गाँव जाकर नौकर से प्यास बुझवाई-3

अंचल 2007-06-16 Comments

लेखिका : आंचल

धन्यवाद गुरुजी आपने जो मुझे अन्तर्वासना में जगह दी, आपने मेरी कहानी छाप दी मुझे बहुत ख़ुशी हुई।

पैसे की कमी कोई नहीं, नौकर-चाकर बहुत हैं, बस है तो अकेलापन !

उसके लिए मैं अन्तर्वासना का सहारा लेती हूँ।

आज जब मैंने अपनी चुदाई की कहानी पढ़ी तो मुझे यकीन हो गया कि अन्तर्वासना पर कहानी लोगों की भेजी हुई ही छपती हैं।

अब आगे की बात बताती हूँ… उसके बाद उन्होंने जो कुछ मेरे साथ किया !

मेरे बार बार औकात शब्द से वो मुझे मेरी औकात दिखाने की धार चुके थे !

कुत्ती कहीं की !

बहन की लौड़ी, हम पर गरजती है? माँ की लौड़ी !

तेरी जैसी औरत को बोलने का हक नहीं होता, समझी ?

खुद चाहिए था तुझे राम का लौड़ा !

अपने मुँह से दो लौड़े लेने की बात कही ! साली नहीं दूंगा तेरे कपड़े !

बिरजू ने मुझे पकड़ कर चूमना चालू किया, मेरे गुलाबी होंठों को चूसे जा रहा था। उधर राम ने मेरी चूत में ऊँगली डाल रखी थी। उसने राम को न जाने कैसा एक इशारा किया, उसने लुंगी बांधी और निकल गया।

इधर बिरजू ने दुबारा अपना सोया लौड़ा मेरे मुँह में घुसा दिया- साली, अब तेरा ज़बाड़ा फाड़ देगा मेरा लौड़ा !

मुझ पर रहम खाओ बिरजू, मुझे घर जाना है !

साली अभी नहीं ! अभी तुझे औकात दिखानी है, मेरी कुत्तिया, चूस लौड़े को !

इतने में राम ने दस्तक दी, उसके साथ सांड जैसे दो मर्द थे।

यह कौन हैं ?

दफा हो जाओ कमीनो ! मेरे फार्म हाउस में क्या कर रहे हो ?

साली, फार्म हाउस में चुदने आई हो तो अब क्या हुआ?

उनके हाथ में दारू की बोतल थी।

चल खड़ी हो, ग्लास लगा !

राम बोला- मैं लाता हूँ, मालकिन हैं।

दोनों मेरे नंगे जिस्म को देख-देख मुस्कुरा रहे थे। एक मेरी जांघ पर हाथ रख फेरने लगा, दूसरे ने मेरा मम्मा दबा दिया। ज़बरदस्ती एक पेग मुझे पिलाया, मुझे नशा होने लगा।

चारों ने क्या किया- अपने अपने लौड़े निकाल लिए ! चारों नंगे !

उन दोनों के लौड़े देख मेरी गांड वैसे फट गई, मारोगे क्या मुझे कमीनो ?

छिनाल है ! तुझे क्या होगा ! बिरजू काका, सरदार साब ने माल मस्त चुना है ! खुद का खड़ा होता नहीं होगा, बेचारी क्या करे !

मुझे एक और पेग पिलाया, तभी एक और सांड अंदर आया- कहीं मैं लेट तो नहीं होया ? हाय सालो, सरदारनी को नंगी क्यूँ कर बिठाया है? इसके कपड़े दे दो !

मुझे अब नशा हो चुका था, उसका लौड़ा भी मस्त था।

क्यूँ सरदारनी, इतने काफी हैं या किसी और को दावत दे दूँ?

मैंने उसका लौड़ा मुँह में ले लिया और चूसने लगी, मैं घोड़ी बन कर उसका चूस रही थी कि पीछे एक ने मेरी चूत चाटनी शुरु कर दी। एक ने मेरा मम्मा, दूसरे ने दूसरा मम्मा !

अब मुझे कमीनी बनकर बहुत मजा मिल रहा था।

एक पेग बिरजू का मैंने खींच लिया और बस कभी एक का मुँह में लेती, कभी दूसरे का !

सभी बहुत खुश थे !

सरदारनी, तेरी फुद्दी बहुत मस्त है !

बेनचोद ! तेरा लौड़ा कौन सा क़ुतुब मीनार से कम है ?

फाड़ डालो अपनी मालकिन माल को !

आज से मैं उसकी बीवी, तुम सबकी रंडी बन गई हूँ, कमीनो, चोदो मुझे !

दिखा दो मुझे मेरी औकात ! दिखाओ !

चल भानु चोद इसको ! तेरी पहली बारी ! मैंने तो चोद लिया था कुछ देर पहले !

भानु सीधा लेटकर मुझे दावत देने लगा। मैंने उसके लौड़े पर थूक लगाया उसकी तरफ पीठ करके गांड में लौड़ा लेकर बैठ गई। मेरी गांड में लौड़ा घुसा तो वो बहुत खुश हुआ।

दो तीन मिनट चुदने के बाद बिरजू खुद बोला- चल शिंदे, डाल दे आगे से इसकी फुदी में लौड़ा !

मैंने थोड़ी टांगें फैला ली, उसने भानु की जांघों पर बैठ मोर्चा संभाल लिया। देखते ही देखते दोनों मुझे चोदने लगे। एक साथ चोद बहुत खुश थे।

रामसरन ने मुँह में घुसा दिया। बिरजू भी कभी कभी बीच में अपना टोपा चुसवा लेता। दस पन्द्रह मिनट की चुदाई के बाद दोनों ने पानी छोड़ दिया। फिर बाकी दोनों ने मारी।

सबने मार ली तो बिरजू बोला- कमीनो, अब निकल जाओ सभी ! अपनी भाभी और भाई को अकेले छोड़ दो !

उसने मुझे गोदी में उठाया और हम दोनों बाहर जाकर टयूबवेल के टब में नहाने लगे। वहीं मुझे चूमने चाटने लगा, गीली गीली को उठा कमरे में ले गया, दोनों ने एक एक पेग खींचा। मैं बिरजू से लिपटने लगी। मुझे वो बहुत पसंद था, वो मुझसे अब बीवी की तरह बर्ताव करने लगा। मैंने भी उसको पूरा मजा दिया। एक घंटा दोनों कमरे में रुके। उसने मुझे जी भर के प्यार किया और फिर मेरी औकात मुझे पता चल चुकी थी।

यह तो थी दोस्तो, मेरी चुदाई ! आगे चल कर ऐसा कोई वाकया हुआ तो ज़रूर लेकर आउंगी !

सबकी रांड अंचल

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