पलक की चाची-1

आप सभी को नमस्कार आप सभी ने मेरी पहले भेजी हुई कहानियाँ पढ़ी और उन्हें पसंद किया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

जैसा कि शीर्षक पढ़ कर ही आप समझ गए होंगे, यह कहानी पलक की मुँह बोली चाची, जिन्हें हम आंटी कहते थे, और मेरे बीच की है। यह घटना भी सरिता और मेरी कहानी के तुरंत बाद की ही है। कुछ लोगों को यह कहानी पढ़ कर लग सकता है कि ऐसा होना असम्भव है। तो आप इस बात को मानने के लिए स्वतंत्र हैं पर कृपया इस कहानी की सच्चाई के बारे में मुझ से कोई सवाल ना करें।

यह कहानी भी मैंने पलक वाली श्रृंखला में जोड़ कर ही लिखी है क्योंकि इस कहानी की शुरुआत भी पलक के कारण ही हुई थी।

पलक और मेरे बीच की कहानियों की श्रृंखला में एक हिस्सा और भी है जो अभी तक अनकहा है। उसे लिखूंगा या नहीं वो पता नहीं पर फिलहाल इस श्रृंखला के अंतिम पायदान पर खड़े होकर मैं आप को यह अनुभव सुनाने जा रहा हूँ जो मेरे जीवन के अब तक के सबसे हाहाकारी और प्रलयंकारी अनुभवों में से एक है।

अब मैं कहानी पर आता हूँ।

एक दिन मैं दफ्तर में था कि मेरे पास हरीश अंकल का फोन आया, वो मुझसे बोले- तू है कहाँ यार? इतने दिन से दिखा नहीं, यह बता कि घर कब आने वाला है?

मेरे पास उस समय बहुत काम था तो मैंने कहा- अभी तो जान निकली पड़ी है अंकल, आज और कल तो बिल्कुल फुर्सत नहीं है, पर आप कहिये न, क्या हुआ?

तो वो बोले- यार, मेरा लैपटॉप काम नहीं कर रहा है, आकर उसे देख ले, और इतने दिन हो गए हमने साथ में खाना नहीं खाया तो डिनर भी साथ में करेंगे।

मैंने कहा- ठीक है अंकल ! मैं शुक्रवार को आ जाऊँगा, खायेंगे भी, पियेंगे भी !

वो बोले- बहुत अच्छे !

और हमारी बात खत्म हो गई।

हरीश अंकल जिंदादिल इंसान हैं, हमेशा उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट होती ही है, दुःख करना तो जैसे उनको आता ही नहीं था। उनके साथ रहो तो लगता है कि जिंदगी सच में पूरी तरह से जीने के लिए होती है और नंदिनी आंटी भी बिल्कुल वैसे ही खुशमिजाज और आज में जीने वाली महिला हैं।

शुक्रवार को मैं सारा काम जल्दी निपटा कर अंकल के घर जाने की तैयारी में था, तभी अंकल का फोन आया, बोले- सॉरी यार, आज मिलना नहीं हो सकता, मैं अभी न्यूयॉर्क के लिए निकल रहा हूँ, फिलहाल दिल्ली हवाई अड्डे पर हूँ।

मैंने पूछा- हुआ क्या है?

तो बोले- स्क्रैप के माल में एक लाट जले हुए लोहे का आ गया है, उसके चक्कर में जाना है, नहीं गया तो काफी नुकसान हो जायेगा।

अंकल का भंगार आयात करने का काम है।

मैंने कहा- ठीक है अंकल, आप जाओ, वो जरूरी है, कोई कागजात रह गए हों तो मुझे बता दीजियेगा, मैं आप को मेल कर दूँगा।

अंकल बोले- वो तो ठीक है लेकिन तू घर चले जाना यार ! नंदिनी तुम दोनों को बहुत मिस करती है, तुम दोनों चले जाते हो तो उसे भी अच्छा लगता है।

मैंने कहा- आप बेकिफ्र जाओ, अंकल मैं और पलक दोनों चले जायेंगे।

उनसे बात करने के बाद मैंने पलक को फोन किया और कहा- आज हरीश अंकल के यहाँ चलना है नंदिनी आंटी से मिलने ! अंकल घर पर नहीं हैं।

तो वो बोली- आना तुझे है गधे ! मैं तो यही पर हूँ।

मैंने कहा- ठीक है, मैं भी आता हूँ !

और मैं काम खत्म करके उनके यहाँ जाने के लिए निकल गया। रास्ते में मैंने एक पीला गुलाब भी खरीद लिया था जो आंटी को बहुत पसंद है।

मैं एक हफ्ते से घर गया ही नहीं था तो काम के चक्कर में तो घर पर बताना कोई जरूरी ही नहीं था कि आज देर से आऊँगा।

जब मैं उनके घर पहुँचा तो करीब आठ बज चुके थे, मैंने वहाँ जाकर आंटी को हमेशा की तरह “हे गोर्जियस ए रोज फॉर यू !(आप के लिए गुलाब) कहते हुए उनको पीला गुलाब दिया और उन्होंने हमेशा की तरह खुशी खुशी लिया।

फिर आंटी ने मुझ से कहा- तुम बैठो, मैं खाना लगाती हूँ, तीनों साथ में खा लेंगे !

तो पलक बीच में ही बोल पड़ी- अभी बैठो नहीं ! यह पहले तो जाकर नहायेगा और शेव भी करेगा, कैसा जानवर बना पड़ा है।

और सच भी यही था कि मैं पिछले 6 दिनों से घर नहीं गया था, ना ठीक से सोया था ना ही मैंने शेव की थी और ना ही खाना ठीक से खाया था, नहाने की बात तो दूर की है।

मैंने कहा- ठीक है मेरी माँ, पहले नहा ही लेता हूँ मैं।

और मैं नहाने के लिए बाथरूम में जाने लगा तो पलक ने मुझे लोवर और टीशर्ट दिए और बोली- नहाने के बाद यही पहन लेना, हल्का लगेगा ! एक हफ्ते से एक ही जींस में घूम रहा है। जाने कैसे रह रहा होगा गधा !

और साथ में शेविंग किट भी दे दी। मैं अंकल के यहाँ कई बार रुका था तो वहाँ पर नहाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी और मैं नंदिनी आंटी और अंकल दोनों से ही खुला हुआ था तो यह मेरे लिए सामान्य ही था।

जब मैं नहा कर आया तो बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था और खाने की मेज देखी तो मन और खुश हो गया क्योंकि आंटी ने मेरे पसंद का ही खाना बनाया हुआ था।

खाना खाते हुए एक बार आंटी ने मुझ से पलक और मेरे रिश्ते के बारे में पूछ लिया कि हम दोनो के रिश्ते में कोई और बात भी है क्या अब?

तब तो मेरे गले में निवाला अटक ही गया था, सच मैं बोल नहीं सकता था और झूठ बोलना मुझे पसंद नहीं था तो मैंने बात को अनसुना ही कर दिया और आंटी ने भी दोबारा सवाल नहीं किया।

उसके बाद हम तीनों ही पीने के लिए बैठ गए। पलक और मैं तो पीते ही थे और आंटी भी हमारे साथ कभी कभी पी लेती थी। उस वक्त आंटी ने बताया कि उन्हें मेरे और पलक के बारे में सब पता है, पलक ने ही उन्हें बताया था।

मेरे पास बोलने को कुछ था नहीं तो मैं चुप ही रहा।

पीने के बाद एक तो मुझे थकान थी, दूसरा नींद पूरी नहीं हुई, खाना ज्यादा खा लिया ऊपर से थोड़ी ज्यादा भी पी ली तो मेरी हालत खराब हो चुकी थी, मैंने पलक से कहा- मुझे मेरे कमरे में छोड़ दे यार ! मैं घर जाऊँगा नहीं और गाड़ी चलाने जैसे हालात मेरे है नहीं !

तो आंटी बोली- आज तू यही सो जा ! सुबह चले जाना, पलक को भी घर जाना है उसके।

मैंने कहा- ठीक है !

और उसके बाद मुझे कब नींद लगी, कब सुबह हुई, पता भी नहीं चला। रात में अगर मैं उठा भी तो सिर्फ लघु शंका के लिए और फिर सो गया।

सुबह सुबह सात बजे के आस पास उठ कर सारी (लघु तथा दीर्घ) शंकाओं का समाधान करा और फिर से सो गया।

फिर मेरी नींद करीब 11 बजे खुली लेकिन जब मैंने उठने की कोशिश की तो उठ नहीं पाया।

वजह थी मेरे हाथ रस्सी से बंधे हुए थे, पलंग के दोनो किनारों की तरफ और मेरे पैरों का भी वही हाल था।

मुझे लगा कि यह पलक की ही शरारत है, वो घर पर भी ऐसे ही परेशान करती रहती थी मुझे हर बार नई शरारतों से तो मैंने पलक को आवाज देना शुरू कर दिया।

मेरी आवाज सुन कर पलक तो नहीं आई पर आंटी आ गई।

मैंने उनसे कहा- “कहाँ है वो गधी, आज उसे नहीं छोडूंगा।

तो आंटी बोली- वो अभी तक आई नहीं है।

मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने आंटी से कहा- अच्छा ठीक है पर मुझे खोलिए तो !

तो आंटी बोली “अगर खोलना ही होता तो इतनी प्यार से बांधती क्यों तुमको?

आंटी की बात सुन कर मेरा माथा घूम गया कि चक्कर क्या है।

मैंने आंटी से कहा- क्या कह रही हो आंटी?

तो बोली- सच कह रही हूँ, मैंने ही बांधा है और खोलने के लिए नहीं बाँधा।

“पर क्यों?” मैंने सवाल किया।

कहानी अभी शुरु ही हो रही है।

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