अच्छा, चल चूस दे..

रंगबाज़ 2011-06-21 Comments

कुछ साल पहले की बात है, मैं दिल्ली में बस से महिपालपुर से कनाट प्लेस जा रहा था, समय लगभग शाम के सात बजे रहा होगा, सर्दी होने की वजह से अँधेरा जल्दी हो गया था।

धौला कुआँ में मेरे बगल एक लड़का आकर बैठ गया- लगभग 25 साल का रहा होगा, हट्टा कट्टा शरीर, बाल फौजी स्टाईल में कटे हुए, औसत लम्बाई। तभी साथ ही हमारी बस में बहुत भीड़ हो गई। कुछ देर तक हम दोनों यूँ ही बैठे रहे, बस के हिचकोले और झटकों से हमारे शरीर आपस कभी कभी छू जाते थे। मैंने गौर किया की जब भी हमारे शरीर आपस में टकराते, वो अपने आप को पीछे नहीं हटाता था, मुझे भी उसका स्पर्श बहुत अच्छा लग रहा था।

मेरा एक हाथ मेरी जांघ पर रखा हुआ था, थोड़ी देर बाद उसका हाथ, जो उसने अपनी जांघ पर रखा हुआ था, मेरे हाथ से छूने लगा। कुछ देर मैंने कुछ देर तक मैंने कुछ नहीं महसूस किया। फिर थोड़ी देर बाद उसकी छोटी उंगली मेरी छोटी उंगली पर चढ़ गई। मैं समझ गया, धीरे धीरे उसका पूरा हाथ मेरे हाथ पर चढ़ गया।

अब मैं आगे बढ़ा, मैंने उसका चढ़ा हुआ हाथ पकड़ लिया। हाथ पकड़ने के देर थी कि उसने मेरा हाथ भींच लिया। हम दोनों की नज़रें मिली।

“कहाँ तक जा रहे हो?” उसने पूछा।

“सी पी !” मैंने जवाब दिया।

“चलो, रेलवे स्टेशन तक चलते हैं।”

उसके प्रस्ताव पर मैं राज़ी हो गया। अब तक मेरा लंड पूरा तन चुका था।

उसने मेरा हाथ उठा कर अपने लंड पर रख दिया, बस में इतनी भीड़ थी की तिल रखने की जगह नहीं थी। इसी वजह से कोई हमें देख नहीं पा रहा था। मुझे उसका लंड सहलाने में बहुत मज़ा आ रहा था, सामान्य साइज़ का रहा होगा लेकिन था बहुत मस्त !

वैसे भी, हवस में सारे लौड़े मस्त ही लगते हैं, चाहे बड़े हो या छोटे !

उसने अपने हाथ सामने वाली सीट के हैंडिल पर रखा और उस पर अपना सर रख कर झुक गया, ताकि मुझे उसका लंड सहलाते हुए कोइ देख ना ले। हम दोनों थोड़ी देर बाद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गए।

मैंने पूछा- हम दोनों जायेंगे कहाँ?

उसने बताया कि वहाँ पर एक सार्वजनिक शौचालय है, वहाँ पर आराम से कर सकते हैं। हम दोनों कुछ देर तक वहाँ भटकते रहे, हमें पता चला कि वहाँ से शौचालय हटा दिया गया था क्यूँकि रेलवे स्टशन की नई बिल्डिंग बन रही थी।

हम दोनों वहाँ से चले आये।

मुझे उसका लंड चूसने का बहुत मन कर रहा था,”अब क्या करें?” मैंने निराश होकर पूछा।

“कोइ बात नहीं, हम दोनों डब्लू ए सी चलते हैं।”

“डब्लू ए सी मतलब?”

“वेस्टर्न एयर कमांड।” तो जनाब वायुसेना में थे। तभी उसके बाल फौजी तरीके से कटे हुए थे।

हम दोनों फिर से बस पकड़ कर धौला कुआँ से आगे, डब्लू ए सी पर उतर गए। थोड़ा आगे चलने पर वायुसेना कर्मचारियों के आवास थे और जैसे कि छावनी में होता है, आसपास जंगल था।

मेन गेट पर उससे संतरियों ने पूछताछ की, जिसका उसने जवाब दिया और हम दोनों को अन्दर जाने दिया गया। वो अब तक मेरी बाँहों में बाहें डाल कर चलता रहा।

थोड़ी देर बाद हम दोनों एक सुनसान जगह पर पहुँच गए, वहाँ पर एक पानी की टंकी थी, एक टूटा फूटा सा खोमचा था और आसपास घने पेड़ और झाड़ियाँ थीं। दूर दूर तक किसी व्यक्ति का नाम-ओ-निशान नहीं था और अब तक कोहरा भी गिरने लगा था।

वो मुझे खोमचे के पीछे ले गया और मुझे फ़ौरन गले लगा कर ज़ोर ज़ोर से मेरे होंट चूसने लगा। मैंने उसकी जिप खोल दी और उसका खड़ा लंड बाहर निकाल लिया।

अब हम दोनों से रहा नहीं जा रहा था।

मैं अपने घुटनों के बल झुक कर बैठ गया और अपने मुँह में उसका लंड लेकर चूसने लगा। उसका लौड़ा औसत लम्बाई का था, मोटाई थोड़ी ज्यादा थी। वो मज़े लेता हुआ, मेरे सर को पकड़े अपना लौड़ा चुसवाता रहा।

थोड़ी देर बाद उसने अपना लौड़ा बाहर खींच लिया और बोला- खड़ा हो !

वो शायद मेरी गाण्ड मारना चाहता था।

“क्यूँ?” मैंने खड़े होते हुए पूछा।

“तेरे अन्दर घुसेडूंगा ! चल, पैंट उतार और घूम कर झुक जा !”

“नहीं, नहीं… मैं अन्दर नहीं लेता।” मैंने साफ़ मना कर दिया। मुझे मालूम था कि कितना दर्द होता है, एक बार मेरे एक दोस्त ने मुझे चोदने की कोशिश की थी… इतना दर्द हुआ कि मैंने कान पकड़ लिए।

“अरे… बस एक बार..” वो पीछे पड़ गया।

“ना ! बहुत दर्द होता है।”

“दर्द नहीं होगा, बाद थोड़ी देर करूँगा, फिर छोड़ दूंगा।” वो फुसलाने लगा, मैंने फिर मना कर दिया।

“अच्छा, चल चूस दे..”

मैंने फिर से उसी तरह झुक कर उसका लण्ड चूसने लगा। वो बीच-बीच में अपने लंड हिलाने भी लगता था, उसे झड़ने की जल्दी थी। मैंने अपने होटों को उसके लौड़े पर कसा और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।

करीब 6-7 मिनट तक मैं उसके लंड का रस पीता रहा, उसके बाद वो एक हल्की सी आह के साथ मेरे मुँह में झड़ गया।

मैंने उसका पूरा माल अपने मुँह में ले लिया। कुछ पल तक हम दोनों उसी अवस्था में रहे, फिर झटपट मैं उठा, उसका वीर्य थूका।

उसने अपना लंड अन्दर किया और ज़िप चढ़ाई और हम दोनों वहाँ से निकल लिए।

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