प्रेम और पिंकी का प्यार-1

प्रेम 8 2010-09-28 Comments

यह मेरी पहली कहानी है, उम्मीद है आपको पसंद आएगी।

वो दिखने में बहुत गोरी और सुन्दर है, उसकी पतली कमर और गला !

वैसे तो वो पहले से पसंद थी मुझे, तो फ्रेंच किस करने का मन होता था। पर मैं पहल कैसे करता।

इस बार से पहले मैं सिर्फ दो बार उससे मिला था, उसका बर्ताव काफ़ी खुलापन लिए हुए था जैसे वो मुझे पसंद करती हो।

वो मुझे बताने लगी- मेरी शादी होने वाली है ! ये ! वो !

हम बहुत बातें किया करते ! उसकी माँ भी हमें बातें करने देती थी। पर मुझे तो बहुत मन था कि अगर यह पट जाये तो अच्छा हो !

मैं उससे जब बातें करता तो वो मेरे एकदम पास बैठ कर बातें करती थी।

मैंने ऐसे ही मजाक में एक दिन उसे कहा- तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, तुम बहुत सुन्दर हो !

उस समय वो चावल साफ़ कर रही थी।

मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा- तू कितनी गोरी है पिंकी !

मैं अकेले में उसे पिंकी कहता था।

वो मुझसे सिर्फ 3 साल बड़ी है, उसने भी कोई विरोध नहीं किया कि प्रेम तू ऐसा क्यों बोलता है।

मैंने उसका हाथ थाम कर ही रखा था कि उसकी माँ आ गई।

जब उसकी माँ आई तो उसने डर कर मेरा हाथ छोड़ दिया, मैं समझ गया कि इसके मन में क्या है। क्योंकि अगर उसके मन में कुछ होता नहीं तो वो उसकी माँ को देख कर डरती क्यों?

पिंकी की माँ पूछने लगी- और प्रेम बेटा, क्या हाल-चाल है अहमदाबाद के?

मैंने कहा- सब ठीक है नानी !

उसकी माँ फिर से बाहर चली गई, शायद खेत गई होगी..

उसके बाद मैंने कहा- पिंकी, तू डर क्यों गई?

वो बोली- तुम मेरा हाथ पकड़ रखा था और मेरी माँ देखे तो अच्छा थोड़े ही लगता है।

मैंने उसकी जांघ पर हाथ रखा। उसने गहरे नीले रंग की सलवार-कमीज पहनी थी, उसमें उसका गला बहुत गोरा लग रहा था और उसकी जांघ इतनी नरम थी यार कि क्या बताऊँ।

इतने में मुझे मेरी नानी ने आवाज लगा दी और मुझे जाना पड़ा। पर मुझे लगा कि यह अब अपने लपेटे में आ गई है। जाते जाते मैंने उसे आँख मारी तो वो भी हंस दी और बोली- कल दोपहर को फ्री हूँ, आ जाना, हम बातें करेंगे, बहुत दिनों बाद आये हो। मुझे बहुत अच्छा लगता है तुमसे बातें करके !

मैंने कहा- ठीक है, आऊँगा !

पर मुझे रात को ही मौका मिल गया खाने के बाद, मैं वहाँ चला गया, पर सब आँगन में थे और गाँव में बिजली नहीं थी तो हम ऐसे ही बातचीत कर रहे थे खटिया पर बैठ कर ! हम बात बात पर एक दूसरे के हाथ पर ताली देते और बात करते। अँधेरे में उसकी ताली मेरी जांघ पर लग गई और वो हंसने लगी। मैंने भी दो बार उसके वक्ष पर ताली मारी। चाँद की रोशनी में मस्त लग रहे थे उसके उरोज ! मैं तो इतना उत्तेजित हो गया कि बस सोच लिया कि अब कर ही डालना है कुछ !

उसके बाद हमने ऐसे ही हंसते हुए ताली दी पर हाथ नहीं हटाया, अँधेरे में एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बैठे रहे, मैं उसकी उंगलियाँ सहलाने लगा था, पर क्या करते रात तो काटनी ही थी।

उसी वक्त मैंने निश्चय कर लिया कि परसों-नरसों मुझे जाना है पर मैं इसको बाहों में तो लूंगा ही और चुम्बन भी करूँगा। बस कल दोपहर का इंतज़ार था।

मैंने एक शरारत की, मुँह में उंगली डाल कर गीली की और उसके हाथ पर रखी उसने वो गीली उंगली पकड़ ली और दांत में कुछ फंस गया है, ऐसे एक्टिंग करते हुए अपने होंठों से लगा ली। मैं समझ गया कि बस पिंकी अब पट गई है।

पर जल्दी कुछ कर !

क्या करूँ?

पर कुछ न कर सका बस फिर जाकर लंड थाम कर सो गया। सुबह उठा तो टॉइलेट जाना था, गाँव में तो मैदान ही जाना पड़ता था, तो चार बजे गए, टॉयलेट जाकर फ्रेश हुए, हाथ-मुँह नदी में धोकर आ रहा था, तो वो दिखी, पानी भर रही थी।

उसने सुबह सुबह इतनी प्यार मुस्कान दी कि यार बस दिन अच्छा जाएगा। इतनी सुन्दर लग रही थी, वो भीगे-भीगे बाल, और वैसी ही नीली पोशाक !

बस मैं तो फ़िदा हो गया यार !

मैं नहाया और चाय पीकर उसके घर चला गया। उसकी माँ खेत जाने की तैयारी कर रही थी, उसने मुझे भी चाय दी तो मैंने पिंकी का हाथ पकड़ लिया, उसने सेक्सी मुस्कान दी और हाथ छुड़ा कर भाग गई। बस अब तो इंतज़ार था कि कब इसके साथ कुछ करूँ।

उसकी माँ चली गई, अब मैं और वो बस हम दो थे घर में !

उसने एक घंटा लगाया घर के काम करने में, सब झाड़ू-पोचा करके वो आकर बैठ गई मेरे साथ।

मैंने उसे कहा- तुम्हें तो मेरी फिकर ही नहीं है, कब से इन्तज़ार कर रहा हूँ।

वो बोली- अगर काम नहीं करती तो माँ बहुत बोलती, इसलिए फटाफट कर लिया।

फिर बोली- अब फ्री बस ! अब जो तुम कहो ! सारा दिन हम बातें करेंगे !

मैंने बोला- बस बातें ही क्या?

वो शरमा कर हंस दी और बोली- जाओ न यहाँ से ! बड़े आये !

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और दबा दिया, वो बोली- प्रेम, बस रहने दो, तुम तो बहुत मस्तीखोर हो !

मैंने कहा- तुम ही तो कब से फ्लर्ट कर रही थी।

वो बोली- कहाँ बस ! वो तो ऐसे ही तुम बहुत अच्छे हो तो मुझे अच्छा लगता है तुमसे बातें करना।

बस मैंने देर नहीं की और उसके कंधे पर हाथ रख दिया, वो चुप रही और बोली- कोई आ जायेगा।

मैंने कहा- दरवाजा लगा दो !

उसने लगा दिया और आकर मेरे पास बैठ गई। मैंने उसका हाथ पकड़ा और चूम लिया वो ‘बस कर’ बोल तो रही थी पर हाथ नहीं हटाया और कुछ विरोध नहीं किया। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैंने उसको हौले-हौले अपनी बाहों में लिया, उसने आँखें बंद कर ली।

मैंने मन में सोचा कि बस अब हो गया काम मेरा।

मैंने उसके गाल को चूमा, होंठों को चूमा और गले को धीरे धीरे चूमा। उसकी सांसें तेज हो रही थी, वो बोल रही थी- प्रेम बस रहने दो न ! हो गया !

पर सिसकारियाँ भर रही थी और कोई विरोध नहीं कर रही थी।

मैंने उसको वहीं पलंग पर लिटा दिया और उसका दुपट्टा फेंक दिया और उसका गला और छाती चूमने लगा और वो उम्म उम्म ! प्रेम हम्म प्रेम ! कर रही थी और मेरे बालो में हाथ फेर रही थी।

मैंने अपनी शर्ट उतारी, वो देख रही थी और मुस्कुरा रही थी। मैंने ऊपर से सब उतार दिया और उसके ऊपर लेट गया।

वो अब पीठ पर हाथ फेर रही थी, बोल रही थी- ओह प्रेम ह्म्म हा ! प्रेम कोई आ गया तो? प्रेम बस ! न हम्म ! मजे भी ले रही थी और बोल भी रही थी और इतने प्यार से मेरी पीठ और बालों में हाथ फेर रही थी।

ह्म्म्मम्म प्रेम प्रेम ओह्ह प्रेम सस्सस प्रेम्म्म हम्म बस !

फिर मैंने उसके गले को इतना चूसा, इतना चाटा, तीन-चार जगह काटा, वो सिसकारी ले रही थी और इतनी गरम हो गई कि मेरे कूल्हों

और पीठ पर हाथ फेर रही थी- प्रेम ह्म्म् हा प्रेम्म ह्म्म जल्दी प्रेम !

वो शर्मीली थी, उसका भी पहली बार था और मेरा भी पर मैं अन्तर्वासना पढ़ पढ़ कर एक्सपर्ट हो चुका था कि कैसे करना है।

फिर मैंने उसका कुरता ऊपर उठाया और उसकी नाभि में जीभ डाल दी और पूरी जीभ घुमा कर चूसने लगा।

“ओह प्रेम ! अहह धीरे प्रेम ! अह्ह काटते हो तो कुछ होता है प्रेम ! हाँ प्रेम ओह्ह !”

मैंने कहा- पिंकी, अच्छा लग रहा है?

वो बहुत गर्म हो चुकी थी, बोली- हाम्म् प्रेम करो न ! प्रेम अह्ह और थोड़ा करो न वहाँ पर हमम्म अह्ह काटो मत ! नाम्म प्रेम !

मैं चूसता ही जा रहा था, मैंने पेट पर काटा भी और पूरा पेट चूस चूस कर गीला कर दिया।

कहानी का अगला भाग: प्रेम और पिंकी का प्यार-2

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