प्रेम अध्याय की शुरुआत-2

वो मुझसे कस के लिपट गई, उसके आंसुओं की बूंदें मुझे मेरे गाल पर महसूस हो रही थी..

एक नए एहसास के लिए मैं तैयार था, मैंने उसके होठों को अपने होठों से मिला लिया, आज शायद मैं उतना बेसब्र नहीं हो रहा था, आराम से उसके निचले होठों को अपने जुबान से तराश रहा था, गालों पर जो डिंपल बन रहे थे उसे देख कर मैं अंदाजा लगा सकता था उस शर्म और हया का जो हर लड़की पहली बार महसूस करती है।

मुझे उस पर प्यार आ गया, मैंने धीरे से उसके गालों और माथे को चूम लिया।

वो अब तक मुझे कस के पकड़े हुए थी, मैंने उसे अपने गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। अब उसके कपड़े उतारने लगा मैं ! धीरे धीरे उसके सारे वस्त्र अलग कर दिए, बिस्तर की सफ़ेद चादर पर गुलाब के फूलों के बीच उसका बदन जैसे ऐसा लग रहा था मानो हजारों गुलाब अपनी इस नाज़ुक कलि को छुपाने का प्रयास कर रहे हों और मैं भंवरा बन उसके सारे रस को निचोड़ लेना चाहता था।

मैं खड़े खड़े ही अपने होठों को उसके होठों से लगा दिया.. फिर थोड़ा अलग हो अपनी साँसों की गर्मी उसके सारे शरीर पर देनी शुरू कर दी मैंने !

मैं उसके चेहरे से पैर की उँगलियों तक उसे चूमता, फिर थोड़ा अलग हो अपने साँसों की गर्मी उसके जिस्म के उस हिस्से पर देता। जब जब मैं चूमता और फिर अपने चेहरे को हटाता, वो अपने जिस्म के उस हिस्से को उठा कर फिर से मेरे होठों से मिलाने का प्रयत्न करती। प्यार अगर संगीत की तरह है तो हम जैसे उसकी लय पर थिरकने वाले पारंगत नर्तक की तरह नृत्य कर रहे थे। मैं उसे चूमता हुआ अपने सारे कपड़े उतारने लगा। मैं तो बस प्रेम के नृत्य में मग्न उसकी सूरत निहार रहा था।

उसकी चेहरे की भाव भंगिमा मुझे व्याकुल किये जा रही थी।

अब उसके करीब आ उसे अपनी बांहों में भर लिया मैंने, उसके होठों को चूम कर आँखों ही आँखों में उसकी आज्ञा ली मैंने ‘आगे बढ़ने की !’

उसने मेरे ललाट को चूम मुझे मौन स्वीकृति दे दी। मैं उसके कंधों को चूमता हुआ उसके स्तनों तक पहुँचा, दांतों से और जिव्हा से मैंने हल्के हल्के आघात करने शुरू किये, उसने भी अपनी सिसकारियों के माध्यम से जवाब दिया मेरे प्यार के हर वार का.. उसके नाख़ूनों का हल्का दबाव मैं अपने जिस्म पर महसूस कर सकता था। अब मैंने अपने सफ़र को थोड़ा और आगे बढ़ाया, अब मैं उसके नाभि से होता हुआ उसके मुख्य भाग तक पहुँचा, मेरे प्यार भरे होठों का स्पर्श महसूस करते ही हलकी सी झनझनाहट मैंने उसके जिस्म में महसूस की।

मैंने अपनी साँसों से पहले अपने होने का एहसास कराया, तब उसके योनि पुष्पों के आसपास चूमना शुरू किया। मेरे बालों में उसकी उँगलियों का कसाव मुझे उसकी हालत का पता बता रहा था। अब मैं अपने जिव्हा से उसके मादक पुष्पों के रस का स्वाद लेने लगा.. मैं अपनी जीभ से उसके दाने को छूता और फिर लम्बी साँसें छोड़ते हुए अपना मुख हटाने लगता। जैसे मैं अपना मुख वहाँ से हटाने को होता वो अपनी कमर ऊपर कर के और मेरे चेहरे पे दबाव बना फिर से मेरी जीभ अपने दाने के पास ले आती। काफी देर तक यह खेल चलता रहा जब तक उसने अपने इस मिलन की पहली वर्षा ना कर दी।

अब मैं बेकाबू हो रहा था, मैं उसके ऊपर हुआ और उसकी टांगों को अपने कंधे पर रख लिया, उसकी योनि द्वार पर अपने लिंग से थोड़ा दबाव बनाया और वो हर बाधा पार करता हुआ उसके जिस्म में समा गया।

एक हल्की सी चीख ने मेरा ध्यान भंग किया। मैंने देखा उसकी आँखों में ख़ुशी और दर्द दोनों का एहसास था। उसकी आँखों से निकलते आँसुओं ने मुझे उसके दर्द का एहसास कराया, मैंने उसके होठों को चूम कर थोड़ा सामान्य होने का मौका दिया। मैं चूम ही रहा था कि मुझे अपने कमर के पास थोड़ी हरकत महसूस हुई, मैंने देखा कि अब उसके चेहरे के भाव बदल से गए थे। अब बस जैसे आनन्द की अनुभूति थी, दर्द का नामो निशाँ भी नहीं था..

मैंने भी अपने धक्कों की रफ़्तार को तेज़ कर दिया, अपनी उँगलियों से उसके होठों को छेड़ रहा था और अपने मुख में उसके स्तनों को भर लिया था। इसी अवस्था में जब मैंने फिर से कसाव सा महसूस किया तो अब पूरी रफ़्तार से मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। उसके चरम पर पहुँचते ही मैं भी उसके साथ साथ चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया..

मैं उसकी आँखों में देख रहा था और तभी उसने एक शरारत की और मेरे गालों पे अपने दांत गड़ा दिए। मैं बस अचानक ही नींद से जाग उठा…

मैंने देखा पारो हँस रही थी और मेरे गालों पे निशान बन आये थे, मैंने ड्राईवर से गाड़ी किनारे करने को कहा।

तब पारो ने पूछा- क्या हुआ जनाब?

मैंने कहा- मूत्र विसर्जन की जरूरत है मुझे !

वो फिर से हँस पड़ी !

गाड़ी से जब बाहर आया तो देखा चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी, बड़े बड़े चाय के बागान थे और चाय की भीनी भीनी खुशबू हवाओं में थी। मैंने किनारे जाकर अपना अंडरवियर उतारा तो देखा कि मैं तो स्खलित हो चुका हूँ, पहले अपनी जेब से अपना रुमाल निकाला और अपने लिंग और अंडरवियर को साफ़ किया और मूत्र त्याग कर वापिस गाड़ी में आ गया।

पारो ने चिकोटी काटते हुए मेरे कान के पास आकर पूछा- क्यों जी? अभी से यह आलम है तो आगे क्या होगा?

शायद उसने रुमाल फेंकते देख लिया था मुझे !

मैंने उससे कहा- मैडम जी, ये दिल में दबी हुई भावनाएँ थी जो निकल गई, अब हम भीड़ भाड़ से दूर ताज़ी हवा के बीच हैं तो हर चीज़ ताज़ी ही होनी चाहिए न..

उसने मेरी ओर देखा और कहा- बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे..!

फिर उसने मेरे कंधे पे अपना सर रख दिया और थोड़ी देर में हम भारत की सीमा पर बसे इलाके में पहुँच गये।

नाम था उस जगह का ‘जय गाँव’

बड़ा सा दरवाज़ा बना था वहाँ पर जिसके दूसरी तरफ भूटान था। मैंने पारो के साथ उस गेट को पार किया और वहाँ के भारतीय विदेश विभाग के दफ्तर तक गया। पारो ने मुझे रुकने को कहा और खुद अन्दर गई। शायद उसके ओहदे का असर ही था कि बस दस मिनट में वो पास लेकर वापिस आई और साथ में एक सरकारी गाडी की चाभी लाई थी।

मैंने कहा- इसे कहते हैं ओहदे का गलत फायदा उठाना..

वो मेरे पास आई और जवाब दिया उसने- हम अक्सर दूसरों को कहते हैं कि वो भ्रष्ट है, बुरा है, क्यूंकि हमें उस जैसा हसीन मौका जो नहीं मिला होता है। जब मिलेगा तो हम भी वही हो जायेंगे…

मुझे उसकी बातें सही भी लगी।

अब मैं गया ड्राइविंग सीट पर और वो बैठ गई मेरे बगल में ! अब हमारी सफ़र की शुरुआत हुई एक हसीन सफ़र की जिसने हम दोनों की जिंदगी ही बदल दी..

आगे की कहानी अगले भाग में….

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