केयर टेकर-2

कहानी का पिछला भाग: केयर टेकर-1

एक सप्ताह बाद सवेरे प्रीतम आया और कुछ पैसे मुझे दे गया। बता गया कि शाम को कुछ बिजनेस के काम से चार लोग आ रहे हैं, सामने से चिकन ले आना और बना देना… बाकी मैं कर लूँगा।

‘ठीक है बाबू जी, पर इतने दिन कहाँ रहे?’

‘तू तो ठीक है ना… उन लोगों का मनोरंजन भी करना है… समझ ले… तेरी परीक्षा जैसा है।’

‘वो तो तुम देख ही लेना… मस्त कर दूँगी राजा…’

शाम तक मैंने चार चिकन लाकर उन्हें बेक करके लाल सुर्ख बना दिया, चाट मसाला से सजा दिया।

करीब सात बजे शाम ढलते ढलते वो चारों प्रीतम के साथ आ गये। मैंने भी लाल सुर्ख छोटी सी स्कर्ट पहन कर जांघें ऊपर तक नंगी कर ली। स्कर्ट को तो बस थोड़ा सा उठाना था चुदाने के लिये।बला सी लग रही थी मैं… ऐसा मुझे प्रीतम ने कॉप्लीमेन्ट दिया।

आठ बजे तक उनकी मीटिंग चली। फिर प्रीतम ने मुझे आकर कहा- ड्रिंक सर्व करनी है।

मैं ड्रिंक सजा कर और इठलाती हुई ड्राईंग रूम में आ गई। सबकी नजरें मुझ पर गड़ गई। मेरे झुकने पर ऊपर से मेरे बोबे झांकने की कोशिश करने लगे और नीचे मेरी नंगी जांघों को अपनी नजरों से सहलाने लगे।
मैं इतराते हुये अपने कूल्हों को मटकाते हुये उनके बीच में एक व्यक्ति की ओर अपनी गाण्ड उभार कर ड्रिंक रखने लगी। उस व्यक्ति ने मेरे गाण्ड के गोले सहला दिये।

‘उईईई मां… ये क्या…?’

फिर मुस्करा कर उस व्यक्ति को देखा।

उसकी आंखों में एक चमक थी।

मैं ड्रिंक बना कर सभी को सर्व करने लगी। सभी ने मुझसे कुछ ना कुछ छेड़खानी की। फिर सबने चीयर्स करके एक एक सिप लिया। अधिकतर व्यक्ति पचास से अधिक की उम्र के थे। बस एक था जो चालीस का लग रहा था।

एक ने शराब पीते पीते मेरी कमर पकड़ ली और मेरे साथ जैसे नाचने की कोशिश करने लगा। मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसकी गाण्ड के गोले दबा दिये। फिर धीरे से हाथ आगे लाकर उसका लण्ड पकड़ लिया। वो नशे में किलकारी मारने लगा।

मैं उसे लगभग धकेलेते हुये बेडरूम में ले गई। फिर तो उसने मुझे बिस्तर पर पटक दिया। मैंने जल्दी से उसका पैंट खोल दिया, उसकी ढीली सी चड्डी नीचे सरका दी और उसका लण्ड मलने लगी। वो मेरे ऊपर लेटा हुआ आहें भरने लगा।

उसका लण्ड तन्ना गया था। मैंने अपनी स्कर्ट ऊपर सरकाई और अपनी चूत से उसका लण्ड चिपका दिया। पर उसमें तनाव कम था। वो चूत में नहीं घुस सका। मैंने उसे ऐसे ही हिला हिला कर मस्त कर दिया और और उसका माल निकाल दिया। फिर उसे प्यार से चूम कर उसे बैठक में भेज दिया।

कुछ ही पल में दूसरा व्यक्ति बेडरूम में था। उसकी उमर का ख्याल रखते हुये मैंने उसे बिस्तर पर लेटा दिया और उसे खूब चूमा। फिर उसका लण्ड बाहर निकाल कर उसे चूसा। पर उसका लण्ड तो रबड़ की तरह ढीला ही रहा। पर हां, झड़ने पर उसमें से थोड़ा सा ही रस निकला।

तीसरा जो सबसे अधिक उम्र का था वो आया ही नहीं पर चौथा जो जवान था वो बेडरूम में आ गया। मुझे लगा कि यह जरूर मेरा उद्धार कर देगा। उसने तो मुझे अपनी बांहों में उठा लिया। मैंने अपनी टांगों को उसकी कमर से लपेट लिया। मेरी चूत उसके कठोर लण्ड से नीचे टकराने लगी। उसने उसी तरह से उठा कर मुझे बेड पर आड़ा लेटा दिया। उसका लण्ड भले ही मोटा ना हो पर लम्बा जरूर था। उसने धीरे से लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया।

‘ये क्या… आपकी चूत तो सूखी पड़ी है… मतलब कोई माल जैसा तो है ही नहीं…’

‘किसमें दम था राजा जो मुझे पेलता… शेर तो एक तुम ही निकले…’

फिर उसने मुझे जम कर चोद दिया। पर माल तो उसने बाहर ही टपकाया। मैंने रूमाल से उसके माल को लपेट लिया और उसका लण्ड फिर चूस चूस कर स्वच्छ कर दिया।

कुछ ही देर में महमान चले गये। मैं स्नान करने चली गई। प्रीतम टीवी बन्द करके सीडी समेट रहा था। और गिलास और बोतलें वापस अलमारी में रख रहा था। मेरे स्नान करके आने के बाद प्रीतम ने मुझे बहुत प्यार किया।

‘आज तो सभी खुश हो कर गये है… मुझे तो अब करोड़ों का धन्धा मिलने वाला है।’

‘आपको…? नहीं सेठ जी को…!’

‘हाँ हाँ ! वही तो…’

‘कल मेरा एक और क्लाईंट आने वाला है… प्लीज उसे भी खुश कर देना…’

‘अरे यार… कहने की बात है क्या?’

‘पापा से कह कर तुम्हें इस काम का जरूर कुछ दिलाऊँगा !’

‘पापा से !?!’

‘ओ बाबा, मेरा मतलब है कि पापा से कह कर सेठ जी को तुम्हें कुछ दिलवाने को कह दूँगा।’

मुझे शक सा हो गया था कि कहीं यह सेठ जी का बेटा तो नहीं है… मैंने दूसरे दिन ही पता कर लिया था कि वो तो सच में सेठ जी का इकलौता बेटा ही है। मैं तो बहुत खुश हो गई यह जानकर। बस प्रीतम को पटा कर रखो… नौकरी पक्की समझो। अब मैं और सावधान हो गई थी।

आज मैंने उसके इकलौते क्लाईंट के लिये स्पेशल सी रेसेपी बनाई थी। जब प्रीतम उसे लेकर आया तो उसने बताया कि रियल स्टेट के एक छत्र बादशाह हैं… अगर ये खुश हो गये तो फिर हमारा फ़ायदा ही फ़ायदा…

‘तो आपको जो मीटिंग करनी है… कर लेना और फिर उसे मेरे हवाले करके घण्टे भर तक यहाँ नहीं आना।’

समय पर उनके क्लाईंट विक्रान्त आ गये थे… बातचीत समाप्त करके उसने मुझे बुला लिया।

‘विक्रान्त जी, ये कामिनी हैं… मेरी दोस्त हैं… सिर्फ़ दोस्त… आप इनसे बात कीजिये… ड्रिंक लीजिये… मैं जरा ये पेकेट पास में दे आता हूँ।’

प्रीतम चला गया। मैंने अब अपना रौब जमाना शुरू कर दिया। अंग्रेजी में बात करने से वो बहुत खुश हुआ। मैं उसके पास चिपकती गई। वो भी मेरा समीप्य पाकर आनन्दित हो रहा था।

‘आप तो हमारे जैसे मेहमानों को खुश करने के लिये ही हैं ना?’

‘जी, मैं प्रीतम की मित्र हूँ… मैं वो नहीं हूँ जो आप समझ रहे हैं !’ मैंने उसे तिरछी नजरों से वार करते हुये कहा।

‘पर मैं तो आपकी नजरों से ही घायल हो चुका हूँ।’

‘नॉटी, फ़्लर्ट कर रहे हो…’

उसने मेरे सोफ़े पर रखे हुये हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया। उसकी यह अदा मुझे बहुत अच्छी लगी। मैंने उसका कोई विरोध नहीं किया

‘प्लीज, मुझे बहुत शर्म आ रही है… यह हाथ…’

‘उफ़्फ़्फ़ ! क्या अदा है… मर गया मैं तो…’

उसने धीरे से मेरा हाथ अपनी ओर खींचा। मैं जानबूझ कर विक्रान्त की गोदी में जा गिरी। उसके मजबूत हाथों ने मुझे जकड़ सा लिया और उसका चेहरा मेरे चेहरे पर झुक गया। मैं तो खुशी के मारे झूम उठी। उसके खुशबूदार होंठ मेरे होंठो से टकरा गये। मैं जान करके अपने आप को उससे छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी। फिर मैंने अपने आप को उसके हवाले कर दिया। फिर तो उसने मुझे खूब चूमा, मेरी चूचियाँ दबाई, मेरी चूत को सहलाया, उसका लण्ड तन कर मुझे बुलाने लगा।

‘चलें…’

‘कहाँ विक्रान्त जी…?’

‘उस कमरे में…’

‘देखिये कुछ करियेगा नहीं… मैं कोई ऐसी वैसी लड़की नहीं हूँ…’

उसने मेरी कुछ ना सुनी और मुझे अपने दोनों हाथों पर उठा लिया। मेरी साड़ी को उसने एक झटके में उतार दिया।

‘अरे ! यह क्या कर रहे हैं आप… प्लीज बस ऊपर ही ऊपर से कर लीजिये ना…’

उसने जल्दी से मेरा पेटीकोट उतार दिया फिर मेरा ब्लाऊज उतार फ़ेंका। मैं उसके सामने एक बेसहारा लड़की की तरह खड़ी हो गई। उसने अपना पैंट और कमीज उतार दिया। फिर मेरे सामने ही उसने अपनी चड्डी भी उतार दी।

ओह बाबा ! इतना मस्त लण्ड… बेहद तन्नाया हुआ… काबू से बाहर होता हुआ… बहुत मोटा लग रहा था। उसका लाल सुपारा मेरी तो जान ही ले रहा था।

‘अब आप भी पैंटी उतार दें… तो आनन्द ही आ जाये…’

मैंने आनाकानी की तो उसने ही अपनी ओर खींच कर मेरी पैंटी उतार दी। फिर उसने मेरी ब्रा भी उतार दी। मैं तो शरम से अपने अंगों को छुपाती हुई वहीं जमीन पर बैठ गई। मुझे अपनी इस नाटकीय पारी में बड़ा आनन्द आ रहा था। उसने मेरी ठुड्डी पर हाथ रखते हुये मेरे चेहरे को ऊपर उठाया।

‘सुन्दर… बहुत सुन्दर… आओ… हमारे लौड़े पर बैठ जाओ…’

‘प्लीज नहीं… वो तो अन्दर घुस जायेगा…’

‘प्लीज… कामिनी… चूत होती ही लण्ड को घुसाने के लिये है… इसमें शरम कैसी… आज नहीं तो कल… लण्ड तो इसमें घुसेगा ही !!!’

मुझे उसने खड़ा कर दिया और प्यार से बिस्तर पर लेटा दिया। मेरा तो आनन्द के मारे बुरा हाल था। उफ़्फ़ ! जाने कब यह अपना लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ेगा। पर कोई अधिक समय नहीं लिया उसने। वो तो पहले ही बहुत अधीर हो चुका था। उसने अपने शरीर का भार मुझ पर डालते हुये अपना सुपारा मेरी चूत पर लगा दिया। फिर उसने हल्का सा जोर लगाया। यूँ तो मैं कई लण्ड खा चुकी थी पर उसका सुपारा मेरी चूत को खोलने में बहुत जोर लगा रहा था।

‘लग रही है प्लीज… अब इतना भी क्या मोटा है?’

उसने फिर से कोशिश की, सुपारा अन्दर घुस ही गया।

‘उईईई… धीरे से… मेरी तो फ़ट जायेगी…’

‘लग रही है क्या? अच्छा धीरे धीरे…’

सच में वो तो प्रयास तो धीरे से ही कर रहा था, पर वो मोटा बहुत था। उसने थोड़ा सा और अन्दर लण्ड को डाला और बाहर निकाल कर मुझे चोदने लगा।

‘उईईई मां… बहुत लग रही है… धीरे धीरे… प्लीज…’

जैसे ही वो लण्ड को और अन्दर घुसाने का प्रयत्न करता मेरी तो जैसे जान निकल जाती। फिर तो अचानक जैसे मेरी एक जोर से चीख निकल गई। उसने दो तीन वार में अपना लण्ड चूत की गहराई में घुसा दिया था। मैं छटपटा सी गई। पर अब उसकी बेताबी सीमा लांघ गई थी। उसने ताबड़तोड़ चुदाई शुरू कर दी थी। बहुत तकलीफ़ हुई पर कुछ ही देर में मुझे आनन्द लगा था। दर्द होते हुये भी आनन्द के मारे मैं झड़ गई थी।

‘बस करो विक्रम… मैं तो हो गई…’

‘पर मैं तो नहीं हुआ ना…’

उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। फिर तो जो हुआ मैं सोच भी नहीं सकती थी। उसने मुझे पलट कर मेरी गाण्ड में अपना लण्ड घुसा दिया। मैं दर्द के मारे तड़प उठी। जैसे जैसे वो मेरी गाण्ड मारता मेरी गाण्ड में जोर से लग जाती। मैं तो खूब रोई और चिल्लाई। पर वो मेरी गाण्ड मारता ही चला गया।

काश मैंने प्रीतम को बाहर ना भेजा होता। फिर वो जोर से झड़ने लगा। उसका वीर्य मेरी गाण्ड के गोलों पर विसर्जित होने लगा। मैं तो घायल सी निढाल पड़ी हुई थी। शायद मेरी चूत और गाण्ड फ़ट गई थी, खून निकल रहा था। विक्रम ने ज्यों ही खून देखा… तो बजाय घबराने के… वो तो मुझसे लिपट कर मुझे चूमने लगा।

विक्रम बाथरूम में जाकर पानी और तौलिया ले आया और मेरा खून साफ़ किया और फ़र्स्ट एड किया।

‘माफ़ करना कामिनी… मुझे तो आपने बताया ही नहीं थी… आपको आज तक किसी ने नहीं चोदा है?’

मैं यह सुन कर चौंक गई…

‘जी… यह भी कोई बताने की बात है क्या?’

‘मैंने तुम्हें चोद दिया… मुझे इसका बेहद अफ़सोस है…’ फिर उसने अपनी पॉकेट से ढेर सारा रुपया निकाल कर मुझे दे दिया…

‘ये क्या… विक्रम जी… मुझे आपने क्या समझ रखा है… आपकी खुशी के लिये मैं तो आप पर न्यौछावर हो गई थी और आप मुझे इन पैसों से तौल रहे हैं?’

विक्रम की नजरें शरम से झुक गई। फिर एकाएक उसकी उसकी आँखें चमक उठी।

‘तुम्हारे कुंवारेपन को मैंने भ्रष्ट किया है… मुझसे शादी करोगी?’

‘पर आप तो शादीशुदा हो ना!?!’

‘तो क्या हुआ… मैं आपको अलग से शानदार बंगला दूंगा… गाड़ी दूंगा… नौकर-चाकर दूंगा… तुम्हें कभी कोई तकलीफ़ नहीं होने दूंगा।’

‘नहीं नहीं… मेरे कारण आपकी पत्नी को बहुत कष्ट होगा… प्लीज भूल जाइये इन सब को।’

बाहर खड़ा हुआ प्रीतम यह सब सुन रहा था, अन्दर आते हुये उसने मजाक में कहा- अरे यार, मेरी दोस्त को कहाँ ले जा रहे हो?

मैंने शरमाने की कोशिश की।

विक्रम बोला- भई, हमें तो आपकी ये मित्र बहुत पसन्द आई है… जब ये तुम्हारी मित्र बनने योग्य है तो ये हमारी भी मित्र हो सकती हैं। तभी हमने इसे अपनी दूसरी पत्नी बनाने का सोचा है।

‘अजी, ले जाओ जी… बाप का माल है…’ फिर गम्भीर होता हुआ बोला… ‘मजाक तो नहीं कर रहे हो ना… यह वैसे भी हालात की मारी हुई है।’

विक्रम मुस्करा उठा- आपने अनुमति दे दी…बस कल इसे मेरे नये घर में भेज देना… उसका उद्घाटन मैं कामिनी जी से ही करवाऊंगा।

विक्रम ने एक बार मुझे देखा और प्रीतम को हाथ उठा कर कहा … भूलना मत, वर्ना तुम्हारी डील गई… कमिनी को लेकर आओ तो डील के पेपर भी साथ ले आना।

मैं विस्मित निगाहों से दोनों को देखने लगी कि यह क्या हो गया ! क्या यह हकीकत है या कोई सपना?

विक्रम का घर प्रीतम के फ़ार्म हाऊस से दूर था। सुबह से ही विक्रम के फोन पर फोन आ रहे थे। ठीक ग्यारह बजे विक्रम की शानदार गाड़ी आ गई थी।

मैंने प्रीतम को देखा… और रो पड़ी।

‘मत रो, कम्मो ! तुझे एक घर मिल रहा है… चली जा, फिर यह फ़ार्म हाऊस तो हमेशा तेरे लिये खुला ही है ना… अगली बार मेरी मित्र बन कर आना… नौकरानी नहीं…’

गाड़ी चल पड़ी थी… नई उमंगों के साथ… पर मुझे तो प्रीतम भी चाहिये था और विक्रम भी… सब कुछ चाहिये था !!! जी हाँ सब कुछ चाहिये था…

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