चूत जवां जब होती है- 2

(Chut Jwan Jab hoti hai-2)

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बस शहर से निकल कर गाँव की तरफ चल पड़ी, खस्ताहाल सड़क पर बस हिचकोले खाते हुए चली जा रही थी, वत्सला तो आसपास के नज़ारे देखने में मग्न थी और अपने मोबाइल से फोटो शूट करती जा रही थी, मैं उसका चक्षु-चोदन करता रहा, लार टपकाता रहा और वत्सला आस पास के नज़ारे देखने, उन्हें मोबाइल में कैद करने में लगी रही।

शाम होने से पहले ही हम लोग गाँव पहुँच गए, आरती और वत्सला मिलकर बहुत खुश हुईं।
मेरे सोने का इंतजाम आरती के बगल वाले कमरे में था, वत्सला आरती के साथ ही उसके कमरे में सोई।
रात के खाने के बाद मैं सोने चला गया, देर रात तक आरती और वत्सला के हंसने खिलखिलाने की आवाजें आती रहीं बीच बीच में आहें कराहें भी सुनाई दे जातीं जिससे मुझे लगा कि वे दोनों नंगी होकर लेस्बियन वाली मस्ती कर रहीं होंगी।

मुझसे रहा नहीं गया, मैं आरती के कमरे के पास जाकर भीतर झाँकने की जगह तलाशने लगा लेकिन कोई ऐसा छेद वेद नहीं दिखा जो मुझे भीतर का नज़ारा दिखा सके!
फिर मैं बाहर छज्जे पर गया तो वहाँ की खिड़की मुझे खुली हुई मिल गई।
कमरे के भीतर देखा तो आरती और वत्सला दोनों मादरजात नंगी थीं, वत्सला बिस्तर पर लेटी थी और उसने अपनी टाँगें मोड़ कर ऊपर उठा रखी थीं और आरती उसकी चूत को चाट रही थी और साथ में उसके मम्मों के चूचुकों को चुटकी में लेकर मसल रही थी।

वत्सला भी मस्ती में आकर बार बार अपनी कमर ऊपर तक उठा देती। आरती की पीठ मेरी तरफ थी इसलिये वत्सला की चूत के दर्शन मुझे नहीं हो पाये, सिर्फ आरती की नंगी पीठ और उसके गोल गोल हिप्स मुझे दिख रहे थे, बीच बीच में जब वो थोड़ा ऊपर उठती तो उसकी काली चूत का नजारा भी हो रहा था।

‘भाभी अब जल्दी जल्दी चाटो मेरी चूत… अपनी जीभ पूरी भीतर तक घुसा घुसा के… मैं बस झड़ने ही वाली हूँ… आआ… हाँ… ऐसे ही! मेरी प्यारी भाभी बस ऐसे ही और तेज तेज… आह.. मेरा दाना चबा दो एक बार.. आह… और गहरे घुसाओ न जीभ को भाभी!’ वत्सला बहुत ही कामुक आवाज में कह रही थी।
‘मेरी बन्नो, तुम्हारी चूत तो अब खूब मोटा और लम्बा असली लण्ड मांग रही है जो गहराई तक जाके चूत में खलबली मचा दे! जीभ तो जितनी घुस सकती है उतनी ही घुसेगी ना!’ आरती बोली।

‘हाँ… भाभी… किसी तगड़े लण्ड का इंतजाम कर दो न… ओफ्फ… या कुछ भी मोटा लम्बा खुरदुरा सा घुसा के घिस दो मेरी बुर को… आग लगी है मेरी चूत में… देखो न कैसे गीली हो रही है! कुछ करो न भाभी प्लीज!’ वत्सला चुदासी होकर बहक रही थी।
‘बन्नो रानी अब मैं मोटी लम्बी चीज कहाँ से लाऊँ तेरी चूत के लिए! घर में मूली करेला मोमबत्ती कुछ भी नहीं है. आज तू सब्र कर ले कल रात को सचमुच का लण्ड दिलवाउंगी तेरी चूत को… अब जल्दी से झड़ ले और सो जा!’ आरती ने उसे बच्चों की तरह दिलासा दी।

‘सच भाभी… कल असली लण्ड दिलवा दोगी ना?’ वत्सला बोली।
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‘हाँ हाँ प्रॉमिस.. पक्का वादा!’ आरती ने कहा और फिर वत्सला की पूरी चूत अपनी मुंह में भर ली और उसे झिंझोड़ने लगी।
‘भा…भी… मैं आई… आ गई ये लो… आह आआआआआ!’ वत्सला बहुत ही कामुक आवाज में बोली और भलभला कर झड़ने लगी। उसने बिस्तर की चादर कसके अपनी मुट्ठियों में जकड़ ली और अपनी कमर उठा उठा कर आरती की मुंह पर अपनी चूत मारने लगी और फिर उसने अपनी टाँगें आरती के गले में लपेट कर कस दीं।

लण्ड तो मेरा कब का खड़ा हो चुका था, मुझसे रहा नहीं गया और मैं वहीं खड़े खड़े मुठ मारने लगा। करीब दस मिनट में मैं झड़ गया उधर वत्सला भी झड़ चुकी थी, उसका बदन पसीने पसीने हो रहा था और वो मुंह खोल कर गहरी गहरी साँसें ले रही थी और आरती ने अपना पैर मोड़ कर उसकी चूत के ऊपर रख लिया था और वो उसके बगल में लेटी उसका सिर सहला रही थी।

दोनों ननद भाभी यह खेल खेल कर सोने के कोशिश करने लगीं।
वत्सला की चूत देखने की मेरी तमन्ना अधूरी ही रह गई, फिर मैं वापिस कमरे में आकर सो गया।

अगली सुबह…
रोज की तरह ही मेरी नींद पांच बजे ही खुल गई और सदा की तरह Morning Erection सुबह की उत्तेजना अपने पूरे शवाब पर था और लण्ड जी चड्डी के भीतर अकुला रहे थे, व्याकुल थे बाहर आने के लिए!
नित्य की तरह मैंने अपनी चड्डी नीचे सरका दी और और लण्ड को आजाद कर दिया तथा उसे धीरे धीरे मुठियाने, मसलने लगा।
सुबह सुबह ऐसा करने में मुझे बहुत अच्छा लगता है।

नींद की खुमारी बाकी थी और मैं अलसाया हुआ आँखें बंद करके लण्ड को सहला के सुखानुभूति ले रहा था कि तभी किसी की पदचाप सुनाई दी।
‘गुड मोर्निंग अंकल जी… गेट अप नाऊ. योर बेड टी इस हियर!’ सुरीली सी आवाज मेरे कानों में पड़ी।
और आँख खोल कर देखा तो सामने वत्सला चाय का प्याला लिए खड़ी थी।

मैंने झट से लण्ड को चड्डी के भीतर धकेला लेकिन चड्डी काफी नीचे तक खिसकी हुई थी इसलिये लण्ड ठीक से अन्दर नहीं जा पाया और उछल कर फिर तन गया।
मैंने झेंप कर चड्डी को ठीक से ऊपर किया और लण्ड को दड़बे में बंद कर दिया। लेकिन इरेक्शन तो था ही इसलिये चड्डी में तम्बू तना रहा।

वत्सला की नज़र मेरे खुले लण्ड पर पड़ चुकी थी और वो चड्डी में बने तम्बू को लगातार देखे जा रही थी।
मैंने वत्सला के हाथ से चाय का कप ले लिया और चाय सिप करने लगा साथ ही चादर को अपने ऊपर खींच लिया।
‘थैंक्स फॉर द टी, तुम इतनी जल्दी उठ गईं?’ मैंने पूछा।

‘हाँ, अंकल, मैं जल्दी ही उठती हूँ न, वो मोर्निंग वाक की आदत है! अपने लिए चाय बनाई तो सोचा कि आपको भी पिला दूँ… यहाँ आकर देखा तो आप अपनी सुबह वाली कसरत कर रहे थे! हा… हा… हा!’ कहकर वो हंसने लगी।
‘कसरत? कौन सी कसरत? मैं तो अभी बिस्तर से नीचे भी नहीं उतरा!’ मैंने पूछा।
वो फिर हंसने लगी और बोली कि ‘वो देखो ना, आपके पेट के नीचे क्या खड़ा है!’

‘अच्छा, इसकी बात कर रही हो! तुम लोग भी तो रात को कसरत कर रहीं थीं, मुझे आवाजें सुनाई दे रहीं थीं तुम्हारी… वो आह.. या या.. हाँ भाभी और जल्दी जल्दी चाटो… बहुत मज़ा आ रहा है… बस मैं आने ही वाली हूँ एक मिनट में… पूरी जीभ अन्दर तक घुसा कर चाटो मेरी चूत… यह सब तुम्ही कह रहीं थीं न कल रात को?’ मैंने भी तपाक से जवाब दिया।

मेरा जवाब सुनकर उसके गाल शर्म से लाल पड़ गए और वो झट से भाग खड़ी हुई।
कहानी जारी है!
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