जरूरतमंद

जवाहर जैन 2011-10-18 Comments

अन्तर्वासना के पाठकों को नमस्कार। इससे पहले मेरी कई कहानियाँ
जैसे ‘पुसी की किस्सी’, ‘हमने सुहागरात कैसे मनाई’ और ‘परोपकारी बीवी’ आपके सामने आ चुकी हैं। जैसा कि मैंने आपसे पहले ही कहा था कि अपनी जिंदगी में अब तक घटित सैक्स की उन खास बातों को आपके सामने रखूँगा जिन्हें मैं आपको बताकर खुद अच्छा महसूस करूँ।

यह बात हैं मेरे परिचित की दुकान में काम करने वाली एक लड़की की जो सैक्स के मामले में जरूरतमंद थी। होता यह है कि अपने परिचित को सहयोग देने मैं अक्सर ड्यूटी से आने के बाद उसकी दुकान पर चला जाता था, वह मुझे दुकान में बैठाकर वह सामान की खरीदी या दूसरे काम करता था।

मेरे परिचित का नाम सौरभ है और उसकी मनिहारी समान की दुकान है। उनकी दुकान में काफी भीड़ रहती थी, इस कारण उन्हें जरा भी फुरसत नहीं मिलती है। उनकी दुकान में सहयोग के लिए आठ लोगों का स्टाफ था, जिनमें पांच लड़के और तीन लड़कियाँ हैं। इनमें सबसे सुंदर और मेहनती लड़की पुष्पा है, जो अपने अपने अच्छे काम व बेहतरीन स्वभाव के कारण सौरभ की भी पसंदीदा थी।

सौरभ ने मुझसे बोला भी हुआ था कि दुकान के किसी भी काम में मदद के लिए पुष्पा से ही कहना।

दुकान मैं होता तब पुष्पा मेरी मदद के लिए न सिर्फ दूसरे कर्मचारियों को अलर्ट करती, वरन ग्राहकों को सामान देकर उसका पैसा भी मुझ तक पहुँचाती। उसकी सक्रियता देख मैं भी कई बार सौरभ से कह चुका था कि यार कभी मैं भी किसी काम में फंसकर यहाँ नहीं आ पाया तो तू पुष्पा के भरोसे ही दुकान छोड़ कर जा सकता है। सौरभ मेरी इस बात को हंसकर हामी भरते हुए टाल दिया करता था। मुझे तो कई बार यह भी लगता कि इसकी दुकान में ज्यादा लोग सिर्फ पुष्पा के कारण ही आते हैं। उसका गोरा रंग, भरी हुई देह व उठते यौवन की खुशबू मुझे अक्सर सैक्स के लिए उन्मादित करती रहती। पर अपने रसूख व लोकलाज के भय से मैं उसे सैक्स के लिए कहने से हिचकता था। दुकान में काम करने वाले लड़के और कई ग्राहक भी मौका मिलते ही पुष्पा के शरीर को छू लिया करते, पर काम करने वाले लड़कों को पता था कि उनकी हरकत पर यदि पुष्पा ने आपत्ति ली तो हो सकता है कि उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़े। इस तरह पुष्पा अपने यौवन को शायद अक्षत रखे हुए थी। वह दुकान में अक्सर सलवार सूट पहनकर आया करती थी।

एक दिन मैं अपनी ड्यूटी पर था, तभी सौरभ का फोन मेरे पास आया, उसने कहा कि उसे किसी पारिवारिक काम से चार पांच दिनों के लिए अहमदाबाद जाना है तो मैं आज ड्यूटी से लौटते साथ ही दुकान में आ जाऊँ और अपने काम से छुट्टी लेने की कोशिश करूँ, नहीं तो दुकान बंद रखनी पड़ेगी।

मैंने उसे कहा- ठीक हैं मैं दुकान में आकर ही बात करता हूँ।

ड्यूटी से लौट कर मैं उसकी दुकान पहुँचा और बताया कि छुट्टी तो दो ही दिन की मिली है और पूछा- अब कैसे करेंगे, बता?

सौरभ बोला- ठीक है, दो दिन दुकान बंद रखेंगे क्यूंकि मेरा वहाँ जाना जरूरी है।

मैंने भी हामी भरी- ठीक है, उन दिनों जैसा होगा, वैसा करेंगे।

मेरे कहने पर सौरभ ने पुष्पा को बुलाया और दोपहर की छुट्टी लिए बिना दुकान में पूरी तरह मुझे सहयोग देने को कहा।

अगले दिन अपने बीवी बच्चों के साथ सौरभ अहमदाबाद के लिए निकल गया। उसकी दुकान खोलने अगले दिन सुबह मैं पहुँचा। तभी पुष्पा भी आ गई।

मैंने उससे मुस्कुराते हुए कहा- पुष्पा, तुम्हें अब मेरे ही पास रहना है।

पुष्पा ने भी हंसते हुए हामी भरी और मुझे बोली- आप निश्चिंत रहिए, मैं हूँ आपके साथ।

दोपहर को मैंने पास की ही एक होटल में फोन करके दोनों का खाना मंगवा लिया। खाने के समय मैंने अपना खाना वहीं दुकान में ही खा लेने की बात कहते हुए उसे भीतर जाकर खाने कहा तो उसने कहा- नहीं, हम दोनों साथ ही खाएँगे। आप भी अंदर चलिए, नहीं तो मैं यहीं आपके साथ खाना खाने लगूंगी।

लिहाजा मैं भी अंदर के कमरे में खाना खाने जाने के लिए चल पड़ा। भीतर पहुँचते समय मेरा हाथ अनजाने में ही पुष्पा के कूल्हों से टकरा गया तो उसने कहा- आपको मैडमजी से पूरा मजा नहीं मिलता है क्या?

एक तो उसके हिप्स को छू लेने के कारण मैं वैसे ही शर्मिंदा था, अब पुष्पा ने यह नई बात बोलकर मुझे उसका जवाब देने को मजबूर कर दिया था, मैं बोला- मैडम, के साथ मजा का लेना देना तो चलता रहता है पर तुम्हारे साथ की तो बात ही अलग हैं पुष्पा।

अपने गोरे चेहरे पर दिखावटी अचरज लाते हुए पुष्पा ने कहा- क्यूँ? मेरे में ऐसा क्या देख लिया है आपने?

मैं बोला- तुम बहुत अच्छी हो ना, मैं तुम्हें पसंद करता हूँ।

“ओह !” पुष्पा बोली- फिर यह बात आपने मुझसे पहले क्यों नहीं कही?

मैं बोला- इस डर से कि कहीं तुम नाराज ना हो जाओ।

“वाह, मुझे कोई पसंद करता है, यह बात मुझे पता चलेगी तो मैं नाराज होऊँगी, ऐसा क्यूँ भला, उल्टा यह होगा कि आप मुझे पसंद करते हो, यह बात मैडम को पता चली होगी तो उल्टा वे ही मुझसे नाराज होंगी !” उसने कहा।

मैं बोला- नहीं ऐसा नहीं है।

हम दोनों खाना खाने बैठे थे, मुझे लगा कि यही वह समय है जब पुष्पा को चोदने के लिए तैयार किया जा सकता है, मैंने कहा- तुम्हारी शादी की बात चल रही है कहीं?

पुष्पा बोली- नहीं, अभी नहीं।

मैं बोला- क्यों? तुम इतनी ज्यादा खूबसूरत हो, बोलो तो किसी लड़के से बात करूँ? कोई भी तुमसे लव मैरिज कर लेगा, फिर आराम से गुजरेगी जिंदगी तुम्हारी।

वह बोली- नहीं, शादी तो मैं अपने घर वालों की इच्छा से ही करूंगी, पर अभी मेरे पिता पर दूसरी जिम्मेदारी का बोझ है, तो मेरी शादी की बात बाद में।

मैं बोला- अरे, शादी को ऐसा बोलकर टाला नहीं करते हैं, नहीं तो जब तुम्हारा शरीर शादी के लिए परेशान करेगा, तब पता चलेगा कि कोई लड़का ही नहीं मिल रहा।

पुष्पा बोली- तो आप समझते हैं कि मेरे शरीर को शादी की कमी नहीं खलती?

मैं बोला- कमी खलती है तो क्या करती हो?

वह बोली- उंगली इस्तेमाल कर उस कमी को पूरा करती हूँ।

मैं बोला- उंगली क्यों? किसी को काम निकालने के लिए पटा क्यूँ नहीं लेती। बोलो तो इसमें मैं ही तुम्हारी मदद कर दिया करूंगा।

पुष्पा बोली- उंह, वो सब कहाँ होगा, और इससे मुझे कुछ हो गया तो?

मैं बोला- जगह की व्यवस्था मैं करूंगा, और तुम्हें कुछ ना हो इसका जुगाड़ भी करूंगा, बोलो?

वह भी मस्ती में आ गई थी, बोली- पहले आप अपना दिखाओ ताकि मुझे पता चले कि आदमियों का होता कैसे है।

हमारा खाना खत्म हो गया था, मैं उठा और दरवाजे के पास जाकर खड़ा हुआ और बोला- ठीक है, मैं अपना दिखाता हूँ पर फिर तुम्हें भी अपना सामान दिखाना होगा।

वह बोली- हाँ ठीक है, पर पहले अपना दिखाओ।

मैंने अपनी पैन्ट की चैन खोली और लौड़े को बाहर निकालकर उसे दिखाया।

वह बोली- ऐसे नहीं, पैन्ट को नीचे उतारकर दिखाइए।

मैं बोला- फिर उसके लिए तुम्हें यहाँ आना होगा।

“क्यों?” पूछते हुए वह मेरे पास आ गई।

“क्यूंकि यह अब तुम्हें उतारना होगा।” यह कहकर मैंने उसके सीने पर हाथ रखा और उसके बढ़िया बड़े उरोजों को दबाने लगा।

वह भी मस्ती में आ गई थी, उसने मेरी पैन्ट को खींचकर नीचे किया और लौड़े को पकड़कर देखने लगी। इतना बड़ा ! मेरे में तो यह घुसेगा ही नहीं।

अब मैंने कहा- कहाँ नहीं घुसेगा? दिखाओ तो अपनी जरा !

यह बोलकर मैंने उसकी कुर्ती को ऊपर उठाकर सलवार का नाड़ा खोलकर सलवार नीचे की और घुटने के बल बैठकर उसकी मेहरून रंग की पैन्टी को भी नीचे सरकाया और सौरभ की दुकान की इस नायाब हसीना की चूत को देखने लगा।

उसकी चूत पूरी साफ थी, मैं बोला- झांटों को कब साफ किया?

तो उसने कहा- अभी परसों ही ! बाल बढ़ गए थे, गड़ रहे थे इसलिए साफ कर दिए। मैंने उसकी चूत से पानी रिसता महसूस किया, इसलिए उसकी चूत पर मुँह लगाकर चाटना शुरू कर दिया।

वह बोली- अभी मत करिए, कोई आ जाएगा ना।

मैंने मुँह हटाया और पूछा- तो कब दोगी?

वह बोली- आज ही रात को मैं रूकी रहूंगी, सब चले जाएंगे तब।

मुझे भी लगा कि यह सही बोल रही है तो एक बार और चाटकर हटा व अपने कपड़ों को ठीक किया। पुष्पा भी अपने कपड़ों को ठीक करके बाहर दुकान में चली गई।

हमने रात तक काम निपटाया, फिर छुट्टी के समय योजना के अनुसार कुछ सामान को जमाने व उनका हिसाब मिलाने लगे, ताकि दूसरों को लगे कि हिसाब में कुछ गड़बड़ हो गई है। हम इसी में लगे रहे और एक-एक कर सभी अपने घर चले गए।

अंत में हमने दुकान का गेट बंद किया, पुष्पा को बोला- अपने घर में बता देना कि कुछ काम के कारण रूक गई थी, रात को मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगा।

उसने हामी भरी और हम दुकान के अंदर वाले कमरे में गए।

मैंने महसूस किया कि पुष्पा में अभी कुछ ज्यादा ही जोश आ गया है। उसने मेरे कपड़ों को खींचना शुरू कर दिया था, मैं बोला- देखकर ! कपड़े फट जाएंगे।

वह बोली- तो आप जल्दी से नंगे हो जाओ।

मैंने कहा- और तुम तो अपने कपड़े उतारो।

उसने अपनी कुरती फिर सलवार उतारी। वह समीज और पैन्टी में थी। मैंने भी अपने पैन्ट शर्ट व बनियाइन को उतार दिया। वह मेरे पास आई व मेरी अंडरवियर को खींचकर उतार कर बोली- मेन जगह का कपड़ा तो उतारा ही नहीं।

अब मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ा, लंबा चुंबन लिया, फिर उसकी समीज को उतारकर चुचूक को चूसने लगा। पुष्पा के चूचे अच्छे कड़े थे।पुष्पा उस समय की अपनी चूत चटाई का आनन्द नहीं भूली थी तो वह निप्पल चूसने का सुख मुझे देते हुए अपने हाथ से पैन्टी को नीचे कर चूत को खोलते व आह भरते हुए बोली- इसे चाटिए ना।

मैं पुष्पा के चुचूक छोड़कर खड़ा हुआ और उसकी आधी उतरी पैन्टी को पूरा नीचे कर उसे नंगी किया, व उसी कमरे में किनारे रखे तख्त पर पुष्पा को लेटाया और उसके घुटने से जीभ चलाते हुए जांघ फिर चूत पर आया, चूत के छेद में जीभ डालकर आगे-पीछे किया। उसकी चूत से पानी छूट रहा था। इस कमरे में ही किनारे पर रखे दुकान के सामान में से मैंने एक ऑयल बेस्ड क्रीम निकाली और मदमस्त होती पुष्पा की चूत पर लगाई।

इस क्रीम को चूत में लगाने के बाद मैंने अपने लंड पर भी लगाया, इसके बाद लौड़े को चूत के छेद में रखकर अपने होंठों से उसके मुँह को बंद किया और लंड को थोड़ा सा अंदर किया।

लौडे के चूत में घुसने के प्रयास से पुष्पा कराह उठी, यदि मैंने होंठों से उसके मुँह को बंद नहीं किया होता तो यकीनन उसकी चीख लोगों को सचेत कर देती।

अब मेरे होठों से उसके मुँह को फिर से बंद किया और लंड को थोड़ा-थोड़ा भीतर करके पूरा अंदर कर दिया, पर उसकी कराह अब तक बंद नहीं हुई थी।

लंड के भीतर घुसते ही मेरी कमर की स्पीड बढ़ गई और मैं उसे जम कर चोदने लगा।

कुछ ही देर में पुष्पा ने सैक्स का मजा लेना शुरू कर दिया और अब तो अपनी चूत उपर उछालकर मेरे लौड़े को मानो अपने भीतर मांग रही हो।

हमारी चुदाई की यह गति थोड़ी ही देर रही, पुष्पा ने उछाल भर के चुदवाते हुए अपनी गति तेज की, फिर मेरे से आकर चिपक गई। करीब करीब इसी समय मेरा भी झड़ा। हम दोनों कुछ देर यूँ ही एक दूसरे से चिपके पड़े रहे।

पुष्पा ने उठकर अपनी चूत को देखी और रूआँसी होकर बोली- इतना खूऽऽऽन? अब क्या होगा?

पहली बार किसी भी लड़की को चोदने से उसकी चूत की पैकिंग झिल्ली फटती है, जिसके कारण खून आता है, यह मैं जानता था, पर पुष्पा के हाव भाव देख मैं भी घबरा गया और उसे ढांढस बंधाने लगा, उसे बोला- पुष्पा, तुम्हें कोई एक बार ही थोड़े न चुदना हैं, यह खून पहली बार की चुदाई में ही आता है और अब चुदाई में दर्द नहीं होगा, केवल मजा आएगा।

अब पुष्पा थोड़ी सामान्य हुई, उसने कहा- अब दर्द नहीं होगा ना?

मैं बोला- नहीं !

“तो फिर से करो ना !”

मैं बोला- नहीं, अब तुम करो।

यह कहकर मैं उसके दोनों चूचों को सटाकर बीच में जीभ डालने लगा। पुष्पा उठकर मेरे घुटनों पर बैठ गई, मेरे लौड़े को बहुत प्यार से देखने लगी।

मैंने उसे कहा- इसे फिर काम का बनाना हो तो इसे मुँह में रखकर प्यार करो।

वह और पीछे हुई और मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़कर मुंह में डाल कर चूसने लगी।

थोड़ी ही देर में मेरा लौड़ा तन गया।

वह बोली- अब हो गया तैयार?

मैं बोला- हाँ, यह पूरा तैयार हो गया है।

मैंने पुष्पा के दोनों चूचों को पकड़ा और उसके निप्पल चूसने लगा। पुष्पा अपनी चूत के छेद को मेरे लौड़े के पास लाई और ऊपर रखकर पहले तो थोड़ा दर्द के कारण कराही फिर बैठकर उसे अंदर करने लगी। यह उसके थोड़े से प्रयास में ही अंदर हो गया।

अब वह उछलकर लौड़े को अपने भीतर समाने का प्रयास करने लगी। थोड़ी ही देर में हम दोनों का झड़ गया।

वह काफी देर तक मेरा लौड़ा अपने भीतर लिए बैठी रही, फिर उठी और अब घर जाने की जल्दी करने लगी।

मैंने भी देखा कि काफी समय हो गया है, इसे घर छोड़ना ही होगा, तो मैं भी अपने कपड़े पहनने लगा।

तैयार होने के बाद हमने उस स्टोर रूम को ठीक किया, वहाँ का सब सामान व्यवस्थित करने के बाद मैंने उसे गोली दी और बोला- यहाँ से अपन होटल चलेंगे, वहाँ खाना खाने के बाद तुम इस दवाई को खा लेना। इससे आज के इस मजे का कोई साइड इफेक्ट नहीं होगा। उसने वह दवाई अपने पास रख ली। हम लोग बाहर निकले और वह मेरे पीछे बाईक पर बैठी।

शहर की सबसे बढ़िया होटल में मैंने उसे पार्टी दी। यहाँ से मैंने उसे उसके घर छोड़ा और शादी के बाद पहली इस सील पैक चुदाई की स्मृतियां संजोए हुए अपने घर की ओर बढ़ चला। इस चुदाई के बाद मैंने पुष्पा के साथ जगह व मौका देखकर चार बार और चुदाई की। अब पुष्पा की शादी हो गई है और अपने पति के साथ वह सुख से है।

मेरी यह कहानी आपको कैसी लगी कृपया बताएँ।

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