कट्टे है वो भी तो …

मौसी : बस देक्खण मां ही …कुछ ना होत्ता उसतै ! फिस्सड्डी साला ! … ब्याह की पैल्ली रात नै मैं बूझ गी ती … मन्नै मज़ा देणा इसके बसकी बात नी …

मैं : क्या ? सच में ?

मौसी : हाँ … है के उसकै धोत्ती मै? जरा सा डण्डी सा.. मूत्तण जोग्गा बस ! जरा सी जाण आत्तै ई गिर ज्या .. बस ऊप्पर ऊप्पर मज़ा देवे अन्दर कुछ णी … आज बी मैं तरसूं हूँ … बोहोत जी मै आवे केर कियां मर्द सै चोदे लगवाऊँ …

मैं : फिर .. आज तक … आपने ठीक से संभोग …?

मौसी : नहीं … मण तो करै है के इबी दरवज्जा खोल कै जिज्जी के कमरे में बड़ कै जीज्जाजी से चुदवा ल्यूं !

मैं : मतलब आप पापा से …??

मौसी : हां ! मैं जाणूँ …. नीरी जान है मेरे जिज्जा धोरै ! जिज्जी बतावै थी मन्नै सारी बातां पैल्लै तो ! इब त्तां कुछ नी बतात्ती ! वा बी मेर तै डरदी के कहीं मैं कितै उड़ा के ना ले जाऊँ ! घणी नज़र राखै हैं जिज्जी !

मैं : हाँ ! मां तो हमेशा पापा के साथ साथ रहती है …

गुप अँधेरा था, मुझे अपने कमरे में ले गई …

मौसी : इब तै तेरे पै बी जवानी खिड री ! … तेरा बी तो जी करदा होग्गा कुछ करण णूं?

मैं : मौसी !

मौसी : के करै मौसी ? बोल णा ! उंगली तो करदी ऐ होग्गी ?

यह कहते कहते मौसी मुझसे लिपट गई … मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और पागलों की तरह चूसने लगी।

मौसी का एक हाथ मेरी गर्दन पर था और दूसरा पीछे मेरे कूल्हों पर !

वो जोर जोर से मुझे चूम रही थी और मेरे चूतड़ मसल रही थी। मेरे तन-बदन में भी आग सी भरती जा रही थी। अब मैं भी चुम्बन में खुल कर मौसी का सहयोग करने लगी थी।

मौसी की उंगलियों ने मेरे घाघरे का नाड़ा खींच दिया तो मैं चौंक उठी !

मैं : मौसी ! क्या कर रही हो?

मौसी : कुछ नहीं री ! तन्णै भी आज जवानी का थोड़ा सा मजा दिखा दयूँ ?

मैं : मौसी कुछ होगा तो नहीं ..

मौसी : नाई रे पगली … कुछ नी होवे तन्नै …

मौसी ने मेरा घाघरा नीचे गिरा दिया और मेरी चोली को ऊपर सरका कर मेरे एक चूचे पर होंठ जमा दिए और दूसरे पर अपना पंजा !

मौसी के चूसने-मसलने से मेरी चूचियाँ चरमरा उठी, उनमें दर्द सा होने लगा।

मैं : मौसी ! होले होले !

मौसी : क्यूं ? दुःख होवे ?

मैं : हाँ मौसी !

मौसी ने मेरी चोली पूरी उतार दी और अपनी चोली-घाघरा भी उतार कर अपनी चूचियों पर मेरे हाथ रखते हुए बोली : ले इना नै मसल जित्ता तेर पै मसल्या जावे !

मुझे शर्म भी आ रही थी और मज़ा भी !

मौसी : महीना आत्ता होगा तन्नै तो ?

मैं : हाँ मौसी पर दर्द बहुत होता है जब खून का स्त्राव होता है …

मौसी : इकरै होवे है … कोन्नी बात !

मौसी ने मुझे नीचे बिछी दरी पर लिटा लिया और मेरी जांघों को पागलों के सामान चूमने लगी … फुद्दी चाटने लगी … चूतड़ों को मसलने लगी।

मैं : अहह मौसी .. क्या हो रहा है मुझे, मज़ा आ रहा है .. मौसी किसी को बुलाओ न ! किसी को भी अभी बुला दो चुदवा दो मुझे …

मौसी : इबजा कोई नी आवैगा ए ऐसे छोरी … इब तनै बेरा लागया ना के यो छेद नी, शैतान की नलकी है … घणे गंदे काम करवावै सै यो … इन्ना गोल गोल बोब्बों नै चूस चूस कर इतने बड़े बना दयूंगी तेरे ब्याह सा पैल्लाँ ई … लौंडों को बड़े पसंद आवे हैं !

मैं : मौसी कुछ कर ना !

मौसी : .. आजा मैं चोदूं हूँ तेरे को !

मौसी ने वही लकड़ी का डण्डा तेल भरे डिब्बे में से निकाला और उसे मेरी योनि की दरार पर फ़िराने लगी।

मुझे मज़ा भी आया पर मैं डर गई : मौसी, क्या कर री तू !

मुझे लगा कि मौसी इस डण्डे को मेरे अन्दर घुसा देगी : मौसी ! देख तन्ने मेरी सौं ! इस्सै कुछ ना करिये !

मौसी : तू बस मन्नै करण दे ! देख्ती जा के तन्ने कितना मज़ा आवेगा !

मैं : ना मौसी ना ! मेरी फ़ट जा गी ! तू मन्ने बख्श दे ! मन्नै नी लेणे मज़े !

डण्डे के चूत पर रगड़ने से मुझे मज़ा तो बहुत आ रहा था, मेरे चूतड़ बार बार अपने आप ही उछल उछल कर उसे अपने अन्दर समा लेने का यत्न कर रहे थे, मौसी की चूत मेरे मुंह के पास ही थी, मस्ती में मैं भी मौसी की चूत सहलाने लगी, उसमें उंगलियाँ घुसाने लगी तो मौसी के चूतड़ भी थिरकने लगे।

मौसी : एक दो सै मेरा के बणै ! पूरा पंजा बाड़ दे अन्दर !

सच में मौसी की चूत बहुत खुली थी।

मौसी ने अपने अंगूठे से और एक उंगली से मेरे चूत के फ़लक खोले और तेल में भीगे डण्डे को मेरी योनि में दबाने लगी।

डर के मारे मैंने अपनी जांघें भींच ली !

शेष कहानी के लिए अगले भाग की प्रतीक्षा करें !

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