ट्रेन में दोस्ती

प्रेषक : दीपक दत्त

हाय, मेरा नाम दीपक है। मैं गाजियाबाद का रहने वाला हूँ। मैंने अतंर्वासना की बहुत सी कहानियाँ पढ़ी हैं और मैं भी अपनी एक हसीन कहानी आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूँ। उम्मीद है आपको पसंद आयेगी।

तो आइये अब रूख करते हैं कहानी की ओर-

यह कोई दो महीने पहले की बात है, मैं ट्रेन से सफर करते हुए अपने गाँव जा रहा था। ट्रेन में काफी भीड़ थी इसलिए मुझे सीट नहीं मिली। मैं जाकर ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा हो गया। मैं खड़ा हुआ बोर हो रहा था, तभी एक लड़की और उसकी दादी भी उसी डिब्बे में चढ़ गई। दादी को तो एक अकंल ने सीट दे दी पर वो लड़की मेरे पीछे आकर खड़ी हो गई। इसी दौरान गाड़ी चल पड़ी। गाड़ी तेज चल रही थी जिससे यात्री इधर उधर हिल रहे थे। मेरा हाथ बार बार उसके पेट से टकरा रहा था और वो मुझे गर्म लग रही थी। अब तो मेरे मन ने हिलोरें लेनी शुरू कर दी, मैंने जानबूझ कर अपना हाथ उसके पेट पर फेरना शुरू कर दिया। उसे भी लगने लगा कि मैं यह सब जानबूझ कर कर रहा हूँ। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे धीरे से मना कर दिया। भीड़ की वजह से किसी का ध्यान हम पर नहीं था।

अब मैं घूम कर उसकी ओर मुँह करके खड़ा हो गया और उससे उसका नाम पूछा तो उसने बिना किसी ना-नुकर के अपना नाम बता दिया। उसका नाम विनीता था। मैंने उससे उसके बारे में सब कुछ पूछ लिया। वो फरीदाबाद की रहने वाली थी। मैंने उससे उसका पता और फोन नंबर लिया, मैंने भी अपना नंबर उसे दे दिया। इसके बाद मेरा स्टेशन आ गया और मैं उतर के अपने गाँव चला गया।

15 दिन गुजर गये, ना तो उसने काल किया ना मैंने ! लेकिन 15 दिन बाद उसका एस एम एस आया कि वो एक जरूरी काम से गाजियाबाद आ रही है। उसने मुझे होटल का नाम बता दिया। उस दिन मैं शाम 7 बजे होटल पहुँच गया। मैंने उसके बताये कमरे का दरवाजा खोला, मैंने देखा कि विनीता बेड पर उल्टी लेटी थी। मैंने दरवाजा बंद कर दिया, विनीता ने एक हल्की नाईटी पहनी थी जिससे उसका सारा शरीर साफ दिख रहा था।

जब मैंने विनीता को उस हल्की नाईटी में देखा तो मेरा छ: इंच का लंड सलामी देने लगा। मैंने खुद को कन्ट्रोल किया और धीरे से मैंने उसे आवाज लगाई। मेरी आवाज सुनकर वो बड़ी तेजी से उठी और मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मुझे बेहताशा चूमने लगी। मैंने भी उसका पूरा साथ दिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। मेरे हाथ उसके पेट पर घूम रहे थे। मैं उसे बिस्तर पर ले गया वो चुदने के लिए बेकरार थी।

मैंने उसकी नाईटी उतार दी। अब वो सिर्फ पैन्टी और ब्रा में थी। मैंने उसका फिगर निहारा क्या गजब का फिगर था ! उसकी चुच्ची बिल्कुल कैटरीना की तरह थी। मैंने उसकी चुच्ची को दबा दिया। अब उसने मुझे कपड़े निकालने को कहा तो मैंने कहा- तुम ही निकाल दो !

उसने मेरे कपड़े उतार दिए। अब मैं भी सिर्फ कच्छे में था। मेरा लंड बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। मैंने अब अपना हाथ विनीता की पैंटी में डाल दिया और उसकी चूत मसलने लगा। उसकी चूत पे एक भी बाल नहीं था। उसकी चूत बिल्कुल गीली हो चुकी थी और वो जोर जोर से सिसकियाँ ले रही थी- आ आह अअअ उउउ आ अअ ! मार डाल ! फाड़ दे ! चोद दे ! सि..

मैं भी उसकी चूत को जोर जोर से रगड़ रहा था। वो मेरे हाथ पे ही झड़ गई।

मैंने उसे लेटने को कहा, उसकी टाँगें चौड़ी की और अपना लंड उसकी चूत के छेद पर रखा और दो धक्को में ही लंड अंदर चला गया। पूरा कमरा उसकी चुदाई की चीखों से भर गया। मैंने विनीता की चुच्चियों को मुँह में दबा रखा था। लगभग बीस मिनट की चुदाई के बाद हम दोनों झड़ गये। उस रात हमने चार बार चुदाई की।

सुबह वो अपने रास्ते चली गई और मैं अपने !

पर हम आज भी फोन पर चूत-चुदाई करते हैं!

आपको मेरी कहानी कैसी लगी जरुर बतायें !

What did you think of this story??

Click the links to read more stories from the category कोई मिल गया or similar stories about

You may also like these sex stories

Download a PDF Copy of this Story

ट्रेन में दोस्ती

Comments

Scroll To Top