असीमित सीमा-2

जवाहर जैन 2011-11-28 Comments

लेखक : जवाहर जैन

दोनों के पहुँचने पर श्रद्धा ने सीमा से कहा- क्या बात है, मेरी वजह से आपको यहाँ दिक्कत हैं क्या, जो आप दोनों बाहर चले गए थे?

सीमा हंसकर बोली- हाँ, आपके सामने हम नंगे कैसे होते, इसलिए ये मुझे टायलेट में ले गए थे।

सीमा की इस बेतकल्लुफी से मैं हड़बड़ा गया और बोला- अरे नहीं, मैं सामने वाली टायलेट में गया था।

श्रद्धा बोली- जस्सूजी, आप लोगों को देखने मैं उस तरफ गई थी, मुझे भी यूरीनल जाना था इसलिए आपके सामने वाली टायलेट में तो मैं गई थी, मुझे उसी समय लग गया था कि सामने वाली टायलेट में आप दोनों हैं।

अब सीमा की भी हालत खराब हो गई। हम दोनों अलग-अलग तर्क देकर श्रद्धा को यह बताने का प्रयास करते रहे कि हमने वैसा कुछ नहीं किया है, पर श्रद्धा नहीं मानी।

उसने साफ साफ़ पूछा- तुम लोगों ने आपस में क्या किया है, मुझे बताओ…

मैं वादा करती हूँ कि किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, पर यदि नहीं बताते तो फिर मैं सबको बता दूँगी कि तुम दोनों एक साथ एक ही टॉयलेट में गए थे।

उसकी धमकी से पहले सीमा डरी और बोली- हमने किया कुछ नहीं हैं। जस्सूजी को मेरी पूसी और बूब्स देखने थे, मैंने इन्हें वही दिखाये बस।

श्रद्धा के चेहरे पर विजयी मुस्कान आ गई।

उसने कहा- क्यों जस्सूजी? इसे तो आपने नंगी करवा लिया, पर आप नंगे नहीं हुए?

मैंने कहा- मेरे नंगे होने का वहाँ टाइम ही नहीं था, कोई टायलेट में ना आ जाए इसलिए हम डर रहे थे।

सीमा श्रद्धा से बोली- आप इस बात को किसी से मत कहना प्लीज, नहीं तो मेरी मम्मी ट्रेन में ही हैं, वे मुझे वापस ले जाएँगी।

श्रद्धा बोली- नहीं रे ! मैंने पहले ही बोला ना, मैं किसी को नहीं बताऊँगी। तुम्हारे जाने के बाद संचेती अंकल आए थे, यहाँ हमें जस्सूजी के भरोसे छोड़कर वे एसी सेकेंड क्लास में गोलछा परिवार के साथ बैठे है। सो अब तुम लोग यहीं एन्जाय कर सकते हो।

सीमा बोली- तुम्हारे सामने?

श्रद्धा बोली- हाँ ! मैं तुम लोगों की धींगामस्ती भी देखूंगी और बाहर का कोई भी तुम्हें ना देखे इसकी चौकीदारी भी करूंगी, क्यों जस्सूजी चलेगा ना?

बाबा ने तो मुझे इस ट्रेन में ही स्वर्ग का आनन्द दे दिया, बिना किसी धार्मिक स्थल में गए यह अनूठा सुख मुझे मिल रहा है सो मैंने तुरंत हामी भरी और सीमा की ओर देखा।

सीमा बोली- कहीं मेरी मम्मी आ गई तो?

श्रद्धा बोली- यहाँ तुम लोग चुदाई करना, वहाँ मैं पहले बाहर दोनों ज्वाइंट तक फिर आसपास भी नजर रखूंगी, ताकि तुम लोगों को कोई डिस्टर्ब न करे। ठीक हैं ना?

मैंने तुरत हाँ में गर्दन हिलाई और सीमा ने भी स्वीकृति दे दी।

अब श्रद्धा बोली- तो लगो जल्दी और हाँ सब नंगे होकर मत करना, जितने जरूरी हों, कपड़े उतने ही उतारना ओके?

अब तक सीमा और श्रद्धा आसपास बैठे थे और सामने मैं अकेला था। अब श्रद्धा ने सीमा को मेरी सीट की ओर धकेला लिहाजा सीमा मेरे बाजू में आ गई, और वह खुद बाहर से आने वाले किसी सम्भावित खतरे से हमें सुरक्षित रखने, आगाह करने बाहर हो गई।

मैंने सीमा को अपनी बाहों में लिया, और उसके होंठो को अपने मुंह में लेकर खूब चूसा।

मेरा मन उसकी मस्त चूत पर ललचा गया था, इसलिए अपने हाथ से उसकी स्कर्ट को ऊपर कर उसकी पैन्टी को नीचे करने लगा।

तब तक श्रद्धा भी बाहर नजर मार कर आ गई, वह सीमा से बोली- तू अपनी पैन्टी उतारकर रख ले ना, स्कर्ट को ऊपर कर दे।

अब सीमा खडी हुई और पैन्टी उतारकर अपने बैग में डाल ली। सीमा की ऐसी खुली चूत देखकर मैं खुश हो गया और सीमा अब बर्थ पर आकर लेट गई। श्रद्धा कूपे के बाहर देखने में लगी और मैं उसकी चूत को चाटने में लग गया। चूत में आगे पीछे कई बार चाटने के बाद मैं उसकी चूत के होल में जीभ डालकर हिलाने लगा। उसकी चूत का स्वाद अब बदल गया था। चूत से पानी की धार बहने लगी, जिसे मैं पूरा गटक रहा था।

अब श्रद्धा आई और बोली- अरे चूत बाद में चाट लेना जस्सू, पहले चुदाई में लगो जल्दी।

उसकी चूत से पानी अब भी आ रहा था।

मैंने अब ज़िप खोलकर अपने तने हुए लंड को बाहर किया और उसकी चूत के छेद में रखा।

श्रद्धा बोली- सीमा इसके लंड को मुंह में रखकर गीलाकर दे ताकि यह तेरी चूत में आसानी से घुस जाए।

उसकी बात सुनकर मैंने अपना लंड सीमा के मुँह पर लाया सीमा ने लौड़े को पहले चूसा, फिर मुँह में घुसेड़ कर मानो उसे पूरा लीलने का प्रयास कर रही हो। फिर बाहर निकालकर उस पर थूक अच्छी तरह से लपेट दी।

अब मैं उसकी चूत पर अपना लंड लगाया और अंदर की ओर धक्का मारा। मेरे पहले धक्के में ही सीमा कराह उठी। उसकी आवाज सुन कर श्रद्धा भीतर आई, और उसके चुच्चे दबाने लगी, मुझे बोली- इसे किस करो ताकि आवाज बाहर न जाए।

मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ जमा दिए। पर मेरा लंड अभी तक आधा ही अंदर गया था। उसके होंठ से आवाज बाहर ना निकल पाए यह ध्यान रखते हुए लंड को अंदर डालना शुरू किया। उसकी एक जोरदार कसक के बाद अब मेरा लंड चूत में पूरा समा गया। अब

वह भी मानो मेरा लंड चूत में समाने ऊपर उछलने लगी। उसके मुँह से आ रही कराह के बदले में आनन्ददायी शब्द निकलने लगे।

श्रद्धा बोली- आया न मजा अब?

मुझसे बोली- जस्सू, तुम अपना माल भीतर मत छोड़ना, नहीं तो यह मां बन जाएगी।

उसकी बात पर हमारा ध्यान नहीं था। अब मेरा गिरने वाला था तो मैंने अपनी स्पीड को और बढ़ा दिया।

तभी सीमा ने मुझसे जोर से चिपककर उछलना बंद कर दिया।

अब मेरा भी गिरने लगा। बाहर गिराऊँगा यह सोचकर मैं लौड़ा बाहर निकाल रहा था, तब भी आधा उसकी चूत में ही छूट गया। लंड बाहर करके हम एक दूसरे से चिपके।

तब श्रद्धा बोली- काम हो गया ना ! चलो अलग हो जाओ ! फिर से गरम मत होना, ट्रेन में हैं अपन। कोई आ गया तो गड़बड़ हो जाएगी।

मैंने सीमा को एक जोरदार चुम्बन लेकर छोड़ा। वह भी उठ गई, अब हम अपने कपड़े ठीक करने लगे। सीमा ने पैन्टी बैग से निकालकर पहन ली। बर्थ में बिछी चादर को हम लोगों ने हटा दिया था। अब बर्थ को उसी चादर से साफ करके चादर वापस बिछा दी।

श्रद्धा सीमा को बोली- अब टायलेट में जाकर चूत को अच्छे से धोना अंदर उंगली डालकर, माल रूका हो तो उसे भी साफ कर लेना ताकि खतरे की कोई बात न रहे।

सीमा टायलेट गई।

कूपे में अब मैं व श्रद्धा ही थे, मैंने श्रद्धा से कहा- आपके सहयोग से हमने यह काम कर लिया, नहीं तो हम कर ही नहीं पाते। इसके लिए हम आपके सदा आभारी रहेंगे।

श्रद्धा बोली- बस खाली आभार…?

मैंने कहा- तो बताइए आपको क्या दें?

श्रद्धा बोली- अभी तो इस ट्रेन में रात बाकी हैं जस्सूजी। रात में आपको मेरी ड्यूटी करनी होगी।

मैं बोला- तो आप को भी चुदना है?

“छी:…छी…छी… मुझे ये सब नहीं कराना है, रात में आप इसी कूपे में रहना, मैं बताऊँगी ना !”

अब सीमा भी टायलेट से आ गई। हम लोग वैसे ही अलग-अलग बैठकर बात कर रहे थे। तभी संचेतीजी आ गए।

उन्होंने हमसे पूछा- सफर ठीक कट रहा हैं ना?

हम लोगों ने सकारत्मक जवाब दिया। वे रात के खाने की बात करने लगे। अब रात को श्रद्धा मुझसे क्या करवाएगी? यह बात मेरे दिमाग में घूम रही थी।

कैसा रहा मेरा यह सफर, और कैसी गुजारी मैंने इस ट्रेन में रात, क्या करवाया श्रद्धा ने मुझसे अपने लिए…

यह सारी बात जानिए अगली कहानी में !

यह कहानी आपको कैसी लगी, कृपया बताइए !

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