वफ़ा या हवस-1

(Wafa Ya Hawas-1)

नब्बू खान 2008-05-15 Comments

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हाय दोस्तो,
इससे पहले भी कई कहानियाँ लिखी हैं, लेकिन यह मेरी सबसे बड़ी कहानी है, और आखिरी कहानी है क्योंकि इस कहानी के बाद मैं कोई कहानी नहीं लिखूँगा! कारण आप लोगों को कहानी पढ़ने बाद खुद ही पता चल जाएगा।

इस कहानी के माध्यम से आप लोगों को जरूर कुछ न कुछ एहसास होगा कि इस दुनिया में औरतें कैसी कैसी होती हैं!
खैर पहले मैं आपको अपने बारे में बताता हूँ!

मेरा नाम नब्बू है, उम्र 28 साल है और मैं आजाद जिन्दगी जीने वाला हूँ, नागपुर में रहता हूँ, मैं एक अर्द्धसहकारी कंपनी में काम करता हूँ.

मेरी अपनी जिंदगी कई लड़कियाँ आई और गई मैंने किसी से भी प्यार नहीं किया और ना ही करना चाहता था! और मुझे इस बात का घमंड भी था! लेकिन ऐसा हो न सका!

यह वो हकीकत है जिसने मेरी जिंदगी ही बदल दी, मैं आपको इस कहानी के माध्यम से बताना चाहता हूँ, जिसका एक-एक पल आज भी मेरे आँखों के सामने आता है!

चलिये कहानी का मज़ा लेते हैं!

एक बार मैं अपने ऑफिस के काम से दिल्ली गया था, मैं नागपुर से दिल्ली एयरपोर्ट पहुँचा, सुबह के 9:30 बज रहे थे। मैंने एयरपोर्ट से बाहर निकल कर टैक्सी ली, मुझे मीटिंग अटेंड करनी थी जिसके लिए मैं पहले ही लेट हो गया था।

मीटिंग ग्यारह बजे की थी और मीटिंग का अजेंडा मेरे पास था। मैं ऑफिस के गेस्ट हाउस पहुँचा, मीटिंग वहीं गेस्ट हाउस में थी। मैं समय पर पहुँच गया था।

मीटिंग में करीब 20 से 25 लोग होंगे। मीटिंग 12:00 बजे शुरू हुई।

मैंने नोट किया कि मीटिंग में एक औरत जिसकी उम्र 30 साल होगी, (नीली साड़ी में गोरी-चिट्टी पतली-दुबली और बड़ी-बड़ी आँखों में काजल लगाए हुए मेरे सामने बैठी थी) वो पेन्सिल को अपने कान के ऊपर बालों में घुमाते हुए अपनी कातिलाना नजरों से मुझे ही देख रही थी, मैं उसे अच्छी तरह से जानता था!

उसका नाम शैलीन था, वो मेरे दोस्त की बीवी थी! कभी वो एक जानी मानी मॉडल हुआ करती थी, करीब 5 फ़ुट 9 इंच उसका कद होगा! जिसकी शादी को अभी तीन साल भी नहीं हुए थे, दो महीने पहले मेरे दोस्त की मौत हो गई और उसके बाद उसे हमारी कंपनी ने अनुकम्पा नियुक्ति के आधार पर नौकरी दी थी। वे दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे, उन्होंने लव-मैरिज की थी।

खैर मैंने उसे अनदेखा कर दिया!

मैं जब मीटिंग में खड़े होकर स्पीच देने के बाद जब मैं अपनी जगह बैठा तो सब लोगों की तरह वो भी जोर-जोर से ताली बजा रही थी। मेरी नजर अचानक उसके ऊपर चली गई। वो मेरी ओर देख कर मुस्कुरा रही थी। तो मैंने भी छोटी सी स्माइल दी!

जैसे तैसे शाम को चार बजे मीटिंग ख़त्म हुई, सब लोग लंच के लिए जाने लगे मुझे भी बड़ी जोर के भूख लगी थी मैंने यान में सिर्फ नाश्ता किया था और सुबह से कुछ नहीं खाया था!

मैं मेज़ पर से अपनी फाइल और पेपर समेटने लगा। शैलीन भी अपने पेपर उठा चुकी थी और उसकी नजरें मेरी ओर ही थी!

मैंने जैसे ही बैग उठाया और चलने लगा कि अचानक शैलीन ने आवाज दी।

शैलीन- नब्बू, यू डोंट नो मी?

मैं- ओह, शैलीन भाभी! सॉरी, आई एम वैरी सॉरी! वो क्या है न, मुझे बहुत जोर की भूख लगी है! इसलिए मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है!

शैलीन- अभी भी बहाने काफी अच्छे बना लेते हो!

मैं- नहीं, मैं सच कह रहा हूँ!

शैलीन- चलो आज मेरे हाथ का खाना खाओगे तुम!

मैं- नहीं भाभी!

शैलीन- मुझे कुछ नहीं सुनना है! अभी वो (शैलीन का पति अर्जुन मेरा लंगोटिया यार) होते तो तुम इन्कार करते क्या?

मैं- भाभी ऐसी बात नहीं है।

शैलीन(रोते हुए)- तुम भी यही समझते हो ना कि मैंने उनकी जान ली है।

मैं- भाभी, रोओ मत! मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा, फिर तुम क्यों अपने आप को कोसती हो?

असलियत क्या थी? यह सिर्फ मैं जानता था कि अर्जुन ने खुदख़ुशी क्यों की थी।

भाभी के बहुत मनाने पर मैं भाभी के साथ घर जाने के लिए राजी हो गया। मैं यह भी जानता था कि भाभी बहुत जिद्दी है, वो मुझे अपने घर ले जा कर ही रहेगी।

मैं भाभी के साथ कार में बैठ गया और भाभी कार चला रही थी क्योंकि उसे साथ ड्राइविंग बहुत पसंद थी, मैं शांत बैठा था!

शैलीन ने बात शुरू की।

शैलीन- नब्बू यह बताओ कि तुम से तो अर्जुन कभी कोई बात नहीं छुपाता था ना?

मैं- नहीं! हम दोनों में कोई भी बात राज नहीं रहती थी!

शैलीन- आप दोनों को नॉन-वेज बहुत पसंद था ना?
मैं- हाँ!

शैलीन- दिल्ली में अभी कब तक हो?
मैं- कल दोपहर तक हूँ!

शैलीन- यहाँ पर कहाँ रुके हो?
मैं- होटल ओबेराय में!

करीब बीस मिनट के बाद हम शैलीन के घर, जो कनॉट प्लेस में है, पहुँचे। शैलीन ने अपने घर में नौकरानी को कुछ पैसे दिए और मटन लाने के लिए कहा! फिर शैलीन तौलिया लेकर मेरे पास आई और मुस्कुराते हुए कहा- नब्बू, तुम फ्रेश हो जाओ।

मैंने तौलिया लिया और बाथरूम में चला गया। 15 मिनट में मैंने फ्रेश हो कर ढीली-ढाली नाईट पैंट और टी शर्ट पहन ली और हॉल में बैठ गया। तभी नौकरानी मटन ले आई और मटन किचन में ले गई और शैलीन से कहा- दीदी, मैं जा रही हूँ!

कह कर नौकरानी चली गई। मैंने टीवी ऑन किया किया और मूवी देखने लगा। 10-15 मिनट के बाद शैलीन हाथ में एक पैकेट ले कर मेरे पास आई और मुझे देते हुए कहा- यह अर्जुन आपके लिए लाया था!

मैंने पैकेट खोल कर देखा तो उसमें 750 एम. एल. जिन (शराब) की बोतल थी!

मैं (बोतल वापस देते हुए)- भाभी, मैंने अर्जुन के जाने बाद पीना छोड़ दिया है!

शैलीन- इसका मैं क्या करूँगी? अर्जुन तुम्हारे लिए यह थाईलैंड से लाया था। और मैं थोड़े ही ना इसे पियूँगी?
इतना कह कर वो किचन की ओर चली गई।

मैंने बोतल को सामने मेज पर रख दिया और सोचा कि काश अर्जुन होता तो हम दोनों इसके मजे ले रहे होते!

उसके जाने बाद मैंने लगभग पीना छोड़ ही दिया था! तभी शैलीन गिलास और एक प्लेट में नमकीन व ठन्डे पानी की बोतल ले कर आई और मेरे सामने मेज पर रख दिया।

मैं- नहीं भाभी! मैं नहीं पियूँगा, मैं सिर्फ अर्जुन के साथ ही पीता था!

शैलीन- मेरे सामने अर्जुन ने आप से वादा किया था ना कि जिन्दगी में कभी ना कभी वो तुम्हें जिन पिलायेंगे!

मैं- हाँ भाभी! तब बात अलग थी! लेकिन अब मैं नहीं पीता!

शैलीन- मुझे नहीं पता! मैं अपने पति इच्छा पूरी कर रही हूँ!

मैं- ठीक है भाभी! लेकिन मैं थोड़ी ही पियूँगा!

शैलीन- ओ के! बाकी तुम अपने साथ ही लेकर जाना! और हाँ! तुम आराम से पियो, तब तक मैं खाना बना लेती हूँ! ‘ठीक है ना?’

मैं- हाँ! ठीक है!
शैलीन ने ए.सी. ऑन किया उसके बाद शैलीन रसोई में खाना बनाने चली गई। मैंने जिन(शराब) की बोतल खोली और पैग बनाया और अर्जुन का नाम ले कर पीना शुरू कर दिया! बड़ा मजा आ रहा था क्योकि मैं पहली बार जिन पी रहा था!

मेरे दिमाग ख्याल आया, ‘शैलीन क्यों ऐसा कर रही है, ऐसा करके शैलीन को क्या मिलेगा? कहीं शैलीन मुझसे चुदना तो नहीं चाहती है? ना जाने शैलीन का मकसद क्या है? नहीं शैलीन को मेरे लंड से ही मतलब है, वो आज मेरे लंड से ही मतलब है क्योकि अर्जुन का खडा ही नहीं होता था!’

हाँ दोस्तो, अर्जुन नामर्द तो नहीं था! लेकिन सेक्स में उसकी रूचि बिल्कुल नहीं थी और वो बाप भी नहीं बन सकता था, क्योंकि उसका एक भी वर्षण नहीं था!

शायद यह बात शैलीन भी जान गई थी, इस कारण ही अर्जुन ने खुदखुशी की थी! यह बात मैं ही जानता था! मुझसे अगर शैलीन चुदवाना चाहती है तो इसमें गलत क्या है?

इतने में ही बाहर जोरों की बारिश होने लगी!

उसे जो अर्जुन से नहीं मिला वो मेरे से हासिल करना चाहती है, मैं शैलीन को चोदूँ या नहीं? जिंदगी में मेरे साथ कभी किसी को चोदने में ऐसी कशमकश नहीं आई थी! मुझे हल्का-हल्का नशा सा हो रहा था, अब तो मेरा लंड भी खड़ा होने लगा था, लेकिन मैं शैलीन को चोदना नहीं चाहता था।

अगर शैलीन ने जबरदस्ती की तो?
मैं क्या करूंगा?

इसका जवाब तो मेरे पास भी नहीं था!

तभी पीछे से शैलीन की आवाज आई- खाना तैयार हो गया है! हाथ-मुँह धोकर आ जाओ!

मैं जैसे पीछे मुड़ा और देखा तो मेरे पूरे शरीर में कंपकंपी सी होने लगी, जैसे मैंने बिजली का तार पकड़ लिया हो!
क्योंकि शैलीन ने सफ़ेद नाईट हॉट मैक्सी (आधे सीने से ले कर जांघ के ऊपर तक का कपड़ा) पहनी थी जिसके आर-पार सब कुछ दिख रहा था, उसके खुले बाल गीले थे मतलब वो नहा कर आई थी!

ऐसा लग रहा था कि संगमरमर को तराश कर इस मूरत (शैलीन) को बनाया गया हो! मैं तो उसके बदन को ही निहार रहा था!

उस अदा में जो मैं देख रहा था, मैंने कभी इतनी खूबसूरत और सेक्सी बला कभी नहीं देखी थी! उसका कसा हुआ जिस्म!

शैलीन की आवाज़ से अचानक मेरा ध्यान भंग हुआ।

कहानी के कई भाग हैं! पढ़ते रहिए!
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