जीना इसी का नाम है-3

(Jeena Isi Ka Naam Hai-3)

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बाइक को सड़क के एक तरफ ले जाकर मैंने लॉक कर दिया और हम दोनों किसी तरह उस छोटी पहाड़ी पर चढ़ कर फायर वाचर के रूम में पहुँच गए पर वहाँ कोई नहीं था। बारिश होने से आग लगने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी इसलिए वो शायद अपने घर चला गया होगा।
कमरा में अँधेरा था, सिर्फ एक ही दरवाजा था और दरवाजे के ओपोजिट एक खिड़की थी, खिड़की में लोहे के सरिये लगे थे।
अनीता ने मोबाइल का टॉर्च जलाया, वह एक पक्के फ़र्श वाला 10×12 फीट का कमरा था, कोने में एक मटका था जिसमें पानी था, बीड़ी के कुछ अधजले टुकड़े थे, और कुछ नहीं था।

यहाँ हमने मटके में हाथ डाल कर हथेली से पानी पिया, कुछ राहत थी, बारिश का पानी नहीं लग रहा था, अनीता बोली- दरवाजा बंद कर लो जंगली जानवरों का खतरा है।

मैंने कहा- अनीता, टार्च बंद कर दो नहीं तो बैटरी ख़त्म हो जाएगी।
अनीता ने टार्च बंद कर दी।

अनीता खिड़की के पास जाकर बाहर देखने लगी, मैं फ़र्श पर बैठ गया और दीवार से पीठ टिका दी।

बिजली चमकती तो अनीता का दूध जैसा चेहरा नजर और बदन नजर आता। उसने पर्स में हाथ डाल कर सिगरेट निकाली, लाइटर से जला ली और कश लगाने लगी।

उसे देख कर मेरी सोई हुई नियत फिर ख़राब हो गई, उसे चोदने के लिए मन मतवाला हो गया, लंड तन कर खड़ा हो गया।

मैं ध्यान से अनीता को सिगरेट पीते हुए देख रहा था, वो बोली- तुम भी सिगरेट पीयोगे?

मैंने कालेज टाइम में सिगरेट पी थी, मैंने कहा- तुम दूसरी जला लो, मैं यह आधी वाली ही ख़त्म कर सकता हूँ।

मैंने उसकी जूठी सिगरेट मुँह से लगा ली वो दूसरी सिगरेट जलाने लगी।
उसके होंठों से निकली सिगरेट अपने होंठों में दबाते ही मुझे झटका सा लगा कि जैसे मेरे होंठ उसके लबों पर हैं।
मैं उसकी बगल में खड़ा हो गया, हम दोनों एक दूसरे से सटे जा रहे थे, उसका पैर मेरे पैर को छू रहा था और बदन भी आपस में स्पर्श कर रहे थे, अनीता दूर नहीं हो रही थी बल्कि शरीर से शरीर को टच होने दे रही थी।

मैंने खड़े खड़े अपने हाथ की कोहनी उसके पेट के नंगे हिस्से पर लगा दी, अनीता ने कोई विरोध नहीं किया।
अब मैंने जरा हल्के से अपनी कोहनी उसके पेट पर मारी इस पर भी वो कुछ नहीं बोली।

मेरा होंसला बढ़ रहा था, अब मैंने अपने एक पैर का घुटना थोडा मोड़ कर उसकी जाँघों पर टच किया, जींस टाइट थी, उसने अपनी जांघों पर मेरा घुटना रेंगता महसूस किया होगा पर वह अनजान बनी रही और इधर उधर की बात करने लगी, बोली- खिड़की में झांको, बिजली चमकती है तो पूरा नजारा दीखता है, मुझे बारिश देखना अच्छा लगता है, तुम भी देखो।

मैंने साइड से अपना शरीर उस पर रगड़ते हुए खिड़की में झाँका तो उसने एक हाथ मेरे गले में डाल दिया बोली- यहाँ से दूर दूर तक जंगल व पहाड़ दिखाई दे रहे हैं।

अनीता मुझसे कुछ ज्यादा ही चिपक गई थी।
अब मैं एक हाथ उसकी कमर में डाल कर उसके पेट पर हाथ फेरने लगा था, अनीता चुपचाप साइड से मेरी बांहों में थी, उसका सर मेरे सीने से लगा था, अधिक पास आने से उसके उरोज भी दबे जा रहे थे।
पर वो इस पोजीशन से अनजान बनने का नाटक करते हुए इधर उधर की बात कर रही थी- सौरभ, तुम ज्यादा गीले हो गए हो।

मैंने कहा- नहीं…

मैं बराबर उसके जिस्म को सहला रहा था, मैं अपने पैर को उसके पैर से पूरी लम्बाई में रगड़ रहा था, मेरा एक एक हाथ उसके पेट पर फिर रहा था, इसी हाथ से मैं उसको साइड से बांहों में भींच लेता था।

वो न सहयोग कर रही थी, न विरोध… कुछ देर मेरे लिए सहन करना मुश्किल हो गया, मैंने उसके गाल पर एक चुम्मा कर दिया और चेहरा अपनी और घुमा कर उससे कस कर चिपक गया।

उसने मेरी पीठ पर धीरे से हाथ टेक दिया।

अब मैंने उसे चूमना शुरू कर दिया, गले पर, माथे पर… फिर पूरी ताकत से उससे चिपक गया।

वो घबरा गई, पहली बार बोली- यार, अब तो छोड़ दो…

फिर नीचे झुक कर उसने मेरी बांहों की कैद से अपना सर निकाल कर अपने को आजाद किया, मैं वापस उसे बांहों में भरने के लिए उसकी ओर बढ़ा, वो पीछे हटने लगी, मैं बढ़ता रहा।
आखिरी में वो दूसरी तरफ की दीवार से जाकर टिक गई, मैं उस पर छा गया, मेरे व दीवार के बीच में उसका कोमल गीला और जवान बदन दब रहा था, वो बचने के लिए दीवार के सहारे पीठ सटाते नीचे बैठ रही थी, अंत में वो नीचे बैठ गई, उसके दोनों पैर और कूल्हे फ़र्श पर थे, उसकी पीठ दीवार पर लगी थी।

अब मैं भी उसके ऊपर आ गया, उसके सीने पर अपना हाथ लगा लिया और धीरे से बूबे दबाने लगा।

वो बोली- यार रुको तो…

मैं उसके ऊपर से हट गया और उसके बगल में उसी के समान पोजीशन में बैठ गया।

मैंने देखा कि अनीता को किसी प्रकार से घबराहट या परेशानी नहीं हो रही थी।
अब मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया और उसके होंट चूसने लगा।

अब वो बराबर साथ दे रही थी, ऐसा करते समय मैंने दोनों हाथों से उसके स्तन दबाना चालू कर दिए उसके उभार बड़े बड़े थे, संतरे के मुकाबले डेढ़ गुना…
कुछ देर बाद अनीता होंट अलग करके बोली- यार, बटन तो खोल ले!

मैंने उसके शर्ट के बटन खोले, फिर पीछे हाथ ले जा कर ब्रा का हुक खोल दिया, दोनों उरोज नंगे हो गए।

अनीता ने अपने वक्ष पर मेरा चेहरा भींच लिया, मैं अपने नाक और होंठ उसके उभारों पर घुमा रहा था, तभी अनीता ने एक हाथ से अपना स्तन पकड़ा और उसका निप्पल मेरे मुख में डाल दिया।
मैं समझ गया कि वो क्या चाहती है।

मैंने बारी उसके चूचुक खूब चूसे, तभी बिजली चमकी मैंने देखा उसके उरोज ऐसे थे मानो संगमरमर के दो नरम टुकड़े जिस पर हल्के गुलाबी रंग की निप्पल लगी थी।

अब अनीता को मैंने चित लेटा दिया और उसकी जींस का बेल्ट और बटन खोल दिया, फिर उसकी जिप नीचे करते गया फिर जींस नीचे खिसकानी शुरू कर दी।

वो पैर मोड़ कर व हिला कर जींस उतारने में पूरा सहयोग कर रही थी।
मैंने उसकी पेंटी खींच कर निकाल दी तो अनीता उठ कर बैठ गई और मेरी पैंट को खींचने लगी।
मैंने अपनी पैंट निकाल दी तो उसने अंडरवियर के ऊपर से टटोल कर मेरे लंड पकड़ लिया और हाथ फेरने लगी।

मेरा लंड तन कर सख्त हो गया, उसने मेरी अंडरवियर नीचे खींचा, लंड झटके के साथ आजाद हो कर हवा में लहराने लगा। अनीता उसे पकड़ लिया और सहलाते हुए उसकी लम्बाई मोटाई व सख्ती का जायजा लेने लगी, फिर धीरे से फुसफुसाई- नाईस, पर बाल साफ क्यों नहीं करते हो?

मेरा लंड अनीता के मुलायम हाथों में जाकर धन्य हो गया।
कहानी जारी रहेगी।

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