हाय दैया, इत्ता बड़ा !

जूजाजी 2013-07-21 Comments

आपने मेरी कहानियों को इतने चाव से पढ़ा और सराहा और मुझे आप लोगों के सैकड़ों की तादाद में ईमेल आईं। मुझे इसकी उम्मीद ही न थी।

खैर साब, आप सबके इस स्नेह का मैं हृदय से आभारी हूँ और अब एक दिल को मस्त कर देने का वाकया आपके सामने रख रहा हूँ। आनन्द लीजिये !

बस में चढ़ा, भारी भीड़ थी, पता नहीं किसी राजनीतिक दल की मीटिंग होने के कारण, अधिकतर बस उपलब्ध नहीं थीं।

मैं भी, बड़ी मुश्किल से ऊपर चढ़ पाया था। सीट मिलने की तो कोई आस थी ही नहीं। बस खड़े होने की जगह मिल गई, यही बहुत था। जैसे-तैसे खड़े हो गए। सामान के नाम पर कंधे पर एक हैंडबैग था।

बस में, मद्धिम सी रोशनी थी, तभी अचानक बस चलने को हुई, धीरे धीरे लुढ़कने लगी, परिचालक ने टिकटें काटी और मेन रोड पर आते ही बस ड्राईवर ने अंदर की बिजली बंद कर दी और क्लीनर ने पीछे का दरवाजा बंद कर दिया तो, भीड़ में थोड़ी धक्का-मुक्की बढ़ी और मैं उस चक्कर में थोड़ा और आगे को आ गया।

मुझे अहसास सा हुआ कि मेरे आगे कोई महिला शॉल औढ़े खड़ी है, उसके नर्म-गर्म अंग मुझे छू रहे हैं। और उसके अहसास मात्र से ही मेरी यात्रा मस्ती भरी हो गई।

हालाँकि, मैं उस विचारधारा का हूँ कि जब तक कोई महिला चाहे नहीं, तब तक उसके साथ किसी भी तरह का यौन व्यवहार नहीं करना चाहिए। और यदि कोई महिला खुला आमंत्रण दे तो उसको किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाहिये।

तो साब मैं दम साधे खड़ा था और सोच रहा था कि इसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया आएगी, तभी कुछ किया जायेगा। और यह भी मुझे मालूम था कि इस बस में तो कुछ हो नहीं सकेगा।

पर फिर भी सभी विचारों को नियति के खूंटे पर टाँग कर अपुन तमाशाई बन कर खड़े रहे। तभी बस के ब्रेक लगे और मेरा वजन उस महिला के ऊपर को पड़ा, मैंने घबरा कर ऊपर लगा डंडा पकड़ लिया ताकि गिर न पड़ूँ। पर इतनी भीड़ थी कि गिरने की कोई स्थिति थी ही नहीं।

तभी बस ने पुनः गति ले ली और मोहतरमा मेरे छाती पर टिक गईं। अब यह बार-बार होने लगा, कभी मैं आगे तो कभी वो पीछे। पर मैंने महसूस किया कि वो कुछ अधिक ही मेरे ऊपर ढेर हो रही थी, कुछ अटपटा सा लगा फिर भी मैंने कुछ नहीं किया।

अब मैंने महसूस किया कि मेरे हथियार में कुछ सुर्खी सी आ रही है। और उस महिला की पिछाड़ी की दरार में स्पर्श कर रहा है। अब कुछ नहीं किया जा सकता था।

लंड को कैसे समझाएँ कि बेटा, अभी चुप हो जाओ, अभी माल तैयार नहीं है। खैर साब, अपन मन ही मन में बोले कि जो होना होगा सो हो जाएगा, देखेंगे !

तभी, एक जगह बस रुकी और एक सवारी उतरी और तीन सवारी चढ़ गईं। मतलब, बस की भीड़ में कोई कमी नहीं हुई और ज्यों ही, बस चली एक झटका सा लगा सब सवारियाँ एकदम से पीछे को झुकी और मेरे ऊपर मेरी अनचाही मुराद ढेर हो गई।

अनायास ही मेरा हाथ, उसको पकड़ने के चक्कर में, उसकी चूचियों को पकड़ कर अपनी छाती से सटा कर, सहारा देने के मंसूबे से चला गया और उसने भी कोई विरोध नहीं किया।

मैंने भी अपना हाथ हटाना चाहा तो उसने मेरा हाथ वहीं लगाये रहने के हिसाब से पकड़ लिया। मुझे समझ में आ गया कि इसको भी मजा आ रहा है।

मैंने अगले झटके का इन्तजार किया और जल्द ही एक मिनट तक उसकी चूचियों पर अपना हाथ रखे रहने के बाद जब एक झटका लगा तो मैंने उसका एक संतरा जोर से दबा दिया।

उसके मुँह से आह निकल गई और वो धीरे से फुसफुसाई- लगती है, जरा धीरे करो न !

मैं अब पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि अब माल मेरे काबू में हैं। बस मेरे हाथ उसके सीने पर मस्ती से फिरने लगे और मेरा औजार भी उसके नितम्बों की मदमाती मुलायमियत से मस्त होने लगा।

उसने मुझसे कहा- अपना हँसिआ काबू में रखो।

मैंने कहा- तुम ही उसको पकड़ कर समझा दो।

उसने हाथ पीछे लाकर मेरा लण्ड पकड़ लिया और बोली- हाय दैया इत्ता बड़ा !

मुझे हँसी आ गई, मैंने कहा- अभी तक कितना बड़ा खाया है?

बोली- ईको आधो भी नैयाँ, हमार उनको (इसका आधा भी नहीं है हमारे पति का)

मैंने कहा- जरा ठीक से मसलो।

तब उसने मेरी पैंट की ज़िप खोल दी और अंदर मेरी चड्डी को नीचे तरफ खींच कर लंड को बाहर निकाल लिया। लौड़ा अपने पूरे शवाब पर था।

उसके मुँह से एक मीठी सी आह निकल गई। उधर, मैंने भी उसकी शॉल के अन्दर उसके ब्लॉउज में नीचे से हाथ डाल कर उसके निप्पल उमेठना चालू कर दिये और उसके गाल पर एक चुम्बन धर दिया।

वो गनगना गई। मैंने महसूस किया कि उसने अपनी टाँगें कुछ फैला ली थीं। मैंने अपना हाथ उसकी चूचियों से हटा कर नीचे, उसके पेट पर फेरते हुए उसकी चूत की तरफ बढ़ाया।

वो तनिक कसमसाई, फिर उसने मेरे हाथ को अंदर जाने दिया। उसने नीचे चड्डी नहीं पहनी थी। मेरे हाथों में उसकी घुंघराली झाँटें टकराईं। मैंने उसकी झाँटों को अपनी उंगलियों से सहलाना शुरू कर दिया। वो अपने पूरे शरीर को मेरी छाती से टिका कर खड़ी हो गई थी।

मैंने हाथ और नीचे उसकी चूत की तरफ बढ़ाया तो मेरी एक उंगली सीधे उसकी गीली चूत में घुस गई। उसके मुँह से एकदम से आह निकली। वो मैथुन की मस्ती में डूब चुकी थी और ऐसा लगता था कि उसको किसी की चिंता नहीं थी।

मैंने उससे पूछा- क्या तुम्हारे साथ कोई है?

उसने कहा- हाँ, मेरे ससुर हैं, पर वे आगे हैं। और तुम लगे रहो, मुझे बहुत मजा आ रहा है।

कुछ देर तक उसकी चूत में उंगली करने के बाद उसके शरीर में ऐंठन सी आने लगी। मैं समझ गया कि यह तो गई।

मैंने कहा- तुमने तो मजा ले लिया है, पर मेरे लौड़े का पानी कैसे निकलेगा?

वो हँस पड़ी बोली- अपने हाथ से निकाल लेना !

तभी बस रुक गई और मेरे पास की सीट से एक आदमी नीचे उतरने के लिये उठा, उस खाली जगह पर मैंने उसको बैठा दिया और खुद अपना मुँह उसकी तरफ कर के खड़ा हो गया, बस चलने लगी।

उसने मेरे लौड़े को निकाल कर अपने हाथों में ले लिया। अब मुझे चैन आया कि आज यह हस्तमैथुन तो कर ही देगी।

पर मुझे उस समय बहुत ही आनन्द आया जब उसने मेरे लण्ड के टोपे पर अपनी जुबान फेरी।

“…आहा…!”

मुझे तो मन की मुराद मिल गई। मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि इस ग्रामीण महिला को भी मुखमैथुन अच्छा लगता होगा। उसने धीरे से मेरे लौड़े को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी। मुझे इस समय बहुत ही मजा आ रहा था।

मैंने अपने दोनों हाथ उसकी मस्त नारंगियों पर, धर कर उनको मसकने लगा।

वो पूरे मनोयोग से मेरे लवडे को चचोर रही थी। करीब पाँच मिनट की चुसाई के बाद उसने मेरे लण्ड को झड़ने पर मजबूर कर दिया। मैं जब झड़ने को था, तब मैंने अपने लण्ड को उसके मुँह से निकालना चाहा पर उसने मेरे लौड़े को मजबूती से पकड़ रखा था।

अब मेरी मजबूरी थी तो मैंने अपना लावा उसके कण्ठ में ही छोड़ दिया।

साली सब गटक गई और न केवल गटक गई, बल्कि उसने मेरे लौड़े को चाट-चाट कर माल की एक-एक बूँद चाट ली।

मेरा शरीर शिथिल सा हो गया और लण्ड सिकुड़ गया था। उसने मेरे लवड़े को अंदर करके मेरी ज़िप भी लगा दी।

तभी उसके ससुर की आवाज आई, ‘चलो उतरना है।’

उसका पड़ाव आ गया था और उसको उतरना था, वो उठी और मेरे गाल पर एक चुम्मा ले कर चली गई।

मैं उसके द्वारा खाली की गई सीट पर धम्म से बैठ गया और अपने गाल को सहलाने लगा। मुझे बस एक ही मलाल था कि न तो मैं उसका चेहरा देख पाया और न ही उसका नाम जान पाया।

बगैर अपने सतीत्व को खोये उसने हम दोनों को सुख दे दिया था।

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