कामदेव के तीर-3

(Kaamdev Ke Teer- Part 3)

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मैंने कहा- डार्लिंग, अब तो कल तक के लिए यही हूँ, थोड़ी थकावट मिट जाये, फ़िर रात में जरूर उस तरीके से तुम्हें चोदूँगा।

फिर मैंने रजिया का जिक्र छेड़ दिया, वो मेरे मंतव्य को बखूबी समझ चुकी थी, बोली- अच्छा जी जनाब रजिया के शवाब का लुत्फ़ लेना चाह रहे हैं?

मैं– यदि आप चाहो तो, वो आपकी राजदार तो है ही!

फरहा– वैसे भी वो बहुत दिनों से सेक्स से महरूम है यदि वो तैयार हो जाये तो मुझे इस बात से कोई एतराज नहीं होगा न ही कोई मलाल होगा!

फिर उसने सिरहाने के पास लगे एक बटन को दबा दिया। हम दोनों अभी भी नग्न एक दूसरे की बाहों में समाये हुए थे, फरहा ने एक चादर खींचकर दोनों को ढक लिया। तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई!

फरहा- आ जाओ!

रजिया मुस्कुराते शरमाते अन्दर आकर बोली- जी?

फरहा- साहब को चाय बनाकर ले आओ और इन्हें थोड़ा मसाज भी कर देना!

रजिया के जाते ही फरहा कपड़े पहनकर बोली- मैं शबा के पास जाती हूँ, रजिया आये तो अपने हिसाब से देख लेना! हालांकि खुद से चुदने के लिए बोलने की जहमत नहीं कर सकती और तुम्हें मना भी नहीं करेगी! पर यदि उसको भी चोद डालोगे तो वो कभी मेरे खिलाफ भी नहीं जाएगी!

कहते हुए फरहा नीचे वाली मंजिल में चली गई!

मेरी तो निकल पड़ी थी, एक के साथ एक फ्री! दो दो जवान रसीले जिस्मों का सुख! मेरी रगों में खून की रफ़्तार बढ़ने लगी, अचेत से लंड में चेतना का अनुभव सा होने लगा!

तभी रजिया मुझे चाय लेकर आ गई और एक कटोरे में मालिश के लिए सरसों का तेल भी लेकर आई थी।

मैं नग्न ही चादर ओढ़े लेटा था, उसने चाय मेरी ओर बढ़ा दी तो मैंने अपनी पीठ को पलंग के सिरहाने से टिका लिया और चाय की चुस्कियाँ लेते हुए रजिया के हुस्न का दीदार करने लगा जो हाथ में कटोरी लिए सलवार कुर्ती में मेरे सामने खड़ी हुई थी!

मैं- रजिया, बैठो न!

रजिया- मैं आपके पास बैठने नहीं आपकी मालिश करने आई हूँ!

शायद उसे मेरे पूर्ण नग्न होने का अनुमान नहीं था, कहते हुए उसने मेरा एक पैर जांघों तक चादर से उघाड़ा और तेल लगाने लगी!

मैंने चाय पीकर प्याला एक ओर रख दिया और उसके यौवन का रसपान करने लगा।
उसकी आँखों में तैरती वासना के लाल डोरे साफ बता रहे थे कि फरहा ने इसे मेरी बात से अवगत करा दिया है और यह मानसिक रूप से चुदने की तैयारी से आई है।

रजिया बड़ी तन्मयता से मेरे पैरो को जांघों तक सहलाते हुए मालिश करने लगी।
थोड़ी देर पहले की थकावट से मुझे बड़ी राहत मिल रही थी, मैं अपने हाथों को चादर के अन्दर करके लेट गया, जैसे ही रजिया का हाथ मालिश करते हुए जांघों की तरफ आता, मैं अपना हाथ उसके हाथों से टकराने लगा, कभी कभी पकड़ कर जांघों पर दबा देता!

रजिया- यह क्या कर रहे है जनाब!

मैं- रजिया थोड़ा इनकी भी तो मालिश कर दो!

कहते हुए उसका हाथ मैंने अपने खड़े होने को आतुर लंड पर रख दिया जो अब सिसकारी लेती हुई वासनामयी रजिया की मुट्ठी में समां चुका था।

उसने चादर के अन्दर ही उसे मसलना सहलाना शुरू कर दिया जिसके परिणाम स्वरूप मेरा लंड अपने पूर्ण आकार में आने लगा।

पूर्ण आकार के लंड को देख रजिया उसे पाने को लालायित हो रही थी, उसने हाथ में सरसों का तेल लेकर मेरे लंड पर चुपड़ दिया और ताबड़तोड़ मसलते सहलाते हुए उसकी मालिश करने लगी।
कुछ क्षणों में मेरे लंड में सरसों के तेल की गर्मी से जलन होने लगी, फिर तो जैसे आग सी लग गई हो!

मैंने कहा- रजिया, यह क्या किया? मुझे बहुत जलन हो रही है आह्ह्ह… कुछ करो जल्दी ओह!

रजिया को अपनी गलती का अहसास हो गया तो उसने कोई उपाय न देख मेरे लंड को अपने मुँह में डाल लिया और चूसने लगी, फिर पूरी तरह अपनी लार से भिगो कर उसे मुँह से बाहर निकाल कर उसे इस तरह फूंकने लगी जैसे कि हम चाय के प्याले को चाय ठंडा करने के लिए फूंकते हैं, यक़ीनन कुछ देर में मुझे ठंडक का अहसास होने लगा, मेरी लंड की जलन समाप्त हो चली थी!

मैंने अपना एक हाथ रजिया की दोनों टांगों के बीच पर रख दिया, शायद उसने पेंटी नहीं पहनी थी, चूत के ठीक नीचे उसकी सलवार गीली हो गई थी।

मैंने हाथों से सहलाते हुए चूत का नाप ले लिया बहुत गदराई हुई गीली चूत पर छोटे छोटे बाल थे, उसकी चूत से पानी और भी तेजी से निकलने लगा जिसके कारण मेरे सहलाने से सलवार का कपड़ा उसकी चूत पर इस तरह चिपकता गया कि उसकी चूत की आकृति सलवार के ऊपर से हूबहू दिखाई देने लगी।

रजिया सिसकारी लेते हुए मेरे लंड से खेल रही थी, कभी चूसने लगती, कभी चुम्बन करती, कभी अपनी जीभ से मेरे टोपे को चुभलाते हुए उसके छेद में अपनी जीभ चुभोती, बिल्कुल इस तरह जैसे किसी बच्चे को उसके मनपसंद खिलौना मिल गया हो!

मैंने उसका नाड़ा खोल दिया और उसे खड़ी करके उसकी सलवार और कुर्ती निकाल दिए, अन्दर ब्रा भी नहीं पहनी थी, उसके भरे हुए कबूतर आजाद पंछी की तरह उछल कर बाहर आ गए! क्या भरा हुआ बदन था रजिया का, उसका पति शायद बदनसीब ही होगा जो हुस्न की परी को छोड़ दिया होगा उसने!

फिर मैंने रजिया को घोड़ी बनाया, उसकी कोहनी पलंग पर टिका दी और पीछे से उसके मोटे मोटे चूतड़ों को पकड़ कर लंड को चूत में प्रवेश करा दिया! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

हाय… हायल्लाह! करती रजिया अपनी चूत को पीछे की ओर धकेलती हुई लंड को अपनी चूत में ज्यादा से ज्यादा अन्दर लेने की होड़ करते हुए मेरे साथ ताल से ताल मिलाने लगी, मैंने उसके आजाद कबूतरों को थाम लिया कितने ठोस और कड़क हो रहे थे!

रजिया- रोनी साब, मेरे को अपने साथ ले चलो फिर चाहे महीने में एक दिन ही सही ऐसी मस्त चुदाई का मजा देते रहना! आह… मैं तुम्हारी नौकरानी बन कर तुम्हारी सेवा करती रहूँगी! स्स्स्स… कितने दिनों बाद ऐसा मस्त लंड मिला… आह्ह… मेरा खसम तो पीकर आता था और मुझे तड़पती छोड़ सो जाता था! हाय…

मैं उसकी बेदाग पीठ पर चूमते हुए पीछे से सटासट धक्के लगा रहा था, पांच सात मिनट में ही रजिया मदहोश सी होती हुई मादक सीत्कारें निकालने लगी और फिर स्खलित होते हुए अपना योनिस्राव छोड़ दिया।

मैंने भी ठीक उसके साथ ही अपना वीर्य छोड़ दिया, दोनों एक साथ वैसे ही पलंग की किनारे पर धम्म से पड़ गए!

अंतिम क्षणों में मैंने रजिया की गर्दन और कान पर पप्पी लेते हुए कहा- रजिया, तुम तो बहुत मस्त हो! क्या भरपू जवानी पाई है तुमने!

रजिया ने लजाते हुए अपनी आँखें बंद करते हुये कहा- आप भी तो बहुत मस्त चुदाई करते हो! मैंने आपकी कहानियाँ अन्तर वासना पर फरहा दीदी के साथ कई बार पढ़ी हैं, मुझ पर तो आपने बहुत बड़ा अहसान किया जो मुझे इस लायक समझा!

तब तक मेरा लंड सिकुड़कर बाहर आ गया, मैंने बाथरूम जाकर अपना लंड धोया, पीछे से रजिया भी आ गई, उसने मेरे लंड को एक बार फिर से चूम लिया और अपने मुँह में लेकर चूसने लगी पर उसे खड़ा करने में असफल रही और फिर वो अपनी सफाई करके नीचे चली गई!

पूरे घर में किसी के आने का कोई अंदेशा नहीं था, बड़ी निश्चिन्तता से सारा काम चल रहा था। मुझे नींद ने आ घेरा, कब सो गया पता ही नहीं चला!

कहानी चलती रहेगी, आपके विचारों का स्वागत है!
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